आज मथुरा में महेन्द्र 'नेह' के नए काव्य संग्रह 'थिरक उठेगी धरती' का लोकार्पण है। उन के पिता श्री विश्वंभरनाथ चतुर्वेदी 'शास्त्री' का स्मृति समारोह भी है। निजि कारणों से इस समारोह में उपस्थित नहीं हो पा रहा हूँ, इस का बहुत अफसोस भी है। इस अवसर पर इस काव्य संकलन से एक कविता आप के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ। शायद इसे ही उस समारोह में मेरी उपस्थिति मान ली जाए।
फिल वक्त
फिल वक्त
खामोश हैं / मेरे साथी
इस खामोशी में
पल रहे हैं बवंडर
इस खामोशी में
छुपी हैं समूची धरती की
झिलमिलाती तस्वीरें / जिन पर
इन्सानी फसलों को तबाह करते
खूनखोर जानवरों ने
रख दिए हैं अपने / भारी भरकम बूट
पाँवो सहित
तोड़ दिए जाएँगे बूट
तब हिंसा नहीं / प्रतिहिंसा होगी मुखर
जब टूटेगी खामोशी
मेरे साथियों की
धरती / अपनी धुरी पर
तनिक और झुकेगी
और तेजी से थिरक उठेगी तब
फिल वक्त
खामोश हैं मेरे साथी।
12 टिप्पणियां:
नेह जी को बहुत बहुत बधाई. क्या आप इस राजस्थानी लोकगीत का सरल हिन्दी भाषा में अनुवाद कर सकते हैं?
महेंद्र नेह जी को बहुत बहुत बधाई इस अवसर पर !
इस सुंदर समय पर हमरी तरफ़ से नेह जी को बहुत बहुत बधाई
महेन्द्र जी को पुस्तक के लोकार्पण की बधाई और आपको हार्दिक धन्यवाद।
महेन्द्र जी बेहद प्रिय गीतकार हैं . उन्हें नए गीत संग्रह के लिये बहुत-बहुत बधाई !
अच्छी कविता ,
उसे महसूस किया !
आपका धन्यवाद !
हमने भी अपने पोस्टरों के जरिए जो अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई है...
उसमें भी एक पोस्टर इसी कविता पर है...
नए काव्य संकलन के प्रकाशन पर बधाई। इतनी कंजूसी से कविताएं न दिया करें। उनकी इस संकलन की कुछ और भी कविताएं दें। अच्छा लगेगा।
सुन्दर कविता। नए काव्य संकलन के प्रकाशन पर महेन्द्र नेह जी को बधाई।
घुघूती बासूती
सुन्दर कविता। नए काव्य संकलन के प्रकाशन पर महेन्द्र नेह जी को बधाई।
घुघूती बासूती
नेह जी को पुस्तक लोकार्पण की बधाई ।
कविता के लिये आभार ।
बहुत बधाई.
मुन्ना भाई ब्लाग चर्चा मे आपका इंतजार कर रयेले हैं. जल्दीईच पधारने का और आपकी राय भी देने का.
मैं आपका इंतजार कर रयेला है. आप आयेंगे तो बहुत अच्छा लगेगा ना.
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