@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: आप कहाँ हैं?

रविवार, 1 नवंबर 2009

आप कहाँ हैं?


अनवरत पर यादवचंद्र पाण्डेय की कविताएँ आप पहले भी पढ़ चुके हैं। यहाँ प्रस्तुत है उन की एक विशिष्ट कविता 'आप कहाँ हैं?'

आप कहाँ हैं?
  • यादवचंद्र पाण्डेय
नील गगन में
मनिहारिन घनश्याम नटी का
                पुरना-जुड़ना कितना सुंदर !
नील गगन में 
गोरी-गोरी बगुलों की नागर पाँतो का
                फिरना-तिरना कितना सुंदर !
नील गगन में 
कंचनकाया बच्चों-सा हिमशिखरों का 
                 टुक-टुक तकना कितना सुंदर !
नील गगन में 
जूड़े में नौ लाख सितारे 
टाँक रात्रि का खिल-खिल हंसना 
                 मुसका देना कितना सुंदर !
नील गगन में 
नभ-गंगा के कंठहार से 
हीरा मोती सोना झरना 
                  रोज बरसना कितना सुंदर !
बोल, रे पागल मनुवाँ 
                  कितना सुंदर !  कितना सुंदर !


नील गगन में अट्टहास प्रेतों का 
कोरस-मृत्यु नाश का
और मंगलाचरण अनय का 
                   घोर असुंदर !
नील गगन में बजे नगाड़ा
नखत-युद्ध का,  महाप्रलय का 
कुंठा, भय का
                    घोर असुंदर !
नील गगन में गंध चिराइन, धुआँ विषैला
सूरज-चांद-सितारों का काला पड़ जाना 
                    घोर असुंदर !
आठ अरब के भाग्य सूर्य पर 
राष्ट्र संघ के एक राहु का 
ग्रहण लगाना, मोद मनाना
                    घोर असुंदर
शांति कपोत उड़ाने वालों का 
गिद्धों के साथ गगन में 
मंडराना, सह-भोज रचाना 
                    घोर असुंदर !


घोर असुंदर से सुंदर की रक्षा करना 
                    काव्य कर्म है
                    आप कहाँ हैं ?
घोर असुंदर से सुंदर के हित में लड़ना 
                    शास्त्र धर्म है
                    आप कहाँ हैं ?
घोर असुंदर विषघट को अमृत से भरना 
                     आर्ष सूत्र है
                     आप कहाँ हैं?
                     मुक्ति युद्ध में आप कहाँ हैं?

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10 टिप्‍पणियां:

शरद कोकास ने कहा…

यादवचन्द्र पाण्डेय की यह कवितायें वाचिक परम्परा की कवितायें हैं । आप इनका सस्वर पाठ करके देखिये इन कविताओं मे ध्वनि के प्रयोग से जो प्रभाव उत्पन्न होता है वह अद्भुत है । पुरना -जुडना ,फिरना -तिरना ,टुक टुक तकना इन शब्दों के प्रयोग केवल ध्वनि उत्पन्न ही नही करते बल्कि प्रकृति में जो सहज और सुन्दर है उसके अर्थ को उद्घाटित भी करते है । वहीं दूसरी कविता इस द्वन्द्व को रूपायित करती है कि प्रकृति में सब कुछ सुन्दर ही नहीं है बल्कि असुन्दर भी है और हमे इस असुन्दरता के बर अक्स सुन्दरता को खोज कर उसे सहेज कर रखना है ।

Arvind Mishra ने कहा…

भावपूर्ण कविता !

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

बहुत ही मोहक शब्दों का चयन हर एक पंक्ति सुंदर लगती है..बहुत बढ़िया रचना..बधाई

Ashok Kumar pandey ने कहा…

घोर असुंदर से सुंदर की रक्षा करना / काव्य कर्म है/ आप कहाँ हैं ?/घोर असुंदर से सुंदर के हित में लड़ना /शास्त्र धर्म है/ आप कहाँ हैं ?

घोर असुंदर विषघट को अमृत से भरना/ आर्ष सूत्र है/आप कहाँ हैं?/मुक्ति युद्ध में आप कहाँ हैं?

yah javab har kavi ko apne aap se poochanaa chahiye.

yadavchandr ji ko naman

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

ये सवाल जब जब ज़ेहन में गूंजता है, एक सिहरन सी दौड़ जाती है...

सरोकार स्पष्ट होने लगते है, धुंध छंटने लगती है...

धन्यवाद...

अजय कुमार झा ने कहा…

सिर्फ़ इतना ही कहा जा सकता है ऐसी रचनाओं के लिये...
अद्भुत...बहुत ही अनुपम..

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सुन्दर मोती चुन कर लाते हैं आप पाण्डेय जी को बधाई

विजय प्रताप ने कहा…

घोर असुंदर विषघट को अमृत से भरना

आर्ष सूत्र है

आप कहाँ हैं?

मुक्ति युद्ध में आप कहाँ हैं?

bahut hi sundar! is mukti yuddh me ham sath hain.

कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra) ने कहा…

पढ़ने से ज्यादा सस्वर पाठ करने में आनंद आया। एक शे’र याद आ गया-

शायर हूँ मिरा फ़र्ज़ है आईना दिखाना
मैं बैठ के लाशों पे ग़ज़ल कह नहीं सकता
जो चाहे सज़ा दो मुझे मंजूर है लेकिन
मैं ज़ुल्म पे खामोश कभी रह नहीं सकता

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

अद्भुत! यह सिर्फ़ वाचिक परम्परा की ही रचना नहीं है, बहुत कुछ सोचने पर विवश करती है. यादव चन्द्र पाण्डेय का आह्वान साफ़ तौर पर इस भयावह दौर में अपना पक्ष चुनने का आह्वान है. ऐसी कविताएं आज के समय की ज़रूरत हैं.