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रविवार, 2 जुलाई 2017

... और तुम घंटा बजाओ

ल पहली बार अंतर्राष्ट्रीय  हिन्दी ब्लॉग दिवस मनाया गया। इस दिन अनेक पुराने ब्लागरों ने पोस्टें लिखीं। एक जमाना था जब हम लगभग रोज कम से कम एक पोस्ट लिखा करते थे। कभी कभी दो या अधिक भी हो जाती थीं। तीसरा खंबा पर यह सिलसिला जारी है। अनवरत पर लगभग सन्नाटा है। अब ब्लॉग दिवस के बहाने यह सन्नाटा टूटा है तो यह भी कोशिश है कि रोज ब्लाग पर कुछ न कुछ लिखा जाए। चलो कुछ लिखते हैं ....

मेरे पास तीसरा खंबा पर औसतन 300-400 समस्याएँ प्रतिमाह प्राप्त होती हैं। कभी कभी लोग केवल अपनी गाथा लिखते हैं लेकिन वे कोई समाधान नहीं चाहते। या तो वे जानते हैं कि इस का कोई ऐसा समाधान नहीं है जो कानून उन्हें दे सकता हो। उन की समस्याएँ समाज, कानून और न्यायव्यवस्था में बड़ा बदलाव चाहती हैं। वह बदलाव तो तब होगा जब होगा। अभी तो उस बदलाव के लिए पर्याप्त आवाज तक नहीं उठती है। खैर!

पिछले सप्ताह मेरेे पास एक सज्जन ने सिवान, बिहार से अपनी गाथा लिख भेजी है। उन का मकसद था कि उन की गाथा और लोग भी जानें। तो मैं उन की गाथा तनिक भाषा. व्याकरण और विराम चिन्हों के सुधार के बाद एक शीर्षक अपनी ओर से देते हुए यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ...


और तुम घंटा बजाओ

मेरी शादी 10.12.2009 को हिन्दू रीति से 5 रुपया दहेज़ में सम्पन्न हुई। मैं दहेज़ के खिलाफ रहता हूँ, शादी के 2 दिन बाद बहुभोज के दिन पत्नी का जीजा और उसकी बुवा का लड़का और एक उसकी बहन आई। मेरे सामने ही उसका बहनोई उसके स्तनों पे हाथ रख के बात करने लगा और मुझे देखते ही उसने हाथ हटा लिया। मैंने पत्नी से पूछा तो बोली मज़ाक कर रहे थे तो मैंने डांट दिया है। मैंने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया।

मुंह दिखाई मैंने उसको 20000 रुपया दिया कि जरुरत के अनुसार खर्च करना। फिर बीच में उसका अपना भाई आया और मिल कर चला गया। करीब 2 महीने बाद मुझे कुछ पैसों की जरुरत पड़ी तो माँगा, उस ने 10000 रुपया दिया। पूछा और क्या किया? तो बोली हिसाब नहीं पूछा जाता है पत्नी से। इस बात पर मैंने काफी डांट डपट की तो बोली भाई को दी हूँ, उस से क्या हो गया। मैंने कहा वही मुझे बोल कर भी तो दे सकती थी।

बहुभोज के दूसरे दिन रात को उसके जीजा का फोन आया रात को 8:30 पे। मोबाइल में कॉल रिकॉर्डिंग रखता हूँ मैं, उसका जीजा उसको बोला जल्दी सेक्स मत करने देना और अगर जबरदस्ती करे तो चिल्लाने लगना। उसको शक नहीं होगा, वरना पकड़ी जाओगी। मुझे रिकॉर्डिंग सुनकर बड़ा दुःख हुवा, अपना दर्द किसको कहता, शर्म के मारे बात को दबा लिया। शादी के 4 महीनों बाद उसको घुमाने उसके घर ले गया। मैं उसके यहाँ रखा फोटो एल्बम देखने लगा। उस में मेरी पत्नी का उसके जीजा के साथ लवर-पोज़ में फोटो था। उसके बुवा के लड़के के साथ फोटो था। मुझे अब बर्दास्त नहीं हुआ तो पत्नी को पूछा। तो उसकी माँ ने सुन लिया और मुझे बोली उस से क्या हो गया? कोई घटने वाला सामान थोड़े है जो आप चिल्ला रहे हैँ। उस से क्या हो गया जीजा से मिल ली तो आप ज्यादा मत चिल्लाइये वरना जेल में डलवा देंगे। मैं काफी परेशान हो गया, फिर भी पत्नी को घर ले के आ गया 2 दिन में ही। उसके 5 महीने बाद मेरे ससुर आये बोले बिदाई कीजिये। मैंने मना किया, लेकिन मेरे घरवालों ने मुझे समझा कर उसको भेज दिया। फिर मैं 15 दिन बाद गया ससुराल बिदाई कराने तो मेरा ससुर बोला 6 महीना यहीं रहेगी। आप यहीं पे खर्चा दे दीजिये। इस बात पर मेरी ससुर से कहा सुनी हुई काफी दिक्कतों के बाद मेरी पत्नी मेरे साथ आने को तैयार हुई।

आने के 4 महीने बाद बिलकुल यही घटना फिर हुई फिर काफी बातचीत के बाद आई मेरे साथ। उसके बाद 2011 में मुझे एक बेटा हुआ, ऑपरेशन से। बेटे के जन्म के 3 महीने बाद ही वो लोग फिर आ गए बिदाई कराने। तब मुझसे उनका बहुत झगड़ा हुआ कि एक तो आपकी बेटी अपना दूध नहीं पिला रही लड़के को, दूध सुखाने की दवा चला ली और आप इसको डांटने के बजाय ले जाने को तैयार हैं। तो ससुर बोले कि घर पे ले जाकर समझायेंगे। मैंने मना किया तो मेरी पत्नी तैयार हो कर बोली अपना लड़का रखो मैं जा रही हूँ, और वो चली गई।

