सप्ताह के अंतिम दिन अपनी उत्तमार्ध शोभा के साथ बाजार जाना पड़ा। वहाँ के काम निपटाते निपटाते ध्यान आया कि अदालत में कुछ काम हैं जो आज ही करने थे। मैं शोभा को घर छोड़ अदालत पहुँचा। काम मामूली थे आधे घंटे में हो लिए। तब ध्यान गया कि आज मौसम कुछ बदला बदला है। हवा झोंकों में चल रही थी और रह रह कर उन के साथ ही टीन की छतों पर गिरे पतझर के पत्ते धूल मिट्टी लिए नीचे गिर रहे थे। हवा में न गर्मी थी और न ही चुभोने वाली शीतलता, बस सुहानी लग रही थी। अब लगा कि वसंत ने न केवल आंगन में आ जमा है अपितु नृत्य भी कर रहा है। फिर फागुन याद आया, उसे आने में भी बस तीन दिन शेष हैं। मुझे यह भी ध्यान आया कि यही फरवरी-मार्च के माह चिकित्सकों के लिए कमाई के माह कहे जाते हैं। फिर धीरे-धीरे वे सब सावधानियाँ स्मरण करता रहा जो इस मौसम में बरतने को बुजुर्ग कहा करते थे। अदालत में काम शेष न रहा तो आलस सा आने लगा, कुछ उबासियाँ भी आईं। मैं ने विचारा कि अब वापस घर के लिए प्रस्थान करना चाहिए। तभी मुझे अपना कनिष्ठ पुष्पेंद्र मिल गया। वह भी घर लौटने को था। हम दोनों अदालत से बाहर निकल अपने अपने वाहनों की ओर जा ही रहे थे कि वहाँ हमें एक पुस्तक प्रदर्शनी वाहन दिखाई दिया। पुष्पेंद्र ने सुझाव दिया कि कुछ पुस्तकें देखी जाएँ।
हम दोनों वाहन में घुसे। यह नेशनल बुक ट्रस्ट का वाहन था। पुष्पेंद्र ने पूरे वाहन में चक्कर लगाया। वह कोई पुस्तक चुन नहीं पा रहा था। मेरे हाथ में एक पुस्तक थी जिस में आजादी की लड़ाई के मुकदमों का उल्लेख था। उस ने उसे ही चुन लिया फिर एक और पुस्तक चुनी और वह वाहन से नीचे उतर गया। कुछ पसंदीदा पुस्तकें मुझे दिखाई दीं, लेकिन वे मेरे पास पहले ही थीं। आखिर मैं ने कुल चार पुस्तकें चुनीं। विपिन चंद्रा की 'साम्प्रदायिकता' एक प्रवेशिका', 'अलबरूनी-भारत', 'बर्नियर की भारत यात्रा' और 'चीनी यात्री फाहियान का यात्रा विवरण'। पुस्तकों के दाम चुका कर वाहन से नीचे उतरा तो पुष्पेंद्र गायब था। आखिर मैं भी अपने वाहन से घर चला आया। रास्ते भर सोच रहा था कि इन चार पुस्तकों की खरीद की सूचना को यहाँ अपने ब्लाग पर छोड़ कर मैं अपने ब्लाग लेखन में आए विराम को तोड़ सकता हूँ।
पिछले अगस्त से ही अनवरत पर ब्लाग लेखन कुछ धीमा हुआ था। इस का कारण मेरी अतिव्यस्तता रही। लेकिन दिसंबर आते आते तो उस पर विराम ही लग गया जब मुझे अचानक 'हर्पीज जोस्टर' का सामना करना पड़ा। बीमारी का यह सिलसिला ऐसा चला कि अभी तक न रुक सका है। तीन सप्ताह हर्पीज का सामना किया। बाद में तेज जुकाम सर्दी हुई, फिर दाँत का दर्द और अब कोई बीस दिनों पहले अचानक अपनी ही गलती से बाएँ पैर के घुटने के पास स्थित मीडियल कोलेट्रल लिगामेंट चोटिल हो गया। यह एक गंभीर चोट है। मुख्य चिकित्सा कम से कम एक माह का पूर्ण विश्राम। पर एक सामान्य भारतीय के लिए यह कहाँ संभव है. फिर वकील के लिए तो बिलकुल संभव नहीं। वह इतना विश्राम करे तो वह तो शायद जीवित बच जाए, लेकिन उस के मुवक्किलों के तो प्राण ही निकल जाएँ। तो बंदा भी नित्य ही अपने घुटने पर मल्हम और आयोडेक्स लगा, पट्टी बांध, ऊपर एक नी-गार्ड चढ़ा कर, कम से कम एक गोली दर्द निवारक पेट के हवाले कर अदालत जा रहा है। वापस लौटने पर कम से कम एक डेढ़ घंटा बिस्तर पर बिताने के बाद ही इस हालत में आता है कि वह कुछ और काम कर सके। फिर भी इतना तो कर ही सकता है कि कुछ पढ़ लिख सके और ब्लाग पर आप से बतिया सके। तो आज से तय कर लिया है कि नित्य नहीं तो दो दिन में कम से कम एक दिन तो ब्लाग पर बातचीत होगी ही।