एनडीटीवी इंडिया के डिजिटल एडिटर विवेक रस्तोगी का एक
साक्षात्कार समाचार मीडिया डॉट कॉम ने प्रकाशित किया हैइस में उन्होंने फेक न्यूज' के बारे में पूछे गए प्रश्न कि,
"फेक न्यूज का मुद्दा इन दिनों काफी गरमा रहा है। खासकर
विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर फेक न्यूज की ज्यादा आशंका रहती है। आपकी नजर
में फेक न्यूज को किस प्रकार फैलने से रोका जा सकता है? का
उत्तर देते हुए कहा है ....
"फेक न्यूज का मुद्दा कतई नया नहीं है और इस पर चर्चा लम्बे
अरसे से चली आ रही है। संकट काल में इसके फैलाव की आशंका बढ़ जाती है, क्योंकि हमारे समाज का एक काफी बड़ा हिस्सा शोध और सत्यापन की स्थिति में
नहीं होता, और न ही उन्हें इसकी आदत रही है। मीडिया
संस्थानों की विश्वसनीयता उनके अपने हाथ में होती है। अगर सभी संस्थान एनडीटीवी की
भाँति कोई भी समाचार 'सबसे पहले' देने
के स्थान पर 'सही समाचार' देने का
लक्ष्य बना लें, तो इस समस्या से कुछ हद तक छुटकारा पाया जा
सकता है। रही बात सोशल मीडिया की, तो हमारे-आपके बीच ही,
यानी हमारे समाज में ही कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्हें
किसी सत्यापन की जरूरत महसूस नहीं होती, जिसके चलते फेक
न्यूज़ ज़ोर पकड़ती है। वैसे, फेक न्यूज़ फैलाने के पीछे
लोगों के निहित स्वार्थ भी होते हैं और अज्ञान भी। इसलिए, इसके
लिए सभी को मिलजुलकर प्रयास करने होंगे। सोशल मीडिया पर समाचार पढ़ने वालों को
जागरूक करना होगा कि वे हर किसी ख़बर पर सत्यापन के बिना भरोसा न करें।"
मेरा भी सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों से यह अनुरोध है कि वे विवेक
रस्तोगी की इस बात को गाँठ बांध लेना चाहिए कि, हम किसी भी
समाचार जो हमें किसी भी स्रोत से मिला हो उसे आगे सम्प्रेषित करने के पूर्व जाँच
लेना चाहिए कि कहीं वह फेक तो नहीं हैं। यहाँ सोशल मीडिया पर सभी विचारधारा और
विचारों वाले लोग हैं, अक्सर लोग अपनी विचारधारा या स्वयं को
अच्छे लगने वाले समाचारों, सूचनाओँ आदि को सही मान कर जल्दी
में सम्प्रेषित कर देते हैं, यहीं हम से चूक होती है। हम
मिथ्या और गलत चीजों को आगे बढ़ने का अवसर दे देते हैं।
यदि हम चाहते हैं कि भविष्य की दुनिया अच्छी सच्ची और इन्सानों के
रहने लायक हो तो हमें झूठ को इस दुनिया से अलग करना होगा, और
इसका आरम्भ हम स्वयं से कर सकते हैं। हम खुद तक पहुँचने वाली सूचनाओं को ठीक से
जाँचें और उन्हें आगे काम में लें। यही चीज हमारे लिए आगे बहुत काम देगी। इसी से
हमारी विश्वसनीयता भी बनी रहेगी। वर्ना फैंकुओँ की दुनिया में कोई कमी नहीं है।
खास तौर पर उस समय में जब उन में से अनेक आज राष्ट्र प्रमुखों के स्थान पर बैठे
हैं।
मुझे लगता है हमें आज और इसी पल इस काम को आरंभ कर देना चाहिए, इसे अपनी आदत बना लेनी चाहिए। एक तरह से यह स्वयम् को परिष्कृत (Refine) करना होगा।
मुझे लगता है हमें आज और इसी पल इस काम को आरंभ कर देना चाहिए, इसे अपनी आदत बना लेनी चाहिए। एक तरह से यह स्वयम् को परिष्कृत (Refine) करना होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें