रविवार, 14 सितंबर 2008
अगले बरस तू जल्दी आ ...
आज गणपति को विदा किया जा रहा है। अगले बरस जल्दी आने की प्रार्थना के साथ। वे हमारी समृद्धि की कामना के संपूर्ण प्रतीक हैं, दुनियाँ के पहले कार्टून नहीं। न ही उन की किसी ने कल्पना की है। वे हमारे इतिहास की धरोहर हैं, इतिहास का महत्वपूर्ण दस्तावेज भी।
मैं ने पिछले आलेख में संक्षेप में बताने की कोशिश की थी कि शिकार के आयुध धारण कर वे मानव की शिकारी अवस्था को प्रदर्शित करते हैं। उन के आयुध भी एक हाथी पर नियंत्रण के आयुध हैं। जंगल के विशालतम और बलशाली जन्तु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेना, एक तरह से जंगल के समस्त जन्तु जगत पर विजय प्राप्त कर लेने के समान था। यह मानव विकास के एक महत्वपूर्ण चरण पशुपालन की चरमावस्था को भी प्रदर्शित करता है। इन दोनों अवस्थाओं में सामाजिक संगठन में पुरुष की प्रधानता रही। क्यों कि समूह के पालन के लिए पुरुष की भूमिका प्रधान थी। लेकिन इन अवस्थाओं में स्त्रियाँ फलों, वनोपज और ईंधन के संग्रह का काम करती रहीं। यहीं निरीक्षण और पर्यवेक्षण से उन की मेधा को विकसित होने का अवसर मिला। उन्होंने आवश्यक वन-उत्पादों के लिए जंगल में दूर तक की संकटपूर्ण यात्राओं के विकल्प के रूप में अपने आवास के निकट की भूमि में वनस्पति उत्पादन करने की युक्ति खोज निकाली। यही कृषि का आविर्भाव था।
इस ने संकट के समय संग्रहीत भोजन के संकट को हल कर दिया। धीरे-धीरे कृषि की विधियों के विकास ने संग्रह किए जाने वाले भोजन के संग्रह में वृद्धि की। शिकार पर निर्भरता न्यूनतम रह गई। इस नयी खोज ने एकाएक स्त्रियों की महत्ता को बढ़ा दिया। वे सामाजिक गतिविधि के केन्द्र में आ गयीं। यह उसी तरह है जैसे आज आई टी सेक्टर और औद्योगिक उत्पादों से संबद्ध लोग केन्द्र में है। कृषि उस समय की आधुनिकतम उत्पादन तकनीक थी जिस ने मनुष्य की शिकार जैसे खतरनाक उद्योग पर निर्भरता को समाप्त कर दिया। बाद में वह केवल शौक मात्र रह गया। आज तो उस पर प्रतिबंध लगा देने की नौबत ही आ चुकी है।
अपनी प्रजनन क्षमता के कारण समूह की संख्या में वृद्धि के लिए उन्हें महत्व हासिल था ही। उस के साथ कृषि की उत्पादकता और जुड़ गई। कुल मिला कर महिलाएँ समृद्धि का संपूर्ण प्रतीक हो गईं। स्त्रियों के मासिक धर्म के रक्त जैसा लाल रंग इस समृद्धि का प्रतीक हो गया। गणपति का सिंदूर अभिषेक इसी से संबद्ध है। गणपति का दूर्वा प्रिय होना, कृषि उत्पादों का उस के हाथों में आयुधों का स्थान लेना, खेती से लायी गई समृद्धि को ही प्रकट करता है। खेती के सब से बड़े शत्रु चूहे की सवारी भी खेती के लिए चूहों पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता को प्रतिपादित करती है।
सिंदूर की स्त्रियों से संबद्धता जग जाहिर है। सिंदूर जिन देवताओं से संबद्ध है वे सभी किसी न किसी प्रकार से स्त्रियों से संबद्ध हैं। स्वयं गणेश की उत्पत्ति गौरी से है, यहाँ तक कि गौरी-पति शिव भी उन से उलझ पड़ते हैं। गौरी को आकर बताना पड़ता है कि शिव उन के पति हैं इसलिए गणपति के पिता भी। भैरव भी माता दुर्गा से जुड़े़ हैं। एक और लोक देवता क्षेत्रपाल सिंदूर के अधिकारी हैं, वे खेती की रक्षा से जुड़े हैं। बचे हनुमान जी, वे भी माता सीता से सिंदूर की दीक्षा लेकर ही उस के अधिकारी हुए