@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: हाट
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मंगलवार, 9 जून 2009

जुगाड़ स्कूल -बस और शादी से वापसी

राजस्थान के  कोटा संभाग के बाराँ जिले का कस्बा अंता है जहाँ के हाट के चित्र आप ने कल देखे।  राष्ट्रीय राजमार्ग 76 पर कोटा से बाराँ-शिवपुरी की ओर चलने पर 45 किलोमीटर पर कालीसिंध नदी पार करने के चार किलोमीटरबाद यह कस्बा पड़ेगा।  राजस्थान का कोटा संभाग विद्युत उत्पादन में प्रमुख है यहाँ विद्युत उत्पादन का हर तरीका अपनाया जा रहा है।  रावतभाटा का परमाणु बिजलीघर चित्तौड़ जिले में है, लेकिन कोटा से 50 किलोमीटर पर स्थित होने से उस का जुड़ाव कोटा से अधिक और चित्तौड़गढ़ से कम है। जवाहर सागर में पनबिजलीघर है तो कोटा में कोयले से चलने वाले ताप बिजलीघर की सात इकाइयाँ स्थित हैं। अभी छबड़ा में एक इकाई और स्थापित की जा रही है।  राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एनटीपीसी) का एक बिजलीघर  इसी अंता कस्बे से मात्र चार किलोमीटर दूर स्थित है।  कस्बे से दूर होने और सीधे कोटा से जुड़ाव के कारण इस बिजलीघर ने अंता कस्बे के विकास को विशेष प्रभावित नहीं किया।  लेकिन शिक्षा के प्रति रुचि का विकास अवश्य हुआ है।  15000 आबादी के इस कस्बे में अनेक निजि विद्यालय हैं। कुछ बहुत संपन्न तो कुछ विकास की अवस्था में हैं।

इन्हीं विद्यालयों में से एक श्रीनाथ शिक्षण संस्थान उसी धर्मशाला में संचालित होता है जिस में कल विवाह के भोजन की व्यवस्था थी।  कल आप ने भोजन के भंडार और रसोई के चित्र देखे थे।  हमने इसी धर्मशाला के बरांडों में बैठ कर भोजन किया।

भोजनोपरांत लोग सुस्ताने के लिए या तो कमरों में लगे कूलरों की शरण हो गए। वहाँ स्थान न रहने पर नीम के पेड़ों के नीचे गपशप में लीन हो गए। 

वहीं हमें इस जुगाड़ स्कूल-बस के दर्शन हुए।  ऐसी स्कूल बस जिस का कहीं कोई पंजीकरण नहीं। यह भी जरूरी नहीं कि उसे कोई लायसेंसधारी चालक चला रहा होगा।  विद्यालय को समुचित शुल्क देने वाले माता-पिता इस वाहन में अपने बच्चों को विद्यालय भेज रहे हैं।  फिलहाल विद्यालय गर्मी की छुट्टियों में बंद हैं और यह विद्यालय वाहन भी यार्ड में खड़ा है।  कोई इसे न छेड़े इस के लिए ड्राइवर सीट और सवारियों के बैठने के स्थान पर करीर के कांटों वाले झाड़ रख दिए गए हैं।  हाँ, इतना जरूर सोचा जा सकता है कि इस में बैठने वाले बच्चे अवश्य ही तमाम खतरों से अनजान इस अनोखे वाहन का आनंद अवश्य लेते होंगे।

 
 दूल्हे के नाना-मामा अपने पूरे परिवार सहित (माहेरा) ले कर आए थे।  
 
 
 
 
उन्हों ने अपनी बेटी को इस अवसर पर सुहाग के सब चिन्ह, चूनरी, गहने और कपड़े उपहार में दिए।  साथ ही बेटी के पूरे परिवार को भी कपड़े भेंट किए।  

हमारे मेजबान
 
दूल्हे के अध्यापक पिता

दूल्हे के चाचा और मेरे साढ़ू भाई

............... और इन से मिलना तो रह ही गया 
ये हैं दूल्हे मियाँ,  कम्प्यूटर प्रशिक्षक


चलते-चलते रात हो गई, कुछ देर बिजली भी चली गई

तब झाँका नीम के पीछे से चंदा, जैसे झाँकी हो दुलहिन......

