आज सुबह अदालत में जब हम चाय के लिए जा रहे थे तो वरिष्ट वकील महेश गुप्ता जी ने पीछे से आवाज लगाई। मैं मुड़ा तो देखता हूँ कि पंचानन गुरू मौजूद हैं। वे मुझे याद कर रहे थे। वे कोटा की पहली पीढ़ी के वामपंथियों में से एक हैं। अपने जमाने में उन्हों ने इस विचार को पल्लवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। बाद में अपने गांव के पास के कस्बे अटरू में जा कर वकालत करने लगे, साथ में पुश्तैनी किसानी थी ही। अब जीवन के नवें दशक में हैं। गुरू ने पूछा -कहाँ जा रहे थे? मैं ने कहा चाय पीने। उन्हो ने पलट कर पूछा-कौन पिला रहा है? मैं ने कहा जो भी सीनियर होगा वही पिलाएगा। उन्हों ने फिर पूछा -हम भी चलते हैं, अब कौन पिलाएगा? उत्तर मैं ने नहीं महेश जी ने दिया - अब तो सब से सीनियर आप ही हैं, लेकिन जब छोटे कमाने लगें तो उन का हक बनता है। तो यूँ मेरा हक है। हम सब केंटीन की ओर चले।
तब तक चाय समाप्त हो चुकी थी। सब उठ लिए। गुरू जी मेरे लिए काम सौंप गए। जब श्रम ने मनुष्य को जानवर से मनुष्य बनाया तो उस का श्रम से विलगाव क्या असर करेगा? जरा इस पर गौर करना। मैं ने कहा -निश्चित ही वह मनुष्य का विमानवीकरण करता है। यही तो इस युग का सब से बड़ा अंतर्विरोध है। मनुष्य का अंतर्विरोधों का हल करने का लंबा इतिहास है, वह इस अंतर्विरोध को भी अवश्य ही हल कर लेगा। मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'कफन' तो आपने पढ़ी ही होगी।
इस के बाद गुरूजी चल दिए। मैं भी अपने काम में लग गया। मैं घर लौटने के बाद इस प्रश्न से जूझता रहा कि क्या मनुष्य इस अंतर्विरोध को हल कर पाएगा?
आप लोग इस बारे में क्या सोचते हैं? आप राय रखेंगे तो इस विषय पर सोच आगे बढ़ेगी। ब्लाग जगत में कुछ साथी गंभीर काम करते हैं, उन से गुजारिश भी है कि उन के ज्ञान में हो तो बताएँ कि, क्या ऐसी कोई शोध भी उपलब्ध हैं, जो मनुष्य के श्रम से विलगाव के जैविक और सामाजिक परिणामों के बारे में कुछ निष्कर्ष प्रस्तुत करती हैं?