हैं। इस तरह लाल रंग स्त्री शक्ति का प्रतीक है। हम आज भी प्रत्येक अवसर पर चाहे वह स्वागत का हो या विदाई का, लाल रंग के सिंदूर या रोली का टीका करते हैं, ऊपर से उस पर श्वेत अक्षत चिपकाते हैं। वास्तव में यह एक प्रकार का शुभकामना संदेश है। जो हम टीका लगवाने वाले व्यक्ति को देते हैं कि उसे संपूर्ण समृद्धि प्राप्त हो। वैसे ही, जैसे कहा जाता है 'दूधों नहाओ पूतों फलो'। सिंदूर जहाँ मातृ-शक्ति का प्रतीक है, वहीं अक्षत पुरुष वीर्य का। दोनों के योग के बिना संतानोत्पत्ति संभव नहीं। यही दोनों समृद्धि के प्रतीक हो गए और आज तक प्रचलित हैं। माथे पर सिंदूर धारण करना स्त्रियों की प्रजनन क्षमता का प्रतीक है। कालांतर में स्त्रियों के विधवा हो जाने पर उन्हें सिंदूर धारण करने से प्रतिबंधित होना पड़ा, क्यों कि पति के जीवित न रहने पर उन की यह क्षमता अधूरी रह जाती है।
यह भाद्रपद का उत्तरार्ध और सितंबर माह कृषि के लिए आशंकाओं का समय भी है। फसलें खेत में खड़ी हैं और घर तक आकर समृद्धि लाना पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर करता है। समय पर न कम, न अधिक, केवल उपयु्क्त वर्षा का होना, फसलों के पकने के समय पूरी धूप मिलना, कीटों और चूहे जैसे जंतुओं से उन की रक्षा। यही कारण है कि प्रकृति को इस के लिए मनाना आवश्यक है। उसे मनाने में कोई कमी रह गई तो? उत्पादन प्रभावित होगा।
समृद्धि प्रदाता गणपति प्रकृति के देवता हैं। वे प्रति वर्ष ऋद्धि-सिद्धि के साथ आते हैं, और अकेले वापसी करते हैं। मनुष्यों को दोनों चाहिए। इस लिए वे आज गणपति को विदा कर रहे हैं, इस प्रार्थना के साथ कि गणपति बप्पा! अगले बरस जल्दी आना।
रविवार, 27 जनवरी 2008
हर ब्लॉगर रोज बीस मिनट जॉगिंग करे
पिछले साल एक दिन अदालत में अचानक मुझे ऐसा लगा कि एक भी कदम चला तो गिर पड़ूंगा। किसी को कुछ बताए बिना ही जैसे-तैसे बाहर निकल पास ही जज साहब के पीए के चैम्बर में जा कर बैठा, कि थोड़ा आराम कर सकूँ। जज ने तुरन्त ही बुलवा भेजा। मैं जैसे-तैसे इजलास में पहुँचा और इस बुलावे को निपटा कर वापस वहीं आ बैठा। घंटे भर बाद वहीं बैठ कर कॉफी पी, तब सामान्य होने पर अपने काम पर लगा। शाम को अपने डॉ. ङी.आर. आहूजा को चैक कराया, तो रक्तचाप १००-१६० था। याने दिन में वह अपनी सीमाऐं तोड़ रहा होगा। डॉ. ने कहा कोई खास बात नहीं है, एक गोली रात को लेने को दे दी, कोलेस्ट्रोल की जाँच कराने और कुछ दिन रोज रक्तचाप नियमित रुप से जँचाते रहने की हिदायत कर दी। अगले मित्र ड़ॉ. आर.के. शर्मा की पेथोलोजी लेब में यह काम हुआ। पता लगा कोलेस्ट्रोल सीमा में ही है, लेकिन ऊपरी सतह को छू रहा है।
हमने गोली एक दिन ही खाई, रक्तचाप कुछ दिन चैक कराया। वह कभी ९५-१३५ आता, तो कभी १००-१४०, इस से नीचे आने को तैयार न था। डॉ. आहूजा का कहना था गोली तो लेनी ही होगी। अपने राम को पता था गोली जीवन भर के लिये बंध जाएगी, इस के लिए हम तैयार न थे। खुद की डॉक्टरी से इलाज को पत्नीजी तैयार नही। हम खुद बी. एससी. (बायो), ऊपर से निखिल भारतवर्षीय आयुर्वेद विद्यापीठ के वैद्य विशारद। नॉवल्जीन-एविल के अलावा कोई एलोपैथी गोली कभी ही खाई हो। पच्चीस साल से घर की होमियोपैथी से खुद, पत्नीजी और बेटी-बेटी के चार सदस्यों के परिवार को चला रहे हैं, तो ऐलोपैथी कैसे रास आती? तय हुआ कि किसी दूसरे होमियोपैथ को इन्वॉल्व किया जाए। तो रोज अदालत जाते समय होमियोपैथ चिकित्सक डॉ बनवारी मित्तल के सरकारी क्लिनिक पर अपने राम की चैकिंग होने लगी। डॉ. मित्तल ने एक सप्ताह कोई दवा नहीं की। सप्ताह भर बाद एक मदर टिंचर सुबह-शाम बीस-बीस बून्द लेने को दिया।