फिर 2 महीने की मसक्कत के बाद आई। फिर 4 महीने बाद वही घटना, लड़का छोड़ के चली गई। वहाँ 20 दिन रही और मेरे पास कॉल की कि मैं प्रेग्नेंट हूँ, पैसा भेजिए अबोर्शन कराना है। तो मैने 5000 रुपया भेजा। तो पैसा खर्च करके बोली डॉक्टर ने मना किया है गिराने से तो रहने दीजिये। मैंने कहा ठीक है। महीने रह के आई और 15 दिन के बाद से ही मेरे पूरे परिवार में कलह पैदा कर दी। ऐसा हालात बना दी की कोई किसी की मदद न करे। डिलिवरी से 10 दिन पहले ससुर आये बोले भेज दीजिये वही पे करा देंगे, आप खर्च दे दीजिये। मेरा मन नहीं था भेजने का फिर भी 10000 रुपया देकर भेज दिया।

इस वक्त भी लड़का छोड़ कर गई। 2 दिन बाद कॉल आया कि आइये ऑपरेशन के समय आपको रहना पड़ेगा तो मैं गया मेरे पहुँचते ही ससुर अपने घर चला गया, वहाँ मुझे और मेरी सास को और गाँव की 3 औरतों को छोड़कर। मैं वही बैठा था ओटी के सामने रात के 8 बज रहे थे। मेरे सामने से ही नर्स ट्रे में एक बच्चा ले के गई ट्रे को कपडे से ढँक कर। पर बच्चे की ऊँगली ट्रे के बाहर निकली हुई थी तो मैंने सोचा किसी का होगा। तब तक मेरी सास आई और बोली अब नसबंदी भी हो जाए, चलिए साइन कीजिये। मैंने मना किया तो पता नहीं कहा से 4, 5 औरतें 2 मर्द आ गए और मुझसे झगड़ा करने लगे। बोले साइन करो नहीं तो इधर ही काट कर फेंक देंगे तुमको। काफी हुज्जत के बाद भी मुझे साइन करना पड़ा। साइन करने के 20 मिनट बाद नर्स आई, वो ही trey लेके जो लेके गई थी और बोली आपका बच्चा नहीं बचेगा। इसको दिखाइये किसी डॉक्टर को। मैं ये सुनकर वही बेहोश हो गया था, करीब 1 घंटे बाद मुझे होश आया। तभी नर्स ने मेरी सास को बुलाया मेरी सास आते ही बोली आपके लड़के को सरकारी हॉस्पिटल के आईसीयू में रखवाया है जाकर देखिये। मैं रोते हुवे सरकारी हॉस्पिटल गया तो देखा लड़का लावारिस की तरह आईसीयू में पड़ा है। नर्स से पूछा तो वो बोली कि लड़का नहीं बचेगा। उस वक्त मेरे पास 10 रुपया भी नहीं था कि उसको प्राइवेट में दिखाऊं। बस हॉस्पिटल के बाहर बैठ कर उसको मरते हुवे देख रहा था। इसी में सुबह हो गई तब तक नर्स आई बोली लाश ले जाइए, सफाई करना है। वहीं अपनी चांदी की अंगूठी चाय वाले को देकर उससे 400 रुपया क़र्ज़ लिया, लड़के के अंतिम संस्कार के लिए।

जब अंतिम संस्कार करके आया तो देखा हॉस्पिटल में उसका जीजा आया हुवा है और मेरी सास मेरी पत्नी को काजू खिला रही है। मैंने जब पत्नी को बोला कि लड़का मर गया, तो वो बोली ये सब मत सुनाओ भाग्य में नहीं था और लेटे लेटे फिर काजू खाने लगी। इस पर मुझे गुस्सा आया तो मैं उन लोगो को भला बुरा कहने लगा। तब तक मेरा ससुर आया और मुझे धक्का दे कर बोला जाओ तुम्हारे साथ नहीं जायेगी मेरी बेटी और तुमसे खर्च कैसे लेना है मै जानता हूँ। मैं अपने घर आ गया। फिर 10 दिन बाद गया तो वो लोग हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो रहे हैं तो उनके साथ पत्नी को उसके घर छोड़कर अपने घर आ गया।

बीच बीच में जाकर मिलता रहा फिर काफी मसक्कत के बाद 3 महीने पर वो बिदा करने को राज़ी हुए। पर शर्त थी की 20000 दो पत्नी को ले जाओ। हमारा खर्च हुवा है हॉस्पिटल में। तो इस बात पर कुछ लोगो के समझाने के बाद बोला हमको चाहिए बाद में ही देना और चलो एक सादा स्टाम्प पेपर लाये बोले साइन करो। मैंने मना कर दिया साइन करने से। तो मुझे लेकर मुखिया के पास गए और मुखिया के सामने पेपर पर साइन करने को बोले। पेपर में लिखा था मैं दहेज़ नहीं मांगूंगा अपनी पत्नी से, फिर मारपीट नहीं करूँगा। तो मैंने बोला मैंने कब आपसे 1 रुपया माँगा। तो वो दहेज़ वाली लाइन कटवा दिए। उसके 2 दिन बाद पत्नी को अपने घर ले के आया।

उसके 3 महीने बाद ही मेरा ससुर वो पेपर लेके एसपी के पास आवेदन दे दिया तो महिला थाना मेरे घर पे आई और मुझे मेरी पत्नी को मेरी माँ को पापा को थाने लेके गई। वहां पे जब मैंने सारी बात बताई तो महिला पुलिस मेरे सास ससुर को 4 डंडे लगाईं बोली कैसे माँ बाप हो अपनी बेटी का घर उजाड़ रहे हो। मेरी पत्नी से पूछी तुमने सिंदूर क्यों नहीं लगाया। तो वो बोली याद नहीं आया। जबकि सच ये है कि वो मेरे यहाँ कभी सिंदूर नहीं लगाती है। थाने में बांड भर के हम अपने अपने घर चले आये।

