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शनिवार, 26 मार्च 2011

कितने प्रोफेशन (व्यवसाय) और कितने प्रोफेशनल (व्यवसायी)?

मित्रों! एक जिज्ञासा थी, यह जानने की कि कितने तरह के व्यवसाय (प्रोफेशन) और व्यवसायी (प्रोफेशनल) हो सकते हैं। मुझे एक सूची मिली। कुछ मैं ने इस में वृद्धि की, अभी तक कुल 328 हुए। लेकिन यह सूची अधूरी है, और शायद हमेशा अधूऱी रहे। क्यों कि नये व्यवसाय (प्रोफेशन) हमेशा अस्तित्व में आते रहेंगे। आप भी देखिए इस सूची को। कुछ और प्रोफेशन/व्यवसाय स्मृति में आएँ तो उन्हें अपनी टिप्पणी के माध्यम से इस में अवश्य जोड़िए।

1.    अंगरक्षक
2.    अंडरटेकर 
3.    अंतरिक्ष यात्री 
4.    अंतरिक्ष वैज्ञानिक
5.    अग्निशमन अधिकारी
6.    अध्यापक
7.    अध्यापिका
8.    अनुवादक
9.    अनुसंधानकर्ता
10.    अभिनेता
11.    आंकलन करनेवाला
12.    आया
13.    आयातक
14.    आयोजक
15.    आविष्कारक
16.    आहार विशेषज्ञ
17.    इंजन चालक
18.    इंजन फिटर
19.    इंजीनियर
20.    इंटीरियर डिजाइनर
21.    इतिहासकार
22.    इथोनोलोजिस्ट
23.    इमाम
24.    उड़ान तकनीशियन (फ्लाइट इंजीनियर)
25.    उड़ान प्रशिक्षक
26.    उत्पादक
27.    उद्योगपति
28.    उपचारात्मक शिक्षक
29.    उपशिक्षक
30.     ऋण आयोजक
31.    एंटीक डीलर
32.    एक्सप्लोरर
33.    एजेंट
34.    एथलीट
35.    एयर ट्रैफिक कंट्रोलर 
36.    एल्डरमैन
37.    एस्टेट एजेंट 
38.    ऑपरेटर
39.    ओर्थपेडीस्ट
40.    कंडक्टर  (परिवहन)
41.    कंडक्टर  (संगीत)
42.    कंप्यूटर प्रोग्रामर
43.    कचरा कलेक्टर 
44.    कप्तान
45.    क़ब्र खोदनेवाला
46.    कला निर्देशक
47.    कलाकार
48.    कवि
49.    कसाई
50.    कानून  प्रवर्तक
51.    कारपोरेट 
52.    कारिंदा
53.    किताब  बेचनेवाला
54.    किसान
55.    कुलाधिपति
56.    कूरियर
57.    केवट
58.    कैबिनेट निर्माता
59.    कैमरामैन
60.    कॉपीरायटर
61.    कॉर्पोरेट लाइब्रेरियन
62.    कोच
63.    कोरियोग्राफर
64.    कोरोनर
65.    कोषाध्यक्ष
66.    कौंसल
67.    क्यूरेटर
68.    क्लर्क
69.    क्लारिनेटिस्ट
70.    क्षतिनिर्धारक
71.    खगोल विज्ञानी
72.    खनिक
73.    खुफिया अधिकारी
74.    खेल कमेंटेटर
75.    गणितज्ञ
76.    गाइड
77.    गाड़ीवान
78.    गायक
79.    गार्ड
80.    गिटारवादक
81.    गीतकार
82.    गुब्बाराकार
83.    गेट कीपर
84.    गेम शो होस्ट
85.    गोदी मजदूर
86.    ग्राफिक  कलाकार
87.    घरेलू  नौकर
88.    चक्कीवाला
89.    चरवाहा
90.    चालक
91.    चिकित्सक
92.    चिकित्सा-सहायक
93.    चित्रकार
94.    चिमनी-स्वीपर
95.    छाता  मिस्त्री
96.    जन सम्पर्क अधिकारी 
97.    जनसंख्या विज्ञानी
98.    जम्मू
99.    जल्लाद 
100.    जासूस
101.    जिल्दसाज
102.    जीव विज्ञानी 
103.    जुलाहा
104.    जॉकी
105.    ज्योतिषी
106.    टर्नर
107.    टेलिग्राफ़-आपरेटर
108.    टेलिफ़ोन-आपरेटर
109.    टेस्ट डेवलपर
110.    टैक्सी चालक
111.    टैक्सी ड्राइवर
112.    डाकिया 
113.    डिजाइनर
114.    डिस्क जॉकी
115.    डेंटिस्ट
116.    ढंढोरची
117.    तकनीकी इंजीनियर
118.    तकनीशियन
119.    तट रक्षक
120.    तलवारबाज
121.    ताबूत निर्माता
122.    दर्जी
123.    दलाल
124.    दाई
125.    दार्शनिक
126.    दुभाषिया
127.    दूत
128.    धर्माध्यक्ष
129.    ध्वनि तकनीशियन
130.    नर्तकी/नर्तक
131.    नर्स
132.    नलसाज
133.    नाई
134.    नाटककार
135.    नालबन्द
136.    नाविक
137.    निजी  जासूस
138.    नियंत्रक
139.    निर्माण मजदूर
140.    निर्माता
141.    निशानेबाज़
142.    निश्चेतक
143.    निष्पादक
144.    नेत्र-विशेषज्ञ
145.    नौकर
146.    नौकरशाह
147.    न्यायाधीश
148.    पंच
149.    पक्षी विज्ञानी
150.    पत्रकार
151.    पदवाहक
152.    पनडुब्बी चालक
153.    परिचारक
154.    परीक्षक
155.    पर्यावरण वैज्ञानिक
156.    पशु ट्रेनर
157.    पशुचिकित्सा
158.    पादरी
159.    पायलट
160.    पार्क रेंजर
161.    पार्टी नेता
162.    पियानोवादक
163.    पुरातत्त्ववेत्ता
164.    पुरालेखपाल
165.    पुरोहित
166.    पुलिस इंस्पेक्टर
167.    पुलिस अधिकारी
168.    पुलिस-जासूस
169.    पेडीक्योरिस्ट
170.    पैमाइश करनेवाला
171.    पोप
172.    प्रकाश तकनीशियन
173.    प्रकाशक
174.    प्रकाश-विज्ञानी
175.    प्रणाली डिजाइनर
176.    प्रणाली विश्लेषक
177.    प्रधान
178.    प्रधानमंत्री 
179.    प्रधानाचार्य
180.    प्रधानाध्यापक
181.    प्रबंधक
182.    प्रयोगशाला कार्यकर्ता
183.    प्रशासक 
184.    प्रशिक्षक
185.    प्रश्नकर्ता
186.    प्रस्तुतकर्ता
187.    प्राध्यापक
188.    प्रूफ रीडर
189.    फायर फाइटर
190.    फार्मेसिस्ट
191.    फिजियोथेरेपिस्ट
192.    फिटर
193.    फुटकर विक्रेता
194.    फैक्ट्री मजदूर
195.    फैशन डिजाइनर
196.    फोटोग्राफर
197.    बंदूकची
198.    बाल-चिकित्सक
199.    बढ़ई
200.    बनिया
201.    बन्दूक बनानेवाला
202.    बहेलिया
203.    बाज़ को सिखानेवाला
204.    बाज़ीगर
205.    बार कीपर 
206.    बारटेन्डर
207.    बालवाड़ी शिक्षक
208.    बिजली इंजीनियर
209.    बिल्डर
210.    बिशप
211.    बीमाकर्ता
212.    बेकर
213.    बैंकर
214.    भंडारी 
215.    भाषणकर्ता
216.    भाषाविद
217.    भाषाविद्
218.    भूगोलिक
219.    भूभौतिकीविद्
220.    भूविज्ञानी
221.    भौतिक विज्ञानी
222.    मंजिल प्रबंधक
223.    मंत्री
224.    मकान मालिक
225.    मछुआरा
226.    मजिस्ट्रेट
227.    मनोरंजन उद्यमी
228.    मनोविज्ञानी
229.    मरम्मत करनेवाला
230.    महापौर
231.    मांझी
232.    मार्शल
233.    मार्शल आर्टिस्ट
234.    मालिश करनेवाला
235.    माली
236.    मिशनरी
237.    मुंशी 
238.    मुद्रक
239.    मुरली वादक
240.    मुर्गीपालक
241.    मूर्तिकार
242.    मेकअप-मेन
243.    मैकेनिक
244.    मैनीक्योर 
245.    मॉडल
246.    मोची
247.    यौनविशेषज्ञ
248.    रंगमंच-निर्देशक
249.    रजिस्ट्रार
250.    रत्न विशेषज्ञ
251.    रसायनज्ञ
252.    राजदूत
253.    राजनयिक
254.    राजनीति विज्ञानी
255.    राजनीतिज्ञ
256.    राज्यपाल
257.    राष्ट्रपति
258.    रिसेप्शनिस्ट
259.    लकड़हारा
260.    लक्ष्यभेदक
261.    लाइब्रेरियन
262.    लाईफगार्ड
263.    लेखक
264.    जीवाणुतत्ववेत्ता 
265.    लेखाकार (ऑडिटर)
266.    लेपकर्ता
267.    लोहार
268.    वकील
269.    वनवासी
270.    वस्त्र विशेषज्ञ
271.    वायरलेस आपरेटर
272.    वायलनिस्ट
273.    वायोलिनिस्ट
274.    वास्तुकार
275.    विक्रेता
276.    विदूषक
277.    विद्युतकार
278.    विधिवेत्ता
279.    विलेख-लेखक
280.    विश्लेषक
281.    वीडियो संपादक
282.    वेटर 
283.    वेल्डर
284.    वेश्या
285.    वैज्ञानिक
286.    वैयाकरण
287.    व्यापारी
288.    व्यावसायिक चिकित्सक
289.    शब्द-व्युपत्तिशास्री
290.    शराब बनानेवाला
291.    शराब पारखी
292.    शहद की मक्खियां पालनेवाला
293.    शिकारी
294.    शिक्षक
295.    शिक्षाशास्री
296.    शेयर ब्रीडर
297.    संकेत से ख़बर भेजनेवाला
298.    संगीत निर्देशक
299.    संगीतकार
300.    संपादक
301.    संवाददाता
302.    सचिव
303.    थड़ी विक्रेता
304.    सरकारी एजेंट
305.    सराय कीपर
306.    सर्जन
307.    सर्वेक्षक
308.    सलाहकार
309.    साधु
310.    सामाजिक कार्यकर्ता
311.    साहूकार
312.    सीनेटर
313.    सुरक्षा गार्ड
314.    सेक्सोफोनिस्ट
315.    सेवक
316.    सैनिक
317.    सॉफ्टवेयर इंजीनियर
318.    सौंदर्य विशेषज्ञ 
319.    स्काउट
320.    स्कूल संचालक
321.    स्टन्टमैन
322.    स्टेज डिजाइनर
323.    हलवाई
324.    हाइड्रोलिक  इंजीनियर
325.    हास्य अभिनेता
326.    हुंडी  का  दलाल
327.    हृदयरोग विशेषज्ञ
328.    होटल  मालिक