इस बीच नैट पर सारी सलाहें देख डालीं। हम समझ गए, अधिक वजन बीमारी का असल कारण है और इसे कम करना है। अपने राम ने भोजन से घी बिलकुल नदारद किया। चीनी चौथाई कर दी (पूरी छोड़ने में ब्राह्मणत्व को खतरा था)। रोज सुबह जॉगिंग चालू की। जॉगिंग के लिए कहॉ जाएं? इसलिए अपने ही घर की छत की बत्तीस फुट लम्बाई में सौ राउण्ड बना कर एक किलोमीटर बनाया। एक माह में बढ़ा कर तीन सौ राउण्ड कर लिए। कुल तीस मिनट का काम। मदर टिंचर का असर कि दूसरे दिन से ही रक्तचाप ८०-१२० पर आ ठहरा। एक माह तक स्थिर रहा। तब तक वजन पाँच किलोग्रामं कम हो चुका था। हम ने डॉ. को सलाह दी कि अब मदर टिंचर बन्द कर देना चाहिए? वह बिलकुल तैयार नहीं था। हम ने उसे समझाया कि हमारे पास एक मेडीकल सेल्स रिप्रेजेण्टेटिव मुवक्किल के सौजन्य से नया रक्तचापमापी आ गया है। रोज दो बार जाँचेंगे, और कोई भी गड़बड़ नजर आई तो तुरंत उन के दरबार में हाजरी देंगे। डॉ. साहब थोड़ा मुश्किल से ही, पर तैयार हो गए। हम डॉ. साहब को तीन माह तक हर सप्ताह रिपोर्ट करते रहे। बाद में वह भी बन्द कर दिया। हमारा रक्तचाप ८०-१२० चल रहा है। वजन तकरीबन सोलह किलो कम कर चुके हैं। एक बात समझ गए हैं कि नब्बे किलोग्राम वजन को रक्त संचार करने वाला दिल, साठ किलो वजन में डेढ़ गुना अधिक समय तक रक्त संचार करने तक एक्सपायर नहीं होगा।
गणतंत्र दिवस की पूर्व-संध्या की पूर्व-दोपहरी से ही नैट अवकाश पर था। गणतन्त्र मना कर शाम पाँच बजे वापस ड्यूटी पर लौटा। अपने राम सुबह चार बजे उठे, नैट की गैरहाजरी दर्ज कर वापस रजाई के हवाले हो लिए। साढ़े सात बजे उठे तो आलस करते रहे। धूप भी अदृश्य बादलों से छन कर आने से बीमार थी, सो छत पर जाने का मन न हुआ और नहाने के लिए साहस जुटाने को कम्प्यूटर पर स्पाईडर सोलिटेयर खेलने लगे। यह सब पत्नीजी की सहनशीलता के परे था। चेतावनी मिली कि- आज क्या इरादा है? हम ने कहा -सर्दी बहुत है, फिर से रजाई के हवाले होने का मन कर रहा है। वे चिढ़ गईं। बोली दस मिनट छत पर टहल ही लो। हमें जाना पड़ा। मन तो ब्लॉगिंग में भटक रहा था। मन्थर गति से जोगिंग चालू की, अपने राउण्ड गिनने लगे। फिर गिनती भूल गए। चमत्कार हुआ, हर तीसरे राउण्ड पर एक नया विषय याद आ रहा था। आधे घंटे में वापस लौटे तो कम से कम दस विषयों से उपर की मंजिल ओवर लोड थी। नीचे ऑफिस में एक सहायक वकील आ चुका था, दूसरा आने वाला था। उन्हें कुछ पढ़ने का काम बता कर बाथरूम पकड़ा। स्नान कर, प्रसाद पा, ऑफिस में घुसे तो छूटते-छूटते तीन बज गए। तब तक विषयों का लोड एक तिहाई रह चुका था। तय किया, कल से जोगिंग में राउण्ड की जगह विषय गिना करेंगे, और नीचे आते ही कागज पर लिख लेंगे। जिस से वे जान न छुड़ा भागें।
तो आज का सबक है, हर ब्लॉगर को बीस मिनट रोज जॉगिंग करनी चाहिए। इस से उस की ऊपरी मंजिल हमेशा ओवर लोड रहेगी। उसे किसी दिन इस वजह से एग्रीगेटर्स पर गैर हाजरी नहीं लगानी पड़ेगी, रक्तचाप सामान्य बना रहेगा। और 'रवि' भाई को कम सफाइयां देनी पड़ेंगी।