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गुरुवार, 2 जून 2011

छोटा भाई बड़े भाई से बड़ा हथियार जमीन पर रखवा कर कुश्ती लड़ना चाहता है

बरों में सब से ऊपर आज बाबा रामदेव हैं। वे भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार को घेरे बैठे हैं। जिस तामझाम के साथ उन्हों ने तैयारी की है, उस से सरकार घबराई हुई भी है और किसी तरह उन्हें अपना सत्याग्रह टालने को मनाने पर तुली है। बाबा रामदेव हैं कि मान ही नहीं रहे हैं। उन की आवाज हर बार और तेज होती जाती है। हालांकि वे कह रहे हैं कि सरकार से उन की कोई लड़ाई नहीं है। सरकार किसी की भी हो उस से उन को कोई मतलब नहीं है, वे तो व्यवस्था बदलना चाहते हैं। अब उन्हें यह कौन समझाए कि सरकार व्यवस्था का मुखौटा होती है। सब से पहले उसी को नोंचना पड़ता है, तभी व्यवस्था के दर्शन होते हैं। वैसे हम तो राजनीति में पढ़ते आए कि पहले समाज में दास व्यवस्था थी, फिर सामंती व्यवस्था आयी और फिर पूंजीवादी व्यवस्था का पदार्पण हुआ। भारत में पूंजीवादी व्यवस्था आई तो, पर तब तक श्रमजीवी जनता के अहम् हिस्से किसानों और श्रमिकों के आंदोलन जोर पकड़ चुके थे। भारत का सुकुमार पूंजीवाद भयभीत भी था। उस ने सामंतवाद से हाथ मिला लिया। कहा- देखो यदि आपस में लड़े तो दोनों मारे जाएंगे। इसलिए समझौते के साथ दोनों जीते हैं। अब पिछले 64 बरस से दोनों दोस्ती निभा रहे हैं। हालांकि जहाँ मौका मिलता है वहाँ एक दूसरे की टांग खींचने का मौका नहीं चूकते। जहाँ श्रमजीवी जनता से मुकाबला करना होता है या उन्हें बेवकूफ बनाना होता है तो दोनों ही एक पायदान पर खड़े दिखाई देते हैं।

म ने मजदूरों और किसानों की समाजवादी व्यवस्था के बारे में भी सुना था। पर समाजवाद शब्द का इस्तेमाल इतनी डिजाइन के लोगों ने किया है कि उस का असली मतलब ही गुम हो चुका है। फिर सातवें दशक में जनता के जनतंत्र का नारा बुलंद हुआ। पर उस नारे को लगाने वाले अगले ही दशक में भूल कर तीन राज्यों की सरकारों में उलझ गए। उन के नेता और कॉडर दोनों ही जनता के जनतंत्र के स्थान पर समाजवाद की दुहाई देते रहे। सरकारों से अंदर बाहर होते-होते इस बार आखिरी सरकार भी खो बैठे। वे अभी भी आस लगाए बैठे हैं कि सरकार में वापस लौट आएंगे। पर हमें लगता है कि जनता अब उन्हें शायद ही फिर से उतनी तरजीह दे। सही कहा है कि काठ की हाँडी दुबारा चूल्हे पर नहीं चढ़ती।

बाबा रामदेव सामंतों, देशी पूंजीपतियों और उन के परदेसी खैरख्वाहों की इस व्यवस्था को बदलना चाहते हैं ऐसा लगता नहीं है। वह ट्रस्ट जिस के वे सर्वेसर्वा हैं, खुद पूंजीवाद का एक बढ़िया नमूना है। यदि वे इस व्यवस्था को बदलना चाहते हैं तो सब से पहले उन्हें अपने ट्रस्ट के हितों को त्यागना होगा। जो वे नहीं कर सकते। वैसे व्यवस्था परिवर्तन के इस पहले दौर में सत्याग्रह के लिए उन की मांगे इस प्रकार हैं - 

1- सरकार करप्शन के खिलाफ अगस्त 2011 तक एक प्रभावी जन लोकपाल बिल पास करे।
2- विदेशों में जमा ब्लैक मनी को वापस लाने के लिए कानून बने।
3- विदेशों में भारतीयों द्वारा जमा ब्लैक मनी को तुरंत राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए।
4- बाहर पैसा जमा कराने वालों पर देशद्रोह का केस दर्ज हो। सरकार इसमें पूरी पारदर्शिता बरते। भ्रष्टाचारियों के नाम इंटरनेट पर अपलोड हों, ताकि देश की जनता उसे देख सके।
5- भ्रष्टाचारियों के खिलाफ मृत्युदंड का प्रावधान हो।
6- देश के हर हिस्से से ब्रिटेन पर आधारित सिस्टम को खत्म किया जाए।
7- सरकार यूनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन अगेंस्ट करप्शन( UNCAC) पर तुरंत साइन करे।
8- करप्शन को रोकने के लिए बड़े नोट बंद किए जाएं। सरकार 1000, 500, 100 के नोट वापस मंगाए।


कुल मिला कर इन मांगों में पहले दर्जे की मांगें तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध हैं। वे चाहते हैं कि राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय पूंजीवाद और बचा-खुचा सामंतवाद शुचिता का व्यवहार करे, लेकिन बना रहे। इन दोनों चाहतों में जबर्दस्त टकराहट है। यह वैसे ही है जैसे किसी इंसान का दिल निकाल लिया जाए और फिर यह इच्छा व्यक्त की जाए कि वह जीवित रहेगा। उन की दूसरे दर्जे की मांगें काम की कम और प्रचारात्मक अधिक हैं, जैसे देश के हर हिस्से ब्रिटिश सिस्टम को समाप्त किया जाए, उच्च स्तर तक की शिक्षा और परीक्षा मातृभाषा में होने लगे आदि आदि। इस से ऐसा लगता है कि जिस कदर पिछले सालों में बहुराष्ट्रीय पूंजी ने भारत में आ कर कोहराम मचाया है और राष्ट्रीय पूंजी को अपना ऐजेंट भर बनाने पर तुली है उस से राष्ट्रीय पूंजीपति की साँसे रुक रही हैं। राष्ट्रीय पूंजीपति अब देश की व्यवस्था में अधिक बड़ा हिस्सा चाहता है। बाबा रामदेव के मुहँ से वही बोल रहा है। तो यह लड़ाई व्यवस्था परिवर्तन की नहीं, अपितु व्यवस्था में छोटे भाई द्वारा बड़े भाई से बराबर का हिस्सा चाहने की लड़ाई है। पूंजीवाद के अंदर का अंतर्विरोध हल होना चाहता है। भ्रष्टाचार पर कहर तो इसलिए टूट रहा है कि छोटे भाई पर अपना आधिपत्य जमाने के लिए वह सब से बड़े हथियार के रूप में काम करता है। अब छोटा भाई बड़े भाई से बड़ा हथियार जमीन पर रखवा कर कुश्ती लड़ना चाहता है। अभी तो हथियार जमीन पर रखवाने की लड़ाई आरंभ हुई है।

कुमार शिव की एक नज़्म ... 'बोलता है उदास सन्नाटा'

'नज़्म'

बोलता है उदास सन्नाटा
  •     कुमार शिव


रूबरू है शमा के आईना
बंद कमरे की खिड़कियाँ कर दो
शाम से तेज चल रही है हवा

 ये जो पसरा हुआ है कमरे में
कुछ गलतफहमियों का अजगर है
ख्वाहिशें हैं अधूरी बरसों की
हौसलों पर टिका मुकद्दर है

रात की सुरमई उदासी में
ठीक से देख मैं नहीं पाया
गेसुओं से ढका हुआ चेहरा
आओ इस काँपते अँधेरे में
गर्म कहवा कपों में भर लें हम
मास्क चेहरों के मेज पर रख दें
चुप रहें और बात कर लें हम

महकती हैं बड़ी बड़ी आँखें
हिल रहे हैं कनेर होटो के
बोलता है उदास सन्नाटा






बुधवार, 1 जून 2011

सार्वजनिक भट्टी अभिनंन्दन

भ्रष्टाचार के विरुद्ध चली मुहिम फिर कानून के गलियारों में फँस गई है। अन्ना हजारे ने पिछले दिनों लोकपाल बिल  लाने और उसे कानून बनाने के मुद्दे पर दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनशन किया तो लोगों को लगने लगा था कि अब एक अच्छी शुरुआत हो रही है। यह अभियान परवान चढ़ा तो निश्चित रूप से भ्रष्टाचार के निजाम को समाप्ति की ओर ले जाएगा। लोगों को उस से निजात मिलेगी। इसी से उस के लिए पर्याप्त जनसमर्थन प्राप्त हुआ। नतीजो में सरकार को झुकना पड़ा और लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने को संयुक्त समिति बनी और काम में जुट गई। अभियान ब्रेक पर चला गया। ब्रेक में बिल बन रहा है। बिल बनने के पहले ही खबरें आने लगीं कि सिविल सोसायटी के प्रतिनिधि पाक-साफ नहीं हैं। मतभेद की बातें होने लगीं। लेकिन बिल निर्माण के लिए बैठकें होती रहीं। कई मुद्दे उछाले गए, अब ताजा मुद्दा है कि प्रधानमंत्री को इस कानून की जद से बाहर रखा जाए। यह भी कि न्यायाधीशों को उस की जद से बाहर रखा जाए या नहीं। इस बीच भारत सरकार ने मोस्ट वांटेड अपराधियों की सूची पाकिस्तान को भेजी। पता लगा कि सूची पुरानी है। उसे भेजे जाने के पहले ठीक से जाँचा ही नहीं गया। कुछ ऐसे लोगों के नाम भी उस में चले गए हैं जो भारत में गिरफ्तार हो चुके हैं और उन में से कुछ एक तो जमानत पर छूट भी चुके हैं। अब यह लापरवाही है या इस में भी कोई भ्रष्टाचार है। इस का पता लगाना आसान नहीं है। 

