निचली मंजिल के दोनों फ्लेट के दरवाजों के आस पास कोई नाम पट्ट नहीं था। इस से यह पहचानना मुश्किल था कि किस फ्लेट में कौन रहता होगा। ऊपर की मंजिल पर भी यही आलम हुआ तो गलत घंटी भी बज सकती है। ऊपर पहुंचे तो एक फ्लेट पर अवनींन्द्र के नाम की खूबसूरत सी नाम पट्टिका देख कर संतोष हुआ। घंटी बजाने पर अवनीन्द्र की पत्नी ज्योति ने दरवाजा खोला। मुझे और पाबला जी को देख वह आश्चर्य में पड़ गई। मैं ने मौन तोड़ा, पूछा-अवनीन्द्र है? हाँ कहती हुई उस ने रास्ता दिया। अवनीन्द्र ड्राइंग रूम में मिला। देखते ही जो आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता उस के चेहरे पर दिखाई दी उसका वर्णन कर पाना संभव नहीं है। मैं ने बताया ये पाबला जी हैं। उस ने पाबला जी से हाथ मिलाये। मेरे संदर्भ से पाबला जी और अवनींद्र फोन पर बतिया चुके थे।
हम अवनीन्द्र के यहाँ कोई डेढ़ घंटा रुके। इस बीच अवनींद्र के बारे में मैं ने पाबला जी को बताया कि वह पढ़ने में शुरू से आखिर तक सबसे ऊपर रहा। एक वक्त तो उस की हालत यह थी कि महिनों वह बिस्तर पर नहीं सोता था। टेबल कुर्सी पर पढ़ते पढते तकिया टेबल पर रखा और उसी पर सिर टिका कर सो लेता। सुबह उठता तो हमें लगता कि जैसे वह जल्दी उठ कर नहा धो कर तैयार हो लिया है। उस का राज बुआ ने बताया कि यह नींद से जागते ही मुहँ धोता है और बाल गीले कर, पोंछ तुरंत कंघी कर लेता है। जिस से वह हमेशा तरोताजा रहता है। मैं ने भी आज तक ऐसा विलक्षण विद्यार्थी नहीं देखा। वहाँ से चलने के पहले पाबला जी ने अपने कैमरे से हमारे चित्र लिए।
हम वापस पाबला जी के यहाँ पहुँचे तो पाबला जी की बिटिया सोनिया (रंजीत कौर) से भेंट हुई। सुबह उस से ठीक से भेंट न हो सकी थी वह कब तैयार हो कर अपने कॉलेज चली गई थी हमें पता ही नहीं लगा। वह बहुत छोटी लग रही थी। मैं समझा वह ग्रेजुएशन कर रही होगी। पता लगा वह मोनू से कुछ मिनट बड़ी है और अक्सर यह बात अपने भाई को जब-तब याद दिलाती रहती है। वह एमबीए कर रही है। पाबला जी ने संजीत और संजीव को मेरा कार्यक्रम बता दिया। संजीव ने बताया कि वह सुबह कुछ वकीलों के साथ आएँगे। कुछ ही देर में पाबला जी ने घोषणा की कि भोजन के लिए बाहर चलना है। हम चारों मैं, पाबला जी, मोनू और वैभव वैन में लद लिए। जिस रेस्टोरेंट में हम गए वह बहुत ही विशिष्ठ था। मंद रोशनी और धीमे मधुर संगीत में भोजन हो रहा था और सभी टेबलों पर परिवार ही हमें दिखाई दिए। मैं ने पूछा तो बताया गया कि इस रेस्टोरेंट में बिना महिलाओं के प्रवेश वर्जित है। मैं समझ गया कि यह सार्वजनिक स्थल पर शांति बनाए रखने का सुगम तरीका है। हमारे एक लीडर का वक्तव्य याद आ गया कि किसी भी संस्था की कार्यकारिणी की बैठक में फालतू बातों को रोकना हो तो एक दो महिलाएँ सदस्याएं होना चाहिए।
हमारे साथ कोई महिला न थी फिर भी हम वहाँ थे। पाबला जी ने बताया कि प्रवेश करने के पहले द्वार पर मैनेजर ने टोका था और उसे यह कहा गया है कि बिटिया पीछे आ रही है। लेकिन बाद में फोन पर रेस्टोरेंट के संचालक से बात करने पर ही भोजन का आदेश लिया गया। भोजन स्वादिष्ट था। हम घर लौटे तो ग्यारह बजे होंगे। इतना थक गए थे कि वेबसाइट का काम कर पाना संभव नहीं था। उसे अगली रात के लिए छोड़ दिया गया। वैभव मोनू के कमरे में चला गया। मैं भी कुछ देर नेट पर बिताने के बाद बिस्तर के हवाले हुआ।