- दिनेशराय द्विवेदी
गुरुवार, 4 जनवरी 2024
'औकात'
रविवार, 10 जनवरी 2021
नॉर्मल डिलीवरी
कल शाम करीब साढ़े सात का समय था, फ्लैट की कॉलबेल बजी। मैंने दरवाजा खोला। केयरटेकर की पत्नी थी। मुझे देखते ही बोली, "आण्टी जी कहाँ हैं?"
"रसोई में। क्यों कोई बात हो तो मुझे बताओ?
"उधर सामने सड़क पर एक औरत ने बच्चा जन दिया है। बहुत सुन्दर बच्चा है।"
अब मैं क्या कहता। मैंने उत्तमार्ध को बुलाया। अब वह सारी कहानी बताने लगी।
"जच्चा को दरी और कम्बल दे दिया है, वह सड़क के किनारे ही बच्चे सहित लेटी है। उसके परिजन आ गए हैं। उसे घेर कर बैठ गए हैं। अस्पताल जाने के साधन की जुगाड़ की जा रही है। मैं यह पूछने आयी थी कि उसे चाय दे सकते हैं क्या?"
"हाँ, दे सकते हैं। पर उसके परिजन आ गए हैं तो उनकी अनुमति हो तो ही देना। बनाने से पहले पूछ लेना।" उत्तमार्ध ने कहा। वह सुन कर सीढ़ियों से नीचे उतर गई।
मैंने उत्तमार्ध को कहा, "मैं नीचे पता कर के आता हूँ। माजरा क्या है?"
"वहाँ तुम्हारा क्या काम है? रहने दो।"
मैं ने बालकनी से देखा। तीन चार मजदूर स्त्रियाँ जच्चा को घेर कर बैठी थीं। वहाँ अधिक रोशनी नहीं थी। वैसे जच्चा के लेटे हुए होने के कारण वह दिखाई नहीं दे रही थी। पास ही दो-तीन मजदूर खड़े थे। पास ही मेरी बिल्डिंग के एक व्यवसायी किसी को फोन कर रहे थे। मैं सीढ़ियों से नीचे उतर गया।
पता लगा उन्होने 108 नं. एम्बुलेंस को, पुलिस कंट्रोल रूम को और पुलिस थाने को फोन कर दिया है। पर बच्चे की नाल अभी नहीं कटी है।
मैंने अपने तमाम ज्ञान पर विचार किया। फिर कहा कि यदि कुछ मिनटों में 108 आ जाए तो अस्पताल ही विकल्प है। अपने अधूरे ज्ञान के आधार पर नाल काटने का प्रयास करना उचित नहीं।
मेरा वहां मेरा कोई काम नहीं था। मैं लौट आया। पर जिज्ञासा ने मुझे फिर से बालकनी में पहुँचा दिया। 108 आ चुकी थी। चालक ने पिछला दरवाजा खोल दिया था। मजदूर स्त्रियाँ जच्चा को चढ़ा रही थीं। दो मिनट में जच्चा-बच्चा और साथ की स्त्रियों को लेकर एम्बुलेंस चली गयी। साथ के मजदूर चौराहे की तरफ चल दिए साधन की तलाश में कि अस्पताल पहुँचें।
जच्चा पास में निर्मित हो रहे पार्किंग प्लेस में काम करने वाले मजदूर थे। उन्होंने वहीं अपनी झुग्गियाँ डाली हुई हैं। पता लगा कि जच्चा शाम तक मजदूरी कर रही थी। काम से उतरते के कुछ देर बाद ही उसे दर्द हुआ। जच्चा को उसका पति डाक्टर के यहाँ दिखाने जा रहे थे कि चलते हुए दर्द तेज हुआ। जच्चा से सहन नहीं हुआ वह वहीं सड़क पर लेट गई। बच्चा जन दिया, बिना किसी की सहायता के नॉर्मल डिलीवरी।
हमने राहत की साँस ली कि जच्चा बच्चा अस्पताल पहुँच गए होंगे।
मंगलवार, 21 अप्रैल 2020
कोविद-19 से लड़ाई मैदान में हमें खुद लड़नी पड़ेगी?