मेरी जानकारी में एक स्थानीय मामला है। इस मामले में मुलजिम की जमानत हुई। उस पर कई मुकदमे थे। कुछ में वह अन्वीक्षा के दौरान लंबे समय तक  जेल में था। गवाहों के बयान होने में इतना समय लग गया कि आखिर उस के वकील ने उसे सलाह दी कि वह पहले ही इतने दिन जेल में रह चुका है कि यदि जुर्म स्वीकार कर ले तो भी अदालत को उसे छोड़ना पड़ेगा, वह पहले ही सजा से अधिक जेल में रह चुका है। उस ने जुर्म स्वीकार किया और जेल से छूट कर आ गया। पुलिस ने नए मुकदमे बनाए और उसे फिर जेल पहुँचा दिया। पता लगा कि उस पर उस दौरान चोरी करने का आरोप है जिस दौरान वह जेल में था। अदालत ने उस की जमानत ले ली, मुकदमा अभी चल रहा है। पुलिस ने उसे फिर नए मुकदमे में गिरफ्तार किया और जेल पहुँचा दिया। पुलिस का पिछला रिकार्ड देख कर अदालत ने इस बार भी जमानत ले ली। उसे छोड़े जाने का हुक्म जेल पहुँचा तो जेलर ने उसे बताया कि इस मुकदमे में तो छूट जाओगे पर पुलिस ने एक और मुकदमा उस पर बना रखा है और जेल में उस का वारंट मौजूद है इसलिए उसे पुलिस के हवाले किया जाएगा। अभियुक्त परेशान हुआ। उस ने जेलर से याचना की कि उसे पुलिस को न सौंपा जाए। वह छूट जाएगा तो जमानत का इंतजाम कर लेगा। पुलिस को दे दिया गया तो जमानत में परेशानी होगी। जेलर ने दया कर के उसे पुलिस के हवाले करने के बजाय रिहा कर दिया और दया की कीमत वसूल ली। वारंट के मामले में जेलर ने जवाब दे दिया कि वारंट जेल पहुँचने के पहले ही अभियुक्त छोड़ा जा चुका था। 
स भ्रष्टाचार की खबर बहुत लोगों को है लेकिन इस पर कोई कार्यवाही होगी इस मामले में किसी को संदेह नहीं है। अब जेलर कह सकता है कि पुलिस के वारंट पर कैसे भरोसा किया जाए? पुलिस तो पाकिस्तान तक को गिरफ्तार और जमानत पर छूटे लोगों को मोस्ट वांटेड की लिस्ट में शामिल कर लेती है। जेल और पुलिस महकमों में इस तरह की बातें होती रहती हैं। इन पर ध्यान देने की कोई परंपरा नहीं है और डालने की किसी की इच्छा भी नहीं है। पुलिस का रोजनामचा हमेशा देरी से चलता है। इस में बड़ा आराम रहता है। नहीं पहचाने गए अभियुक्तों के नाम तक प्रथम सूचना रिपोर्ट में आसानी से घुसेड़े जा सकते हैं। 

मारे पास हर समस्या का स्थाई हल है कि उस समस्या पर कानून बना दिया जाए। पहले  बाल विवाह होते थे। उसे कानून बना कर अपराध घोषित कर दिया गया। बाल विवाह समाप्त हो गए। महिलाओं पर अत्याचार हो रहे थे। आईपीसी में धारा 498-ए जोड़ दी गई, महिलाओं पर अत्याचार समाप्त हो गए। अब पुरुषों पर अत्याचारों की खबरें आने लगीं। भ्रष्टाचार के कारण सरकार की बदनामी होने लगी तो भ्रष्टाचार निरोधक कानून बना। सोचा भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा। पर भ्रष्टाचार अनुमान से अधिक कठिन बीमारी निकली जो कानून से मिटने के बजाए बढ़ती नजर आयी। उस के उलट उस ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए बनाए गए विभाग को ही अपनी जद में ले लिया। यह बहुत आसान था। पहले भ्रष्टाचारी को रंगे हाथों पकड़ो, फिर उसे हलाल करो। आरोप पत्र में उस के बरी होने के लिए सूराख छोड़ो। सस्पेंड आदमी बाहर रह कर काम-धंधा कर कमाता रहे और कुछ बरस बाद बरी हो कर पूरी तनख्वाह ले कर फिर से  नौकरी पर आ जाए। इस से कितनों का ही पेट पलने लगा।

भ्रष्टाचार कानून से मिटता नजर नहीं आता। वह कानून से और मोटा होता जाता है। लोगों को लग रहा है कि इस से भ्रष्टाचार मिटेगा नहीं तो कम से कम कम जरूर हो जाएगा। उधर भ्रष्टाचारी सोच रहे हैं कि कानून हमारा क्या कर लेगा? पहले ही कौन सा कर लिया जो अब करेगा। वैसे भी भ्रष्टाचारी को भले ही कानून कुछ साल रगड़ ले लेकिन समाज में तो वह इज्जत पा ही जाता है। उस के लड़के को शादी में अच्छा दहेज मिलता है। उस की लड़की से शादी करने को कोई भी तैयार हो जाता है। वह हजारों को पार्टी देता है। पुलिस, कलेक्टर और मंत्री उन शादियों में शिरकत करते हैं। ऐसे में किसे परवाह है कानून की? हाँ समाज भ्रष्टाचारियों के साथ उठना बैठना बंद करे। उन के साथ रोटी-बेटी का व्यवहार बंद करे। 100-200 मेहमानों से अधिक की पार्टियाँ और भोज गैर कानूनी घोषित किए जाएँ। उन का आयोजन करना अपराध घोषित किया जाए। जनता भ्रष्टाचारियों का सार्वजनिक जसपाल भट्टी अभिनंदन (?) करना आरंभ करे तो कुछ उम्मीद दिखाई दे सकती है। 

रविवार, 29 मई 2011

पानी जुटाएँ, केवल महिलाएँ और लड़कियाँ?

