पता नहीं दोनों क्या कर रहे थे। लेकिन पर फड़फड़ाने की आवाजें बहुत
जोर की थीं। फिर एक-एक कर तिनके गिरना शुरु हुए। मैं वहाँ से चला आया। कुछ देर बाद
शोभा ने आ कर बताया कि उन्हों ने अपना घर गिरा कर नष्ट कर दिया है। मैं ने जा कर
देखा तो सारी बालकनी में कबूतर का घोंसला गिरा पड़ा था, एक
अंडा टूटा हुआ पड़ा था, उसकी जर्दी फ्लोर पर बिखरी थी। इसका
मतलब था कि उनका अंडा कच्चा ही था। मैं तो यह समझे बैठा था कि अंडों से बच्चे निकल
आए हैं, और उड़ने की कोशिश में घोंसले के तिनके नीचे गिरा रहे हैं। अब शाम पड़े ये बालकनी का
कूड़ा साफ कर के धोने का काम और सिर पर आ गया था।
संतान की चाह रखने वालों का अंडा टूट कर
गिर जाने से अच्छा नहीं लग रहा था। मन उदास हो गया था। सोच रहा था कि एक छोटी सी
दुर्घटना कैसे जीवन को अंडे से खोल के बाहर निकलने के पहले ही समाप्त कर देती है।
मुझे कबूतर जोड़े पर गुस्सा भी बहुत आया। आखिर वे वहाँ इस तरह क्यों फड़फड़ा रहे
थे?
मैं ने कबूतरों को इस तरह फड़फड़ाते हुए तब देखा था जब ऐसे ही अंडा
फूटा था। तब भी उनका घौंसला इसी ए.सी. के ऊपर रखे गत्ते पर था। जोड़े की ऐसी ही
हरकतों से गत्ता सरक कर लटक गया था और नीचे गिरने को था। मैं एक डंडे से उसे वापस
ए.सी. पर सरकाना चाह रहा था कि कबूतर ने हरकत की और घोंसला अंडों समेत नीचे गिर
गया। उस वक्त मुझे कुछ अपराध बोध था कि मेरी डंडे से गत्ता सरकाने की कोशिश उस
दुर्घटना का पूरा नहीं तो आंशिक कारक जरूर था।
तभी एसी के ऊपर से चीं..चीं की आवाजें
आईं। यह बड़े अचरज की बात थी। मैंने ऊपर देखा और आवाज पर गौर किया तो समझ गया कि
वे गोरैया के बच्चों की आवाजें हैं। असल में एसी के ऊपर एक थर्माकोल चिपका हुआ
गत्ता रखा था, जिससे पक्षी ए.सी. में तिनके न गिराएं। उस
थर्माकोल में कुछ जगह थी। उसे अपनी चोंचों से खोद खोद कर गोरैया के जोड़े ने अपने
घोंसले के लायक चौड़ा कर लिया था। वहाँ उसने अंडे दिए हुए थे। शायद उन से बच्चे
निकल आए थे।
चीं चीं चीं ... गोरैया के बच्चे फिर गीत
गा रहे थे। मेरी उदासी कुछ कम हो गयी।
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