भारतीय समाज में विवाह अत्यन्त जटिल समारोह है। इतनी बातों का ध्यान रखना पड़ता है कि चूक हो जाना स्वाभाविक है। घर में कोई शादी नहीं है, पर पिछले कुछ महिनों से इस की चर्चा बहुत है। पिछले माह से तो शोभा पूरी तरह व्यस्त है। उस की छोटी बहिन कृष्णा के बेटे का आठ दिसंबर को विवाह है। कृष्णा के सास-ससुर नहीं हैं। वह रस्म-रिवाज़ों के बारे जितना जानती है वह उस ने अपने मायके और ससुराल में हुए विवाहों की स्मृति पर निर्भर है। उसे विवाह की हर एक रस्म और रिवाज़ के बारे में पूछताछ करनी पड़ रही है। शोभा की जानकारी कुछ अधिक है। मायके में सब से बड़ी पुत्री होने और ससुराल में सब से बड़ी पुत्रवधु होने से उसे विवाहों में जिम्मेदार भूमिका इतनी बार अदा करनी पड़ी है कि उसे लगभग सभी कुछ याद है, फिर हर बिन्दु पर औरों की राय जान कर किसी काम को कैसे करना है इस का निर्धारण करना उसे खूब आता है। कृष्णा तैयारी में लगी है वह लगभग प्रतिदिन शोभा से फोन पर बात करती है और एक बार से काम नहीं चलता तो कई बार भी करती है। शोभा ने बहुत सारी खरीददारी की जिम्मेदारी खुद पर ले ली और एक और छोटी बहिन ममता को साथ ले कर खरीददारी की। इस से कृष्णा का काम का बोझ बहुत कम हो गया।
चूँकि बहिन के पुत्र का विवाह है, पिता को भात (माहेरा) ले जाना है। इस लिए पिता जी का फोन आता है कि शोभा एक दो दिनों के लिए मायके चली जाए और भात की तैयारी करवा दे। भात के लिए बेटी को पिता के यहाँ न्यौता देने आना है। इसे बत्तीसी झिलाना बोलते हैं। इस समय बेटी कुछ मीठा ले कर आती है। आम तौर पर गुड़ की भेली होती है। साथ में मायके में जितने लोग उम्र में उस से छोटे हैं उन के लिए नए वस्त्र ले कर आती है। अब कृष्णा को भात न्यौतने आना था। उन्हीं दिनों शोभा और ममता भी मायके पहुँच जाती हैं। पिता जी बहुत प्रसन्न हैं, वे सब कुछ प्रसन्नता पूर्वक करना चाहते हैं। वे ढोल वाले को बुलवाते हैं, साथ ही बैंड वाले को भी। सारे रिश्तेदारों और व्यवहारियों को बुलावा गया है। सब नियत समय पर इकट्ठे होते हैं। बत्तीसी झिलाई जाती है। मेहमानों को चीनी के बताशे वितरित किए जाते हैं। पिता जी ने भात की सभी तैयारी अपने हिसाब से कर ली है। जो कुछ कमी रह गई है उसे शोभा और ममता दोनों दो दिन और रुक कर करवा देती हैं।
शोभा और उस की बहनों सनेह और ममता को एक सप्ताह पहले तो अपनी बहिन के यहाँ पहुँचना ही है, जिस से वे कृष्णा को विवाह की तैयारी करवा दें और काम में मदद करें। शोभा मायके से लौटी तो विवाह में जाने में दो दिन शेष रह गए हैं। उस ने आते ही घर को संभाला। जाने की तैयारी की। जो कुछ विवाह के लिए खरीदना शेष बचा था। उसे भी निपटाया। अब आज रवानगी की तारीख आ ही गई। शोभा और ममता तो यहीं हैं। एक मंझली बहिन सनेह को जयपुर से आना था, वह दोपहर शोभा के पास पहुँच गई। एक माह पहले ही रेल यात्रा के लिए रिजर्वेशन कराया गया था। तब प्रतीक्षा सूची में क्रमांक कोई दो सौ से ऊपर था, आश्वासन मिला था कि हर हालत में कन्फर्म हो जाएगा, यदि रह भी गया तो विशेष कोटे में से व्यवस्था हो जाएगी।