ल एक यात्रा पर जाना हुआ। 300 किलोमीटर जाना और फिर लौटना। बला की गर्मी थी। रास्ते में हर जगह पानी के लिए मारामारी दिखाई दी। हर घर इतना पानी अपने लिए सहेज लेना चाहता था कि घर में रहने वालों का जीवन सुरक्षित रहे। पानी सहेजने की इस जंग में हर स्थान पर केवल और केवल महिलाएँ ही जूझती दिखाई दीं।  इस जंग में चार साल की लड़कियों से ले कर 60 वर्ष तक की वृद्धाएँ दिखाई पड़ीं। कहीं भी पुरुष पानी भरता, ढोता दिखाई नहीं दिया। क्यों सब के लिए पानी जुटाना महिलाओं के ही जिम्मे है?

ऐसी पनघटें अब बिरले ही दिखाई पड़ती हैं। पानी कुएँ और रस्सी की पहुँच से नीचे चला गया है

अब यही पनघट है





यात्रा में कार की चालक सीट मेरे जिम्मे थी,  चित्र एक भी नहीं ले सका। यहाँ प्रस्तुत सभी चित्र गूगल खोज से जुटाए गए हैं।

शनिवार, 28 मई 2011

दर्द कई चेहरे के पीछे थे

कोई चालीस वर्ष पहले एक कवि सम्मेलन में पढ़े गए  कुमार 'शिव' के एक गीत ने मुझे प्रभावित किया था। मैं उन से मिला तो मुझे पहली मुलाकात से ले कर आज तक उन का स्नेह मिलता रहा। मेरे कोई बड़ा भाई नहीं था। उन्हों ने मेरे जीवन में बड़े भाई का स्थान ले लिया। बाद में जब भी उन की कोई रचना पढ़ने-सुनने को मिली प्रत्येक ने मुझे प्रभावित किया। वे चंद उन लोगों में से हैं, जो हर काम को श्रेष्ठता के साथ करने का उद्देश्य लिए होते हैं, और अपने उद्देश्य में सफल हो कर दिखाते हैं। अनवरत पर 10 जून की पोस्ट में मैं ने उन की 33 वर्ष पुरानी एक ग़ज़ल "मुख जोशीला है ग़रीब का" से आप को रूबरू कराया था। उस ग़ज़ल को पढ़ने के बाद उन की स्वयं की प्रतिक्रिया थी  "33 वर्ष पुरानी रचना जिसे मैं भूल गया था,  सामने लाकर तुम ने पुराने दिन याद दिला दिए"

न्हों ने मुझे एक ताजा ग़ज़ल के कुछ शैर मुझे भेजे हैं, बिना किसी भूमिका के आप के सामने प्रस्तुत हैं-

'ग़ज़ल'

दर्द कई चेहरे के पीछे थे
 कुमार 'शिव'


शज़र हरे  कोहरे के पीछे थे
दर्द कई  चेहरे के पीछे थे

बाहर से दीवार हुई थी नम
अश्क कई  कमरे के पीछे थे

घुड़सवार दिन था आगे  और हम
अनजाने खतरे के पीछे थे

धूप, छाँव, बादल, बारिश, बिजली
सतरंगे गजरे के पीछे थे

नहीं मयस्सर था दीदार हमें
चांद, आप पहरे के पीछे थे

काश्तकार बेबस था, क्या करता
जमींदार खसरे के पीछे थे




शुक्रवार, 27 मई 2011

देव विसर्जन .................... डाक्टर देवता-5


स कहानी के वाचक को दाहिने हाथ में तंत्रिका संबंधी शिकायत हुई थी, उस ने अपने मित्रों से सहज उल्लेख किया तो एक मित्र ने न्यूरोफिजिशियन डाक्टर बारदाना से समय ले लिया। वाचक ने डॉक्टर के पास अकेले जाने के स्थान पर अपने एक दवा प्रतिनिधि मुवक्किल को साथ ले लिया। वहाँ उसे एक और दवा प्रतिनिधि मुवक्किल मिल गया। उन्हों ने वाचक को क्रम तोड़ कर डाक्टर के कक्ष में घुसा दिया जिस पर डाक्टर ने नाराज हो कर उन्हें बाहर निकाल दिया। वाचक डाक्टर को दिखाए बिना ही वापस जाना चाहता था। लेकिन दोनों दवा प्रतिनिधियों ने उसे डाक्टर को दिखाने के लिए मना लिया। डाक्टर ने वाचक को ठीक से देखा और दवाइयाँ लिख दीं। अगले दिन सुबह से उस ने दवाइयाँ लेना आरंभ कर दिया। उस ने दिन में तीन बार दवाइयाँ लीं, लेकिन उसे हर बार दवा लेने के कुछ घंटे बाद नींद सताने लगती और वह सो जाता।  उस से अगले दिन उसे कब्ज हो गई। दिन भर उबासियाँ आती रहीं। एक तरह का नशा सा उस पर छाया रहता। देखने में दृश्यों की शार्पनेस गायब हो गई। सफेद रोशनी में रंग नजर आने लगे। रात को अपने दफ्तर में बुक रैक से टकरा कर पैर घायल हो गया। तीसरे दिन कब्ज ने पूरी तरह कब्जा कर लिया। अदालत में वाचक एक मित्र से उलझ लिया। झगड़ा शांत करने के लिए जज ने सब को कॉफी पिलाई। वाचक को समझ आ रहा था कि कोई दवा ऐसी थी जो उस से यह सब करवा रही थी। उस ने शाम को अंतर्जाल पर इन दवाओँ की जन्मपत्री खोजी तो उसे पता लगा एक दवा अत्यन्त नशीली थी और डाक्टर को उसे लिखने के साथ ही बताना चाहिए था कि उस के क्या असर हो सकते हैं और उसे क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए थीं। अब आगे पढ़िए .....