उसके बाद हमेशा घर में जेवर पैसा ग़ुम होने लगा। मैं जान कर चुप हो जाता। पर एक बार बोली कि उसका मंगलसूत्र ग़ुम हो गया है तो इस बात पे मेरा मेरी पत्नी से झगड़ा हुआ। उसने फोन करके अपने बाप को बुला लिया और रोड पे अर्धनग्न बाल बिखेर के निकल गई, उसके माँ और बाप चिल्लाने लगे। अभी मैं कुछ बोलूं उससे पहले ही रिक्शा से चले गए। मैं ढूंढने निकला तब तक भूकम्प आ गया 25 अप्रैल 2015 वाला। तो मैं वापस अपने लड़के के पास चला आया। वो अपने मैके जाके 498, 3/4 और 125 का केस कर दी।

जब मैं बाजार के कुछ सभ्य लोगो को लेकर उसके यहाँ गया तो उसका बाप बोला पैसा दो तो ही कुछ बात होगा। मैंने हुज्जत किया तो उन लोगों के तरफ से कुछ आवारा लड़के थे वहा जो मेरे भाई पे हाथ उठा दिए। मेरा ससुर मुझे अकेले में बुला के बोला जिस तरह कहूँ उस तरह करो वरना ज़िंदा चिमनी में फिंकवा दूंगा। जाओ 50000 रुपया ले कर आओ, केस ख़त्म हो जाएगा। बातचीत में ही 6 महीने हो गए और अब तक मैं रोड पे आ चुका था। अपने सेठ से 50000 रुपया क़र्ज़ ले कर दिया तो मेरी पत्नी मेरे साथ आई और उसके 6 महीने बाद उसने केस ख़त्म करवाया।

उसके बाद खुल कर मेरे सामने ही मोबाइल से पता नहीं कहाँ बात करती। मैं मना करता तो धमकी देती कि ज्यादा चिल्लाओ मत वरना फिर भुगतोगे। मैं चुप हो जाता। इधर 2 महीने पहले 3 बजे सुबह वह बस स्टॉप चली गई, मैके जाने के लिए, लड़के को लेकर। 4 बजे मेरी नीन्द खुली तो बाहर से ताला बंद मिला। मैं छत से 10 फीट कूद कर उसको ढूंढने निकला तो वो बस स्टॉप पे मिली। मुझे देख कर भीड़ इकट्ठा करने की कोशिश करने लगी। सब वहां पहचान के थे और सब जानते थे मेरी आप बीती। तो इसको मेरे साथ भेज दिए। आकर बोली मैं अपने मैके में ही रहूंगी, मुझे वहीं खर्च देना। इसीलिए अब लड़के को लेकर जाउंगी जो कि अब 6 साल का है। इसका खर्च तो तुम्हें देना ही होगा। फिर वो इधर दो महीने पहले घर में रखा 1.5 लाख रुपया गहना, कपडा, लड़का,  साथ ले के दिन में 3 बजे के करीब किसी को बुलाकर उसके बाइक पे बैठ के भाग गई है। मैं क्या करूँ? उसको गोली मार दूँ, या खुद को गोली मार लूँ? भारतीय कानून से किसी भी प्रकार की उम्मीद नहीं मुझे, इतना हुआ मेरे साथ। पर कोर्ट बोलेगा खर्च दो उसको, अपनी प्रॉपर्टी में हिस्सा दो उसको, और तुम घंटा बजाओ। ये है हमारा संविधान।

रविवार, 14 अप्रैल 2013

कन्यादान क्या ह्यूमन ट्रेफिकिंग नहीं है? ... फेसबुक पर एक संवाद



फेसबुक पर कल मैं ने एक स्टेटस लगाया था। स्टेटस और संवाद दोनों यहाँ ज्यों का त्यों प्रस्तुत है। आप पढ़िए और अपनी भी राय दीजिए ...

दिनेशराय द्विवेदी

गुरूवार





कन्यादान करने का अर्थ है स्त्री को संपत्ति समझना। एक तरह से यह ह्यूमन ट्रेफिकिंग है। फिर कन्यादान करने वाले और लेने वाले सभी लोगों के विरुद्ध ह्यूमन ट्रेफिकिंग का मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार कर के सजा क्यों नहीं दी जाती है? जरा सोचिए और कुछ कहिए!!!

    Anil Manchanda, Ravindra Ranjan, Durgaprasad Agrawal और 44 अन्य को यह पसंद है.
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    Pawan Mishra आप के पोस्ट पर टीप मारते हुये डर लग रहा है कही न्यायालय के चक्क्र न लगाने पडे अभी न समय है न पैसा...फिर भी यह कथन निहायत ही बचकाना है....

        Rajendra Singh पता चला करोड़ो लोग अंदर हो गए ..इसकी जगह कोई और शब्द इस्तेमाल होना चहिये
   
    Lalit Sharma सभी के गिरफ़्तार होते ही वकीलों की चांदी कटने लगेगी, मुकदमे ही मुकदमे हा हा हा हा
   
    Bs Pabla दान का अर्थ ही है किसी सामाजिक उन्नत्ति के लिए अपना सह्योग बिना कुछ लिए दे देना, अब वो सामाजिक उन्नत्ति क्या है इस पर तो ....

    Deepak Pandey कोई नही बचेगा. सब अंदर हा हा हा बकील भी.
   
    Raj Bhatia इस दान का मतलब बहुत गहरा हे, यह कोई बिखारी वाला दान नही, इस मे समर्पन हे, वैसे कोई भी आदमी अपने दिल के टुकडे को दान नही करता, लेकिन इस दान मे लडकी का भला होता हे.....

    Anand R. Dwivedi Customs and Usages नाम की भी कानूनी चिड़िया होती है..जिनके पर कतरना इतना आसान नहीं!!