आने वाला वक्त मुझे लगता है ऐसा हो सकता है बीमारी और मौत का डर छोड़ कर हमें अपनी वास्तविक गति में आने को बाध्य होना पड़ेगा। वही इस का इलाज भी होगा। हमें कोविद-19 से लड़ाई हमें घरों में छुप कर नहीं बल्कि मैदान में आ कर खुद लड़नी होगी। लड़ाई में जरूर कुछ हजार या लाख खेत रह सकते हैं। तो वे तो अब भी खेत रह रहे हैं। पर अभी हमने सब कुछ दाँव पर लगा रखा है। तब शायद सब कुछ दाँव पर नहीं होगा। क्या होगा? यह तो भविष्य ही बता सकता है।
गुरुवार, 9 अप्रैल 2020
कोविद-19 महामारी और भारत-7
हम इसे समझने की कोशिश करें तो हमें बन्द के आवाहनों के ताजा
इतिहास में जाना पड़ेगा। मेरे 65 वर्ष के जीवन में मैंने उत्तर भारत में जितने
नगर, प्रान्त या भारत बंद देखे हैं, उनमें से अधिकांश भारतीय जनता पार्टी, पूर्व
जनसंघ या उसके बिरादर संगठनों के आव्हानों पर आयोजित हुए हैं। ये बन्द दिन भर के
लिए होते हैं, और ज्यादातर तोड़-फोड़, मार-पीट और संपत्ति को हानि पहुँचने के भय
से पूरे या पौने सफल भी हो जाते हैं। लेकिन शाम चार बजने के बाद धीरे-धीरे चहल-पहल
बढ़ती है और शाम 5 बजते बजते बाजार आबाद हो जाते हैं। उसी समय आव्हान करने वाले
कार्यकर्ता बंद की सफलता की आदिम प्रसन्नता अभिव्यक्त करने के लिए छोटे-मोटे जलूस
निकालने लगते हैं। यह व्यवहार इन दक्षिणपंथी संगठनों की एक स्थायी आदत बन चुका है।
इस आदत के चलते मुझे पहले ही लग रहा था कि ऐसा कुछ होने वाला है, और यह हुआ भी।
भारतीय मीडिया ने जिसका अधिकांश पूरी तरह प्रधानमंत्री के समक्ष नतमस्तक है, जनता
कर्फ्यू की सफलता को प्रधानमंत्री की जीत के रूप में अभिव्यक्त किया और विजय के
विद्रूप प्रदर्शनों को छोटी-मोटी गलती बताया। बाद में प्रधानमंत्री ने अपनी पार्टी
के इन नेताओँ और समर्थकों के व्यवहार पर अपने ट्वीट में या अन्यथा किसी भी प्रकार
कोई आपत्ति या नाराजगी व्यक्त नहीं की। इससे यही समझा जा सकता है कि वे इससे
प्रसन्न थे और ऐसा होते देखना चाहते थे। मेरे जैसे लोगों ने और मीडिया के उंगलियों
पर गिने जाने वाली इकाइयों ने इस पर आश्चर्य प्रकट किया भी तो वह नगाड़ों के शोर
में तूती की आवाज सिद्ध हुई और इसे खिसियाना भी कहा गया।शनिवार, 4 अप्रैल 2020
कोविद-19 महामारी और भारत-6
शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020
कोविद-19 महामारी और भारत-5
छंटनी की परिभाषा में जो मामूली परिवर्तन 1984 के संशोधन से किए गए थे वे मजदूर वर्ग के लिए अत्यन्त घातक सिद्ध हुए। इस संशोधन ने बिना किसी कानूनी अधिकार वाले श्रमिक-कर्मचारियों की एक नई श्रेणी खड़ी कर दी। जिसके सिर पर हमेशा नौकरी जाने की तलवार लटकती रहती है। .... (क्रमशः)
गुरुवार, 2 अप्रैल 2020
कोविद-19 महामारी और भारत-4
इस
कानून के प्रभावी होने के पहले तक उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को यह भय रहता था कि
नियमित कामों के लिए ठेकेदार मजदूरों से काम लिया गया तो अदालत उन मजदूरों को
उद्योग का मजदूर घोषित कर के उन्हें उद्योग के मजदूरों के समान लाभ दिलाने का आदेश
दे देगी। इस कानून के पारित होने का नतीजा यह हुआ कि पूंजीपति बेधड़क ठेकेदार
मजदूरों से नियमित काम भी करवाने लगे। कारखानों और उद्योगों में नियमित मजदूरों की
भर्ती कम होने लगी और वे काम ठेकेदारों के मजदूरों से कराए जाने लगे। धीरे-धीरे
उद्योगों में नियमित मजदूरों की संख्या जो पहले 70-80 प्रतिशत होती थी अब 20-30
प्रतिशत तक रह गयी। ठेकेदार मजदूरों की संख्या बढ़ कर 70-80 प्रतिशत तक चली गयी।


