पिछले चार-पाँच
दिनों से जिस तरह की रिपोर्टें आ रही हैं उन से लग रहा था कि भारत में 75-80
प्रतिशत कोरोना संक्रमित ऐसे हैं जिनमें कोई लक्षण ही नहीं नजर आ रहे हैं। वे समाज
में खुले घूम रहे हैं और निश्चित ही अनेक को संक्रमित भी कर रहे हैं। इस पर कल ही
लिखना चाहता था, पर अधिकारिक निष्कर्ष के बिना इस लेख को ले
कर मेरी कुटाई भी हो सकती थी। लेकिन कल एमआईसीआर ने भी इस तथ्य की पुष्टि कर दी
है।
इस स्थिति में यदि
हम देश को कोविद-19 मुक्त करना चाहें तो देश के हर निवासी का हमें टेस्ट करना
पड़ेगा वह भी एक बार नहीं कम से कम कुछ कुछ अन्तराल से तीन बार। फिर उन्हें
क्वेरंटाइन कर के उनके संक्रमण को समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी और उन्हें
जीवित बनाए रखने के प्रयास भी जारी रखने होेगे। देश को सारी दुनिया से तब तक काट
कर रखना होगा जब तक कि दुनिया कोविद-19 से मुक्त न हो जाए। जो मैं कह रहा हूँ, वह भारत के किसी एक नगर के लिए भी संभव नहीं है। राज्य और देश तो बहुत दूर की बातें
हैं। फिर?
हमने देश को लॉकडाउन
करके 40 करोड़ रोज मजदूर आबादी को संकट में डाल दिया है। उन्हें उनके घरों तक या
जहाँ उन्हें काम उपलब्ध हो सके वहाँ तक पहुँचाने में हम असमर्थ हैं। हमने उन्हें
परिस्थितियों की दया पर छोड़ दिया है। हम बाहर पढ़ रहे बच्चों को लाने मे राज्यों
की मशीनरी झोंक चुके हैं। पर देश का निर्माण करने और उसे चलाने वाले मजूरों के लिए
हमारे पास कुछ नहीं है।
लॉकडाउन के एक माह में हम बेहाल
हो चुके हैं। हम अधिक दिनों तक इस बीमारी का बोझा नहीं ढो सकते। सरकारें दिवालिया
होने की कगार पर हैं। हम रिजर्व बैंक के रिजर्व को खर्च कर रहे हैं। उसका भी अधिक
लाभ जनता को नहीं, वित्तीय पूंजी के रक्षक और पूंजीपतियों की सेवा करने वाले बैंकों
को मिल रहा है।
लॉकडाउन इस महामारी का इलाज नहीं है, न ह ो सकता है। इस लॉकडाउन ने हमें रुक कर सोचने का मौका दिया है। फिलहाल हमें सामाजिक सामञ्जस्य के साथ भौतिक दूरी (सामाजिक दूरी नहीं) का अभ्यास करना है, मास्क लगाने, नियमित रूप से हाथ साफ करने तथा दूसरे साफ सफाई के तरीके अपनाने और उन्हें आदत बना लेने की जरूरत है। यही इस महामारी का इलाज हैं।
आने वाला वक्त मुझे लगता है ऐसा हो सकता है बीमारी और मौत का डर छोड़ कर हमें अपनी वास्तविक गति में आने को बाध्य होना पड़ेगा। वही इस का इलाज भी होगा। हमें कोविद-19 से लड़ाई हमें घरों में छुप कर नहीं बल्कि मैदान में आ कर खुद लड़नी होगी। लड़ाई में जरूर कुछ हजार या लाख खेत रह सकते हैं। तो वे तो अब भी खेत रह रहे हैं। पर अभी हमने सब कुछ दाँव पर लगा रखा है। तब शायद सब कुछ दाँव पर नहीं होगा। क्या होगा? यह तो भविष्य ही बता सकता है।
आने वाला वक्त मुझे लगता है ऐसा हो सकता है बीमारी और मौत का डर छोड़ कर हमें अपनी वास्तविक गति में आने को बाध्य होना पड़ेगा। वही इस का इलाज भी होगा। हमें कोविद-19 से लड़ाई हमें घरों में छुप कर नहीं बल्कि मैदान में आ कर खुद लड़नी होगी। लड़ाई में जरूर कुछ हजार या लाख खेत रह सकते हैं। तो वे तो अब भी खेत रह रहे हैं। पर अभी हमने सब कुछ दाँव पर लगा रखा है। तब शायद सब कुछ दाँव पर नहीं होगा। क्या होगा? यह तो भविष्य ही बता सकता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें