@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: बंदर की रोटी बनाम होलोप्टीलिया इंटेग्रिफोलिया -एक औषधीय वृक्ष

गुरुवार, 15 मार्च 2012

बंदर की रोटी बनाम होलोप्टीलिया इंटेग्रिफोलिया -एक औषधीय वृक्ष

पिछली पोस्ट में मैं ने एक वृक्ष और उस के कुछ भागों के चित्र पोस्ट किए थे। स्थानीय लोग इसे बन्दर की रोटी का पेड़ कहते हैं। टिप्पणियों से पता लगा कि कुछ क्षेत्रों में इसे बंदर पापड़ी या बंदर बाटी भी कहा जाता है। हरे रंग की जो संरचनाएँ जो चित्रों में  थीं वे वास्तव में इस वृक्ष के फल हैं। यह फल ऐसा है लगता है कि दो पत्तियों के बीच एक बीज को फँसा दिया गया हो। पिछली पोस्ट प्रकाशित करने तक मुझे इस वृक्ष के बारे में बस इतनी ही जानकारी थी। बाद में मैं ने भी इस के बारे में अंतर्जाल पर खोज की और पता लगा कि यह बहुत से औषधीय गुणों से संपन्न वृक्ष है और संपूर्ण भारत में पाया जाता है। 

   

मादा बन्दर (लंगूर) इस के फलों के इन पत्तियों जैसे छिलकों को हटा कर इस के बीच की मींगी को निकाल कर खाती हैं। .कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि मादा बंदर इस का सेवन गर्भ धारण के उपरान्त प्रसव के कुछ दिन बाद तक करती हैं। यह मींगी शरीर के इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाता है। हालांकि यह फल फरवरी मार्च अप्रेल में ही वृक्ष पर उपलब्ध रहता है। मैं ने भी इस के बीज की मींगी को खा कर देखा वह स्वादिष्ट लगती है। 

 विभिन्न प्रान्तों में इस के विभिन्न नाम हैं। गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान में इसे चरेल कहा जाता है। इस के अलावा इसे कान्जो, वाओला, कांजू, बन चिल्ला, चिलबिल, सिलबिल, धाम्ना, बेगाना, थावासी, रसबीज, कालाद्रि, निलावही (कन्नड़), आवल (मलायलम), वावली पापड़ा (मराठी), दौरंजा, टुरुंडा ( उड़िया), राजैन, खुलैन, अर्जन (पंजाबी),चिरबिल्व (संस्कृत) अया, अविल, काँची, वेलैया (तमिल), तथा थापासी, नेमाली, पेडानेविली (तेलगू) नामों से जाना जाता है।   इस का वानस्पतिक नाम होलोप्टीलिया इंटेग्रिफोलिया Holoptelea integrifolia है और अंग्रेजी में इसे इंडियन एल्म  Indian Elm नाम से जाना जाता है। यह वृक्ष अर्टीकेसी परिवार का सदस्य है। इस में जनवरी फरवरी माह में पुष्प खिलते हैं।  


स वृक्ष में औषधीय गुणों की कमी नहीं है।  इस पेड़ की छाल का उपयोग गठिया की चिकित्सा के लिए प्रभावी स्थान पर लेप कर के किया जाता है। इस की छाल का अन्दरूनी उपयोग आंतों के छालों की चिकित्सा के लिए किया जाता है। सूखी छाल गर्भवती महिलाओं के लिए ऑक्सीटॉकिक के रूप में गर्भाशय के संकुचन को प्रभावित करने के लिए किया जाता है जिस से प्रसव आसानी से हो सके। इस की पत्तियों के काढ़े का उपयोग वसा के चयापचय को विनियमित करने के लिए किया जाता है। पत्तियों को लहसुन के साथ पीस कर दाद, एक्जीमा आदि त्वचा रोगों में रोग स्थल पर लेप के लिए प्रयोग किया जाता है। पत्तियों को लहसुन और काली मिर्च के पीस कर गोलियाँ बनाई जाती हैं और एक गोली प्रतिदिन पीलिया के रोगी को चिकित्सा के लिए दी जाती है। लसिका ग्रन्थियों की सूजन में इस की छाल का लेप प्रयोग में लिया जाता है। छाल के लेप का उपयोग सामान्य बुखार में रोगी के माथे पर किया जाता है।  इस की छाल आँखों के लिए एण्टीइन्फ्लेमेटरी एजेंट के रूप में काम आती है। सफेद दाग के रोग में इस का लेप दागों पर किया जाता है।

पिछली पोस्ट के बाद तक मैं इस वृक्ष के बारे में कुछ नहीं जानता था। लेकिन खोज करने पर इतनी जानकारी प्राप्त हुई। यदि हम अपने आसपास की वनस्पतियों के बारे में इस तरह जानकारी करें तो हिन्दी अंतर्जाल पर बहुत जानकारी एकत्र कर सकते हैं।


15 टिप्‍पणियां:

शोभा ने कहा…

आपकी पिछली पोस्ट पढने पर तो समझ नहीं आया पर ये पोस्ट पढ़ कर लग रहा है कि मैने बचपन में खाया है. इस पेड़ के फल उड़ उड़ कर घरो में आ जाते थे. शायद इसीलिए इसको तितली नाम से पुकारा जाता था. इसका बीज खाने में चारोली जैसा लगता था.

