मैं चार दिन कोटा से बाहर यात्रा पर रहा। इन चार दिनों में दिल्ली में अनेक ब्लागरों से मिलना हुआ। आप को उस यात्रा के बारे में बताता लेकिन कल रात यहाँ पहुँचने के पहले ही जोधपुर से संदेश मिला कि कल ही वहाँ पहुँचना है और तुरंत टिकट कट गया। अब शनिवार को कोटा पहुँचने पर ही मुलाकात होगी। इस बीच बाल दिवस निकल गया। पुरुषोत्तम 'यक़ीन' की यह बाल कविता बाल दिवस पर छूट गई। चलिए देर 'आयद दुरुस्त आयद' सही। इस कविता को आज पढ़ लीजिए .....
गुटर गुटर गूँ
- पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’
गुटर गुटर गूँ, गुटर गुटर गूँ
श्वेत सलौना एक कबूतर
नाच रहा था अपनी धुन में
गीत प्रीत के अलमस्ती के
सुना रहा था झूम-झूम कर
मौसम सरगम छेड़ रहा था
गुटर गुटर गूँ, गुटर गुटर गूँ
म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ
क़दम दबा कर पूँछ उठा कर
बिल्ली आई और ग़ुर्राई
म्याऊँ म्याऊँ तुझ को खाऊँ
बेचारा मासूम कबूतर
भूल गया सब प्रेम तराने
गुटर गुटर गूँ, ठुमके सारे
डर के मारे आँख मूँद लीं
कानों वाली गर्दन दुबका ली
काँधों में, उसे लगा बस
ख़तरा टला मुसीबत छूटी
म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ
बिल्ली मन ही मन मुस्काई
कैसा है नादान कबूतर
आँख मूँद कर सोच रहा है
ओझल हुई नज़र से बिल्ली
इस का मतलब चली गई मैं
और बच गया वो मरने से
अपनी मूँछों पर बिल्ली ने
पंजा फेरा बड़ी शान से
और कबूतर आसानी से
अपने मुँह में दबा लिया फिर
मन ही मन ऊपर वाले का
शुक्र मनाया म्याऊँ म्याऊँ
देखा बच्चो ! गया जान से
बेचारा मासूम कबूतर
और बिल्ली का काम गया बन
सीना उस का और गया तन
अच्छा बच्चो! अब तुम बोलो
कोई ख़तरा अगर तुम्हारे
सम्मुख आए तब तुम अपनी
समझ-बूझ से बचने की कुछ
राह करोगे ; आने वाले
हर ख़तरे से लोहा लोगे
या ख़तरों से आँख मूँद कर
अपने दुश्मन आप बनोगे
सोचो बच्चो! बडे़ ध्यान से
पहले सोचो फिर बतलाओ
पहले सोचो फिर बतलाओ
श्वेत सलौना एक कबूतर
नाच रहा था अपनी धुन में
गीत प्रीत के अलमस्ती के
सुना रहा था झूम-झूम कर
मौसम सरगम छेड़ रहा था
गुटर गुटर गूँ, गुटर गुटर गूँ
म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ
क़दम दबा कर पूँछ उठा कर
बिल्ली आई और ग़ुर्राई
म्याऊँ म्याऊँ तुझ को खाऊँ
बेचारा मासूम कबूतर
भूल गया सब प्रेम तराने
गुटर गुटर गूँ, ठुमके सारे
डर के मारे आँख मूँद लीं
कानों वाली गर्दन दुबका ली
काँधों में, उसे लगा बस
ख़तरा टला मुसीबत छूटी
म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ
बिल्ली मन ही मन मुस्काई
कैसा है नादान कबूतर
आँख मूँद कर सोच रहा है
ओझल हुई नज़र से बिल्ली
इस का मतलब चली गई मैं
और बच गया वो मरने से
अपनी मूँछों पर बिल्ली ने
पंजा फेरा बड़ी शान से
और कबूतर आसानी से
अपने मुँह में दबा लिया फिर
मन ही मन ऊपर वाले का
शुक्र मनाया म्याऊँ म्याऊँ
देखा बच्चो ! गया जान से
बेचारा मासूम कबूतर
और बिल्ली का काम गया बन
सीना उस का और गया तन
अच्छा बच्चो! अब तुम बोलो
कोई ख़तरा अगर तुम्हारे
सम्मुख आए तब तुम अपनी
समझ-बूझ से बचने की कुछ
राह करोगे ; आने वाले
हर ख़तरे से लोहा लोगे
या ख़तरों से आँख मूँद कर
अपने दुश्मन आप बनोगे
सोचो बच्चो! बडे़ ध्यान से
पहले सोचो फिर बतलाओ
पहले सोचो फिर बतलाओ
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4 टिप्पणियां:
jab aafat aati hai..to pahle to ankhen hi band ho jati hai,,,
"गीत प्रीत के अलमस्ती के
सुना रहा था झूम-झूम कर
मौसम सरगम छेड़ रहा था
गुटर गुटर गूँ, गुटर गुटर गूँ"
यह बनावट देखिये ! मन तरंगित होता है यकीन साहब की कवितायें व गज़लें पढ़कर । आभार ।
बेचारा कबूतर, बहुत सुंदर कविता, ओर कबूतर पर गुस्सा भी आया.
धन्यवाद
बहुत सुंदर कविता.
घुघूती बासूती
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