भाग-5 

रात को गर्म पानी से लिए पंचसकार चूर्ण की एक खुराक का असर यह हुआ कि चौथे दिन सुबह पानी का तीसरा गिलास पीते-पीते ही सीधे टॉयलट भागना पड़ा। दो दिनों की सारी कसर एक बार में ही निकल गई। बाहर निकला तो ऐसा हलका महसूस कर रहा था कि जोर की आँधी चले तो हवा में उड़ जाऊँ। मैं ने एक तीर मार लिया था। जो गोलियाँ दिन में तीन बार ले रहा था, उन में से दोपहर वाली खुराक की कटौती कर दी। अदालत गया तो जेन-100 के असर से एक दो उबासी तो आई, लेकिन अब उस से परेशानी नहीं हो रही थी बल्कि मजा आ रहा था। दृष्टि धुंधलाई, रोशनी में रंग दिखे तो मुझे मजा आने लगा। चाय पर मुरारी को बोला। आज तो बिना ठंडाई छाने उस का आनंद आ रहा है। कैंटीन की भट्टी के धुएँ में भी रंग नजर आ रहे हैं। वह मुस्कुरा उठा। 
-तुम्हें डाक्टर मजेदार मिला है। स्साला! गोलियों से ठंडाई छनवाता है। पर गोली में दूध-बादाम का आनंद कहाँ से आएगा। उस से सेहत बनती है, इस से शरीर जलेगा।
मुरारी मुझे छेड़ रहा था। मैं ने कहा -दिन की गोली बंद कर दी है आज से। सिर्फ दो बार लूंगा और शाम को सादी ठंडाई ले लूंगा तो उस का आनंद भी शामिल हो जाएगा।  

ब मुझे पता था कि दवाइयाँ क्या क्या असर दिखा सकती है? मैं सतर्क था, उन के असर से मुकाबला करते हुए आनंद ले सकता था। इन दवाओँ का असर यह तो हुआ था कि शरीर में किसी तरह का कोई दर्द नहीं था और हाथ में करंट का दौरा भी कम हो गया था। दिन में एक दो बार ही उस का सामना करना पड़ रहा था। मैं हाथ की स्थिति बदल कर उसे भगा सकता था। अदालत के गंभीर काम मैं ने दवाओं के चलते रहने तक के लिए मुल्तवी कर दिये थे।  दो बजे घर पहुँच कर भोजन किया और बिना दफ्तर में घुसे बिस्तर पकड़ कर सो लिया। शाम नींद खुली तो मैं तरोताजा था। इसी तरह रात का भोजन करने के बाद मैं जल्दी ही बिस्तर पर पहुँच गया था। इस तरह दिनचर्या काबू में आ गई थी। यह आनंद शेष चार दिन तक चलता रहा। आठ दिनों में सारी दवाइयाँ मैं ले चुका था। लेकिन तीन के स्थान पर दो खुराक कर देने के कारण भोजन के साथ खाई जाने वाली एक-एक गोली बच गई थीं। मैं ने उन्हें सुबह नाश्ते के साथ नहीं लिया। मैं जानना चाहता था कि दवा समय से न लेने से क्या हो सकता है। नौ बजे अदालत पहुँचा तो सिर भारी होना आरंभ हो गया। 

