जिस किताब का अर्से से मुझे इंतजार था, वह कल भोपाल पुस्तक मेले में पहुँच रही है।
आज जब भाई अजित वडनेरकर ने बताया कि " शब्दों का सफर" पुस्तक श्रृंखला की पहली पुस्तक भोपाल में आयोजित राजकमल प्रकाशन के पुस्तक मेले में पहुँच रही है तो अपनी प्रसन्नता का वारापार नहीं रहा। अजित के इसी नाम के हिन्दी ब्लाग का कब से उपयोग करता आ रहा हूँ। लेकिन मन नहीं भरता। इच्छा होती है कि यह सब किताब के रूप में अपने कार्यालय की सब से नजदीक की शेल्फ पर हो। अजित भाई के श्रम ने यह दिन दिखाया। 'शब्दों का सफर' अब पुस्तक रुप में आ चुका है और बिना जंघशीर्ष साथ लिए मैं इसे अपने सफरी थैले में साथ रख कर ले जा सकता हूँ और यात्रा के समय का सदुपयोग कर सकता हूँ। कल पहली बार यह किताब भोपाल पुस्तक मेले में पहुंचने वाले लोगों को देखने को मिलेगी। जो कल नहीं पहुँच सकते हों वे इसे दो दिन और देख सकते हैं जब तक हिन्दी भवन, पॉलिटेक्नीक चौराहा, भोपाल में यह पुस्तक मेला उपलब्ध है।
कल ही शाम 6.30 बजे पुस्तक मेला स्थल पर लेखक से मिलिए कार्यक्रम में अजित जी उपलब्ध होंगे। भोपाल और नजदीक के लोग तो इस अवसर पर वहाँ उपस्थित होंगे ही। क्या नज़ारा हो सकता है यह सोच कर ही मैं रोमांचित हो उठा हूँ। यह दुर्भाग्य ही है कि मैं भोपाल में नहीं हूँ। कल ही कोटा में मोहन न्यूज एजेंसी को बोलता हूँ कि राजकमल से इस पुस्तक की प्रतियाँ बिक्री के लिए मंगा लें और पहली प्रति मुझे विक्रय करें। आप भी अपने नजदीक के पुस्तक विक्रेता को ऐसा ही कह सकते हैं। वैसे राजकमल की वेबसाइट पर आर्डर देकर भी इसे सीधे मंगाया जा सकता है।
16 टिप्पणियां:
हम तो आप की किताब ही मांग कर पढ लेगे, धन्यवाद इस सुंदर जानकारि के लिये
अब तो एक स्थान पर ही मिल जायेगी सारी जानकारी, शब्दों की।
जानकारी के लिए आभार
एंजिल से मुलाकात
शब्दों का सफ़र और वारापार ? (सही शब्द मेरी जानकारी में पारावार है !)
पहले तो मैंने सोचा कि आप नियमित होने को आये ..झट से पेज खोला -
इस किताब का इंतज़ार पहले से ही था ...लेखक और प्रकाशक को बधाई ! .
श्रंखला = श्रृखला ,जन्घशीर्ष ? (यह शब्द पहले नहीं सुना,इसी किताब से है अथवा क्या यह स्वगठित/निर्मित है ? )
पुस्तक मेला उपलब्ध है -यह कैसा वाक्य प्रयोग ?
लगता है इन दिनों काफी वस्त पस्त से हैं ? अन्यथा शब्द (ब्रह्म ) से जुडी इस पोस्ट पर यह सब ?
कृपया सम्पादन करें !
अरविंद जी,
सादर नमस्ते! मैं अनियमित नहीं था, केवल अवकाश पर था, लौट आया हूँ।
मेरे संज्ञान में वारापार शब्द का उपयोग मैं ने सही किया है। मेरे ज्ञान से वारापार का अर्थ है अंतिम या चरम सीमा। जब कि पारावार का अर्थ केवल सीमाएँ है। दोनों ही शब्द प्रचलन में हैं लेकिन प्रयोग के समय दुविधा पैदा करते हैं। शब्द श्रंखला ही सही है, श्रखला नहीं। जंघशीर्ष तो बनाया हुआ शब्द है। लेपटॉप को जंघशीर्ष कहने में जरा आनंद मिलता है।
तीन सप्ताह से पत्नी शोभा घर में नहीं थी, एक सप्ताह मैं भी बाहर रहा। वापस लौटने पर बेशुमार गर्द साफ करनी पड़ी, फिर अपना काम संभालना, उधर गृहनिर्माण कार्य भी चल रहा है। आप का यह कहना कुछ तो सही है कि मैं इन दिनों लस्त-पस्त हूँ।
अरे वाह! अजित को बहुत बधाई!
धन्यवाद इस जानकारी के लिये। अजित जी को बहुत बहुत बधाई इस पुस्तक के प्रकाशन के लिये।
अजित को बहुत बहुत बधाई.
2.....और श्रंखला ? मेरे विचार से इसे श्रृंखला होना चाहिए ... वारापार का प्रयोग पहली बार देखा है!
यहाँ आप सही हैं, श्रृंखला ही सही है।
ANANDAM-ANANDAM.......
PAHLE MISHRJI PHIR WADNEKARJI.....
SAYAD JALD HI RAO SAHEB BHI HONGE
KATAR ME......
PRANAM.
अजित जी की मेहनत रंग लाई। बधाई भाई॥
अजित भाई को इस पुस्तक के लिये बधाई । यहाँ राजकमल प्रकाशन की वेबसाइट का पता भी दे दीजिये ताकि लोग सीधे इस पुस्तक को मंगा सकें ।
Ajit bhai, " Shabdon ka safar " aa gayee - Behad khushee huee hai ye jaanker --- Heartiest congratulations & All good wishes
with warmest regards & Blessings for future success
- an ardent admirer of your diligent work,
- Lavanya shah
Cincinnati, OHIO U.S.A.
Also thank you Dinesh bhai ji .........
अजित को बहुत बहुत बधाई
ब्लाग जगत के लिए यह गर्व और महत्व की घटना है। मुझे अच्छा लग रहा है यह कहते हुए कि अजित भाई को बधाई देनेवालों की पहली किश्त में मैं शामिल था।
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