@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: निगम चुनाव के मतदान के बाद का दिन

मंगलवार, 24 नवंबर 2009

निगम चुनाव के मतदान के बाद का दिन

राजस्थान की कुछ स्वायत्त संस्थाओं के लिए मतदान कल संपन्न हो गए। 26 नवम्बर को मतगणना होगी और पता लग जाएगा कि मतदाताओं ने क्या लिखा है। इस चुनाव में मतदाताओं के पास विकल्प नहीं थे। वही काँग्रेस और भाजपा द्वारा मनोनीत और कुछ निर्दलीय उम्मीदवार। कोटा नगर निगम के लिए भी मतदान हुआ। लोगों का नगर की गंदगी, सड़कों, रोडलाइट्स, निर्माण आदि से रोज का लेना देना है। उन की वार्ड पार्षद से इतनी सी आकांक्षा रहती है कि मुहल्लों की सफाई नियमित होती रहे, रोड लाइट्स जलती रहें, सड़कें सपाट रहें, अतिक्रमण न हों। लेकिन उन की ये आकांक्षाएँ कभी पूरी नहीं होतीं। हो जाएँ तो अगले चुनाव  में उम्मीदवारों के पास कहने को क्या शेष रहे?

पिछली तीन टर्म से कोटा नगर निगम में भाजपा का बोर्ड रहा। नगर की सफाई, रोशनी, अतिक्रमण आदि की स्थिति वैसी ही नहीं है जैसे आज से पन्द्रह वर्ष पहले थी। हर टर्म में बद से बदतर होती गई है। अधिकांश पार्षदों ने अपने रिश्तेदारों के नाम ठेके ले कर अपने बैंक बैलेंस बढ़ाए हैं। उन्हें सफाई के लिए मिलने वाले रोज मजदूरी के मजदूरों की फर्जी हाजरी भर कर ठेकेदार से कमीशन खाने के कीर्तिमान बनाए हैं। नगर वैसे का वैसा है।

मेरे घर के सामने एक पार्क है। इस की व्यवस्था नगर निगम के पास है। जब भी इस की सफाई और घास कटाई की आवश्यकता होती है पार्षद के पास जाना होता है। वह कभी मजदूर लगा देता है कभी हटा देता है। जब वह नहीं सुनता है तो निगम के अफसरों और विधायक को कहना पड़ता है। उस का असर होता है तत्काल कोई न कोई व्यवस्था हो जाती है। लेकिन चार दिन बाद वही अंधेरी रात।

निगम चुनाव के बीस दिन पहले बिना कुछ कहे मजदूर आए साथ आया पुराना पार्षद। पार्क की घास की छंटाई और सफाई कर दी। घास को पानी दिया। रोज सार संभाल होने लगी। नालियाँ सड़कें भी साफ हुई। कचरा भी समय से उठने लगा। लोग प्रसन्न हुए कि चुनाव के बहाने कुछ तो हुआ। कुछ लोगों ने इस अवसर का व्यक्तिगत लाभ भी उठाया। अपने घरों के बागीचों को भी साफ कराया। कुछ ने अपने गमलों में मिट्टी भरवा कर नए पौधे लगवा लिए।

ज मतदान के बाद का पहला दिन है। पार्क से काम करने वाला माली गायब है। आज सड़क बुहारने वाले भी नहीं आए हैं। कचरा परसों उठा था, आज उठने का नंबर था लेकिन अभी तक कोई नहीं आया है, जानते हैं आएगा भी नहीं। आएगा तो तब जब कचरा सड़क रुद्ध करने लगेगा और कोई शिकायत करेगा। मैं सोचता हूँ कि कहीं पार्षद मिल जाए तो उसे कहूँगा। पर उस से भी क्या लाभ मुझे पता है उस का जवाब होगा कि अब तो 26 तारीख के बाद नए पार्षद से बात करना।

6 टिप्‍पणियां:

रंजन (Ranjan) ने कहा…

इस बार मैने फिर वोट नहीं दिया.. अब आदत सी हो गई है..

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

इस चुनाव में मतदाताओं के पास विकल्प नहीं थे। वही काँग्रेस और भाजपा द्वारा मनोनीत और कुछ निर्दलीय उम्मीदवार।

यही तो विडम्बना है मतदाता की कि उसके पास यह विकल्प नहीं है जो यह कह सके ‘इन में से कोई नहीं’ ....... जब कि ऐसा प्रावधान संविधान में रखा गया है॥

उम्मतें ने कहा…

हूँ ...विकल्पहीनता !
क्या हम व्यावहारिक धरातल पर 'लोकतंत्र' भी हैं ? या लोकतंत्र होने का ढोंग कर रहे हैं ? लोक प्रतिनिधित्व की कसौटी पर करोड़पतियों / गुंडे / मवालियों / बाहुबलियों के सामने 'लोक' है कहाँ ? ये तंत्र जो भी है , इसमें टिप्पणीकार रंजन जैसे करोड़ों लोग बेमानी हो गए हैं ! सचेत , जागरूक लोगों का व्यर्थ होजाना किसी भी सच्चे और परिपक्व लोकतंत्र का पर्याय कैसे हो सकता है ?

हमारे हिस्से बेचारगी और विकल्पहीनता !

राज भाटिय़ा ने कहा…

अच्छा है किसी को वोट ही मत दो, क्योकि दिल दुखता है बाद मै

Abhishek Ojha ने कहा…

ये तो क्लासिक केस है चुनाव के पहले और बाद का.

निर्मला कपिला ने कहा…

सब जगह यही हाल है मगर हम विवश से देख रहे हैं कुछ कर नहीं पा रहेआअच्छा आलेख है शुभकामनायें