कुछ देर में सिर दर्द आरंभ हो गया। गर्मी वैसे ही बहुत अधिक थी, पसीना छूटने लगा। सहायक ने बोला कि शीला के मुकदमे में गवाह आया है, जिरह करनी है। अदालत दो बार बुलवा चुकी है। मैं अदालत तक गया लेकिन जज चाय के लिए उठ चुके थे। मैं भी चाय के लिए रवाना हो गया। कैंटीन पहुँचते ही मुरारी ने पूछा -दवाइयाँ खत्म हुई या नहीं?
-एक-एक गोली बची है और अभी ले कर नहीं आया हूँ। दोपहर के लिए रख छोड़ी हैं। पर सिर दर्द हो रहा है। मैं ने बताया। 
-हाँ बाबू! ये हैंगोवर है। तुम नहीं जानते, कभी पी नहीं ना, इसलिए अब जान लो। अब ये सिर्फ फिर पीने से मिटता है। 
-इसीलिए एक-एक गोली छोड़ दी है। मुरारी हँसने लगा। चाय के बाद पान की दुकान तक वह चूहल करता रहा। मैं वापस अदालत पहुँचा। लेकिन स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं गवाह से जिरह कर सकता। मैं ने विपक्षी वकील को बताया तो वह तारीख बदलवाने को तैयार हो गया। वह तो मुकदमे में वैसे ही देरी करना चाहता था और उसे इस का अवसर मिल रहा था। मुझे कुछ अपराध बोध हुआ। लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता था। जैसे-तैसे दोपहर तक काम निपटाया। फिर मिस्टर पॉल मिल गए। मैं ने उन्हें बताया कि उन के बताए डाक्टर की दवाइयाँ खत्म हो गई हैं। घर पहुँच कर भोजन किया बची हुई आखिरी गोलियाँ लीं। दस मिनट बाद मैं नींद निकाल रहा था। शाम ठीक ठाक गुजरी। रात को नींद भी ठीक आई। 

सवें दिन मैं ठीक था। मुझे गोलियों से मुक्ति मिल गई थी। डाक्टर ने दवाइयाँ खत्म होने  के बाद मिलने को कहा था। पर मेरा मन उस डाक्टर के पास फिर से जाने का नहीं था। पूरी दंत पंक्ति में हलका सा दर्द रहने लगा है। दोपहर तक पैर में जहाँ चोट लगी थी दर्द आरंभ हो गया। घर पहुँचा तो यह दर्द तेज हो गया। मुझे लगा कि अब तक चल रही दर्द निवारक दवाओं से वह रुका हुआ था। अब जोर मार रहा है। शाम तक लगने लगा कि कहीं वाकई कोई फ्रेक्चर तो नहीं है। अब शायद किसी हड्डी डाक्टर के यहाँ जाना पड़े। दूसरे दिन सुबह उठा तो पैर ठीक था लेकिन थोड़ा चलने फिरने में ही फिर दर्द करने लगा। ऐसा कि मैं लंगड़ाने लगा। बर्दाश्त नहीं हुआ तो नवानी को फोन किया। वह अभी बाहर ही था। मैं ने उसे सारी बात बताई, तो कहने लगा कोई फ्रेक्चर-व्रेक्चर नहीं है। कोई पेशी फट गयी है, घर जाकर बर्फ से सेको। घर आ कर बर्फ से सिकाई की तो दर्द में कमी आई। लेकिन शाम को फिर दर्द होने लगा। मैं ने फिर बर्फ सिकाई कर डाली। दो दिन की सिकाई के बाद लगने लगा कि अब पैर ठीक है। तभी पत्नी कहने लगी कि उस के पैर दर्द कर रहे हैं। मैं ने कहा आप की केल्सियम की गोलियाँ हैं कि खत्म हो गई हैं। उन्हें तो खत्म हुए महिने से ऊपर हो गया है। 
-तो तुमने बताया नहीं, मैं ले आता। 
-मैं ने कहा था, पर आप को तो अपने दर्द के मारे फुरसत नहीं है। मुझे याद नहीं आ रहा था कि उस ने कब मुझे कैल्सियम की गोलियाँ खत्म होने के बारे में बताया था। मैंने पत्नी से वायदा किया कि कल अवश्य ले आउंगा। अगले दिन मैं कैल्सियम की गोलियाँ शैल कॉल खरीद रहा था तो मुझे ध्यान आया कि मुझे भी मल्टी विटामिन लिये कई महिने हो गए हैं। मैं ने अपने लिए भी न्यूरोबिअन फोर्ट खरीद लीं। नवानी को बताया तो उस ने कहा कि आप ये गोलियाँ कम से कम एक माह ले लो। मैं दो दिन में पहुँच रहा हूँ। फिर डाक्टर नवीन से मिलने चलते हैं। वह मेरा मित्र है। उसी से बात करेंगे। मैं सोच रहा था, उस देवता डाक्टर से यह मित्र डाक्टर ठीक है। इस से मिलने चला जा सकता है। डाक्टर देवता का यहीँ विसर्जन कर दिया जाए तो ठीक है। अब यदि कभी उस से मिलना होगा तो तभी मिलेंगे जब वह विटनेस बॉक्स में खड़ा होगा और मुझे उस से जिरह करनी होगी।