    दिनेशराय द्विवेदी Raj Bhatia भाटिया जी, आप बहुत साफ मन के हैं, इस कारण से ऐसा कह रहे हैं। कन्यादान कन्या के माता-पिता या उन के अभाव में उस के संरक्षक करते हैं। लेकिन दान सदैव वस्तु का ही किया जाता है, न कि किसी मनुष्य का। इस कारण यह तो सही है कि जब कन्यादान किया जाता है...और देखें

    Sumant Mishra · 91 mutual friends
    अत्यंत अभद्र और अबुद्धिहीनता पूर्ण वक्तव्य। आप के तर्क से सभी हिन्दू माँ-बाप रण्ड़ी के भडुवे हैं? सोंचिये और बार-बार सोंचिये......! कानून को आप जैसे लोग ओढ़े और बिछाये किसी को ऎतराज नहीं लेकिन ६५ साल में १०० से अधिक बार संविधान संशोधित हो चुका है ऎसे कानून की दुहाई मजाक के अतिरिक्त कुछ नहीं।
    दिनेशराय द्विवेदी सुमंत जी जब तर्क का कोई उत्तर नहीं होता तभी लोग गाली गलौच पर उतर आते हैं। संविधान मनुष्य जीवन के लिए है मनुष्य संविधान के लिए नहीं। वह संशोधित भी होगा और बदला भी जाएगा।
   
    Anand R. Dwivedi इस हिसाब से तो दत्तक ग्रहण (u/r Hindu Adoption and Maintenance Act) भी ह्यूमन ट्रैफिकिंग के अंतर्गत लाया जाना चाहिए..Vijay Manchanda And Anr. vs State Of J & K And Ors. on 8 October, 1987 में ये कहा गया है कि "the adoption is considered as a sacred gi...और देखें
   
    Misir Arun स्त्री को खरीदने बेंचने और दान में दिए जाने की वस्तु समझना प्राचीन धर्मसम्मत सभ्यता का अंग रहा है ...जो वस्तुतः एक असभ्यता ही कही जा सकती है ।

    Anand R. Dwivedi ये भी एकदम सही है कि संविधान मनुष्य के लिए है , लेकिन मनुष्य भी संविधान के लिए उतना ही उत्तरदायी है...कोई भी संविधान public at large की मान्यताओं पर तब तक हावी नहीं हो सकता जब तक उसकी अवहेलना न हो!!
   
   

दिनेशराय द्विवेदी Anand R. Dwivedi, दत्तक ग्रहण दान नहीं है। वहाँ केवल माता-पिता और संतान के अधिकारों और दायित्वों का हस्तान्तरण होता है। यदि किसी निर्णय में उसे दान बताया गया है तो गलत बताया है। न्यायाधीश भी समाज में प्रचलित विचारों से प्रभावित होते हैं और उन के निर्ण...और देखें
    न्यायाधीश और अधिवक्ताओं के पूर्वाग्रह न्यायिक निर्णयों को प्रभावित करते हैं।

    केरल उच्च न्यायालय की निवर्तमान न्यायाधीश के. हेमा ने उन की सेवा निवृत्ति पर आयो...और आगे देखें
   
    दिनेशराय द्विवेदी Anand R. Dwivedi, संविधान मनुष्यों का समूह ही निर्मित करता है। इस कारण उस के लिए वह उत्तरदायी है। आप का यह कहना भी सही है कि कोई भी संविधान public at large की मान्यताओं पर तब तक हावी नहीं हो सकता जब तक उसकी अवहेलना न हो!! और यह भी सही कि कन्यादान वास्त...और देखें
   
    Anand R. Dwivedi आदरणीय निश्चय ही न्यायिक निर्णय पत्थर की लकीर नहीं होते, परन्तु वास्तविकता की खोज में न्यायिक निर्णय अहम् साबित होते हैं...जिन दायित्वों के हस्तांतरण की बात अपने कही..उन्ही दायित्वों के हस्तांतरण का एक स्वरुप कन्यादान को भी माना गया है..दत्तक ग्रहण में...और देखें
   
    Anand R. Dwivedi हिन्दू पंथ में कन्यादान का विशेष स्थान है जिसमे दायित्वों के स्वस्थ और इमानदारी से निर्वहन की प्रतिज्ञा निहित है..इसे एक बंधन माना गया है जिसमे पिता अपने जीवन के अंग को दान करता है..जिसका उद्देश्य व्यवस्थित जीवन मात्र है...बुद्धिजीवी इसे कुछ भी कहें परन्तु इसके उद्देश्य को कतई नाकारा नहीं जा सकता अन्यथा विवाह नाम की संस्था ही एक अपराध हो जाएगी जो ह्यूमन ट्रैफिकिंग का सर्वोत्तम उदाहरण होगा!
   
    दिनेशराय द्विवेदी Anand R. Dwivedi, मान्यताएँ बदलती रहती हैं। कितनी मान्यताएँ वे जीवित हैं जिन्हें हम पचास वर्ष पहले मानते थे। सती प्रथा को सदियों तक गौरवान्वित किया जाता रहा। लेकिन अब सती का महिमामंडन करना अपराध हो गया है। किसी दिन ये भी हो ही जाना है।

    Baldeo Pandey " बेटियों को दान में देना, भले ही यह रिवाज़ सदियों से हिन्दू विवाह का अभिन्न और पवित्र हिस्सा माना जाता रहा हो, लेकिन ' कन्या दान ' महिला समाज के प्रति पुरुष प्रधान समाज का पुरातन, दकियानूस और अमानवीय नजरिया दर्शाता है - आमीन!"
   
    जय प्रकाश पाठक नमस्कार ! कन्यादान और अन्य बहुत से क्रित्य इसलिये कर दिये जाते हैं क्योंकि आधुनिक जीवन लायक एक पूर्ण व मान्य प्रक्रिया का अभाव है. शंकराचार्य गण नवीन प्रक्रिया पर विचार नहीं चाहते.
 
