पुरुषोत्तम 'यक़ीन' की क़लम से यूँ तो हर तरह की ग़ज़लें निकली हैं। उन में कुछ का मिजाज़ बिलकुल बाज़ारू है। बाजारू होते हुए भी अपने फ़न से उस में वे समाज की हक़ीकत को बहुत खूब तरीके से कह डालते हैं। जरा इस ग़ज़ल के देखिए ......
चितकबरी ग़ज़ल 'यक़ीन' की
- पुरुषोत्तम 'यक़ीन'
हाले-दिल सब को सुनाने आ गए
फूँक दी बीमाशुदा दूकान ख़ुद
फिर रपट थाने लिखाने आ गए
मार डाली पहली बीवी, क्या हुआ
फिर शगुन ले कर दिवाने आ गए
खेत, हल और बैल गिरवी रख के हम
शहर में रिक्शा चलाने आ गए
तेल की लाइन से ख़ाली लौट कर
बिल जमा नल का कराने आ गए
प्रिंसिपल जी लेडी टीचर को लिए
देखिए पिक्चर दिखाने आ गए
हॉकियाँ ले कर पढ़ाकू छोकरे
मास्टर जी को पढ़ाने आ गए
घर चली स्कूल से वो लौट कर
टैक्सी ले कर सयाने आ गए
काँख में ले कर पड़ौसन को ज़नाब
मौज मेले में मनाने आ गए
बीवी सुंदर मिल गई तो घर पे लोग
ख़ैरियत के बहाने ही आ गए
शोख़ चितकबरी ग़ज़ल ले कर 'यक़ीन'
तितलियों के दिल जलाने आ गए* * * * * * * * * * * * * * * * * * * *