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

नेचुरोपैथी सीखने के लिए
हमने भी औपचारिक रूप से D.N.Y.S. किया है। आजकल धनी लोग इस पैथी की तरफ़ रूख़ भी कर रहे हैं। रूपया काफ़ी है इसमें। फ़ाइव स्टारनुमा अस्पताल तक खुल चुके हैं नेचुरोपैथी के और इस तरह एक सादा चीज़ फिर व्यवसायिकता की भेंट चढ़ गई।
यह ऐसा है जैसे कि भारत में जिस संत ने भी एक ईश्वर की उपासना पर बल दिया, उसे ही जानबूझ कर उपासनीय बना दिया गया।
शिरडी के साईं बाबा इस की ताज़ा मिसाल हैं। उनसे पहले कबीर थे। यह उन लोगों ने किया जिन लोगों ने धर्म को व्यवसाय बना रखा है और एकेश्वरवाद से उनके धंधा चौपट होता है तो वे ऐसा करते हैं कि उनका धंधा चौपट करने वाले को भी वह देवता घोषित कर देते हैं।
जिन लोगों ने दवा को सेवा के बजाय बिज़नैस बना लिया है वे कभी नहीं चाह सकते कि उनका धंधा चौपट हो जाए और लोग जान लें कि वे मौसम, खान पान और व्यायाम करके निरोग रह भी सकते हैं और निरोग हो भी सकते हैं।
ईश्वर ने सेहतमंद रहने का वरदान दिया था लेकिन हमने क़ुदरत के नियमों की अवहेलना की और हम बीमारियों में जकड़ते गए। हमें तौबा की ज़रूरत है। ‘तौबा‘ का अर्थ है ‘पलटना‘ अर्थात हमें पलटकर वहीं आना है जहां हमारे पूर्वज थे जो कि क़ुदरत के नियमों का पालन करते थे। उनकी सेहत अच्छी थी और उनकी उम्र भी हमसे ज़्यादा थी। उनमें इंसानियत और शराफ़त हमसे ज़्यादा थी। हमारे पास बस साधन उनसे ज़्यादा हैं और इन साधनों को पाने के चक्कर में हमने अपनी सेहत भी खो दी है और अपनी ज़मीन की आबो हवा में भी ज़हर घोल दिया है। हमारे कर्म हमारे सामने आ रहे हैं।
अब तौबा और प्रायश्चित करके ही हम बच सकते हैं।
यह बात भी हमारे पूर्वज ही हमें सिखा गए हैं।
हमारे पूर्वज हमें योग भी सिखाकर गए थे लेकिन आज योग को भी व्यापार बना दिया गया है। जो व्यापार कर रहा है लोग उसे बाबा समझ रहे हैं।
हमारे पूर्वज हमें ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग‘ मुफ़्त में सिखाकर गए थे लेकिन अब यह कला सिखाने की बाक़ायदा फ़ीस वसूल की जाती है।
कोई भगवा पहनकर धंधा कर रहा है और सफ़ेद कपड़े पहनकर। इनकी आलीशान अट्टालिकाएं ही आपको बता देंगी कि ये ऋषि मुनियों के मार्ग पर हैं या उनसे हटकर चल रहे हैं ?
See : http://bhartiynari.blogspot.in/2012/03/blog-post_14.html

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अब कहीं देखेंगे तो पत्ते और छाल सहेज लेंगे।

रविकर ने कहा…

ओह, यह तो चिल्वल ही है ।
बढ़िया जानकारी ।।

Satish Saxena ने कहा…

बचपन में इसका बीज खाया है मगर गुण आज ही पता चले है...
आभार आपका !

सुज्ञ ने कहा…

यह बंदर की रोटी तो बंदर बाँट सी हो गई :)

ghughutibasuti ने कहा…

अब लगता है की शायद यह वही है जिसे हम जंगली चिरौंजी मानकर बचपन में खाते थे.
घुघूतीबासूती

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

उत्तम जानकारी मिली. चिलबिल तो पता था देखा पहली बार.

मनोज कुमार ने कहा…

नई जानकारी मिली।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

ये नन्हीं-नन्हीं स्वादिष्ट रोटियाँ हवा में उड़ उड़ कर चारों ओर बिखर जाती हैं.बचपन में खूब खाई हैं ,अब भी मिल जाती हैं तो छील कर खाये बिना मन नहीं मानता-चिलबिल की ये चपातियाँ !

विष्णु बैरागी ने कहा…

बचपन में, स्‍कूल के दिनों में जिसे खूब खाई,
उसकी हकीकत अब, आपसे पाई।

शुक्रिया।

Udan Tashtari ने कहा…

बड़े काम की जानकारी लगी...आभार आपका!!

Unknown ने कहा…

आपका बहुत बहुत धन्यवाद, मुझे पेड़ पौधों जानकारी प्राप्त करना बहुत अच्छा लगता है और में दैनिक जीवन में इनका उपयोग भी करता हूँ ।

Unknown ने कहा…

Really good information

Unknown ने कहा…

बंदर बाटियां बचपन में बहुत खाई इससे शरीर में ताकत बहुत आती है अंदरूनी शक्ति बहुत आती है थकान भी मिट जाती है