    Ram Singh Suthar श्रीमान,नमस्कार
    जिस तरीके से हमारे विचार बदल रहे है उस हिसाब से तो भारतीय संस्कृति खतम हो जायेगी। जिस दान को सर्वोतम दान समझा जाता रहा है,उसे संपति से जोड़ना सही नही है ओर न ही किसी ग्रंथ या धार्मिक पुस्तक मे इसे संपति का नाम दिया गया है जहा तक कानून क...और देखें

    रजनीश के झा
    गुरूवार को 05:35 अपराह्न बजे · पसंद
    बबीता वाधवानी सम्‍पति समझते रहे है इसलिए तो जीने का अधिकार छीनते रहे है। हर स्‍त्री को अपने इस तरीके से दान किये जाने का विरोध शुरू कर देना चाहिए । दकियानुसी विचारो ने जीने की तमन्‍ना छीनी है औरतो से।
   
    Rajendra Prasad Sharma श्रीमान -पुरानी कोई भी वस्तु या विचार हो क्षरण एक स्वाभाविक प्रक्रिया है - इस परंपरा का अंत देखने के लिए समय का अन्तराल कितना ...... होगा ? संभवतया कहा नहीं जा सकता .
   
    Bavaal Hindvee rahi sahi kadar aur poori ho jaye. saare mard jail me aur auratain bahar.
    
    दिनेशराय द्विवेदी Ram Singh Suthar यहाँ धर्म ग्रंथ की बात नहीं है। यहाँ बात ये है कि समाज वास्तव में क्या समझता है। क्या ये कहावत पूरे भारत में नहीं कि औरत पैर की जूती है। अब आप बताएँ कि जूती संपत्ति है कि नहीं?

    Sudha Om Dhingra दिनेशराय द्विवेदी जी मेरे पापा ने कन्यादान नहीं किया था, क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि मेरा दान हो और मेरे पति डॉ. ओम ढींगरा भी मेरे साथ सहमत थे। हालाँकि रिश्तेदारों ने एतराज़ किया था, पर कुछ देर बाद सब ठीक हो गया था।
   
    दिनेशराय द्विवेदी Sudha Om Dhingra आप को उस घटना को एक अभियान का आरंभ मान कर उसे आगे बढ़ाना था। और यह चलाया जाना चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है कि स्त्रियों में खुद दान होने का प्रतिरोध होना चाहिए। क्यों कि अभी भी अधिकांश माएँ इस विचार से ग्रस्त हैं कि बेटी का कन्यादान करने से उन्हें पुण्य मिलेगा। वे इसे अपना अधिकाार समझती हैं और उसे छोड़ने को तैयार नहीं हैं।
   
    सुशील बाकलीवाल OMG
    प्रथा ही तो है,
    रघुुकुल रात सदा चली आई...
    लगभग एक घंटा पहले mobile के द्वारा · पसंद

    Ram Tyagi I think the comparison is not right.... Vidya daan is another daan which you can not express in terms of money..., in fact the thing you donate has no monetary value as its worth of your emotions and feelings and your love.
   
    Brijmohan Shrivastava -पुराणों में दस महादानो का वर्णन है इनमें से एक तो हुआ कन्यादान वाकी नौ है --स्वर्ण ,अश्व ,तिल , हाथी ,दासी ,रथ ,भूमी ,ग्रह और कपिला गौ /ध्यान रहे यह सब सम्पत्ति है /स्त्री हमेंशा से संपत्ति मानी जाती रही थी / उसका क्रय विक्रय होता था , उसे गिरवी रखा ज...और देखें
   
    दिनेशराय द्विवेदी Brijmohan Shrivastava धन्यवाद बृजमोहन जी, मेरी व्यस्तता में आप ने पूरी तरह तर्कसंगत और तथ्य पूर्ण उत्तर दिया है।
   
    Ravindra Ranjan आप स‌ही कह रहे हैं
   
    Jitendra Choubey सनातन धर्म में बेटियां लक्ष्मी का रूप मानी जाती हैं और दामाद लक्ष्मिपति यानि भगवान् विष्णु का रूप.. दोनों के चरण छुए जाते हैं.. पिता लक्ष्मी सौंपता है उसके वर को बेचता नहीं है.. कन्या और गौ का विक्रय सनातन धर्म में अधर्म माना गया है.. द्रोपदी को दाव प...और देखें
   
    Jitendra Choubey और मेरे भाई तो बता दूं की राजा हरिश्चन्द्र, और नचिकेता कन्या नहीं थे लेकिन एक को चंडाल ने खरीदा था और दुसरे को उसके पिता ने मृत्यु को दान दे दिया था...
   
    Yadav Shambhu मेरे ख्याल में सर इसकी इतनी सरल व्याख्या नहीं हो सकती ....
   
    Ashutosh Acharya Jitendra choubey ji absolutely right ,i agree.
   
    दिनेशराय द्विवेदी जितेन्द्र चौबे जी, जो धार्मिक प्रवचन आप ने यहाँ किया है वह हमारे समाज के दिखाने के दाँत हैं। खाने के दूसरे हैं? मुझे समझ नहीं आता कि। हम कितने मूर्ख और भोले हैं। सामने की वास्तविकता हमें दिखाई नहीं देती और उसे मिथ्या सिद्ध करने के लिए अपने ग्रंथों को उठा लाते हैं। हमारे ग्रन्थों का अब यही उपयोग रह गया है। अपनी गलती छुपाने को उन की आड़ लेते हैं। वास्तविक बदलाव की जरूरत को नकारने का इस से अच्छा तरीका नहीं हो सकता।
   
    Ashutosh Acharya दिवेदी जी अब आप यहाँ कुतर्क कर रहे है , कन्यादान धर्म से जुड़ा होता है इसलिए धार्मिक प्रवचन ही देना पड़ेगा .कन्या दान हिन्दू धर्म की व्यवस्था है इसलिए इसमें हिन्दू धर्म से जुड़े साक्ष्य ही देने पड़ेगें यह दिखाने और खाने वाले दांत वाली बात नही है l
   
    Shiv Shambhu Sharma ऎसा है सर कि अंग्रेजों ने ऎसा कोई प्रावधान नही रखा था इसीलिये वर्ना यह कब का हो चुका होता ।

    Jitendra Choubey द्विवेदी जी आप मुझसे कहीं ज्यादा अनुभवी हैं..और आपकी ये बात भी सत्य है की रिश्ते की शुरुआत दहेज़ की बात से शुरू होती.. लड़की का बाप कहता है की अच्छा लड़का बताओ १० लाख तक की शादी करेंगे. लेकिन फिर भी दाल पूरी तरह से काली नहीं हुई.. ह्यूमन ट्रेफिकिंग का मामला बनने में देर लगेगी..और फिर हम उसे कन्यादान कहना बंद कर देंगे..
   
