@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: दुर्गादान सिंह गौड़
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शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

नैण क्यूँ जळे रे म्हारो हिवड़ो बळे

ब के ताँई बड़ी सँकराँत को राम राम!
खत खड़ताँ देर न्हँ लागे। दन-दन करताँ बरस खड़ग्यो, अर आज फेरूँ सँकराँत आगी। पाछले बरस आप के ताँईं दा भाई! दुर्गादान जी को हाडौती को गीत 'बेटी' पढ़ायो छो। आप सब की य्हा क्हेण छी कै ईं को हिन्दी अनुवाद भी आप के पढ़बा के कारणे अनवरत पे लायो जावे। भाई महेन्द्र 'नेह' ने घणी कोसिस भी करी, पण सतूनों ई न्ह बेठ्यो। आखर म्हें व्हानें क्हे दी कै, ईं गीत को हिन्दी अनुवाद कर सके तो केवल दुर्गादान जी ही करै। न्हँ तो ईं गीत की आत्मा गीत म्हँ ही रे जावे, अनुवाद म्हँ न आ सके। म्हारी कोसिस छे, कै दुर्गादान जी गीत 'बेटी' को हिन्दी अनुवाद कर दे। जश्याँ ई अनुवाद म्हारे ताईँ हासिल होवेगो आप की सेवा में जरूर हाजर करुंगो। 
ज दँन मैं शायर अर ‘विकल्प’ जन सांस्कृतिक मंच का सचिव शकूर अनवर का घर 'शमीम मंजिल' पे ‘सृजन सद्भावना समारोह 2011’ छै। आज का ईं जलसा म्हँ हाडौती का सिरमौर गीतकार रघुराज सिंह जी हाड़ा को सम्मान होवेगो। ईं बखत म्हारी मंशा तो या छी कै व्हाँ को कोई रसीलो गीत आप की नजर करतो। पण म्हारे पास मौजूद व्हाँ की गीताँ की पुस्तक म्हारा पुस्तकालय में न मल पायी। पण आज तो सँकरात छे, आप के ताँईं हाडौती बोली को रसास्वादन कराबा बनाँ क्श्याँ रेह सकूँ छूँ। तो, आज फेरूँ दा भाई दुर्गादान जी को सब सूँ लोकप्रिय गीत ' नैण क्यूँ जळे रे ...' नजर करूँ छूँ ........

'हाडौती गीत' 

नैण क्यूँ जळे
  • दुर्गादान सिंह गौड़
नैण क्यूँ जळे रे म्हारो हिवड़ो बळे
धरती थारा जाया लाल भूखाँ क्यूँ मरे 
गोरा गोरा गालाँ पै ये आँसू क्यूँ ढळे? 


याँ काँपता होठाँ की थैं कहाण्याँ तो सुणो
याँ खेत गोदता हाथाँ की लकीराँ तो गणो
लगलगतो स्यालूडो़ काँईं रूहणी तपतो जेठ 
मेहनत करताँ भुजबल थाक्या तो भी भूखो पेट

कोई पाणत करे रे कोई खेताँ नें हळे
धरती थारा जाया लाल भूखाँ क्यूँ मरे 
गोरा गोरा गालाँ पै ........

रामराज माँही आधी छाया आधी धूप
पसीना म्हँ बह-बह जावे चम्पा बरण्यो रूप
ओ मुकराणा सो डील गोरी को मोळ मोळ जाय
बळता टीबा गोरी पगथळियाँ छाला पड़ पड़ जाय

झीणी चूँदड़ी गळे रे य्हाँ की उमर ढळे 
धरती थारा जाया लाल भूखाँ क्यूँ मरे 
गोरा गोरा गालाँ पै ........


अब के बेटी परणाँ द्यूंगो आबा दे बैसाख
ज्वार-बाजरा दूँणा होसी नपै आपणी साख
पण पड़्या मावठी दूंगड़ा रे फसलाँ सारी गळगी
दन-दन खड़ताँ पूतड़ी की धोळी मींड्याँ पड़गी

तकदीराँ की मारी उबी नीमड़ी तळे
धरती थारा जाया लाल भूखाँ क्यूँ मरे 
गोरा गोरा गालाँ पै ........