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मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

समूह का जिम्मेदार हिस्सा

खिर आज बार  (अभिभाषक परिषद) के चुनाव संपन्न हो गए। मेरा वकालत में इकत्तीसवाँ वर्ष भी इसी माह पूरा हुआ है। दिसंबर 1978 में मुझे बार कौंसिल ने पंजीकरण की सूचना दे दी थी। हालांकि मैं ने इस के भी करीब छह माह पहले से ही अदालत जाना आरंभ कर दिया था। मैं कभी भी अभिभाषक परिषद की गतिविधियों के केंद्र से अधिक दूर नहीं रहा। कुछ कारणों से पिछले पाँच वर्षों से स्वयं को दूर रखना पड़ा।  लेकिन तीसरा खंबा आरंभ करने के बाद इस सब से दूर रहना संभव नहीं था। यदि वकीलों तक अपनी बात को सही ढंग से पहुँचाना है तो वही एक मात्र मंच ऐसा है जिस से यह काम किया जा सकता है। इस बार अपने एक कनिष्ठ अभिभाषक  रमेशचंद्र नायक को कार्यकारिणी की सदस्यता के लिए चुनाव लड़ाया। सामान्य रूप से वह एक बहुत अच्छा उम्मीदवार था। लेकिन चुनाव में जिस तरह की प्रतियोगिता थी उस से मुझे भी उस में व्यस्त होना पड़ा। पिछले चार पांच दिन तो इसी में निकल गए। उस श्रम का ही नतीजा रहा कि नायक चुनाव में सफलता हासिल कर  नए वर्ष में  अभिभाषक परिषद कोटा का काम संभालने वाली नई कार्यकारिणी की सदस्यता हासिल कर सका। रमेशचंद्र नायक का यह पहला अवसर है जब उस ने वकीलों के समूह की जिम्मेदारी को हाथ में लिया है। वह इसे मन से पूरी करेगा और साल के अंत में उस से बड़ी जिम्मेदारी को उठाने के लिए सक्षम होगा और तन-मन से तैयार भी।

 रमेशचंद्र नायक
र समूह के लोगों की अपनी समस्याएँ होती हैं, चाहे वह समूह घर पर परिवार के रूप में हो, नजदीकी रिश्तेदारों का समूह हो, मोहल्ले की सोसायटी का समूह हो या साथ काम करने वाले लोगों का समूह हो। हर जगह यह समूह किसी न किसी तरह की समस्याओं का सामना कर रहा होता है। हम सभी स्थानों पर वैयक्तिक समस्याओं के हल के लिए जूझते हैं लेकिन समूह की समस्याओं से कतरा जाते हैं। नतीजा यह होता है कि सामुहिक समस्याएँ बढ़ती रहती हैं और हम वैयक्तिक मार्ग तलाशते रहते हैं और आगे बढ़ते रहते हैं। इन वैयक्तिक मार्गों पर वही व्यक्ति सर्वाधिक सफल रहता है जो सब से चालाक होता है, सब से सीधे व्यक्ति का मार्ग सब से पहले बंद होता है और उसे एक बंद सुरंग में छोड़ देता है।

प इस वैयक्तिक मार्ग पर चल कर किसी सुरंग में अकेले फँसे रह जाएँ, उस से अच्छा है कि आप सामुहिक समस्याओं के हल के लिए आगे आएँ। इस के लिए कहीं न कहीं समूह की कोई न कोई सामुहिक जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। जब आप समूह में रहेंगे तो हमेशा किसी अंधेरी सुरंग से दूर रहेंगे और किसी सुरंग में फँस भी गए तो अकेले नहीं होंगे। रमेशचंद्र नायक की इस सफलता के साथ-साथ हमारे वकालत के दफ्तर के सभी  साथी महसूस कर रहे हैं कि वे अब समूह का अधिक जिम्मेदार हिस्सा हैं।

सोमवार, 30 नवंबर 2009

मनुष्य अपनी ही बनाई व्यवस्था के सामने इतना विवश हो गया है?

न्यायालयों का बहिष्कार 90 दिन पूरे कर चुका है। इस बीच सारा काम अस्तव्यस्त हो चला है। बिना निपटाई हुई पत्रावलियाँ, कुछ नए काम, कुछ पुराने कामों से संबंधित छोटे-बड़े काम, डायरी आदि।  अपने काम के प्रति आलस्य का एक भाव घर कर चुका है। लेकिन लग रहा है कि जल्दी ही काम आरंभ हो लेगा। इसी भावना के तहत कल दफ्तर को ठीक से संभाला। सरसरी तौर पर देखी गई डाक को ठिकाने लगाया। पत्रावलियों को यथा-स्थान पहुँचाया। अभी भी बहुत सी पत्रावलियाँ देखे जाने की प्रतीक्षा में हैं। कुछ मुवक्किलों को रविवार का समय दिया था। सुबह उठ कर उसी की तैयारी में लगा। लेकिन तभी शोभा ने सूचना दी कि पीछे के पड़ौसी बता कर गए हैं कि ओम जी की माताजी का देहान्त हो गया है। ओम जी मेरे कॉलेज के सहपाठी रहे हैं और आज कल पड़ौसी। इन दिनों विद्यालय में प्राचार्य हैं।  उन के माता पिता दोनों वृद्ध हैं, पिता जी कुछ अधिक क्षीण और बीमार थे। समझा  जाता था कि वे अब मेहमान हैं, लेकिन उन के पहले ही माता जी चल दीं।


स समाचार ने दिन भर के काम की क्रमबद्धता में अचानक हलचल पैदा कर दी। मैं ने जानकारी की कि वहाँ अंतिम संस्कार के लिए रवानगी कब होगी, पता लगा कि कम से कम साढ़े दस तो बजेंगे, उन के बड़े भाई के आने की प्रतीक्षा है। मैं जानता हूँ कि माँ की उम्र कुछ भी क्यूँ न हो, और उन का जाना कितना ही तयशुदा क्यों न हो? फिर भी उन का चला जाना पुत्रों के लिए कुछ समय के लिए ही सही बहुत बड़ा आघात होता है। लेकिन मैं इस वक्त वहाँ जा कर कुछ नहीं कर सकूंगा सिवाय इस के कि लोगों से बेकार की बातों में उलझा रहूँ। संवेदना की इतनी बाढ़ आई हुई होगी की मेरा कुछ भी कहना नक्कारखाने में तूती की आवाज होगी। मैं ने अपने कामों को पुनर्क्रम देना आरंभ किया। मुवक्किलों को फोन किया कि वे दिन में न आ कर शाम को आएँ। शाम को एक पुस्तक के लोकार्पण में जाना था उसे निरस्त किया और अपने कार्यालय के काम निपटाता रहा। शोभा और मेरा प्रात- स्नान भी रुक गया था, सोचते थे वहाँ से आ कर करेंगे। शोभा के ठाकुर जी बिना स्नान रहें यह  उस से बर्दाश्त नहीं हुआ।  उस ने साढ़े दस बजते बजते स्नान कर लिया। सवा ग्यारह पर समाचार मिला कि जाने की तैयारी है। मैं उन के घर पहुँचा और साथ हो लिया।
 नेक लोग मिले। कई बहुत दिनों में। अभिवादन हुए। एक व्यवसायिक पड़ौसी कहने लगे  - आज कल आप घऱ के बाहर बहुत कम निकलते हैं, बहुत दिनों में मिले। उन की बात सही थी। मैं ने मुहल्ले के लोगों पर निगाह दौड़ाई तो पता लगा अधिकांश की स्थिति मेरी जैसी ही है। या तो वे घर के बाहर होते हैं या घर में,  परमुहल्ले में नहीं होते, एक दूसरे के साथ। मैं सोचने लगा कि ऐसा क्यों हो रहा है? मैं ने उन्हें कहा कि इस मोहल्ले में हम जो लोग रहते हैं सभी निम्न मध्यवर्गीय लोग हैं। जो लोग सरकारी या सार्वजनिक उपक्रम की सेवा में हैं या थे,  उन के अलावा जितने भी लोग हैं, वे सभी क्या पिछले तीन चार सालों से आर्थिक रूप से अपने आप को अपनी नौकरियों और व्यवसायों में सुरक्षित महसूस नहीं करते? और क्या इसी लिए वे खुद अपने को सुरक्षित बनाए रखने के लिए अधिकतर निष्फल प्रयत्न करते हुए अचानक बहुत व्यस्त नहीं हो गए हैं? मुझे उन का जवाब वही मिला जो अपेक्षित था।


ब तक हम गंतव्य तक पहुँच चुके थे। जानकार लोग काम में लग गए। बाकी डेढ़ घंटे तक फालतू थे, जब तक पंच-लकड़ी देने की स्थिति न आ जाए। वहाँ यही चर्चा आगे बढ़ी। बहुत लोगों से वही जवाब मिला जो पहले मिला था। बात निकली तो पता लगा कि इस स्थिति ने लोगों को निश्चिंत या कम निश्चिंत और  चिंतित व  प्रयत्नशील लोगों के दो खेमें में बांट दिया है। उन के रोज के व्यवहार में परिवर्तन आ चुका है। एक मंदी ने लोगों के जीवन को इतना प्रभावित कर दिया था। कि वे आपस में मिलने से महरूम हो गए थे। महंगाई की चर्चा भी छिड़ी, उस ने भी दोनों तरह के लोगों को अलग-अलग तरह से प्रभावित किया था। उन लोगों की बात भी हुई जो निजि संस्थानों में काम करते हैं। बहुत पैसा और श्रम लगा कर पढ़े लिखे नौजवान, जिन्हें बहुत प्रतिष्ठित वेतनों वाली नौकरियाँ मिल गई हैं, उन की भी बात हुई कि वे किस तरह काम में लगे होते हैं कि घर लौटने पर खाने और आराम करने को भी समय कम पड़ता है।
क ही बात थी कि कब मंदी में सुधार होगा? करोड़ों लोगों को इस ने प्रयत्नों के स्थान पर भाग्य के भरोसे छोड़ दिया है। घर की महिलाएँ जो इस बात को समझ ही नहीं पा रही हैं अधिक देवोन्मुख होती जा रही हैं। पहले यह मंदी दूसरी बार आने में आठ-दस वर्ष का समय लेती थी। अब तो पहली का असर किसी तरह जाता है कि दूसरी मुहँ बाए खड़ी रहती है। इस ने बहुत से प्रश्न उत्तरों की तलाश के लिए और खड़े कर दिए थे। क्या इस मंदी का कोई इलाज नहीं है? क्या भावी पीढ़ियाँ इसी तरह इस का अभिशाप झेलती रहेंगी? मनुष्य क्या इतना विवश हो गया है अपनी ही बनाई हुई व्यवस्था के सामने?


शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

रात की बारिश और फरीदाबाद से दिल्ली का सफर


रात सोने के पहले तारीख बदल चुकी थी। सर्दी के लिहाज से हलका कंबल  लिया था, एक चादर भी साथ रख लिया। केवल कंबल में भी गर्मी लगी तो उसे हटा कर चादर से काम चलाना पड़ा। सुबह पाँच के आसपास एक बार नींद खुली, यह लघुशंका के लिए थी।  बाथरूम गया तो  रास्ते में बालकनी गीली दिखाई दी। गौर किया तो पता लगा रात बारिश हुई है। सर्दी कम होने का कारण यही था। अभी रात शेष थी। दुबारा बिस्तर पर लेटा तो नींद फिर लग गई।  इस बार उठा तो आठ बज चुके थे। निपटते-निपटाते साढ़े नौ बज गए। झटपट नाश्ता किया और चल दिया। मैं सोचता था कि डेढ़ नहीं तो दो घंटे में तो निश्चित स्थान पर पहुँच ही लूंगा। गंतव्य के लिए मुझे बदरपुर बॉर्डर से जिस बस को पकड़ना था उस का रूट नंबर मुझे अजय झा बता चुके थे। बॉर्डर तक कैसे पहुँचना है इतना जानना था। इस के लिए मकान मालिक ने मदद की और मैं पहुँचा सेक्टर तीन की पुलिया पर।  दो-तीन मरियल से ठुकपिट कर शक्ल बिगाड़े रिक्शा आए लेकिन बॉर्डर के नाम से ही बिदक गए। फिर एक हरे रंग का नया सा मिला, उसने बिठा लिया और बदरपुर बॉर्डर उतारा। मोबाइल ग्यारह में आठ मिनट कम बता रहा था।
विचित्र नजारा था। मेट्रो के लिए चल रहे काम और शायद निर्माणाधीन फ्लाई ओवर के कारण  बेहद अफरातफरी थी। यहाँ भी स्थाई-अस्थाई बाजार उगे थे। पता ही नहीं लग रहा था कि कहाँ से बस मिलेगी? मुझे कुछ पान की दुकानें दिखीं। पूरा एक दिन हो गया था, पान खाए। पास गया तो उन में गुटखे लटक रहे थे और भी बहुत कुछ था पर पान नहीं था। तलाश करने पर एक जगह पान भी दिखे दुकानदार उस की दीवार घड़ी दुरुस्त करने में जुटा था। मैं ने उसे पान बनाने को कहा तो उस ने बस एक नजर मेरी और देख वापस अपने काम में जुट गया। मैं ने एक मिनट उस का इंतजार किया और खुद को उपेक्षित पा कर वहाँ से चल दिया। रास्ते में कुछ लोग मोजे, रुमाल, बटुए आदि बेच रहे थे। मुझे याद आया मैं रुमाल लेना भूल गया हूँ। मैंने दस रुपए में एक रुमाल खरीदा और उसी से पूछा कि बस कहाँ मिलेगी? उस ने दूर खड़ी बसों की ओर इशारा किया। मैं तकरीबन पौन किलोमीटर चल कर बसों तक पहुँचा तो मेरे रूट की बस बिलकुल खाली थी, ड्राइवर-कंडक्टर  अंदर बैठ कर अपना सुबह का टिफिन निपटा रहे थे। मैंने पूछा तो उन्हों ने आगे जाने का इशारा किया। आधा किलोमीटर और आगे चल कर मैं बस तक पहुँचा। सवारियाँ बैठ रही थीं। मैं चढ़ा और खुद को खुशकिस्मत पाया कि वहाँ एक सीट बैठने के लिए खाली मौजूद थी। कुछ देर बैठे रहने के बाद कंडक्टर को पूछा तो उस ने बताया कि बस 11: 38 पर चलेगी। मैं लेट हो चुका था।
चे समय के इस्तेमाल का मेरे पास कोई जरिया नहीं था, लेकिन लोगों के पास था। एक बच्ची हाथ में कमंडल और उस में बिठाई तस्वीर ले कर मांगने के लिए बस में चढ़ गई। वह कुछ नहीं बोल रही थी। हर सवारी के आगे कुछ देर खड़ी होती, कुछ मिलता तो ठीक नहीं तो आगे बढ़ जाती। ऐसे ही बच्चे, महिलाएँ कोटा अदालत में खूब आते हैं, सब के सब पक्के प्रोफेशनल। मेरे एक साथी उन्हें कई बार नसीहतें दे चुके हैं। उन से काम कराने के बदले मजदूरी देने का प्रस्ताव भी करते हैं। पर कौन स्थाय़ी रोजगार छोड़ अस्थाई की और झाँकता है। बच्ची बस से उतरी तो एक युवक नारियल की फांके लिए बेचने चढ़ा, कुछ लोगों ने उस का स्वागत किया। उस के बाद एक पैंसिल बेचने वाला चढ़ा। मेरे पास की सीट पर बेटी के साथ बैठे सज्जन ने पैंसिलें खरीदीं। तभी बस ने हॉर्न दिया। पैंसिल बेचने वाला उतर गया, बस चल दी।

जिस तरह बस चल रही थी लग रहा था कि कम से कम एक डेढ़ घंटा जरूर लेगी। मैंने कंडक्टर को अपना गंतव्य बताया। उसने मुझे आश्वस्त किया कि वह मुझे सही स्थान पर उतार देगा। एक स्टॉप पहले ही उस ने मुझे आगे के दरवाजे पर बुलाया और मेरे स्टॉप पर उतार दिया। बाद में पता लगा कि उस ने मुझे एक स्टॉप पहले ही उतार दिया था। अपने राम पैदल चल पड़े। मेट्रो स्टेशन के पास पहुँच कर मैं ने मोबाइल से अजय से संपर्क करना चाहा पर वहाँ सिग्नल गायब थे। मैं एक और चल दिया और सिग्नल मिलने तक चलता रहा। अजय से बात हुई तो वे मुझे लेने आ गए। हम मिलन स्थल पहुँच गए। पाबला जी तो वहाँ पहले से ही थे श्रीमती संजू तनेजा, राजीव तनेजा, कार्टूनिस्ट इरफान, और खुशदीप सहगल भी पहुँचे हुए थे। बातों के साथ नाश्ता चल रहा था। सभी बहुत आत्मीयता के साथ मिले। मैं बैठा ही था कि अचानक पीछे रोशनी चमकी। मुड़ कर देखा तो टेबल पर रखा पाबला जी का कैमरा हमें कैद कर रहा था।



गुरुवार, 26 नवंबर 2009

भेंट अरुण जी अरोरा से, और चूहे के बिल

म पूर्वा के आवास पर पहुँचे। पूर्वा डेयरी से दूध ले कर कुछ देर बाद आई। तीसरा पहर अंतिम सांसे गिन रहा था, ढाई बज चुके थे। सफर ने थका दिया था और दोनों सुबह से निराहार थे। मैं तुरंत दीवान पर लेट लिया। पूर्वा ने घऱ से लड़्डू-मठरी संभाले और शोभा ने रसोई। कुछ ही देर में कॉफी-चाय तैयार थी। उस ने बहुत राहत प्रदान की। सुबह जल्दी सोकर उठे थे इस लिए चाय-कॉफी पीने के बावजूद नींद लग गई। शाम को उठते ही दुबारा कॉफी तैयार थी और शाम के भोजन की तैयारी। मैं ने पूर्वा का लेपटॉप संभाला और मेल देख डाली।
शाम के भोजन के बाद मैं और शोभा अरुण अरोरा जी के घर पहुँचे। अरुण जी तब तक अपने काम से वापस नहीं लौटे थे। हम कुछ देर मंजू भाभी से बातें करते रहे। तभी अरुण जी आ गए। उन से बहुत बातें हुईं। पिछले दिनों उन्हों ने अपने उद्योग का काया पलट कर दिया। एक पूरा नया प्लांट जो अधिक क्षमता से काम कर सकता है स्थापित कर लिया। अब नए प्लांट को अधिक काम चाहिए, उसी में लगे हैं। काम के आदेश मिलने लगे हैं और प्राप्त करने के प्रयास हैं। कई नमूने के काम चल रहे हैं, नमूने पसंद आ जाएँ तो ऑर्डर मिलने लगें। किसी भी उद्यमी के जीवन का यह महत्वपूर्ण समय होता है। इसी समय वह पूरी निगेहबानी और मुस्तैदी से काम कर ले तो बाजार में साख बन जाती है और आगे काम मिलना आसान हो जाता है। उन के लिए यह समय वास्तव में महत्वपूर्ण और चुनौती भरा है। मैं ने उन से ब्लागरी में वापसी के लिए कहा तो बोले। एक बार नमस्कार कर दिया तो कर दिया। उन के स्वर में दृढ़ता तो थी, लेकिन उतनी नहीं कि उन की वापसी संभव ही न हो। मुझे पूरा विश्वास है, एक बार वे अपने उद्यम की इस क्रांतिक अवस्था से आगे बढ़ कर उसे गतिशील अवस्था में पाएँगे तो ब्लागरी में अवश्य वापस लौटेंगे और एक नए रूप और आत्मविश्वास के साथ।
मैं ने अरुण जी को बताया कि पाबला जी भी दिल्ली आए हुए हैं और कल कुछ ब्लागर दिल्ली में मिलेंगे।  पाबला जी आप से मिलना भी चाहते हैं। कल रविवार है, दिल्ली चलिए, शाम तक लौट आएंगे, कल रविवार भी है। उन्हें यह सुन कर अच्छा लगा, लेकिन वे रविवार को भी व्यस्त थे कुछ संभावित ग्राहकों के साथ उन की दिन में बैठक थी। उन्हों ने कहा यदि समय हो तो पाबला जी को इधर फरीदाबाद लेते आइए, मुझे बहुत खुशी होगी।  हमने अरुण जी के उद्यम की सफलता के लिए अपनी शुभेच्छाएँ व्यक्त कीं और वापस लौट पड़े। वापसी पर पाबला जी और अजय कुमार झा से फोन पर बात हुई।  उन्हों ने बताया कि सुबह 11 बजे दिल्ली में यथास्थान पहुँचना है। दिन में सो जाने के कारण  आँखों में नींद नहीं थी। मैं देर तक पूर्वा के लैप पर ब्लाग पढता रहा, कुछ टिप्पणियाँ भी कीं। फिर सोने का प्रयास करने लगा आखिर मुझे अगली सुबह जल्दी  दिल्ली के लिए निकलना था।