लेकिन आज चार्ट बनने तक प्रतीक्षा सूची क्रमांक 15 से 17 पर आ कर रुक गया। विशेष कोटे का प्रयोग भी वास्तविक विशिष्ट लोगों ने कर लिया। बस की तलाश आरंभ हुई। पता लगा कि साढ़े-दस की रात की बस में स्थान है, उसे तुरंत आरक्षित करवाया गया और रेल का टिकट निरस्त करवाया गया। सब्र की बात यह थी कि जितना रुपया बस टिकट में खर्च हुआ उस से कोई पचास रुपया अधिक, बीस रुपये प्रति यात्री कटौती के बाद भी रेल टिकट निरस्त होने से वापस मिल गया। कृष्णा को सूचना दे दी गई है कि बस निकटतम स्थान पर सुबह सात बजे पहुँचेगी। कृष्णा ने उन्हें आश्वस्त कर दिया है कि उन्हें लेने के लिए वाहन नियत से पहले पहुँच जाएगा। तीनों बहिनें बस रवाना होने के पहले ही बस अड्डे पहुँच गई हैं और अपना आरक्षित स्थान हथिया लिया है। सीट पिछले वाले पहिये के ठीक ऊपर है। उन्हों ने अनुमान लगा लिया है कि बस में रात कैसी कटेगी?
अब बस रवाना हो चुकी है।
मैं अपने साढ़ू भाई को फोन करता हूँ कि तीनों बहिनों को बस में बिठा दिया है। घर लौट आया हूँ। अब पाँच दिसम्बर की शाम तक मुझे अकेले रहना है, जब तक कि मैं स्वयं विवाह में सम्मिलित होने के लिए नहीं चल देता। इस विवाह का मुझे भी इंतजार है। विवाह में बहुत से प्रिय संबंधियों से तो भेंट होगी ही। विवाह ब्लाग जगत के ग़ज़ल के उस्ताद पंकज सुबीर जी के नगर में है। भोपाल निकट है, मुझे वहाँ भी जाना है। बहुत सारे ब्लागरों से मुलाकात का मौका जो मिलेगा।
7 टिप्पणियां:
shi khaa dinesh bhayi aap idhr chunavi hlchl men hmen chod kr shadi byah ke mze lene jaa rhe hen ishvr yaatraa or smaroh shubh kre. akhtar khan akela kota rajsthan
इन दिनों हम भी जूझ रहे ही रहे हैं ..वाकई लोग बाग़ कितने उबाऊ बन गए हैं इस संस्था को लेकर
बहुत मजेदार होता है..
विवाह की प्रक्रिया में कभी सर खपाने का मन नहीं किया, जिसने जो भी बोला, कर डाला। विवाह मैनुअल तैयार करना होगा, विभिन्न सम्बन्धियों के अधिकार और कार्य का विस्तृत वर्णन करते हुये।
मैं तो आपके आलेख की भाषा और प्रवाह को महसूस करके ही आनंदित हो रहा हूं. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
वैसे शादी का सबसे बड़ा फायदा मुझे मेल मुलाकात ही लगता है. बड़ा अच्छा समय व्यतीत हो जाता है.
बहुत जमाने बाद एक विवाह में जाने का मन बनाया। कार्ड पर लिखे समय पर पंहुंच गया। तीन घण्टे इन्तजार के बाद भी बरात न पंहुची। पेट में चूहे भी कूदने लगे। लिहाजा वापस हो लिया। वापसी में देखा कि बरात बैण्ड बाजे के साथ खरामा खरामा आ रही थी।
विवाह में समय का मतलब ही नहीं! :)
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