आंधी थाने के के एक गाँव के रहने वाले राम अवतार जयपुर सेशन कोर्ट में वकील हैं। चार अगस्त को उन के साठ वर्षीय पिता जगदीश प्रसाद शर्मा को गांव के ही कुछ लोगों ने पीटा। उसी शाम जगदीश रिपोर्ट दर्ज कराने थाने पहुंचे तो थाना पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की और कुछ घंटे थाने पर बिठा कर जगदीश को धक्के देकर बाहर निकाल दिया। बाद में उन का बेटा रामअवतार थाने गया और इस्तगासा करने की बात कही तो थाने पर बैठा एएसआई गोपाल सिंह गुस्सा हो गया। उसने दोनों को बाहर निकाल दिया।
अगले दिन पांच अगस्त को शाम करीब छह बजे थाने से जीप रामअवतार के घर आकर रूकी। पुलिस ने बुजुर्ग जगदीश को घर से उठा लिया और थाने ला कर बंद कर दिया। वकील बेटा रामावतार जब उनका हाल-चाल लेने थाने पहुंचा और अकारण वृद्ध को गिरफ्तार करने की बाबत जानकारी मांगी, तो थाने के सात पुलिस वालों ने मिल कर बाप-बेटे दोनों का हुलिया बिगाड़ दिया। थाना स्टाफ ने बेटे के कपड़े उतार कर उससे बुरी तरह मारपीट की।एएसआई गोपाल सिंह ने वकील रामअवतार को थाने के बाहर ले जाकर नंगा कर बुरी तरह पीटा और एक एक कर चार पुलिस वालों ने रामअवतार पर पेशाब किया। इतना करने पर भी जब पुलिस का जी नहीं भरा तो उन्होंने जलती सिगरेट से उसके हाथ पर वी का निशान बना दिया। बाद में उसे थाने से बाहर फेंक दिया।इस घिनौनी हरकत में एएसआई गोपाल सिंह, हेड कांस्टेबल लक्ष्मण सिंह, सिपाही देवी सिंह, राजकुमार, छीतर, रोशन और धर्मसिंह शामिल थे। राम अवतार ने आई जी को शिकायत की। उस के साथ जयपुर जिला बार के सभी वकीलों की ताकत थी। चारों पुलिसियों को तुरंत निलंबित कर दिया गया और वृत्ताधिकारी को मामले की जाँच सौंपी गई है।
राम अवतार वकील था इसलिए जल्दी सुनवाई हो गई। वर्ना यह मामला किसी न किसी तरह दब जाता। इस तरह के हादसे केवल राजस्थान में ही नहीं होते, देश के हर राज्य में हर जिले में कमोबेश होते रहते हैं। ये मामले न केवल देश में पुलिस के चरित्र को प्रदर्शित करते हैं। अपितु हमारे देश की राजसत्ता के चरित्र को प्रदर्शित करते हैं। मैं जानता हूँ, जब किसी साधारण व्यक्ति को पुलिस में रपट लिखानी होती है तो उसे कई कई दिन तक पापड़ बेलने पड़ते हैं। ताकि यदि एक बार उस की रपट थाने में दर्ज हो भी जाए तब भी कम से कम जीवन में वह दुबारा रपट लिखाने का विचार तक अपने दिमाग में न लाए। यही रपट इलाके के जमींदार, साहूकार, किसी मिल मालिक को लिखानी हो तो खुद थाने का अधिकारी उस के लिए तैयार रहता है और रपट लिखाने वाले को गाइड करता है। बड़े अफसर और नेताजी फोन करते हैं कि ये एफआईआर तुरंत लिखनी है, और कि मुलजिमों के साथ क्या सलूक करना है? ऐसा सलूक कि सजा की एक किस्त तो अदालत में मामला पहुँचने के पहले ही पूरी कर ली जाए।
प्रश्न यह है कि पुलिस के इस चरित्र को आजादी के बाद लोकतंत्र स्थापित हो जाने के साठ बरस बाद भी बदला क्यो नहीं जा सका है? इसी माह हम आजादी की तिरेसठवीं सालगिरह मनाने जा रहे हैं। इस प्रश्न पर सोच सकते हैं कि पुलिस का चरित्र क्यों नहीं बदलता है? हो सकता है आप इस प्रश्न का उत्तर तलाश कर पाएँ। लेकिन मुझे जो उत्तर पता है उसे मैं आप लोगों को बताना चाहता हूँ। वास्तव में इस देश की राजसत्ता जो कि देश के पूंजीपतियों और जमींदारों की है, जो न के चाटुकारों की सहायता से कायम है, उसे पुलिस के इस चरित्र को बदलने की बिलकुल जरूरत नहीं है। वे इसी के जरीए तो अपनी हुकूमत चला रहे हैं। लेकिन;
17 टिप्पणियां:
दिनेश जी आप का लेख पढ कर ही रोंगटे खडे हो गये, यह पुलिस क्या जनता के लिये है? जनत की रखवाली के लिये है?जब की यह सब तंत्र जनता से बना है, जनता का नोकर है, अगर जनता चाहे तो इस सिस्टम को बदल सकती है, जनता मै बहुत ताकत है, बस एकता की कमी है, जाग्रुकता की कमी है, ओर जिस दिन जनता मिल कर इन्हे सबक सीखायेगी उसी दिन जनतासुख की सांस लेगी वर्ना... गुलामो की तरह से जीती रहेगी,पुलिस को उस की ओकात सिर्फ़ जनता ही बता सकती है
आजादी के पहले सत्ता-सेठ-मठ के गठजोड़ से जनता का खून चुसा जाता था। आजादी के बाद भी ये गठबंधन कायम है। नेता,सेठ और मठ तीनों के गठजोड़ से ही सत्ता कायम है और जनता का खून चूसने में लगे हैं।
आजादी मिली है लूट पाट और दबंगई, भ्रष्टाचार करने के लिए।
आजादी के सही मायनों की तलाश अभी भी है कि हमने आजादी क्यों हासिल की थी?