आज का दिन
ज मुम्बई और देश आतंकी हमले की बरसी को याद कर रहा है, और याद कर रहा है अचानक हुए उस हमले से निपटने में प्रदर्शित जवानों के शौर्य और बलिदान को। शौर्य और बलिदान जवानों का कर्म और धर्म है। जो जन उन से सुरक्षा पाते हैं उन्हें, उन का आभार व्यक्त करना ही चाहिए। लेकिन वह सूराख जिस के कारण वे चूहे हमारे घर में दाखिल हुए, मरते-मरते भी घर को यहाँ-वहाँ कुतर गए, अपने दाँतों के निशान छोड़ गए। देखने की जरूरत है कि क्या वे सूराख अब भी हैं? क्या अब भी चूहे घऱ में कहीं से सूराख कर घुसने की कारगुजारी कर सकते हैं? और यदि वे अब भी घुसपैठ कर सकते हैं तो सब से पहले घर की सुरक्षा जरूरी है। उस के लिए शौर्य और बलिदान की क्षमता ही पर्याप्त नहीं। घर के लोगों की एकता और सजगता ज्यादा जरूरी है।  मैं दोहराना चाहूँगा। पिछले वर्ष लिखी कुछ पंक्तियों में से इन्हें ....

वे जो कोई भी हैं
ये वक्त नहीं
सोचने का उन पर

ये वक्त है
अपनी ओर झाँकने और
युद्धरत होने का

आओ संभालें
अपनी अपनी ढालें
और तलवारें

बुधवार, 7 जनवरी 2009

ढाई दिन का किस्सा, नकारात्मक ऊर्जा का शिकार कंप्यूटर अस्पताल में

रविवार, 4 जनवरी 2009,
अनवरत और तीसरा खंबा दोनों पर एक एक आलेख लिखने का मन था।  शाम को जैसे ही लिखने बैठा।  कंप्यूटर जी ने हथियार पटक दिए,  -हम बहुत बीमार हैं, पहले हमारा इलाज कराइए।  बात उस की सही थी।  बेचारे की एक सिस्टम फाइल कब से नष्ट हो चुकी थी।   उस का इलाज हम कर भी चुके होते।  लेकिन जैसे ही हम ने सीडी कम्प्यूटर जी के लिपिक को थमाई, पता लगा सीडी को घुमा कर देख ही नहीं रहे हैं।  अब तो अस्पताल ही चारा है।  आम हिन्दुस्तानी आदत कि कल चलेंगे अस्पताल, पूरा महीना निकल गया। कम्प्यूटर जी जैसे तैसे काम करते रहे।   हम आप मिलते रहे।

रविवार  शाम को कम्प्यूटर जी के सिस्टम की कुछ फाइलें और गायब हो गई।   माई कम्प्यूटर के दरवाजे पर ताला लटक गया।  कम्यूटर जी बोलते तो सही,  पर हर बार एक ही शब्द हेंग, हेंग, हेंग ............

हम समझ गए, कम्प्यूटर हमारी नकारात्मक ऊर्जा का शिकार हो चुका है।  हमने कहा तुम आराम करो, आज अस्पताल की छुट्टी है।  कल खुलेगा तो ले चलेंगे।

सोमवार, 5 जनवरी  2009,
सुबह कम्प्यूटर जी को अस्पताल पहुँचा कर अदालत गए।  अपने सिस्टम की सीडी घर ही रह गई।  अदालत से घर पहुँचे तो, सीडी अस्पताल पहुँचाई।   रात को आठ बजे कंप्यूटर जी घर पहुँचे।  हमने उन की जाँच परख की तो वे अस्पताल से आ कर नए नए लग रहे थे।
सब से पहले वाइरस रक्षक देखा, कहीं नहीं दिखा।  हमने कहा ये वाइरस रक्षक पहनो।  उस ने पहना और थोड़ी देर बाद फिर से कहने लगा, हेंग, हेंग, हेंग ............

ध्यान से देखा तो वाइरस रक्षक का एक दूसरे वाइरस रक्षक से युद्ध चल रहा था।  कोई नया रक्षक था, था भी दमदार।  हमने स्क्रीन पर उन का लोगो तो देखा था और नाम भी।  मगर समझे थे कि कोई नया गाने बजाने वाला है।  पर वह तो ब्लेक कमांडो निकला।  कंप्यूटर फिर हेंग हो कर उन की लड़ाई का आनंद ले रहा था। हमारी क्या सुनता। 

हमने सोचा एक रक्षक को निकाल दो।  हमने एक  रक्षक को निकाल कर बाहर किया तो कम्प्यूटर जी ने सुनना चालू किया।  हमने ब्रॉड बैंड चालू किया। मेल पढ़ ही रहे थे कि कम्प्यूटर जी की बत्ती गुल!

अब कोई चारा नहीं, सिवा इस के कि उन्हें फिर से अस्पताल पहुँचाया जाए।

मंगलवार, 6 जनवरी 2009
कम्प्यूटर जी को फिर से अस्पताल पहुँचाया।  फिर से उन का इलाज हुआ।  शाम घर आए तो हमारे मुवक्किल हाजिर।   देर रात ही कम्प्यूटर जी से बात हो सकी।  पहले ढ़ाई दिनों की खबर ली।  बैरागी जी पूछ रहे थे, वकील साहब कहाँ हैं?  उन का फोन नम्बर भी था, सो उन से बतियाए।  कम्प्यूटर जी को सही पाया तो उन की दुकान सजाने का काम करते रहे।  जब दुकान कुछ कुछ सज कर तैयार हुई तो  सोने का समय हो गया।

बुधवार,7 जनवरी 2009
अब सुबह उठ कर पहले ढ़ाई दिनों की भाई लोगों की कारगुजारियाँ देखीं।  एक सज्जन के लिए सलाह लिख तीसरा खंबा को मोर्चे पर रवाना किया।  ढाई दिन का ये किस्सा आप को बता दिया है।  अदालत जाने का समय हो रहा है और अभी नहाए नहीं हैं।   उस के बिना अपनी पंडिताइन सुबह का नाश्ता देती नहीं।  वह भी नहीं मिला सुबह से अब तक दो कॉफी मिली है, उसी से काम चल रहा है।  पंडिताइन इस से ज्यादा सैंक्शन करने वाली नहीं है।   अब उठने के सिवा कोई चारा नहीं है।   कम्प्यूटर भी कह रहा है,  बस एक दो औजार लटका कर शुरु कर दिया घिसना।  मेरे बाकी औजार तो लौटाओ।  उसे कह दिया है, आज मुहर्रम मनाओ, कल मुहर्रम की छुट्टी है।   आज क़तल की रात अपनी है,  उसी में तुम्हारे औज़ार लौटाएँगे।

शाम को मिलते हैं,  टिपियाते हुए।
जय! कंप्यूटर जी की !

रविवार, 21 दिसंबर 2008

विश्वास पर हमेशा कायम रहने का लाभ

राजस्थान में जब कृषि भूमि की सीलिंग लागू हुई तो अनेक जमींदारों की जमीनें सीलिंग में अधिगृहीत हो गईं। लेकिन अधिगृहीत भूमि का आवंटन अन्य व्यक्ति को होने के तक पूर्व जमींदार ही उस पर खेती करते रहे। जमींदारों के परिवारों में भी पैतृक संपत्ति का विभाजन न हो पाने के कारण स्थिति यह आ गई कि अनेक लोगों के पास बहुत कम कृषि भूमि रह गई। एक ऐसे ही परिवार का एक व्यक्ति सरकार में पटवारी था और अपने परिवार की सीलिंग में गई भूमि पर खेती कर रहा था।

सरकार ने उस भूमि को एक मेहतर को आवंटित कर दिया। उस पटवारी ने मुकदमा कर दिया कि उस भूमि पर वह खुद अनेक वर्षो से खेती कर रहा है और इसे दूसरे को आवंटित नहीं किया जा सकता। वह मेहतर मुकदमे का नोटिस ले कर मेरे पास आ गया और मैं ने उस की पैरवी की।

मुकदमे की हर पेशी पर वह पटवारी मुझ से मिलता और मुझे पटाने की कोशिश करता कि किसी भी तरह मैं कुछ रियायत बरतूँ और वह मुकदमा जीत जाए। वह जाति से ब्राह्मण था और बार बार मुझे दुहाई देता था कि एक ब्राह्मण की भूमि एक हरिजन के पास चली जाएगी। मैं उसे हर बार समझा देता कि मैं अपने मुवक्किल की जम कर पैरवी करूंगा। वह भी अपने वकील को कह दे कि कोई कसर न रखें। मैं ने उसे यह भी कहा कि मैं उसे यह मुकदमा जीतने नहीं दूंगा। बहुत कोशिश करने पर भी जब वह सफल नहीं हुआ तो उस ने कहना बंद कर दिया। लेकिन हर पेशी पर आता जरूर और राम-राम जरूर करता। 

मुकदमा हमने जीतना था, हम जीत गए। भूमि हरिजन को मिल गई। लेकिन उस के कोई छह माह बाद वह पटवारी मेरे पास आया और बोला। आप ने मुझे वह मुकदमा तो हरवा दिया, मेरी जमीन भी चली गई। लेकिन यदि मेरा कोई और मामला अदालत में चले तो क्या आप मेरा मुकदमा लड़ लेंगे। मैं ने उसे कहा कि क्यों नहीं लड़ लूंगा। पर मैं कोई शर्तिया हारने वाला मुकदमा नहीं लड़ता। वह चला गया।