मत बिळखे मत तड़पे कान्ह  कुँवर सा पूत
मत रबड़े रीती छात्याँ नें कोनें य्हाँ में दूध
मती झाँक महलाँ आड़ी वे परमेसर का बेटा
वे खावैगा दाख-छुहारा, थैं जीज्यो भूखाँ पेटाँ

रहतो आयो अन्धारो छै दीप के तळे
धरती थारा जाया लाल भूखाँ क्यूँ मरे 
गोरा गोरा गालाँ पै ........
स गीत में दुर्गादान जी ने इस वर्गीय समाज के एक साधारण किसान परिवार की व्यथा को सामने रखा है। वह कड़ाके की शीत  रात्रियों में और जेठ की तपती धूप में अपने शरीर को खेतों में गलाता है। उस का मासूम शिशु फिर भी भूख से तड़पता रहता है और शिशु की माता के गालों पर उस की इस दशा को देख आँसू टपकते रहते हैं। साथ में श्रम करते हुए सुंदर पुत्री का रूप पसीने बहता रहता है और गर्म रेत पर चलने से पैरों के तलवों में छाले पड़ जाते हैं वह सोचता है कि अब की बार फसल अच्छी हो तो वह बेटी का ब्याह कर देगा। लेकिन तभी मावठ में ओले गिरते हैं और फसल नष्ट हो जाती है। घर में खाने को भी लाले पड़ जाते हैं। वैसे में बच्चे जब जमींदार और साहुकारों के घरों की ओर आशा से देखते हैं तो किसान उन को कहता है कि वे तो परमेश्वर के बेटे हैं जिन का भाग्य दीपक जैसा है और हम उस के तले में अंधेरा काट रहे हैं।

अंत में फिर से सभी को मकर संक्रान्ति का नमस्कार!

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

बिलाग जगत कै ताईँ बड़ी सँकराँत को राम राम! आज पढ़ो दाभाई दुर्गादान सींग जी को हाड़ौती को गीत

सब कै ताईँ बड़ी सँकराँत को घणो घणो राम राम !

ब्लागीरी की सुरूआत सूँ ई, एक नियम आपूँ आप बणग्यो। कै म्हूँ ईं दन अनवरत की पोस्ट म्हारी बोली हाड़ौती मैं ही मांडूँ छूँ। या बड़ी सँकरात अश्याँ छे के ईं दन सूँ सूरजनाराण उत्तरायण प्रवेश मानाँ छाँ अर सर्दी कम होबो सुरू हो जावे छे। हाड़ौती म्हाइने सँकरात कश्याँ मनाई जावे छे या जाणबा कारणे आप सब अनवरत की 14.01.2008 अर 14.01.2009 की पोस्टाँ पढ़ो तो घणी आछी। आप थोड़ी भौत हाड़ौती नै भी समझ ज्यागा। बस य्हाँ तारीखाँ पै चटको लगाबा की देर छै, आप आपूँ आप  पोस्ट पै फूग ज्यागा।

ज म्हूँ य्हाँ आप कै ताईं हाड़ौती का वरिष्ट कवि दुर्गादान सिंह जी सूँ मलाबो छाऊँ छूँ। वै हाड़ौती का ई न्हँ, सारा राजस्थान अर देस भर का लाड़ला कवि छै। व्ह जब मंच सूँ कविता को पाठ करै छे तो अश्याँ लागे छे जश्याँ साक्षता सुरसती जुबान पै आ बैठी। व्हाँ को फोटू तो म्हारै ताँई न्ह मल सक्यो। पण व्हाँका हाड़ौती का गीत म्हारे पास छे। व्हाँ में सूँ ई एक गीत य्हाँ आपका पढ़बा कै कारणे म्हेल रियो छूँ। 