सोमवार, 8 जून 2009

विवाह का मंडल, दोपहर का भोजन और साप्ताहिक हाट बाजार

घर से निकलते निकलते ग्यारह बज गए। रास्ते में पेट्रोल लिया, टायरों में हवा पूरी ली और चल दिए। कुल पचपन किलोमीटर, पौन घंटे में पहुँच लिए।  ब्याह वाले घर में मंडल का कार्यक्रम चल रहा था।  इसी के लिए तो हमारा आना निहायत जरूरी था। वधू के घर भांवर के एक दिन पहले या उसी दिन सुबह और वर के घऱ बारात रवाना होने के दिन या एक दिन पहले मंडल होता है। घर के चौक में मंडप बनाया जाता है जिस के नीचे बैठ कर वर या वधू जो भी हो उस के माता-पिता,और परिवार के सभी युगल सदस्य पूजा और हवन करते हैं। पूजा की समाप्ति पर परिवार की सभी बहुओं के नैहर के रिश्तेदार उन्हें कपड़े उपहार में देते हैं।   इस परंपरा का कारण तो पता नहीं पर शायद यह रहा हो कि कपड़े उपहार में देने के दायित्व के कारण अधिक से अधिक लोग विवाह में उपस्थित हों और विवाह की सामाजिकता बनी रहे।  एक लाभ और यह होता है कि बहुत सारे संबंधी जो बहुत दिनों से नहीं मिले होते हैं, यहां मिलने का अवसर पा जाते है और कुछ समय साथ बिता लेते हैं।

अब हमारी साली साहिबा, शोभा की छोटी बहिन वर की चाची थी। शोभा का उसे और दूल्हे को यह उपहार समय पर देना था  इस लिए हमारा मंडल के समापन के पहले पहुँचना आवश्यक था।   खैर, मंडल सम्पन्न होते ही सब को भोजन के लिए कहा गया। उस के लिए फर्लांग भर दूर स्थित एक धर्मशाला जाना था।  हम चल दिए। रास्ते में साप्ताहिक हाट लगी थी।  मुझे छोटे कस्बे की साप्ताहिक हाट देखे बहुत दिन हो गए थे।  मैं उसे निहारता चला।

हाट बाजार

धर्मशाला बनाम स्कूल

कच्चे-पक्के माल का भंडार

और भंडारी बने साले साहब

धर्मशाला एक बगीची जैसे स्थान में बनी थी। बहुत खुला स्थान था।  इमारत में तीन बड़े-कमरे थे। पास में शौचालय और स्नानघऱ थे। अनवरत पानी के लिए टंकियाँ रखी गई थीं। इमारत पर धर्मशाला और विद्यालय दोनों के नाम प्रमुखता से लिखे थे।  इमारत दोनों कामों में आती थी।   इमारत के एक और खुले स्थान में तंबू तान कर पाक शाला बना दी गई थी।  वहाँ शाम के लिए सब्जियाँ बनाई जा रही थीं और दोपहर के भोजन के लिए गरम गरम पूरियां तली जा रही थीं।  एक बड़े कमरे को भोजन का भंडार बना दिया गया था।  जिस में भोजन बनाने का कच्चा माल और तैयार भोजन सामग्री का संग्रह था।  मेरे बड़े साले साहब वहाँ जिम्मेदारी से ड्यूटी कर रहे थे।  बीच बीच में साढ़ू भाई आ कर संभाल जाते थे।  सुबह नाश्ता किया था, भूख अधिक नहीं थी। फिर भी सब के साथ मामूली भोजन किया। कच्चे आम की लौंजी बहुत स्वादिष्ट बनी थी।  दो दोने भर वह खाई। गर्मी के मौसम में पेट को भला रखने के लिए उस से अच्छा साधन नहीं था। 

 
 शाम की सब्जी की तैयारी के लिए कद्दू के टुकड़े

गर्म-गर्म पूरियाँ तली जा रही हैं
भोजन के घंटे भर बाद इसी धर्मशाला में वर के ननिहाल से आए लोगों द्वारा भात (माहेरा) पहनाने का कार्यक्रम था।  भोजन कर लोग वहीं  सुस्ताने लगे। हम साले साहब को भंडार से मुक्ति दिलवा कर बाजार ले चले कॉफी पिलवाने के बहाने।  हमें हाट जो देखनी थी। रास्ते में एक मुवक्किल मिल गए, वे हमें चाय की दुकान ले गए और बहुत शौक से न केवल कॉफी पिलाई, ऊपर से पान भी खिलाया।  वापसी में हमने हाट देखी और चित्र भी लिए। लीजिए आप खुद देख लें हाट की कुछ बानगियाँ।


 
प्याज और अचार के लिए कच्चे आम खरीदें, अच्छे हैं, पर जरा महंगे हैं 

 
 आंधी में झड़े कच्चे आम, सस्ते हैं, बस पाँच रुपए प्रति किलोग्राम

  
 और अचार के लिए मसाला यहाँ से खरीद लें
 
कच्चे आम को काटना भी तो होगा, कैरी कट्टा यहाँ लुहारियों से खरीद लें 

   मीठे के लिए गुड़ और तीखे के लिए हरी मिर्च भी तो चाहिए

 
 विकलांग होने का खतरा मत उठाइए, जरा शंकर जी के वाहन नन्दी से बचिए 

 
घर की सुरक्षा के लिए ताला लेना न भूलें

शादी में आई हैं तो नई काँच की चूड़ियाँ तो पहन लें
यह बहुत नहीं हो गया?                                                                          शेष अगली किस्त में.......