बाद में उस ने मुझे अपना तो कोई मुकदमा नहीं दिया, लेकिन जब भी कोई उस से अपने मुकदमें में सलाह मांगता कि कौन सा वकील किया जाए? तो हमेशा मेरा नाम सब से पहले उस की जुबान पर होता। उस व्यक्ति के कारण मेरे पास बहुत से मुवक्किल आए।

सोमवार, 6 अक्तूबर 2008

बलबहादुर सिंह की ऐंजिओप्लास्टी

इन्दौर के होल्कर राज्य की सेना में बहादुरी के बदले उन्हें राजपूताना की सीमा पर 12 गाँवों की जागीर बख्शी गई। पाँच पीढ़ियाँ गुजर जाने और जागीरें समाप्त हो जाने पर उन के वंशज अब किसान हो कर रह गए हैं। गाँव में रहते और किसानी करते करते वही ग्रामीण किसान का सीधापन उन के अंदर घर कर गया। जागीरदारी का केवल सम्मान शेष रहा। सीधेपन और सरल व्यवहार ने उस परिवार के सम्मान को नई ऊंचाइयाँ दीं। इसी परिवार के एक 68 वर्षीय बुजुर्ग बलबहादुर सिंह इसी साल 19 अगस्त को अपने गांव रावली के पास के निकटतम कस्बे सोयत जिला शाजापुर मध्य प्रदेश से अपने कुछ रिश्तेदारों से मिलने कोटा आने के लिए बस में बैठे पुत्र चैनसिंह साथ था।

बस कोटा से कोई तीस किलोमीटर दूर मंड़ाना के पास पहुँची थी कि बलबहादुर को पेट में दर्द होने लगा उन्हों ने इस का उल्लेख अपने पुत्र और सहयात्रियों से किया।कोटा के नजदीक आते आते पेट दर्द बहुत बढ़ गया तो सहयात्रियों ने सलाह दी कि वे कोटा में कामर्स कॉलेज चौराहे पर उतर कर वहाँ के किसी अच्छे अस्पताल में दिखा कर इलाज ले लें। बस कॉमर्स कॉलेज चौराहा पहुँची तो बलबहादुर सिंह अपने पुत्र सहित वहीं उतर गए और सब से नजदीकी अस्पताल पहुँचे। वे अस्पताल के गेट से अंदर प्रवेश कर ही रहे थे कि विजयसिंह नाम का एक नौजवान उन्हें मिला। उस ने उन से बातचीत की। खुद को उन की जाति का और सोयत में अपनी रिश्तेदारी बताई और उन्हें विश्वास में ले कर सलाह दी कि यह अस्पताल तो अब बेकार हो गया है। अच्छा इलाज तो पास के दूसरे अस्पताल में होता है, अस्पताल भी बड़ा है और वहाँ सारी आधुनिक सुविधाएँ मौजूद हैं। मैं वहीं नौकरी करता हूँ। आप को डाक्टर को दिखा कर अच्छा इलाज करवा दूंगा। मेरे कारण आप को खर्च भी कम पड़ेगा। एक तो जात का, दूसरे गांव के पास ही उस की रिश्तेदारी, बलबहादुर ने उस का विश्वास किया और उस के साथ उस बड़े अस्पताल आ गए।

अस्पताल पहुँचते ही विजयसिंह ने वहाँ के प्रधान डॉक्टर मिलवाया। डॉक्टर ने खुद जाँच की फिर दो अन्य डॉक्टरों को बुला कर दिखाया। सभी डॉक्टरों ने आपस में सलाह कर बताया कि अभी और जांचें करनी पड़ेंगी जिस का खर्च पाँच-छह हजार आएगा, यह राशि तुरंत जमा करानी पड़ेगी। विजय सिंह बलबहादुर के पुत्र चैन सिंह को अलग ले गया और कहा कि तुम्हारे पिता को तो हार्ट अटैक आने वाला है, इन का तुरंत इलाज जरूरी है, अन्यथा या तो इन से हाथ धो बैठोगे या फिर इन को लकवा हो जाएगा तो जीवन भर के लिए पलंग पकड़ लेंगे। लेट्रिन-बाथरूम के लिए भी दूसरों पर निर्भर हो जाएंगे। चैन सिंह कुछ समझता और निर्णय लेता उस से पूर्व ही डॉक्टरों ने उसे कहा कि 50-60 हजार रुपयों का इन्तजाम करो इन का तुरंत आपरेशन करना पड़ेगा। चैन सिंह भौंचक्का रह गया उस इतने पैसे का तुंरत तो इन्तजाम नहीं हो पाएगा कल तक कोशिश कर सकता हूँ। उसे जवाब मिला -इतना समय नहीं है, जितने पैसे अभी हों उतने अभी जमा करा दो तो हम इलाज चालू करें। इस बीच तुम जितना हो सके इंतजाम करो। पिता की तत्काल मृत्यु की आशंका से भयभीत हुए चैनसिंह ने अपने और पिता के पास के सवा तीन हजार रुपए जमा करवा दिए। वह रुपयों के इन्तजाम जुटा और बलबहादुर को अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर में पहुँचा दिया गया।

उसी दिन बल बहादुर का ऑपरेशन कर के दो घंटे बाद जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया। दूसरे दिन चैनसिंह किसी तरह बीस हजार रुपये जुटा कर लाया लाया जिसे अस्पताल वालों ने जमा कर रसीद दे दी। लिया। उसे कहा गया कि अभी उस के पिता का इलाज शेष है, चालीस हजार रुपयों का इंतजाम और कर के जमा कराओ। हम कल तक इन की अस्पताल से छुट्टी कर देंगे। चैनसिंह ने अपने मौसा को खबर भेजी। तीसरे दिन वे चालीस हजार रुपया और ले कर आए वह भी अस्पताल में जमा करा दिया गया। यह रुपया जमा हो जाने पर बलबहादुर को बताया गया कि उस की एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी 19 अगस्त को ही कर दी गई है।

इस बीच बलबहादुर को सीने और पेट में दर्द होता, जिस की वह शिकायत करता तो उस से कहा जाता कि चुपचाप लेटे रहो, अभी बाहर से डाक्टर आएंगे और वही तुम्हें देखेंगे। बलबहादुर को अब तक लगने लगा कि वह कहीं इस अस्पताल में आ कर फंस तो नहीं गया है वह कुछ भी नहीं कर पा रहा था। उस ने प्रतिपक्षीगण से अस्पताल से छुट्टी देने की प्रार्थना की तो उसे अस्पताल बयालीस हजार का बिल और बताया गया और कहा गया कि जमा करा दोगे तो शेष रहा जीवन भर लगातार चलने वाला इलाज बता कर छुट्टी कर देंगे। जब तक रुपया जमा नहीं होगा छुट्टी नहीं मिलेगी। इस बीच पुत्र ने उसे हिंगोली की गोली बाजार से ला कर दी तो पेट दर्द कम हो गया। इस तरह के व्यवहार से बलबहादुर अपने अनिष्ट की आशंका से भयभीत हो गया। अस्पताल वाले लगातार रुपया जमा कराने को कहते रहे। बलबहादुर को लगने लगा कि अब इस अस्पताल में उस की खैर नहीं है, यहाँ दो दिन भी रहा तो वह शायद ही जीवित घर वापस लौट सके। इस तरह के डाक्टर तो पैसे के लिए कुछ भी कर सकते हैं। यहाँ से उसे निकलना पड़ेगा।

खुद को ठगा हुआ, फंसा हुआ और बंदी समझ कर बलबहादुर अपने पुत्र के साथ 22 अगस्त को चुपचाप अस्पताल छोड़ भागा। उसी दिन उस ने खुद को हृदयरोग विशेषज्ञ और मेडीकल कॉलेज कोटा के एक सहायक प्रोफेसर डाक्टर को दिखाया तो उन्हों ने कहा कि आप को मात्र गेस्ट्रिक प्रोब्लम थी। आप का गलत इलाज कर दिया गया। आप की ऐंजिओप्लास्टी करने की जरूरत ही नहीं थी। उस ने गेस्ट्रिक प्रोब्लम के लिए सामान्य दवाइयाँ लिखीं जिन को लेने के बाद तुरंत ही बलबहादुर खुद को सहज और स्वस्थ महसूस करने लगा। लेकिन उस की शंकाएं नहीं गईं। दूसरे दिन उस ने खुद को मेडीकल कॉलेज एक पूर्व अधीक्षक,पूर्व प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष मेडिसिन विभाग और हृदयरोग विशेषज्ञ, को दिखाया तो उन्हों ने भी यही कहा कि उसे हार्ट की कोई बीमारी ही नहीं थी जिस के इलाज की जरूरत होती। लेकिन अब एंजिओप्लास्टी कर दी गई है तो जीवन भर निरंतर दवाओं पर निर्भर रहना पड़ेगा। जिन का महिने भर का खर्च आठ सौ-हजार रुपए आएगा। यह खर्चा तो जीवन भर करना ही पड़ेगा।

इस बीच विजयसिंह बलबहादुर के गांव रावली जा पहुँचा, और घर में घुसते ही बलबहादुर और उस के परिवार वालों को चिल्ला कर अपशब्द कहते हुए कहा कि लोग अस्पताल में भरती हो कर इलाज करवा लेते हैं, और फिर बिना पैसा जमा कराए अस्पताल से भाग जाते हैं। पूछने पर बलबहादुर के परिवार वालों को उस ने बताया कि उन के परिवार के मुखिया ने उन के अस्पाताल मे इलाज करवाया और बिना रुपया दिए भाग आया है और धमकी दे गया कि बाकी का रुपया जमा करवा दो वरना इस का अंजाम बहुत बुरा होगा। परिवार वाले यह सब सुन कर घबरा गए, उन्हें बलबहादुर की बीमारी का कुछ पता ही नहीं था। वे बलबहादुर की खोज खबर करने को फोन पर फोन करने लगे। जब तक उन की बात उन से नहीं से हो गई उन्हें तसल्ली नहीं आई।

