@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: कुछ तो ग़ैरत खाइये

मंगलवार, 30 जून 2009

कुछ तो ग़ैरत खाइये

कहीं बरसात हुई है, कहीं उस का इन्तज़ार है। 
इधऱ मेरे यार, पुरुषोत्तम 'यक़ीन' ने शेरों की बरसात करते हुए एक ग़ज़ल कही है .....
आप इस का आनंद लीजिए......

'ग़ज़ल'
... कुछ तो ग़ैरत खाइये
  •  पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’

यूँ हवालों या घुटालों में भी क्या उलझाइये
ख़ून सीधे ही हमारा आइये, पी जाइये

और हथकण्डे तो सारे आप के घिसपिट गये
अब तो सरहद की लड़ाई ज़ल्द ही छिड़वाइये

भूख-बेकारी तो क्या इन्सान ही मिट जाएगा
आप तो परमाणु-विस्फोटों का रंग दिखलाइये

ख़ूँ शहीदाने-वतन का पानी-पानी कर दिया
कुछ तो पानी अपनी आँखों को अता फ़र्माइये

मर न जाऐं भूख से हम आप के प्यारे ग़ुलाम
दे नहीं सकते हो रोटी, चाँद तो दिखलाइये

देश की संसद में बैठीं आप की कठपुतलियाँ
अब सरे-बाज़ार चाहें तो इन्हें नचवाइये

कारख़ाने, खेत, जंगल सब पे क़ाबिज़ हो चुके
अब तो कु़र्क़ी आप इस चमड़ी पे भी ले आइये

हर विदेशी जिन्स पर लिख देंगे, ‘मेड इन इण्डिया’
फिर कहेंगे, ‘ये स्वदेशी माल है अपनाइये’

मंदरो-मस्जिद की बातें करती है जनता फ़िज़ूल
आप अवध में पाँचतारा होटलें बनवाइये

हो चलीं आशाऐं बूढ़ी जीने की उम्मीद में
काट ली आधी सदी, कह दीजिए, ‘मर जाइये’

नाख़ुदा हैं आप, लेकिन नाव ये डू़बी अगर
आप भी ड़ूबेंगे, इतनी-सी तो हिकमत लाइये

आप के हाथों में सारा बन्दोबस्ते-शह्र है
जैसे जब चाहें इसे अब लूटिये, लुटवाइये

देश पर मिटने लगे हैं हम भी सच कहने लगे
हम को भी जुर्मे-बग़ावत की सज़ा फ़र्माइये

बेच कर अपनी ही माँ को जश्न करते हो ‘यक़ीन’
कुछ तो पासे-आबरू हो, कुछ तो ग़ैरत खाइये
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10 टिप्‍पणियां:

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

ये शेरो की बरसात तो खूब जमीं . धन्यवाद कहिये पुरषोतमजी को . आभार.

Udan Tashtari ने कहा…

बड़े चुटीले शेर कहे हैं पुरुषोत्तम जी ने. आपका आभार यहाँ लाने के लिए.

मंदरो-मस्जिद की बातें करती है जनता फ़िज़ूल
आप अवध में पाँचतारा होटलें बनवाइये

राज भाटिय़ा ने कहा…

बेच कर अपनी ही माँ को जश्न करते हो ‘यक़ीन’
कुछ तो पासे-आबरू हो, कुछ तो ग़ैरत खाइये
पुरुषोत्त्म जी आप का एक एक शॆर सीधा दिल पर चोट करता है, बहुत सुंदर,
आप का धन्यवाद

अजय कुमार झा ने कहा…

दिनेश जी...कमाल हैं पुरुषोत्तम जी और उनकी गजलें...एक एक बिल्कुत चुभती हुई....आभार उनका और आपका ..इन्हें यहाँ तक लाने के लिए..

Arvind Mishra ने कहा…

पुरुषोत्तम जी की एक और बेहतरीन रचना !शुक्रिया !

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

यक़ीन साहेब की इस ग़ज़ल से मेरा दोबारा गुजरना अच्छा लगा...
कुछ शेर तो बेहतरीन है...
नायाब...

Ashok Kumar pandey ने कहा…

अंदर तक भीग गया
वाह वाह वाह
क्या कहने

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

हर लाइन लाजवाब ,बहुत धन्यवाद प्रस्तुति हेतु .

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत लाजवाब.

cartoonist anurag ने कहा…

aaderneey
dinesh ji..........

shero ki itnee shandar barsaat k liye aapko aour purshottm ji ko dhanywad......