दवाइयों की जन्मपत्री .................... डाक्टर देवता-4


स कहानी के वाचक को दाहिने हाथ में तंत्रिका संबंधी शिकायत हुई थी, उस ने अपने मित्रों से सहज उल्लेख किया तो एक मित्र ने न्यूरोफिजिशियन से समय ले लिया। वाचक ने डॉक्टर के पास अकेले जाने के स्थान पर अपने एक दवा प्रतिनिधि मुवक्किल को साथ ले लिया। वहाँ उसे एक और दवा प्रतिनिधि मुवक्किल मिल गया। उन्हों ने वाचक को क्रम तोड़ कर डाक्टर के कक्ष में घुसा दिया जिस पर डाक्टर ने नाराज हो कर उन्हें बाहर निकाल दिया। वाचक डाक्टर को दिखाए बिना ही वापस जाना चाहता था। लेकिन दोनों दवा प्रतिनिधियों ने उसे डाक्टर को दिखाने के लिए मना लिया। डाक्टर ने वाचक को ठीक से देखा और दवाइयाँ लिख दीं। अगले दिन सुबह से उस ने दवाइयाँ लेना आरंभ कर दिया। उस ने दिन में तीन बार दवाइयाँ लीं, लेकिन उसे हर बार दवा लेने के कुछ घंटे बाद नींद सताने लगती और वह सो जाता।  उस से अगले दिन उसे कब्ज हो गई। दिन भर उबासियाँ आती रहीं। एक तरह का नशा सा उस पर छाया रहता। देखने में दृश्यों की शार्पनेस गायब हो गई। सफेद रोशनी में रंग नजर आने लगे। रात को अपने दफ्तर में बुक रैक से टकरा कर पैर घायल हो गया। अब आगे पढ़िए .....
भाग-4 
वाइयाँ लेते दो दिन हो चुके थे, तीसरे दिन नींद जल्दी ही खुल गई। शायद यह पिछले दिन जल्दी सोने का परिणाम था। उठते ही चार-पाँच गिलास पानी पिया और अपने कार्यालय में आप बैठा। रात को आज की फाइलें पूरी नहीं देख पाया था, उन्हें देखने लगा। पत्नी अपने समय से उठी और रसोई में जा कर चाय बनाने लगी। फिर दिन बाकायदे आरंभ हो गया। यह दिन भी पिछले दिन की तरह ही था। फर्क था तो सिर्फ इतना की आज तमाम कोशिशों के बावजूद भी परिणाम कुछ नहीं रहा था। कब्ज ने पूरी तरह कब्जा कर लिया था। हालांकि उस से किसी तरह का प्रत्यक्ष दुष्परिणाम दिन भर नजर नहीं आया था। अदालत में दो मुकदमे ऐसे थे जिन में नौकरी से छंटनी किए गए दो कर्मचारी हर पेशी पर आते थे। उन की गवाही होनी थी। लेकिन हर बार यह कह कर गवाही को टाल दिया जाता था कि समझौते के प्रयत्न चल रहे हैं। नियोजक कंपनी के वकील से अदालत में पूछा गया कि क्या कोई संभावना बनी, तो उस ने जवाब दिया कि कंपनी के प्रबंधक से बात नहीं हो पा रही है। यह बहुत चिढ़ाने वाली बात थी। एक और तो मुकदमे में प्रगति रुकी हुई थी और दूसरी ओर प्रबंधक समझौते में कोई रुचि नहीं दिखा रहा था। कर्मचारियों ने जज को कहा कि वे कुछ अधिक नहीं मांग रहे हैं। जो राशि उन्हें छंटनी के समय देने का प्रस्ताव नियोजक ने किया था, उस पर बैंक ब्याज ही और मांग रहे हैं। तभी प्रबंधक के वकील ने चिढ़ कर कहा कि उस वक्त क्यों नहीं ले लिया, अब ब्याज भी क्यों दिया जाए? मुझे लगा कि कर्मचारियों को दबाने का प्रयत्न किया जा रहा है। मुझे इस पर ताव आ गया और मैं प्रबंधक के वकील से अदालत में ही उलझ पड़ा, और उलझता चला गया। मामले को गर्म होते देख जज ने शांति बनाने का उपक्रम किया और वहाँ उपस्थित सभी वकीलों को अपने चैंबर में आ कर कॉफी पीने का न्यौता दे दिया।

चैंबर में जज मुझे समझाता रहा कि मुझे इस तरह गुस्सा नहीं करना चाहिए था। बात मुझे समझ आ रही थी। मैं गुस्सा किये बिना भी उस बात का उत्तर दे सकता था। लेकिन यह गुस्सा मुझे अचानक आया था, और उस पर मेरा कोई काबू नहीं था। मैं अपने ही मित्र वकील से उलझ पड़ने पर शर्मिंदा भी था। लेकिन क्या कहता? मैं ने जज को कहा कि हम यदि गुस्सा न करें तो हमें जजों की कॉफी पीने को कहाँ मिले। लेकिन मुझे समझ आ रहा था कि यह भी उन दवाओं का असर हो सकता था जो मैं इन दिनों ले रहा था। मैं ने निश्चय  किया कि शाम को मैं उन दवाओं के बारे में जानकारी अवश्य करूंगा, जिन्हें मैं ले रहा था।

शाम को आ कर मैं ने अंतर्जाल पर दवाओं की जन्मपत्री की खोज खबर ली। पहली दवा थी ऑम्नाकोर्टिल, इसे मुझे प्रतिदिन एक लेना था। पहले और दूसरे दिन 40 मिग्रा, तीसरे और चौथे दिन 30 मिग्रा, फिर दो दिन 20 मिग्रा और अंतिम दो दिन 10 मिग्रा। अंतर्जाल पर तलाशने पर इस के साइड इफेक्ट्स इस तरह मिले -  

Steroids like Omnacortil are life saving drugs but can cause number of side effects on prolonged use like change your skin (rough skin, stretch marks), hair loss (baldness), mood changes (aggressive behavior), headaches, sexual changes (in males : breast enlargement and lack of erection), kidney and liver problems.
 