    दिनेशराय द्विवेदी आशुतोष जी, इसे मेरा कुतर्क ही समझ लीजिए। मैं तो अपनी बेटी दान नहीं कर सकता। आप शौक से कीजिए। लेकिन फिर उसे दान समझिए भी। उस से कोई रिश्ता न रखिए। उस की तरफ झाँकिए भी नहीं। आप यह कहना चाहते हैं कि दान को दान नहीं समझा जाए। दान को दान समझने में कौन सा कुतर्क है?
   
    दिनेशराय द्विवेदी यदि आप की लड़की आप की संपत्ति नहीं है तो उस का दान आप कैसे कर सकते हैं? आप को क्या अधिकार है उसे दान करने का? यदि अधिकार है तो आप उस के स्वतंत्र अस्तित्व से इंकार कर रहे हैं।

    दिनेशराय द्विवेदी जितेन्द्र जी, मैं जानता हूँ कि यह ह्यूमन ट्रेफिकिंग नहीं है। उस से भी बुरी चीज है। लेकिन उस बुरी चीज पर हमारा समाज गौरव कर रहा है जिस के लिए उसे दंडित किया जाना चाहिए, जिस पर उसे शर्मिंदा होना चाहिए। यदि इस अपराध के लिए कोई दंड निर्धारित नहीं है तो होना चाहिए।
Jitendra Choubey अद्येति.........नामाहं.........नाम्नीम् इमां कन्यां/भगिनीं सुस्नातां यथाशक्ति अलंकृतां, गन्धादि - अचिर्तां, वस्रयुगच्छन्नां, प्रजापति दैवत्यां, शतगुणीकृत, ज्योतिष्टोम-अतिरात्र-शतफल-प्राप्तिकामोऽहं ......... नाम्ने, विष्णुरूपिणे वराय, भरण-पोषण-आच्छादन-पालनादीनां, स्वकीय उत्तरदायित्व-भारम्, अखिलं अद्य तव पत्नीत्वेन, तुभ्यं अहं सम्प्रददे । वर उन्हें स्वीकार करते हुए कहें- ॐ स्वस्ति ।
Ashutosh Acharya दान करने का अर्थ यह नही की उससे मिलना जुलना देखना बात करना मना हो गया ,हाँ यह सही है कि उसको वापस लेना वोह गलत है l दहेजप्रथा तो गलत ही है यह तो पाप भी है और अपराध भी l वैसे दिवेदी जी में आपसे किसी भी प्रकार से तर्कों में नहीं जीत सकता क्यूंकि आप तो संविधान और कानून के महान ज्ञाता है और में एक तुच्छ अल्प ज्ञान रखने वाला .

Jitendra Choubey दिवेदी जी कानून लागू करवा भी देंगे तो भी सालों तक थाने में एक भी रिपोर्ट न होगी क्योकि यहाँ न दान होने वाला शिकायत करेगा न पाने वाला न करने वाला.. इस दान प्रक्रिया में सभी खुश रहते हैं.. लड़की विदा के बाद ८-१० दिन में घर भी आ जाती है.. तीन बार विदाई होती है.. 

Sangita Puri अर्थ का अनर्थ निकालने वाले किसी भी शब्‍द का कोई अर्थ निकाल सकते हं ... बोलने और लिखने से अधिक जरूरी है .. व्‍यवहार में पविर्तन हो .. नारी को उचित मान सम्‍मान मिले ...


   

गुरुवार, 19 मई 2011

हमारे बीच ३६ का आँकड़ा : कुल खर्च 310 रुपया

रिणाम अच्छा रहा हो या बुरा,इस दिन को शायद ही कोई भूलता हो। हो सकता है कभी भूल हो भी जाए, लेकिन ब्लागजगत में आने के बाद तो यह कतई संभव नहीं है। यहाँ एक अदद डंडा लिए बी.एस.पाबला जो बैठे हैं। वे अकेले व्यक्ति हैं जो हरदम याद दिलाते रहते हैं कि आज तुम्हारा जन्मदिन है, या फिर विवाह की वर्षगाँठ है, कि किस किस ब्लागर की पोस्ट किस अखबार में प्रकाशित हुई है, किस का चर्चा कहाँ हुआ है? कल शाम मैं एक विवाह समारोह में था कि अचानक जेब से मोबाइल की घंटी की आवाज सुनाई दी। उस वक्त वहाँ कम शोर था या फिर मेरा ध्यान चला ही गया और मैं ने मोबाइल उठा लिया। हालाँकि उस के पहले और बाद में आई कुछ कॉल्स सुनाई न देने के कारण मिस कॉल्स में परिवर्तित हो गई थीं। यह नंबर मेरे फोन रिकॉर्ड में नहीं था, आदतन मैं ने उसे उठा लिया और छूटते ही पूछा -कौन बोल रहे हैं?
मैं (ताजा चित्र)

वे पाबला जी ही थे और मोबाइल से नहीं बेसिक फोन से संयोजित हुए थे। आदेश मिला चित्र चाहिए। एक तो पिछले साल लगा चुका हूँ, इस बार अलग चाहिए। समारोह में शोर के कारण बात ठीक से नहीं हो पा रही थी। मैं ने उन से चित्र भेजने का वादा किया और फोन काट दिया। घर पहुँच कर पहले कंप्यूटर पर चैक किया। मुझे उचित चित्र ही नहीं मिल रहे थे। आखिर मैं ने कुल चार चित्र छाँटे, उन्हें मेल किया और सोने चला गया। रोज की तरह सुबह तैयार हो कर अदालत चला गया। वहाँ से लौटा तो तीन बज चुके थे। आज तीसरा खंबा की पोस्ट नहीं गई थी। मुझे कुछ अपराध बोध सा हुआ। तीसरा खंबा की पोस्ट का पाठक बेजारी से प्रतीक्षा करते हैं। खास तौर पर वे जो तीसरा खंबा को अपनी कानूनी समस्याएँ प्रेषित करते हैं, सलाह के लिए जवाबी पोस्ट की प्रतीक्षा करते हैं। मैं ने अधूरी पड़ी पोस्ट को पूरा कर पोस्ट किया। कुछ समय अवश्य लगा। आखिर हर पोस्ट के लिए कुछ न कुछ पढ़ना और कानून की किताबों से टीपना तो पड़ता ही है। 