बाद में पता लगा कि यह अस्पताल अनेक लोगों के इसी तरह के आपरेशन कर चुका है। ऐसा करना उस की मजबूरी है। कुछ डॉक्टरों ने यह अस्पताल खोला था। बैंकों आदि से भारी कर्जे ले कर उसे तुरंत विस्तार दे दिया गया। अब जब तक रोज मरीज न मिलें तो कर्जे चुकाने ही भारी पड़ जाएँ। अस्पताल इसी तरह मरीज जुटाता है। अब बलबहादुर ने अपने भतीजे के वकील पुत्र की सलाह पर अस्पताल, उस के डाक्टरों और विजयसिंह के खिलाफ एक फौजदारी मुकदमा धोखाधड़ी के लिए किया है और उपभोक्ता अदालत में अलग से हर्जाना दिलाने की अर्जी पेश की है।

शनिवार, 19 जुलाई 2008

नीन्द की साँकळ उतारो, किरन देहरी पर खड़ी है।

पिछले आलेख पर अब तक जो टिप्पणियां मिलीं हैं, उन से एक बात पर सहमति दिखाई दी, कि अभी हिन्दी ब्लागिरी का शैशवकाल ही है। अनेक को तो पता भी नहीं कि हिन्दी ने भी एक ब्लागीर बालक को जन्म दे दिया है। लेकिन यह संकेत भी इन टिप्पणियों से मिला कि इस बालक ने अपने शैशवकाल में ही जितनी ख्याति अर्जित की है उस से उस के लच्छन पालने में ही दिखाई पड़ने लगे हैं। हमारे ब्लागीरों ने जो नारे उछाले हैं, जिन शब्दों में साहस बढ़ाने और ढाँढस बंधाने के प्रयत्न किए हैं वे कमजोर नहीं हैं। उन्हें प्रेरणा वाक्यों के रूप में प्रयोग किया जा सकता है, जैसे......

  • ब्लॉग्गिंग आएगा और जब ये आएगा तो लोग इसी में पिले रहेंगे जैसे हम ब्लॉगर पिले हुए हैं..... :)
  • जल्द ही वह दिन आएगा जब आप ब्लागिंग पर अपने इंटरव्यू में बताएँगे ..धीरे धीरे इसका नशा सब पर होगा ..:)
  • अजी उन्हे छोड़िए. हम है ना ब्लॉगिंग के बारे में सवाल पूछने के लिए..
  • वो सुबह कभी तो आएगी...जब ब्लोगिगं धूम मचाएगी।
  • जल्द ही एक बडी संख्या इसे जानने लगेगी।
  • सुबह होगी जल्द ही।


ये सभी अच्छे संकेत हैं। अंतरजाल तेजी से बढ़ने वाला है और ब्लागिरी भी। जरूरत है लोगों की जरूरत को समझने की। अगर ब्लागिरी आम लोदों की जरूरत को पूरा करने लगती है तो धीरे-धीरे यह जीवन का आवश्यक अंग बन जाएगी और अच्छे व सिद्धहस्त ब्लागर लोगों को बताने लायक कमाई भी कर सकेंगे।  जिस तेजी से हिन्दी ब्लागीरों की संख्या बढ़ रही है। (औसतन 10 चिट्ठे प्रतिदिन) उस से लगता है। कि पाठकों की संख्या भी बढ़ेगी।
जमाना वह नहीं रहा कि हम में काबिलियत है, जिस को जरूरत होगी हमारे पास आएगा। जमाना इस से बहुत आगे जा चुका है। अब लोगों को जरूरत पैदा की जाती है और अपना माल बेचा जाता है। ब्लागीरों को भी जरूरत पैदा कर पाठक पैदा करने पड़ेंगे। एक ब्लागर चाहे तो कम से कम दस नए पाठक ब्लागिरी के लिए नए ला सकता है और उसे लाना चाहिए। उसे इस के लिए सतत प्रयास करना चाहिए। ब्लागीरों को अपने स्तर को भी सभी प्रकार से उन्नत करते रहना चाहिए, तकनीकी रूप से भी और अपने माल के बारे में भी।

सभी ब्लागीरों को ब्लागिरी से एक लाभ जो हो रहा है वह यह कि वे आपस में जबर्दस्त अन्तरक्रिया कर रहे हैं जिस से उन की क्षमताएँ तेजी से विकसित हो रही हैं। वे लेखन की हों या अपने अपने क्षेत्र की जानकारियों की हों।

आज मेरे स्टूडियों से निकलने के बाद मैं ने कुछ मित्रों को संदेश दिया कि मेरा साक्षात्कार केबल पर प्रसारित होने वाला है। उन में से कुछ ने उसे देखा भी। जिस ने भी देखा उसे खूब सराहा भी। कुछ लोगों ने उसे अनायास देखा। आज अदालत मे अनेक वरिष्ठ वकीलों ने मुझे बधाई भी दी और यह भी कहा कि मेरी क्षमताएँ बहुत विकसित हैं और इस की उन्हें जानकारी नहीं थी। इस साक्षात्कार को सांयकालीन पुनर्प्रसारण में बहुत लोगों ने देखा। पूरे प्रसारण के दौरान और उस के बाद मुझे अनेक मित्रों और परिचितों के फोन आते रहे। आज के एक दिन ने मुझे बहुत बदल दिया। मैंने महसूस किया कि लोगों ने आज मुझे एक भिन्न दृष्टिकोण से देखा जा रहा है। कल जब मैं अदालत पहुँचूंगा तो मुझे और भिन्न दृष्टिकोण से देखा जाएगा।

लेकिन क्या यह आज से दस माह पूर्व हो सकता था? बिलकुल नहीं क्यों कि तब में एक वकील मात्र था। इस ब्लागिरी ने मुझे एक नया आयाम प्रदान किया, एक नया रूप दिया। यदि मैं ने इन दस माहों में 162 आलेख न लिखे होते उन पर आई सैकड़ों टिप्पणियों और दूसरे ब्लागीरों की सैंकड़ों पोस्टों को पढ़ कर सैंकड़ों टिप्पणियाँ नहीं की होतीं तो यह सब नहीं हो सकता था। ब्लागिरी ने मेरी क्षमताओं को विकसित किया। वह लगातार सभी ब्लागीरों की क्षमताओं को विकसित कर रही है।

ब्लागीरों को समाचार पत्रों में स्थान मिलने लगा है। अनेक ब्लागीरों की रचनाएँ समाचार पत्र पुनर्प्रकाशित कर रहे हैं। जल्दी ही वह समय भी आने वाला है कि जब ब्लागिरी और ब्लागीरों की चर्चा टीवी और अन्य प्रचार माध्यमों के लिए एक स्थाई स्तंभ होंगे। ब्लाग आज भी ज्ञान और जानकारी के स्रोत हैं इन का दायरा भी बढ़ेगा और वे प्रचार के माध्यम भी बनेंगे। अभी कुछ अभिनेता ब्लागिरी में आए हैं। लालू जैसे नेता इस में आए हैं। समय आने वाला है जब सभी प्रोफेशन के लोगों के लिए ब्लागिरी एक जरूरी चीज बनेगी। उन की ब्लागिरी से ही उन की क्षमताओं का मूल्यांकन किया जाने लगेगा।

अंत में मैं लावण्या दीदी की टिप्पणी यहाँ पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ जिस में वे कहती हैं.......

आपसे मेरा सविनय अनुरोध है कि आप ब्लोगिंग पर और सिंदुर पर और अन्य विषयों पर दूसरों की चिन्ता किये बिना लिखिये -"वीकिपीडीया की तरह या डिक्शनरी की तरह ये जानकारियाँ आज नहीं आनेवाले समय तक नेट पर कायम रहेंगी और काम आयेंगी- जब आम का नन्हा बिरवा उगा ही था तब किसे पता था कि यही घना पेड बनेगा जिस के रसीले आम बरसोँ तक खाये जायेँगे -ये मेरा मत है ..कोई विषय ऐसा भी होता है जो भविष्य मेँ आकार लेता है, और वर्तमान उसे हैरत से देखता है ..कम से कम, यह मेरा विश्वास है....                           

- लावण्या
18 July, 2008 10:39 PM

और अब मुझे स्मरण हो रही हैं राजस्थानी के कवि हरीश 'भादानी' के एक गीत की मुख्य पंक्तियाँ जो सभी ब्लागीरों को कह रही हैं.....

भोर का तारा उगा है,
जाग जाने की घड़ी है।
नीन्द की साँकळ उतारो,
किरन देहरी पर खड़ी है।

शुक्रवार, 6 जून 2008

चिट्ठाकारों के लिए सबसे जरुरी क्या है?

आप अपना ब्लॉग बना कर एक ब्लॉगर हो गए हैं। आप को तकनीकी सूचनाएँ भी मिल ही जाती हैं। हिन्दी चिट्ठाजगत में बहुत से वरिष्ठ चिट्ठाकार हैं जो तकनीकी रुप से सक्षम हैं और चिट्ठाकारों को सब जरुरी जानकारियाँ आप को जुटाते हैं। जरूरी होने पर उस के लिए अपने बहुमूल्य समय में से समय निकाल कर भी आप की सहायता करते हैं। इस तरह आप को तकनीकी जानकारी की कोई कमी नहीं रहती है। नई से नई जानकारी को सभी के साथ बांटते हैं। लेकिन तकनीकी रुप से सक्षमं होना मात्र एक श्रेष्ठ चिट्ठाकार होने के लिए बहुत कम योग्यता है। फिर वह क्या है जो चिट्ठाकार के लिए सब से जरुरी है?

एक शौक के वशीभूत हो कर, किसी मिशन के तहत, पैसा कमाने के लिए, अपने को अभिव्यक्त करने के लिए या अन्य किसी प्रेरणा से कोई व्यक्ति चिट्ठाकार होता है। लेकिन यह केवल एक प्रारंभ मात्र है। आप ने एक नया जीवन आरंभ किया लेकिन उस में अभी बहुत चलना है। और किसी भी जीवन की पूर्णता के लिए मार्ग में बहुत कुछ सीखना पड़ता है। ऐसा ही कुछ चिट्ठाकारी में भी है। वह क्या है जो एक चिट्ठाकर को शीर्ष पर पहुँचा देता है।

मैं पहले भी अनवरत पर लिख चुका हूँ और फिर एक बार दोहराना चाहता हूँ कि वह प्रोफेशनलिज्म है जो व्यक्ति को जीवन में सफल बनाता है। आप मेरे इस मत से इन्कार कर सकते हैं। लेकिन फिर भी मेरा आग्रह है कि एक बार परख लें कि क्या आप वाकई एक श्रेष्ट चिट्ठाकार होने की ओर आगे बढ़ रहे हैं या नहीं। आप खुद देखें कि एक शौकिया और प्रोफेशनल का क्या फर्क क्या है? और आप शौकिया रहना चाहते हैं या फिर प्रोफेशनल होना चाहते हैं?

