कहीं बरसात हुई है, कहीं उस का इन्तज़ार है।
इधऱ मेरे यार, पुरुषोत्तम 'यक़ीन' ने शेरों की बरसात करते हुए एक ग़ज़ल कही है .....
आप इस का आनंद लीजिए......
'ग़ज़ल'
... कुछ तो ग़ैरत खाइये
- पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’
यूँ हवालों या घुटालों में भी क्या उलझाइये
ख़ून सीधे ही हमारा आइये, पी जाइये
और हथकण्डे तो सारे आप के घिसपिट गये
अब तो सरहद की लड़ाई ज़ल्द ही छिड़वाइये
भूख-बेकारी तो क्या इन्सान ही मिट जाएगा
आप तो परमाणु-विस्फोटों का रंग दिखलाइये
ख़ूँ शहीदाने-वतन का पानी-पानी कर दिया
कुछ तो पानी अपनी आँखों को अता फ़र्माइये
मर न जाऐं भूख से हम आप के प्यारे ग़ुलाम
दे नहीं सकते हो रोटी, चाँद तो दिखलाइये
देश की संसद में बैठीं आप की कठपुतलियाँ
अब सरे-बाज़ार चाहें तो इन्हें नचवाइये
कारख़ाने, खेत, जंगल सब पे क़ाबिज़ हो चुके
अब तो कु़र्क़ी आप इस चमड़ी पे भी ले आइये
हर विदेशी जिन्स पर लिख देंगे, ‘मेड इन इण्डिया’
फिर कहेंगे, ‘ये स्वदेशी माल है अपनाइये’
मंदरो-मस्जिद की बातें करती है जनता फ़िज़ूल
आप अवध में पाँचतारा होटलें बनवाइये
हो चलीं आशाऐं बूढ़ी जीने की उम्मीद में
काट ली आधी सदी, कह दीजिए, ‘मर जाइये’
नाख़ुदा हैं आप, लेकिन नाव ये डू़बी अगर
आप भी ड़ूबेंगे, इतनी-सी तो हिकमत लाइये
आप के हाथों में सारा बन्दोबस्ते-शह्र है
जैसे जब चाहें इसे अब लूटिये, लुटवाइये
देश पर मिटने लगे हैं हम भी सच कहने लगे
हम को भी जुर्मे-बग़ावत की सज़ा फ़र्माइये
बेच कर अपनी ही माँ को जश्न करते हो ‘यक़ीन’
कुछ तो पासे-आबरू हो, कुछ तो ग़ैरत खाइये
ख़ून सीधे ही हमारा आइये, पी जाइये
और हथकण्डे तो सारे आप के घिसपिट गये
अब तो सरहद की लड़ाई ज़ल्द ही छिड़वाइये
भूख-बेकारी तो क्या इन्सान ही मिट जाएगा
आप तो परमाणु-विस्फोटों का रंग दिखलाइये
ख़ूँ शहीदाने-वतन का पानी-पानी कर दिया
कुछ तो पानी अपनी आँखों को अता फ़र्माइये
मर न जाऐं भूख से हम आप के प्यारे ग़ुलाम
दे नहीं सकते हो रोटी, चाँद तो दिखलाइये
देश की संसद में बैठीं आप की कठपुतलियाँ
अब सरे-बाज़ार चाहें तो इन्हें नचवाइये
कारख़ाने, खेत, जंगल सब पे क़ाबिज़ हो चुके
अब तो कु़र्क़ी आप इस चमड़ी पे भी ले आइये
हर विदेशी जिन्स पर लिख देंगे, ‘मेड इन इण्डिया’
फिर कहेंगे, ‘ये स्वदेशी माल है अपनाइये’
मंदरो-मस्जिद की बातें करती है जनता फ़िज़ूल
आप अवध में पाँचतारा होटलें बनवाइये
हो चलीं आशाऐं बूढ़ी जीने की उम्मीद में
काट ली आधी सदी, कह दीजिए, ‘मर जाइये’
नाख़ुदा हैं आप, लेकिन नाव ये डू़बी अगर
आप भी ड़ूबेंगे, इतनी-सी तो हिकमत लाइये
आप के हाथों में सारा बन्दोबस्ते-शह्र है
जैसे जब चाहें इसे अब लूटिये, लुटवाइये
देश पर मिटने लगे हैं हम भी सच कहने लगे
हम को भी जुर्मे-बग़ावत की सज़ा फ़र्माइये
बेच कर अपनी ही माँ को जश्न करते हो ‘यक़ीन’
कुछ तो पासे-आबरू हो, कुछ तो ग़ैरत खाइये
***************************
10 टिप्पणियां:
ये शेरो की बरसात तो खूब जमीं . धन्यवाद कहिये पुरषोतमजी को . आभार.
बड़े चुटीले शेर कहे हैं पुरुषोत्तम जी ने. आपका आभार यहाँ लाने के लिए.
मंदरो-मस्जिद की बातें करती है जनता फ़िज़ूल
आप अवध में पाँचतारा होटलें बनवाइये
बेच कर अपनी ही माँ को जश्न करते हो ‘यक़ीन’
कुछ तो पासे-आबरू हो, कुछ तो ग़ैरत खाइये
पुरुषोत्त्म जी आप का एक एक शॆर सीधा दिल पर चोट करता है, बहुत सुंदर,
आप का धन्यवाद
दिनेश जी...कमाल हैं पुरुषोत्तम जी और उनकी गजलें...एक एक बिल्कुत चुभती हुई....आभार उनका और आपका ..इन्हें यहाँ तक लाने के लिए..
पुरुषोत्तम जी की एक और बेहतरीन रचना !शुक्रिया !
यक़ीन साहेब की इस ग़ज़ल से मेरा दोबारा गुजरना अच्छा लगा...
कुछ शेर तो बेहतरीन है...
नायाब...
अंदर तक भीग गया
वाह वाह वाह
क्या कहने
हर लाइन लाजवाब ,बहुत धन्यवाद प्रस्तुति हेतु .
बहुत लाजवाब.
aaderneey
dinesh ji..........
shero ki itnee shandar barsaat k liye aapko aour purshottm ji ko dhanywad......
एक टिप्पणी भेजें