म्हाँ व्हाँसूँ उमर में छोटा व्हाँके ताँईं दाभाई दुर्गादान जी ख्हाँ छाँ। व्हाँ का हाडौती गीताँ म्हँ हाडौती की श्रमजीवी लुगायाँ को रूप, श्रम अर विपदा को बरणन छै, उश्यो औठे ख्हाँ भी देखबा में न मलै।  एक गीत य्हाँ आप के सामने प्रस्तुत छै। उश्याँ तो सब की समझ में आ जावेगो। पण न्हँ आवे तो शिकायत जरूर कर ज्यो। जीसूँ उँ को हिन्दी अनुवाद फेर खदी आप के सामने रखबा की कोसिस करूँगो। तो व्हाँको मंच पै सब सूँ ज्यादा पसंद करबा हाळा गीताँ म्हँ सूँ एक गीत आप कै सामने छे। ईं में एक बाप अपणी बेटी सूँ क्हे रियो छे कै ........

....... आप खुद ही काने बाँच ल्यो .....

 बेटी
(हाड़ौती गीत) 

  • दुर्गादान सिंह गौड़
अरी !
जद मांडी तहरीर ब्याव की
मंडग्या थारा कुळ अर खाँप
भाई मंड्यो दलाल्या ऊपर
अर कूँळे मंडग्या माँ अर बाप

थोड़ा लेख लिख्या बिधना नें
थोड़ा मंडग्या आपूँ आप
थँईं बूँतबा लेखे कोयल !
बणग्या नाळा नाळा नाप

जा ऐ सासरे जा बेटी!
लूँण-तेल नें गा बेटी
सब  ने रख जे ताती रोटी
अर तू गाळ्याँ खा बेटी।।


वे क्हवे छे, तू बोले छे,
छानी नँ रह जाणे कै
क्यूँ धधके छे, कझळी कझळी,
बानी न्ह हो जाणे कै



मत उफणे तेजाब सरीखी,
पाणी न्ह हो जाणे कै

क्यूँ बागे मोड़ी-मारकणी,
श्याणी न्हँ हो जाणे कै
उल्टी आज हवा बेटी
छाती बांध तवा बेटी
सब  ने रख जे ताती रोटी
अर तू गाळ्याँ खा बेटी।।

घणी हरख सूँ थारो सगपण
ठाँम ठिकाणे जोड़ दियो,
पण दहेज का लोभ्याँ ने
पल भर में सगपण तोड़ दियो


कुँण सूँ बूझूँ, कोई न्ह बोले 
सब ने कोहरो ओढ़ लियो
ईं दन लेखे म्हँने म्हारो
सरो खून निचोड़ दियो


वे सब सदा सवा बेटी
थारा च्यार कवा बेटी
सब  ने रख जे ताती रोटी
अर तू गाळ्याँ खा बेटी।।

काँच कटोरा अर नैणजल,
मोती छे अर मन बेटी
दोन्यूँ कुलाँ को भार उठायाँ 
शेष नाग को फण बेटी


तुलसी, डाब, दियो अर सात्यो,
पूजा अर, हवन बेटी
कतनों भी खरचूँ तो भी म्हूँ, 
थँ सूँ नँ होऊँ उरण बेटी 


रोज आग में न्हा बेटी
रखजै राम गवा बेटी
सब  ने रख जे ताती रोटी
अर तू गाळ्याँ खा बेटी।।

यूँ मत बैठे, थोड़ी पग ले,
झुकी झुकी गरदन ईं ताण
ज्याँ में मिनखपणों ई कोने
व्हाँ को क्यूँ अर कश्यो सम्मान

आज आदमी छोटो पड़ ग्यो,
पीड़ा हो गी माथे सुआण 
बेट्याँ को कतने भख लेगो,
यो सतियाँ को हिन्दुस्तान

जे दे थँने दुआ बेटी
व्हाँने शीश नवा बेटी
सब  ने रख जे ताती रोटी
अर तू गाळ्याँ खा बेटी।।

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