अदालत से वापस आते समय लालबत्ती पर कार रुकी तो नौ-दस वर्ष की उम्र का एक लड़का आया और विंड स्क्रीन पर कपड़ा घुमा कर उसे साफ करने का अभिनय करने लगा। बिना विंडस्क्रीन को साफ किए ही वह चालक द्वार के शीशे पर आ पहुँचा। उस का इरादा सफाई का बिलकुल न था। मैं ने शीशा उतार कर उसे मना किया तो पेट पर हाथ मार कर रोटी के लिए पैसा मांगा। आम तौर पर मैं भिखारियों को पैसा नहीं देता। पर न जाने क्या सोच उसे एक रुपया दिया। जिसे लेते ही वह सीन से गायब हो गया। तीस सैकंड में ही उस के स्थान पर दूसरे लड़के ने उस का स्थान ले लिया। इतने में लाल बत्ती हरी हो गई और मैं ने कार आगे बढा दी।
25 जून हो चुकी थी, लेकिन बारिश नदारद थी। रायपुर से अनिल पुसदकर जी ने रात को उस के लिए अपने ब्लाग पर गुमशुदा की तलाश का इश्तहार छापा। उसे पढ़ने के कुछ समय पहले ही भिलाई से पाबला जी बता रहे थे बारिश आ गई है। मैं ने पुसदकर जी को बताया कि बारिश को भिलाई में पाबला जी के घर के आसपास देखा गया है। रात को तारीख बदलने के बाद सोये। रात को बिजली जाने से नींद टूटी। पार्क में खड़े यूकेलिप्टस के पेड़ आवाज कर रहे थे, तेज हवा चल रही थी। कुछ देर में बूंदों के गिरने की आवाज आने लगी। पड़ौसी जैन साहब के घर से परनाला गिरने लगा जिस ने बहुत सारे शोर को एक साथ पृष्ठभूमि में दबा दिया। गर्मी के मारे बुरा हाल था। लेकिन बिस्तर छोड़ने की इच्छा न हुई। आधे घंटे में बिजली लौट आई। इस बीच लघुशंका से निवृत्त हुए और घड़ी में समय देखा तीन बज रहे थे।
सुबह उठे, घर के बाहर झाँका तो पार्क खिला हुआ था। सड़क पर यूकेलिप्टस ने बहुत सारे पत्ते गिरा दिए थे और बरसात ने उन्हें जमीन से चिपका दिया था। नुक्कड़ पर बरसात का पानी जमा था। नगर निगम के ठेके दार ने वहाँ सड़क बनाते वक्त सही ही कसर रख दी थी। वरना रात को हुई बारिश का निशान तक नहीं रहता। मैं ने अन्दर आ कर सुबह की काफी सुड़की और नेट पर समाचार पड़ने लगा। बाहर कुछ औरतों और बच्चों की आवाजें आ रही थीं। पत्नी तुरंत बाहर गई और उन से निपटने लगी। कुछ ही देर में वह चार पाँच बार बाहर और अंदर हुई। मुझे माजरा समझ नहीं आ रहा था।
पत्नी इस बार अन्दर किचन में गई तो मैं ने बाहर जा कर देखा। हमारे और पड़ौसी जैन साहब के मकान के सामने की सड़क पर चिपके यूकेलिप्टस के पत्ते और दूसरी गंदगी साफ हो चुकी थी। नुक्कड़ पर पानी पहले की तरह भरा था। दो औरतें गोद में एक-एक बच्चा लिए तीन-तीन बच्चों के साथ जा रही थीं। माजरा कुछ-कुछ समझ में आने लगा था। मैं किचन में गया तो पत्नी बरतन साफ करने में लगी थी। -तुम ने फ्रिज में पड़ा बचत भोजन साफ कर बाहर की सफाई करवा ली दिखती है। मैं ने कहा। -हाँ, किचन में पड़ा आटे की रोटियाँ भी बना कर खिला दी हैं उन्हें।
मुझे शाम वाले बच्चे याद आ गए। फिर सोचने लगा -एक औरत के साथ चार-चार बच्चे?