शोभा (ताजा चित्र)
ये 17-18-19 मई के दिन-रात मैं कभी नहीं भूलता। क्या बेकरारी थी? मैं ने अपनी होने वाली जीवन साथी को देखा तक नहीं था, मिलने और बात करने की बात तो बहुत दूर की थी। चिट्ठी-पत्री का भी कोई सवाल न था। यहाँ तक कि सगाई डेढ़ वर्ष पहले हो गई थी। तभी से होने वाली ससुराल की दिशा में जाने पर परिवार ने स्थगन लगा दिया था। उस जमाने में हिम्मत कहाँ थी जो चोरी-छिपे भी उस का उल्लंघन करने की सोच पाते। हर साल गर्मी की छुट्टियों में मामाजी के यहाँ जाता था। रास्ता होने वाली ससुराल के नगर से गुजरता था। नतीजा, मामा के यहाँ जाना भी बन्द। अपनी जीवन साथी के बारे में जितना कुछ अन्य लोगों से सुना था। उसी के आधार पर उस का एक काल्पनिक चित्र मस्तिष्क में कहीं बन गया था। वही काल्पनिक चित्र  उन दिनों रूमानियत का केंद्र था। उन दिनों रूमानियत के कुछ बिन्दु और भी थे। लेकिन अभी वे नैपथ्य में चले गए थे। 17 मई का दिन विवाह के पूर्व भोज का दिन था। वह भीड़-भाड़ और कुछ अनोखी घटनाओं में गुजरा। आधी रात को बारात रवाना हुई वह भी घटनापूर्ण रही। 18 मई की सुबह हम अपनी होने वाली ससुराल के नगर में थे।  दिन भर विभिन्न वैवाहिक संदर्भों ने निपटा दिया। शाम को मैं घोड़ी पर था। कुल साढ़े पाँच घंटे घोड़ी पर बैठना किसी तपस्या से कम न था। इस के बाद भी जलूस ससुराल के दरवाजे से अपना स्वागत करवा कर लौट आया था। मुहूर्त लग्न रात के दो बजे जो था।

बीस साल पहले विवाह की वर्षगाँठ
रात को एक बजे फिर से घोड़ी पर जलूस निकला। इस बार तोरण भी मारा और हाथ भी बंधवाया। चतुष्पदी संपन्न होते-होते रात्रि अंतिम प्रहर में प्रवेश कर गई।  दुल्हन को ले कर वापस जनवासे पहुँचे। कुछ देर में दुल्हन वस्त्र बदल कर फिर से अपने मायके लौट चली। मैं अब अपने ससुराल का कुँअर था। सुबह कुँअर कलेवा का बुलावा आया। दोस्तों के साथ हम पहुँचे। कुछ शेष कार्यक्रम और निपटाए गए, दोपहर होने के पहले बारात विदा हो ली। शाम के पहले बारात मेरे नगर पहुँच ली। तब तक मैं ने अपनी जीवन साथी का चेहरा तक न देखा था। उस घटना को छत्तीस वर्ष होने में कुछ ही घंटे शेष हैं। पर लगता है यह कल की ही बात है। 

जीवन संगिनी शोभा ने आज का दिन गेहूँ साफ करने में लगाया। शाम के भोजन की कोई तैयारी नहीं थी। मैं ने पूछा -आज शाम के भोजन का क्या करना है? 
जवाब में प्रश्न मिला -आज भी कहीं न्यौता जीमने जाना है क्या?
-चले चलेंगे। 
- कहाँ? आज का तो कहीं का न्यौता भी नहीं है।
बीस साल पहले विवाह की वर्षगाँठ
-इतने रेस्टोरेंट जो हैं, शहर में। वे तैयार हो गईं। अब बारी थी रेस्टोरेंट चुनने की। मैं ने सब से दूरी (पाँच किलोमीटर) का रेस्टोरेंट बताया। उन्होंने दो किलोमीटर के अंदर ही चुनाव कर लिया। मैं ने कहा सुझाया मित्र जोड़े को साथ ले चलते हैं, पर किस को? बहुत से विकल्पों पर विचार हुआ। लेकिन प्रस्ताव अंत में गिर गया। रात नौ बजे हम दोनों घर से निकले। दिन भर बहुत गर्मी थी, लेकिन शाम को कुछ बारिश हुई थी और हवा चल रही थी। मौसम सुहाना हो चला था। हमने भोजन किया, मैं ने मीठे के लिए आग्रह किया तो उत्तर मिला बाहर निकल कर आइस्क्रीम खाएंगे। बिल आया मात्र 196 रुपए का। दस रुपए टिप में छोड़े, कुल हुए 206 रुपए। बाहर निकल कर पास ही एक वकील साहब के बेटे के पार्लर पहुँचे और एक एक कप केसर-पिस्ता आइस्क्रीम गटकी। यहाँ चुकाए मात्र 40 रुपए। पान की दुकान पर पहुँचे, 30 रुपए वहाँ खर्च किए। फिर याद आई बर्फ के गोलों की। चौपाटी पर जा कर उन का भी आनन्द लिया, चुकाए सिर्फ 16 रुपए। फिर वापस घर लौट आए। मैं ने हिसाब लगाया तो 18 रुपए का कार में जला पट्रोल भी जोड़ा। अधिक नहीं केवल 310 रुपए खर्च हुए। यह कुछ अधिक सस्ता भी नहीं। पिताजी खर्च का हिसाब लिखते थे। उन्हों ने डायरी में मेरी शादी का कुल खर्च बारह हजार कुछ सौ रुपए लिखा है।

