इन्हीं विद्यालयों में से एक श्रीनाथ शिक्षण संस्थान उसी धर्मशाला में संचालित होता है जिस में कल विवाह के भोजन की व्यवस्था थी। कल आप ने भोजन के भंडार और रसोई के चित्र देखे थे। हमने इसी धर्मशाला के बरांडों में बैठ कर भोजन किया।
भोजनोपरांत लोग सुस्ताने के लिए या तो कमरों में लगे कूलरों की शरण हो गए। वहाँ स्थान न रहने पर नीम के पेड़ों के नीचे गपशप में लीन हो गए।
वहीं हमें इस जुगाड़ स्कूल-बस के दर्शन हुए। ऐसी स्कूल बस जिस का कहीं कोई पंजीकरण नहीं। यह भी जरूरी नहीं कि उसे कोई लायसेंसधारी चालक चला रहा होगा। विद्यालय को समुचित शुल्क देने वाले माता-पिता इस वाहन में अपने बच्चों को विद्यालय भेज रहे हैं। फिलहाल विद्यालय गर्मी की छुट्टियों में बंद हैं और यह विद्यालय वाहन भी यार्ड में खड़ा है। कोई इसे न छेड़े इस के लिए ड्राइवर सीट और सवारियों के बैठने के स्थान पर करीर के कांटों वाले झाड़ रख दिए गए हैं। हाँ, इतना जरूर सोचा जा सकता है कि इस में बैठने वाले बच्चे अवश्य ही तमाम खतरों से अनजान इस अनोखे वाहन का आनंद अवश्य लेते होंगे।
दूल्हे के नाना-मामा अपने पूरे परिवार सहित (माहेरा) ले कर आए थे।
उन्हों ने अपनी बेटी को इस अवसर पर सुहाग के सब चिन्ह, चूनरी, गहने और कपड़े उपहार में दिए। साथ ही बेटी के पूरे परिवार को भी कपड़े भेंट किए।
हमारे मेजबान
दूल्हे के अध्यापक पिता
ये हैं दूल्हे मियाँ, कम्प्यूटर प्रशिक्षक
चलते-चलते रात हो गई, कुछ देर बिजली भी चली गई
19 टिप्पणियां:
हम तो रावतभाटा का परमाणु बिजलीघर कोटा में ही समझ रहे थे आज पता चला ये चितोड़गढ़ जिले में है |
कितना सजीव लग रहा है पारम्पारिक राजस्थानी विवाह का समारोह ! सच ! ये पढ़ना बहुत सुखद रहा -
स्नेह सहित
- लावण्या
भोजन की व्यवस्था अभी वहाँजमीन पर पाँत में है यह देख अच्छा लगा .हम सब के यहाँ तो लोग आधुनिक हो गएँ हैं ,पाँत में भोजन का नजारा गाँव में भी नहीं दीखता .
बहुत शानदार विवरण दिया आपने. पंगत मे जीमने का अपना एक आनंद है पर युग अपना असर दिखा ही जाता है, पत्तले अब कागज की हो चली हैं?:)
गांव याद आगया.
रामराम.
वाह दिनेश जी...क्या मजे में छक रहे हैं सब ..आप नाहक ही परेशान हो रहे थे...की गर्मी है कैसे जाऊं.....जुगाड़ स्कूल वाहन तो कमाल लग रहा है..एकदम हवादार...वापसी उसी में तो नहीं कर ली...अगली बार मुझे भी साथ ले चलिएगा..अरे फोटो खींचने के लिए...ताकि आपकी फोटो भी तो दिखे....
कुल मिला कर बढिया रहा सब कुछ...
हमारा बचपन जवाहर सागर, राणा प्रताप सागर और RAPP में ही बीता है. पिता जी वहाँ पोस्टेड थे जब वो बन रहा था. कक्षा ४ तक वहीं पढे हैं और कोटा तो हमेशा आना होता था.
जुगाड़ के बारे में पढ़ कर कुछ पुरानी यादें ताज़ा हो गई..!कितने ही जुगाड़ दुर्घटना ग्रस्त हुए थे ,जिसके बाद इन पर प्रतिबंध भी लगाया गया..यहाँ अभी चल रहे है वो भी बच्चों के लिए...आश्चर्य हुआ?क्या आप जानते है की एक ज़माने में ये जुगाड़ पंजाब में चुनावी मुद्दा भी बन चूका है..तब इसे पंजीकर्त करने का वादा किया गया था....
तब झाँका नीम के पीछे से चंदा, जैसे झाँकी हो दुलहिन......
यह पंक्ति जोरदार लगी.
अच्छा संस्मरण और तस्वीरों में जिवंत हो उठा.
बहुत अच्छा है लेख।
manbhaavan prastuti
badhaai!
विस्तृत ब्यौरा पसंद आया. पंगत और चादं वाली फोटो बहुत अच्छी लगी.
गांव की शादी याद आ गयी।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
इतने बिजलीघर आपने बताए फिर भी बत्ती गुल ... खैर बारात बढ़िया रही
उस क्षेत्र की स्मृतियां हो आयीं।
दिनेश जी आज तो आप ने हमे विदेश मै बेठे बेठे ही देश का मजा ला दिया,अजी सदिया होगई इस तरह बेठ कर पतल मै खाये, मेने भी पत्तो की पतल पर बहुत खाया है, ओर इस खाने का अपना अलग ही स्वाद है, पहले जी भर कर मिठाई, फ़िर खाना, सब याद दिला दिया, फ़िर नीम या बरगद की छांव मे आराम, अजी कुलर की जरुरत ही नही पडती थी,फ़िर ताश हुक्का, सभी चित्र बहुत सुंदर लगे
आप का धन्यवाद
तब झाँका नीम के पीछे से चंदा, जैसे झाँकी हो दुलहिन
शादी का बड़ा सजीव वर्णन किया है आपने . फोटो भी अच्छे लगे. आपके शादी प्रसंग पर संस्मरण अच्छे लगे . धन्यवाद.
सुन्दर यादें!
आखिरी पंक्ति में सब समेट दिया आपने बड़ी खूबसूरती के साथ..
सुंदर संस्मरण !
हमारे एक दोस्त का विवाह राजस्थान के बार्डर पर एक गांव मे हुआ था आज से आठ साल पहले तब हम रूबरु हुए थे राजस्थानी शादी से। आपने तो सब यादें ताज़ा कर दी। धन्यवाद
तब झाँका नीम के पीछे से चंदा, जैसे झाँकी हो दुलहिन......
ये तस्वीर और ये पंक्ति दिल को छु गयी
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