परसों दोपहर महेन्द्र 'नेह' का फोन मिला, शाम साढ़े छह बजे प्रेस क्लब में विकल्प जन सांस्कृतिक मंच की मीडिया पर एक सेमीनार है, वहाँ पहुँचना है। मैं ने तुरंत हाँ कर दी। शाम को कुछ काम निकल आए और मैं कुछ देरी से सेमीनार में पहुँचा। लेखक, कवि, पत्रकार और कुछ अन्य सजग नागरिक, कुल पैंतीस -चालीस लोग वहाँ मौजूद थे। सेमीनार में कोटा के बाहर से राज्य-सभा की मीडिया सलाहकार समिति के सदस्य पत्रकार अनिल चमड़िया, अरूण कुमार उराँव, विजय प्रताप व वरूण शैलश आए हुए थे। सेमीनार का विषय "समय की सचाइयाँ और मीडिया" था।
अनिल चमड़िया का कथन था कि हम सचाई कि उसी हिस्से को देख पाते हैं, जिसे मीडिया हमें दिखाना चाहता है। लगातार एक पक्षीय सूचना की बरसात कर के मीडिया ने हमारे सोचने-समझने और तर्क करने की क्षमता को भौंथरा कर दिया है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अमरीका ने ईराक व अफगानिस्तान के विरूद्ध हमलों से पूर्व मीडिया के जरिये प्रचार युद्ध चलाया और अंतत: आसानी से जंग जीत ली। भारत के आदिवासी क्षेत्रों से देशी-विदेशी कंपनियों ने कोलम्बस के बाद जमीन और खनिजों की सबसे बड़ी लूट की है और लाखों आदिवासियों को विस्थापित कर दिया है। लेकिन मीडिया ने इस बात को कोई महत्व नहीं दे कर नक्सली और माओवादी गतिविधियों के बारे में अतिरंजित खबरों को अत्यधिक तरजीह दे कर इस बड़ी हकीकत को छुपा दिया।
इलेक्ट्रोनिक मीडिया पत्रकार अरूण कुमार उरॉव का कहना था कि सूचना मंत्री अम्बिका सोनी का यह कहना सही नहीं है कि मीडिया स्वयं ही अपने को नियंत्रित करता है। उस की वित्तपोषक ताकतें उसे नियंत्रित करती हैं। मनोरंजन के नाम पर "राखी का इंसाफ" "बिग-बॉस" जैसे सीरियल समाज में विकृति फैला रहे हैं। उन्होंने प्र’न किया कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ग्रामीणों, आदिवासियों व दलितों पर सीरियल क्यों नहीं बनते। दिल्ली से आये पत्रकार विजय प्रताप ने कहा कि मीडिया में एक ओर सत्ता संचालित सोच की धारा है, जिसे मुख्य-धारा कहा जाता है। पत्रकारिता की दूसरी धारा प्रतिरोध की धारा भी है, जिन्हें सचाई सामने लाने पर प्रताड़ित किया जाता है। इस संदर्भ में उन्होंने सीमा आजाद, हेमचंद्र पाण्डे, प्रशांत राही आदि पत्रकारों का उल्लेख किया। इन्डो एसियन न्यूज सर्विस (आईएनएस) से जुड़े पत्रकार वरूण शैलेश ने कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान दिल्ली के भिखारियों व फुटपाथ के दूकानदारों को भारत की गरीबी को छुपाने के लिए निर्दयतापूर्वक खदेड़ दिया गया, लेकिन मीडिया ने इसे तरजीह नहीं दी। भ्रष्टाचार की जो खबरें इन दिनों प्रमुखता से छाई हुई हैं उस का कारण सत्ता और व्यापारिक घरानों की आपसी प्रतिस्पर्धा है।
कोटा के पत्रकार दुर्गाशंकर गहलोत ने कहा कि हमें समाचार कम सूचनाऐं अधिक मिलती हैं। भारत जैसी सबसे पवित्र भूमि आज सबसे भ्रष्ट दिखाई जा रही है। पत्रकार हलीम रेहान ने कहा कि मीडिया की भूमिका के लिए पत्रकारों को दोषी नही ठहराया जा सकता। हितेश व्यास ने कहा कि इस तरह के नकारात्मक मीडिया के साथ सकारात्मक मीडिया पर भी बात होनी चाहिए? आर.पी. तिवारी का कहना था कि मीडिया ने आज सच्चाई को घूमिल कर दिया है। शायर शकूर अनवर ने का कहना था कि मीडिया द्वारा ने जनता को असत्य और फूहड़ता देखने के लिए मजबूर कर दिया है। साहित्यकार अरूण सैदवाल ने मीडिया को "अपनी ढपली-अपना राज" की संज्ञा देते हुए कहा कि मिशनरी और प्रतिबद्ध पत्रकारिता ही इस माहौल को बदल सकती है। सेमीनार का संचालन कर रहे महेन्द्र 'नेह' ने मीडिया की स्थिति पर मौजूँ शैर पढ़ा " आसान नहीं है सुलझाना इस गुत्थी का@ अहले दानिश ने बहुत सोच के उलझाया है"। उन का कहना था कि मीडिया-कर्मी जमीनी वास्तविकताओं को समझें तो मीडिया के प्रतिरोधी और सकारात्मक हिस्से को ताकतवर बनाया जा सकता है।
सेमीनार में मेरी तरह विशुद्ध श्रोता के रूप में शिरकत करने वालों में कवि-व्यंग्यकार ब्लागर अतुल चतुर्वेदी, अंजुम शैफी, ओम नागर संजय चावला, शायर चांद शेरी, अखिलेशा अंजुम, पुरूषोत्तम 'यक़ीन' कवि राम नारायण हलधर, गोपी लाल मेहरा, महेन्द्र पाण्डेय, परमानन्द कौशिक, विजय जोशी, अब्दुल गफूर, तारके’वर तिवारी, त्रिलोक सिंह मेरी पहचान के थे, शेष लोगों को मैंने पहली बार देखा था, उन से पहचान बढ़ाने का भी कोई अवसर मुझे नहीं मिला। इस सेमीनार से मुझे बहुत कुछ जानने को मिला और कुछ नए लोगों से पहचान हुई।
सेमीनार के बाद गपशप में रुक गए लोग |
3 टिप्पणियां:
आपकी राय से इत्तेफाक रखते हैं।
सेमिनार के बारे में अवगत कराने का शुक्रिया।
सेमीनार के बारे में अच्छी जानकारी मिली. मीडिया को उस की वित्तपोषक ताकतें हीं नियंत्रित करती हैं। आभार.
आयोजनों की ऐसी रिपोर्टिंग की परम्परा नष्टप्राय: हो गई। पढकर लगा, मैं खुद इस गोष्ठी में उपस्थ्ति हूँ। आपके इस परिश्रम को नमन।
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