क्या यही सब देखने के लिए।
पुलिस का ऐसा होना उन लोगों के लिए मुफीद है जो सत्ता में बने रहने के लिए कृत संकल्प हैं !
सहमत हूं कि जनता को पुलिस से पहले राज सत्ता को बदला होगा !
सोचने पर विवश करती पोस्ट -मुझे कोई सूरत तो नजर नहीं आते ...
सार्थक बिन्दु उठाया है। कई लोग तो पुलिस के पास इसलिये नहीं जाते हैं कि उल्टा उन पर ही केस बना देने में सक्षम है भारतीय पुलिस।
Police wale isee samaj kee upaj hain! Hamare hee maa bahnon ke jaye! Jab samajik sanskar/pariwarik sanskar badlenge tabhi to police wale badlenge!
राष्ट्रभाषा नहीं बदली तो अंग्रेज़ी मानसिकता कैसे बदलेगी!!
दिल दिमाग के तार झनझनाती हुई पोस्ट, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम
कहीं बिल्कुल सच कहा गया है:
किसी का मूल चरित्र देखना हो उसे अधिकार दे दो-ताकत दे दो-पावर दे दो
सो हम देख रहे हैं पुलिस का चरित्र
जिस दिन जनता को मिलेगी ताकत-अधिकार, उस दिन!?
विचारोत्तेजक लेख
जरूरी सवाल उठाता...बेहतर आलेख...
राज्य की मशीनरी का चरित्र...राज्य जैसा ही हुआ करता है...
मंगलवार 10 अगस्त को आपकी रचना .परम्परा और विद्रोह .. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
समाज में असहिष्णुता बढ़ती जा रही है। कल कानपुर में भीड़ ने पुलिस के एक सिपाही को उसकी वर्दी उतारकर देर तक पीटा। जिसको मौका मिलता है हाथ साफ़ कर रहा है।
आप ने सही कहा की पहले हमें राज सत्ता को बदलना होगा तभी पुलिस का चरित्र बदलेगा और राजसत्ता बदलना हमारे हाथ में है और हम उसक सही प्रयोग नहीं कर रहे है | मतलब की इस स्थिति के लिए कही न कही हम भी जिम्मेदार है और इस स्थिति को बदलना भी हमें ही है | अच्छा लेख |
बहुत चिन्ताजनक स्थिती----
दो दिन पूर्व ५वीं कक्षा के बच्चों को दो ग्रुप बनाकर ५-७ मिनट का समय देकर कोई भी घटना दर्शाने को कहा तो--उन्होंने दिखाया कि किस तरह चोर ने चोरी की फ़िर....पुलिस आई ....गोली बारी ....आश्चर्य तो तब हुआ जब ----अन्त यहीं नहीं किया बल्कि उन्होंने दिखाया कि थाने मे चोरों को बन्द करने के बाद किस तरह से उनका साथी, हवलदार से मिलकर अपने साथियों को गोलीबारी करते हुए छुडाकर ले गया.....
बच्चे जैसा पढ/सुन /और देख रहे हैं वैसा ही उनका व्यवहार होते जा रहा है ।
बहुत दर्दनाक अवस्था है ,आजादी से पहले इस देश को हैवानों की गुलामी करनी पर रही थी अब बेशर्म हैवानों की गुलामी करनी पर रही है बस इतना सा बदलाव आया है आजादी के बाद ...
क्या पता कब और कैसे बदलेगा मगर बस!! बदलना चाहिये! बहुत हुआ!
हमारी व्यवस्था में जंग लगा गया है | आप इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं | लगभग हर समझदार आदमी जानता है कि कानून के पास जाने में उसे कोई फायदा नहीं है| हाँ, आप के पास रसूख है, तो बात दूसरी है| अब आप और हम क्या करें ? भ्रष्टाचार अपने चरम पर है|
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