लेकिन कौन उन औरतों को बताएगा कि आबादी बढ़ाना ठीक नहीं और इस को रोकने का उपाय भी है। मुझे वे लोग भी आए जो भिखारी औरतों को देख कर लार टपकाते रहते हैं और कुछ अधिक पैसा देने के बदले आधे घंटे कहीं छुपी जगह उन के साथ बिता आते हैं। कौन जाने बच्चों के पिता कौन हैं? शायद माँएँ जानती ह या शायद वे भी नहीं जानती हों।
ब्लाग पढने आता हूँ। वहाँ बाल श्रम पर गंभीर चर्चा है, कानूनों का हवाला है। महिलाओं की समानता के लिए ब्लाग बने हैं। कोई कह रहा है महिलाओं का प्रधान कार्य बच्चे पैदा करना और उन की परवरिश करना है। ब्लाग लिखती महिलाओं में से एक उलझ जाती है। दंगल जारी है। देशभक्ति और देशद्रोह की नई परिभाषाएँ बनाई जा रही हैं, तदनुसार तमगे बांटे जा रहे हैं। लालगढ़ पर लोग चिंतित हैं कि कैसे सड़क, तालाब, पुलियाएँ आदिवासियों ने बना कर राज्य के हक में सेंध लगा दी है। वे लोग किसी को अपने क्षेत्र में न आने देने के लिए हिंसा कर रहे हैं। वे जरूर माओवादी हैं। माओवादी पार्टी पर प्रतिबंध लग गया है। तीन दिन में बंगाल की सरकार भी प्रतिबंध लगाने पर राजी हो गई है। बिजली चली जाती है और मैं ब्लाग की दुनिया से अपने घर लौट आता हूँ। कल लाल बत्ती पर मिले बच्चे और वे चार-चार बच्चों वाली औरतें और उन के बच्चे? सोचता हूँ, वे इस देश के नागरिक हैं या नहीं? उन का कोई राशनकार्ड बना है या नहीं? किसी मतदाता सूची में उन का नाम है या नहीं?
18 टिप्पणियां:
bahut hi achcha likha aapne,
jo samajik mudde par aapne praksh dala hai nischit rup se tarifekabil hai..mai pahali baar apka lekh padh raha hoon..par aapke vichar aur shabd dono bahut achche lage..
bahut bahut dhanywaad aapko..
SAMVEDANA KO DEKHANA AUR USE JAHIR KARNA KOI APSE SIKHE..SIR MAN PRAFULLIT HO GAYA. SO TIPIYA DIYA HAI..
सही चिंतन .
अजी दिनेश जी एक जुर्म तो आप ने भी किया, ओर साथ मै मान भी गये :) < इतने में लाल बत्ती हो गई और मैं ने कार आगे बढा दी।> अजी लाल बत्ती होने पर भी ?
बाकी आप का लेख ओर चित्र ओर अन्य कामेंट बहुत पसंद आये,धन्यवाद
gazab karte ho dwivedi ji,
yahan toh ab roz aana padega....
anand aa gaya
badhaai !
भटकते विचारों और परिवेश का अच्छा चित्रण किया है आपने.
हम सिर्फ़ सोचते हैं लिखते हैं करते कुछ नहीं हैं और करें भी तो सहयोग भी नहीं मिलता है
---
मिलिए अखरोट खाने वाले डायनासोर से
@राजभाटिया
भाटिया जी आप को तो वकील होना चाहिए था। तुरंत पकड़ लिया मुझे। वहाँ "लाल बत्ती हरी हो गई" होना चाहिये था। अब ठीक कर दिया है।
व्यथित मन है दिनेश जी !
चिंतन को उद्वेलित और दिशा देता...सधारण सा लगता असाधारण आलेख...
समस्याओं पर प्रकाश डालती पोस्ट
चिंतन करने को बाध्य करती पोस्ट !
बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न उठाये हैं आपने !
आज की आवाज
हमें भी यह सवाल और चित्र हॉण्ट करते हैं।
Samaj ko Aaeena Dikha diya apne.
Behad Zordar post. Badhai.
ये ही हैं रौशन कंगूरों की स्याह बुनियादें…
"और भी गम हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा..." जिनको दो ठौर के कौर का ठिकाना नहीं उनसे परिवार नियोजन के साधनों की अपेक्षा रखना बचपने सा ही है. वंचित वर्ग के जीवन स्तर में सुधार लाकर देश की बहुत सी सामाजिक समस्याओं को समूल नष्ट किया जा सकता है.
ये अच्छा है कि आपने समस्या को आैरत के नजरिये से उठाकर शीर्षक में ही इस आेर संकेत कर दिया । उत्तरदायित्व रहित समाज में चलो कोई तो है आैरत या मर्द, जो बच्चों का दायित्व संभाल रहा है । सामाजिक दायित्व के प्रति भी आप समय समय पर चेताते ही रहते हैं ।
ये आपने अच्छा किया कि आैरत के नाम से समस्या को उठाया । चलो कोई तो है जो उत्तरदायित्व रहित समाज में बच्चों का दायित्व संभाल रहा है । चाहे आैरत ही सही । अच्छा है कि आप सामाजिक दायित्व के प्रति भी सबको चताने की कोशिश करते रहते हैं ।
एक टिप्पणी भेजें