ह हमारे विवाह की छत्तीसवीं वर्ष गाँठ थी। यूँ तो जगत में ३६ का आँकड़ा बहुत बदनाम है। लेकिन आज का दिन अच्छा गुजरा। हम दोनों में आँकड़ा ३६ न हुआ। वैसे इस साल में इसे हमने खूब झेला है। कुछ झगड़ा, कुछ रूठना, कुछ मनाना सब चलता रहा। लेकिन इस आखिरी दिन मामूली प्यार भरी छींटाकशी से अधिक कुछ न हुआ। हम ने भी चैन की साँस ली। ३६वाँ साल पूरा होने को है। सुबह होने के पहले सैंतीसवाँ आरम्भ हो लेगा। आखिरी दिन भी अच्छा गुजरा। खर्चा भी अधिक न हुआ सिर्फ 310 रुपए में काम चल गया। आशा की जा सकती है कि हमारे आने वाले दिन अच्छे ही होंगे। ३६ का आंकड़ा गुजर जो गया है। फिर आप सब की दुआएँ जो हमारे साथ हैं। कुछ और जानना चाहेँ तो यहाँ मेरी सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली पोस्टों में से एक उन्नीस मई का दिन, शादी के बाद की पहली रात पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
पाबला जी ने आज ही हमारी शादी की वर्षगाँठ मनवा दी। वैसे हमारी शादी हुई 19 मई में थी, और वह पूरा दिन गुजर जाने के बाद रात को ही अपनी पत्नी की शक्ल पहली बार देख पाया था। आप चाहें तो 19 तारीख में भी बधाई/शुभकामनाएँ भेज सकते हैं। हम बेकरारी से इंतजार करेंगे।  

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

आप भुवनेश शर्मा को जानते हैं? नहीं, तो जानिए, और बधाई दीजिए

हुत बहुत दिनों से यह साध थी कि उस की शादी में जरूर जाउंगा, और अकेला नहीं, बल्कि सपत्नीक। लेकिन कहते हैं न कि सोचा हमेशा सधता नहीं। कल तक इरादा पक्का था। लेकिन एक काम ऐसा पड़ा कि उसे तुरंत करना जरूरी था। उसी में लगा रहा। रात तारीख बदलने तक उसे करता रहा। काम से उठने के पहले सोचा, अब सुबह जल्दी निकला जा सकता है। लेकिन उठते ही हाजत हाजिर, निपट भी लिया, लेकिन सहज नहीं हुआ। सुबह तीन-चार के बीच फिर जाना पड़ा, पर सहजता नहीं लौटी। लगा कि अब सुबह छह बजे की ट्रेन नहीं ही पकड़ पाएंगे। फिर जाना मुल्तवी कर दिया। कल दोपहर तक दूल्हे का फोन आया था। सर! आ रहे हैं न आप? मैं ने पूरी गर्मजोशी से कहा था, आ रहा हूँ। शाम को फिर फोन आया तो फिर गर्मजोशी दिखाई थी। लेकिन अगली सुबह होने के पहले हवा निकल गई। 
ब मैं डर रहा था कि दूल्हे का फोन आया तो क्या कहूंगा? जो हुआ वह बताऊँ या नहीं? फिर सोचा, मैं शादी में पहुँच जाता तो क्या कर लेता, ठीक बारात निकलने के पहले पहुँच पाता। थोड़ा विश्राम कर सूट पहन बारात में चल देता। फिर रिसेप्शन में स्वागत झेलता। दूल्हे के सिवा मैं किसी से परिचित नहीं था। और दूल्हे से भी बस आभासी परिचय ही था। पहली बार मिलते। लेकिन वह अधिकतर घोड़ी पर होता या फिर स्टेज पर दुलहिन के साथ। जैसे-तैसे शादी निपटती। दूल्हे को तो अभी फुरसत भी नहीं होती कि हमारी रवानगी लग जाती। नहीं जा पाए तो कोई बात  नहीं, दूल्हे को दुल्हिन के साथ घर बसा लेने दो फिर दो-चार महीने बाद चलेंगे। एक-दो दिनों का समय निकाल कर, जिस से उसे भी मेजबानी का सुख मिले और हम भी उन के साथ मिलें और उस इलाके को भी घूम-फिर कर देखें। मैं इसी तरह सोच रहा था कि उस का फिर फोन आ गया -सर! कहाँ तक पहुँचे? मैं ने सहज बता दिया कि मैं किस कारण से रवाना नहीं हो सका हूँ। यह भी कहा कि कोई बात नहीं दो-चार माह बाद आएंगे दो-एक दिन रुकेंगे। दूल्हे को कुछ तसल्ली होती लगी तो मैं ने कहा -तुम ही आओ दुलहिन को लेकर, दो-एक दिन रुको। तुम्हें इस इलाके में घुमा दें। अब शादी के दिन वैसे ही दूल्हे पर समय बहुत कम होता है। फोन पर बात खत्म हो गई। 
भुवनेश शर्मा
ब आप को बता दूँ कि ये दूल्हा महाशय वकील और हमारे अपने हिन्दी ब्लाग जगत के ब्लागीर भुवनेश शर्मा हैं। इन के तीन ब्लाग हिन्‍दी पन्‍ना, एक वकील की डायरी और Amazing Pictures हैं। ये आज रात्रि अपने ही नगर की आयुष्मति रश्मि को अपनी जीवन संगिनी बनाने जा रहे हैं। कल सुबह सूर्योदय की पहली किरण के साथ अपनी रश्मि को साथ ले कर घर लौटेंगे। अब हम इन के विवाह के साक्षी तो नहीं बन सके, लेकिन इन्हें अपनी ओर से बधाई तो दे ही सकते हैं। 
भुवनेश व रश्मि दोनों के आपस में जीवन-साथी बनने पर बहुत बहुत बधाइयाँ!!! और सफल प्रसन्नतायुक्त वैवाहिक जीवन के लिए अनन्त शुभकामनाएँ!!!
म ने दे दी हैं, आप भी दे ही दीजिए........