प्रोफेशनल और शौकिया के फर्क

  • एक प्रोफेशनल काम के हर पहलू को सीखने का प्रयास करता है, जब कि एक शौकिया सीखने की प्रक्रिया को जब भी संभव हो त्याग देता है।
  • एक प्रोफेशनल सावधानी से यह तलाशता है कि उसे किस चीज की आवश्यकता है और उसे क्या चाहिए? जब कि एक शौकिया मात्र अनुमान करता है कि किस कीआवश्यकता है और उसे क्या चाहिए?
  • एक प्रोफेशनल की दृष्टि, वाणी और वस्त्र-सज्जा प्रोफेशनल जैसी होती है, जब कि एक शौकिया बोलने और देखने में बेढंगा, लापरवाह, और भावुक होता है, यहाँ तक कि वह कीचड़ से लथपथ भी हो सकता है।
  • एक प्रोफेशनल अपने कार्यस्थल को साफ और व्यवस्थित रखता है, जब कि एक शौकिया का कार्यस्थल गर्दी, गंदा और बिखरा-बिखरा रहता है।
  • एक प्रोफेशनल ध्यान-केंद्रित और स्पष्ट मस्तिष्क रहता है, जब कि एक शौकिया सदैव भ्रमित और विचलित।
  • एक प्रोफेशनल गलतियों की उपेक्षा नहीं करता, जब कि एक शौकिया गलतियों की उपेक्षा करता है और उन्हें छुपाता है।
  • एक प्रोफेशनल मुश्किल और दुष्कर कामों की जिम्मेदारी हाथों-हाथ ग्रहण करता है, जब कि एक शौकिया इन से भागने कोशिश करता है।
  • एक प्रोफेशनल हाथ में ली गई परियोजनाओं को जितनी जल्दी हो सके, पूरा करता है, जब कि एक शौकिया अधूरी परियोजनाओं से घिरा रहता है और उन की छत पर बैठा इधर-उधर ताकता रहता है।
  • एक प्रोफेशनल आशावादी और स्थिर मस्तिष्क होता है, जब कि एक शौकिया परेशान हो जाता है और सबसे खराब प्रदर्शन करता है।
  • एक प्रोफेशनल बहुत सावधानी से धन का उपयोग करता है और उस का स्पष्ट हिसाब रखता है, जब कि एक शौकिया धन के उपयोग और उस का हिसाब रखने में बेढंगा और लापरवाहीपूर्ण होता है।
  • बहुत सावधानी से प्रोफेशनल एक अन्य लोगों की परेशानी और समस्याओं को हल करता है, जब कि शौकिया समस्याओं से कन्नी काटता है।
  • एक प्रोफेशनल उत्साह , प्रसन्नता , रुचि , संतुष्टि और भावनात्मक ऊंचाइयों से लबरेज़ रहता है, जब कि शौकिया व्याक्ति सदैव दुर्भावनाओं, क्रोध, शत्रुता, रोष और भय का शिकार रहता है।
  • एक प्रोफेशनल लक्ष्य प्राप्त करने तक लगातार प्रयत्नशील रहता है, जब कि शौकिया पहला अवसर मिलते ही लक्ष्य को त्याग देता है।
  • एक प्रोफेशनल आशा से अधिक उत्पादन करता है, जब कि शौकिया मामूली उत्पादन को भी पर्याप्त समझता है और उस पर इतराता रहता है।
  • एक प्रोफेशनल उच्च गुणवत्ता के उत्पाद व सेवाएँ प्रदान करता है, जब कि एक शौकिया निम्न और मध्यम गुणवत्ता के उत्पाद व सेवाएँ।
  • एक प्रोफेशनल की आय या वेतन बहुत अच्छे होते हैं, जब कि एक शौकिया की कमाई बहुत कम होती है और वह हमेशा यह सोचता रहता है कि उस के साथ अन्याय हो रहा है।
  • एक प्रोफेशनल का भविष्य सुनिश्चित होता है, लेकिन एक शौकिया का भविष्य पूरी तरह से अनिश्चित।
  • एक प्रोफेशनल होने के लिए पहला कदम है कि आप यह तय करें कि आप को एक प्रोफेशनल बनना है।

तो अब आप क्या बनना तय कर रहे हैं?

एक प्रोफेशनल चिट्ठाकार होना?

या फिर एक शौकिया बने रहना?

बुधवार, 21 मई 2008

क्या आप एक प्रोफेशनल हैं?

इस प्रश्न पर कि क्या आप एक प्रोफेशनल हैं? साइंटोलॉजी (सत्य का अध्ययन) के प्रवर्तक एल. रॉन हबार्ड क्या कहते हैं?  जरा उस की बानगी देखिए-

आप कैसे देखते हैं? बात करते हैं , लिखते हैं, कैसे चलते हैं? और कैसे काम करते हैं? ये बातें यह निर्धारित करती हैं कि आप एक प्रोफेशनल हैं, या एक शौकिया।  कोई भी समाज प्रोफेशनलिज्म के महत्व पर जोर नही देता, इसलिए लोगों का मानना है कि शौकिया काम करने के तरीके सामान्य श्रेणी के हैं।

विद्यालय और विश्वविद्यालय उन छात्रों को भी स्नातक का तमगा दे देते हैं, जो अपनी भाषा को भी ठीक से पढ़ना नहीं जानते। ड्राइविंग लायसेंस के लिए टेस्ट देते समय आप जरूरी सवालों में से साठ प्रतिशत के सही और बाकी के गलत जवाब देकर भी लायसेंस प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन यह शौकिया रवैया है।

प्रोफेशनल रवैया इस से अलग है। कोई भी चाहे तो अपने रवैये में बदलाव कर के खुद को प्रोफेशनल बना सकता है। यही बात चिट्ठाकार, लेखक और कोई भी अन्य काम करने वाले के लिए सही है। ऐसा किया जा सकता है, बशर्ते कि आप अपनी कुछ बातों पर ध्यान दें।

  • आप कभी भी, कुछ भी यह सोच कर नहीं करें कि आप एक शौकिया काम कर रहे हैं।
  • आप कुछ भी करें,  तो उसे यह सोच कर करें कि आप एक प्रोफेशनल हैं, और प्रोफेशनल स्तर के अनुरूप करने का प्रयास करें।
  • अगर आप कोई भी काम यह सोच कर करते हैं कि आप केवल खेल रहे हैं, या आनंद ले रहे हैं तो इस काम को करने से आप को कोई संतोष नहीं मिलेगा। क्यों कि इस काम को करने पर आप खुद पर गर्व नहीं कर सकते।
  • आप अपने दिमाग को इस तरह से ढालें कि जो भी आप को करना है, वह एक प्रोफेशनल की तरह करना है और काम की गुणवत्ता को प्रोफेशनल स्तर तक ले जाना है।
  • आप अपने बारें में लोगों को यह कहने का मौका नहीं दें कि आप एक शौकिया जीवन जी रहे हैं।
  • प्रोफेशनल्स परिस्थिति का अध्ययन करते हैं और उस का सामना करते हैं, वे उन से कभी भी शौकिया के तौर पर नहीं निपटते।
  • इसलिए इसे जीवन के प्रथम सबक के रूप में सीख लेना चाहिए कि जिनका दृष्टिकोण प्रोफेशनल होगा वे किसी भी क्षेत्र में सफल हो सकेंगे, यहाँ तक कि जिन्दगी को जीने में भी, और वे ही अपने को अच्छा प्रोफेशनल बना पाएंगे।

शनिवार, 10 मई 2008

प्रोफेशनलिज्म क्या है?

मैं ने, अपनी 28 अप्रेल 2008 की पोस्ट में सवाल किया था कि "क्या चिट्ठाकारों को प्रोफेशनल नहीं होना चाहिए?" इस पोस्ट पर आई 12 टिप्पणियों में से 10 की राय थी कि चिट्ठाकार को प्रोफेशनल होना चाहिए। एक साथी जवाब का इन्तजार के इन्तजार में थे। एक राय यह भी थी कि बेतरतीबी से लगने वाले विज्ञापन चिट्ठों को विज्ञापनों के होर्डिंगों से पाट दिए जाने से असुन्दर हुए नगरों की भांति असुन्दर बना रहे हैं। जिन्हों ने चिट्ठाकार को प्रोफेशनल होने की राय दी थी मुझे लगा कि उन्हों ने भी 'प्रोफेशनलिज्म' को भिन्न भिन्न तरीके से समझा है।
प्रोफेशनलिज्म पर दुनियाँ भर के विद्वानों ने अपने अध्ययन और शोध के आधार पर कुछ मानदण्ड स्थापित करने का यत्न किया है और कुछ सर्वमान्य बिन्दुओं को तलाशा गया है। ग्लासगो विश्वविद्यालय के नैतिक दर्शन में प्रोफेसर रॉबिन डॉनी ने प्रोफेशनलिज्म पर विस्तार से आवश्यक प्रकृति के मौजूदा प्रोफेशनों का अध्ययन कर एक प्रोफेशनल की जरूरी विशेषताओं को छह बिन्दुओं में समेटने का प्रयत्न किया है। उन के द्वारा परिभाषित विशेषताओं का सार संक्षेप इस प्रकार हैं-
  1. प्रोफेशनल को व्यापक ज्ञान पर आधारित दक्षता से सम्पन्न और अपने प्रोफेशन के विषय के कार्यों का विशेषज्ञ होना चाहिए।

  2. प्रत्येक प्रोफेशनल द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं का आधार उस के उपभोक्ताओं से उस का विशेष संबंध है, जिस में जन-कल्याण का संतुलित व अखंडित दृष्टिकोण सन्निहित हो, और जिस में निष्पक्षता व ईमानदारी के साथ-साथ उस की प्रोफेशनल संस्था और आम जनता द्वारा अपेक्षित अधिकार और कर्तव्य सम्मिलित हों।

  3. प्रोफेशनल के कामों का परिणाम हो कि जन कल्याण की नीतियों और न्याय जैसे सामाजिक मामलों पर राय रखने की उस की अधिकारिता को उस के विशिष्ठ सेवार्थियों के साथ-साथ आम जनता भी मान्यता देने लगे।

  4. अपने प्रोफेशनल दायित्वों को निभाते हुए प्रोफेशनल सरकार और वाणिज्य के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त रहे।

  5. प्रोफेशनल प्रशिक्षित नहीं अपितु शिक्षित हो, जिस का अर्थ है एक व्यापक और विस्तृत परिप्रेक्ष्य में स्वयं को और अपनी दक्षता को देखने की क्षमता, और मानवीय मूल्यों की सीमा में अपने ज्ञान और कौशल को विकसित करते हुए अपनी इस क्षमता को लगातार निखारना।

  6. एक प्रोफेशनल का अपने काम पर सक्षम अधिकार हो। आम जनता की दृष्टि में विश्वसनीय प्रोफेशनल्स का अपना संगठन हो जो अपने सदस्यों के ज्ञानाधार को विकसित करते रहने और सदस्यों के शिक्षण के लिए सक्रिय रहे और प्रोफेशनल उस के स्वतंत्र और अनुशासित सदस्य के रूप में प्रतिष्ठित हो। इन मानदण्ड़ों पर खरा प्रोफेशनल नैतिकता के उच्च मूल्यों से संम्पन्न होगा और निश्चय ही समाज उसे सम्मान के साथ सुनेगा।

उक्त विशेषताओं को आप चिट्टाकारों की पंचायत के सामने रखते हुए पुनः उसी प्रश्न को दोहरा रहा हूँ, "क्या चिट्ठाकारों को प्रोफेशनल नहीं होना चाहिए?"
........(जारी)

बुधवार, 30 अप्रैल 2008

जरुरत है चिट्ठाकारों की कमाई का जरिया चिट्ठाकारी में ही तलाशने की

विगत आलेख के अंत में मै ने एक प्रश्न आप के सामने रखा था- क्या चिट्ठाकारों को प्रोफेशनल नहीं होना चाहिए?

भाई अनूप सुकुल जी ने कहा वे उत्तर का इंतजार करेंगे। जवाब मिले, और केवल इसी सवाल के नहीं कुछ और सवालों के भी। मसलन हमारे ड़ॉक्टर अमर कुमार जी ने कहा कि चाहे प्रचलित अंग्रेजी या किसी भी अन्य भाषा के शब्द का हिन्दी विकल्प बना लें लेकिन शब्द तो वही चलेगा जो जनता चलाएगी। यानी जो जुबान पर चढ़ गया वही चलेगा। अब इन्हें हम हिन्दी शब्दकोष में जगह दें या न दें यह कोषकार पर निर्भर करेगा। पर जनता शब्दकोष पढ़ कर हिन्दी न बोलेगी। जो उस की समझ में आएगा वह बोलेगी। अब हिन्दी को जनता के साथ चलना है तो उसे भी इन शब्दों को अपनाना पड़ेगा। इस से उस का कुछ भी नुकसान नहीं होने का वह और बलवान और समृद्ध हो जाएगी।

ब्लॉगर के प्रोफेशनल होने पर तो घोस्ट बस्टर जी के अलावा किसी को भी कोई आपत्ति नहीं थी। लेकिन यह चिन्ता थी कि ब्लॉगर कहीं इसे केवल कमाई का साधन न बना ले। मेरे सवाल का सब से खूबसूरत जवाब देहरादून की खूबसूरत प्रेटी वूमन रक्षन्दा जी ने दिया कि ब्लॉगर प्रोफेशनल जरूर हो, लेकिन ब्लॉगिंग उस का प्रोफेशन न हो जाए। उन्हों ने प्रोफेशन शब्द के दो अलग अलग अर्थों का एक ही वाक्य में सुन्दर प्रयोग किया, और इस सवाल के मुख्य द्वंद को स्पष्ट भी किया।

कुल मिला कर सब की चिन्ता एक ही थी कि ब्लॉगिंग का उपयोग समाजिक ही रहे। धन लालसा उसे असामाजिक न बना दे। वह शिवम् बनी रहे, कल्याणकारी ही रहे। भले मानुषों की यह चिन्ता होनी भी चाहिए।

मैं एक प्रोफेशनल वकील हूँ। इस का अर्थ यह है कि मैं अपने हर काम में जीत हासिल करने की इच्छा ही नहीं रखता बल्कि उस के लिए प्रयत्न भी करता हूँ। काम हाथ में लेते समय भी परखता हूँ कि इस में सफलता मिल सकती है या नहीं। इस का यह भी अर्थ नहीं कि मैं सफलता हासिल होने वाले ही काम हाथ में लेता हूँ। ऐसे काम भी हाथ में लेता हूँ जिन में रत्ती भर भी गुंजाइश सफलता की नहीं होती, लेकिन वह लड़ाई महत्वपूर्ण होती है। वहाँ लड़ते-लड़ते हार जाना भी जीत ही होती है। लेकिन संभावित परिणामों से प्रारंभ में ही अपने सेवार्थी को अवगत करा देना, उस का तोड़ है। वह फिर भी लड़ना चाहे तो उस की लड़ाई जरूर लड़ी जाती है।

हर काम में धन की कमाई जरूरी भी नहीं होती। कभी ऐसा भी होता है कि मिलने वाले शुल्क से काम में खर्च होने वाला धन अधिक हो जाता है, तब नुकसान भी होता है। लेकिन अगर काम हाथ में ले लिया तो यह नहीं देखा जाता कि इस में नुकसान है या फायदा। एक अच्छे प्रोफेशनल की पहचान ही यही है कि वह अपने काम को मिशन की तरह ले। यही नहीं उस की कमाई पर निर्भर भी करे। क्या आप ये चाहेंगे कि मैं पूरे समय वकालत करूँ और मेरा घर किसी और साधन से चले। अगर ऐसा होने लगा तो मैं वकालत और अपने सेवार्थी के प्रति कभी भी ईमानदार नहीं रह सकूंगा। मैं फिर लोगों पर उपकार करने का नाटक करने वाला ढ़ोंगी बन कर रह जाऊँगा, और अपने सेवार्थी के हित की चिन्ता करने के बजाय उस का भला बने रहने की चिन्ता अधिक करूंगा। कमाई के जाजरू वाले रास्ते देखने लगूँगा।

एक चिट्ठाकार अपना चार-छह घंटों का कीमती समय रोज खर्च भी करे और घर चलाने के लिए दूसरी और झाँके, तो फिर चिट्ठाकारी चलनी नहीं है। वह आज की तरह रेंगती ही रहेगी।

और अंत में यह भी कि कोई भी सामाजिक मिशन बिना प्रोफेशनल कार्यकर्ताओं और नेतृत्व के शिखर पर नहीं पहुँचता। इसलिए हिन्दी चिट्ठाकारी को प्रोफेशनल चिट्ठाकारों की सख्त जरुरत है, और ऐसे प्रोफेशनल चिट्ठाकारों की कमाई के जरिए चिट्ठाकारी में ही तलाशने की जरुरत है।

क्या अब भी आप चाहेंगे कि पूरी तरह समाज को समर्पित चिट्ठाकार आर्थिक दबावों में किसानों की तरह आत्महत्या करने लगें?

क्या अब भी आप कहेंगे कि चिट्ठाकार को प्रोफेशनल नहीं होना चाहिए।

सोमवार, 28 अप्रैल 2008

क्या चिट्ठाकारों को प्रोफेशनल नहीं होना चाहिए?

मैं ने चिटठाकार समूह पर एक सवाल छोड़ा था। प्रोफेशनलिज्म के लिए हिन्दी शब्द क्या हो सकता है? जवाब भी खूब मिले। व्यवसायिकता  इस के लिए सही शब्द हो सकता है, लेकिन यह भी समानार्थक नहीं। प्रोफेशनलिज्म शब्द का हिन्दी में कोई समानार्थक नहीं। मेरी जिद भी है कि जब आप को कोई समानार्थक शब्द अपनी भाषा में न मिले तो उसे अपनी भाषा का संस्कार दे कर अपना लिया जाए इस से हिन्दी न तो हिंगलिश होगी और न ही उस की कोई हानि होगी। लाभ यह होगा कि आप के भाव को प्रकट करने वाला एक और शब्द आप के शब्द कोष में सम्मिलित हो जाएगा। इस से भाषा समृद्ध ही होगी।

मूल बात थी कि प्रोफेशनलिज्म का अर्थ क्या?  यह एक गुण या गुणों का समुच्चय है। जो आप के काम को करने के तरीके को निर्धारित करता है और आप के काम के परिणाम और उस से उत्पन्न उत्पाद की गुणवत्ता को भी।

मैं एक वकील हूँ, एक प्रोफेशनल। मेरे पास एक सेवार्थी अपनी कोई समस्या ले कर आता है। मुझे उस की समस्या हल करनी है। कोई आते ही यह भी कहता है कि 'वकील साहब,  एक नोटिस देना है' मैं उस से यह भी कह सकता हूँ कि 'दिए देते हैं' अगर मैं ने यह जवाब दिया, तो समझो मैं प्रोफेशनल नहीं हूँ, और एक वकील, एक लॉयर नहीं हूँ। फिर मैं एक दुकानदार हूँ, जो माल बेचता है। क्यों कि ग्राहक ने कहा नोटिस दे दो, और मैं ने दे दिया।

भाई, वकील तो मैं हूँ। यह तुम ने कैसे तय कर लिया कि, नोटिस देना है? और समस्या के हल के लिए यह एक सही प्रारंभ है। सेवार्थी का काम है, मुझे समस्या बताने का। मेरा काम है, उस से वे सभी तथ्य और उन्हें प्रमाणित करने के लिए साक्ष्य की उपलब्धता जाँचने का, और फिर इस सामग्री के आधार पर समस्या का हल तलाश करने का। मैं तय करूगा कि, समस्या का हल कैसे करना है?

अगर मेरे सारे कामों में यह गुण विद्यमान रहता है तो मैं एक सही प्रोफेशनल हूँ, अन्यथा नहीं। अपने काम के प्रति पूरी सजगता होना, उस के लिए जरुरी कुशलता हासिल करना और उसे उत्तरोत्तर विकसित करते रहना जरुरी है। सेवार्थी को सर्वोत्तम सेवाएं प्रदान करने के लायक बने रहना ही प्रोफेशनलिज्म है। प्रोफेशनलिज्म का यह अध्याय यहीं समाप्त नहीं होता। अनेक और बाते हैं जो इस में समाहित होती हैं। पर आज के लिए इतना पर्याप्त है।

अंत में एक सवाल- क्या चिट्ठाकारों को प्रोफेशनल नहीं होना चाहिए?