इस दवा के साइड इफेक्ट्स लंबे समय तक उपयोग से आने थे। इसलिए इस पर मैं ने अधिक ध्यान नहीं दिया। अब इस उम्र में त्वचा वैसे ही रुखी हो चली थी, सिर के बाल पहले ही जा चुके थे, यौन परिवर्तनों से भी अब क्या फर्क पड़ना था? हाँ किडनी और लीवर दोनों जरूर चिंता का विषय थे। मैं ने सोच लिया कि आठ दिन के बाद इस दवा को तो कभी नहीं लेना है।

दूसरी दवा टोल्पा-डी थी। तलाश करने पर यह एक एंटीइन्फ्लेमेटिक दवा निकली। इस के साइड इफेक्ट्स क्या थे? ये भी सर्च से पता नहीं लगे। तीसरी दवा ज़ेन-100 थी इस का जेनेरिक नाम कार्बामेजेपाइन था। जब इस के बारे में पढ़ा, तो पता लगा कि इसे उपयोग करने के विशेष निर्देश भी हैं, जैसे-

Special Instruction :

1. Keep all appointments with your doctor and the laboratory so that your doctor can monitor your response to this drug.
2. Your dose may need to be adjusted frequently, especially when you first take carbamazepine.
3. You probably will have blood and urine tests and eye examinations periodically to check how this medication is affecting you.
4. Carbamazepine can cause dizziness, blurred vision, drowsiness, and incoordination.
5. Do not drive a car, operate any dangerous machinery or do anything that requires alertness until you know how this drug affects you.
6. Do not stop taking this medication until your doctor specifically tells you to do so.
7. Stopping the drug abruptly can cause seizures.
8. Your doctor probably will want to decrease your dose gradually.
9. Take carbamazepine exactly as your doctor has directed.
10. Do not take more or less of it than as instructed.
11. If you continue to have seizures, contact your doctor.
12. Be sure that you have enough medication on hand at all times.
13. If you give this drug to a child, observe and keep a record of the child's moods, behavior, sleep patterns, ability to perform tasks requiring thought, and seizures. 

और इस के साइड इफेक्ट्स इस तरह बताए गए थे-
1. Dizziness; blurred vision; hallucinations; insomnia, agitation, and irritability (in children); drowsiness; tiredness; confusion; headache; incoordination; speech problems; dry mouth; mouth or toungue irritation; If these effects last for more than few days, contact your doctor.
2. Nausea, vomiting, abdominal pain, loss of appetite, diarrhoea or constipation. Take the medication with meals. If these problems persist, contact your doctor.
3. Fever; sore throat; mouth sores; easy bruising; thiny purple-colored skin spots; yellowing of skin or eyes; irregular heartbeat; faintness; swelling of feet and lower legs; bloody nose; unusual bleeding; red, itchy skin rash
. Contact your doctor immediately.

न्हें पढ़ कर मैं एक-दम सन्न रह गया। मुझे अब पता लग रहा था कि मुझे दुनिया इतनी रंगीन क्यों दिखाई दे रही थी? दृश्यों की शार्पनेस क्यों गायब हो गई थी? मैं ने बुक रैक से ठोकर खा कर अपना ही पैर कैसे घायल कर डाला था? मैं अपने मित्र वकील से क्यों उलझ पड़ा था? मुझे इतनी भारी कब्ज क्यों हो गई थी? आदि...आदि। इतनी सारी बातें थीं और मुझे बताई तक न गईं। न डाक्टर ने, न केमिस्ट ने और न ही मेरे साथ गए दवा प्रतिनिधि नवानी ने। मुझे सब से ज्यादा गुस्सा तो इस बात पर आ रहा था कि उन्हों ने मुझे ड्राइविंग के लिए मना क्यों नहीं किया था। मैं एक्सीडेंट ही कर बैठता तो?  मैं ने तुरंत नवानी को फोन किया। उसे इस दवा के बारे में बताया। वह कहने लगा।
-मैं ने उस दिन ही कहा था कि यह दवा ठीक नहीं है। पर आप खुद ही कहते रहे कि जो डाक्टर ने लिखा है वे सब दवाएँ लेनी हैं और उसी मात्रा में लेनी हैं। इसलिए मैं कुछ भी न बोला, और मुझे भी कहाँ इतना सब पता था इस दवा के बारे में। मैं ने तो कभी यह दवा बेची नहीं। 

वानी के इतना कह देने के बाद मैं उस से क्या कहता? मैं ने उसे जल्दी से जल्दी मिलने को कहा। लेकिन वह शहर से बाहर था, वह भी पूरे सात दिनों के लिए। अब जो भी निर्णय लेना था, मुझे ही लेना था। मैं ने दवा का सारा साहित्य एक बार फिर पढ़ा। मुझे लगा कि इस दवा को एक दम बंद करना भी ठीक नहीं है। हो सकता है सीजर्स हों। वै कैसे होंगे? इस का पता मुझे नहीं था नवानी भी बाहर था। मैं ने तय किया कि इस की मात्रा कम कर दी जाए। अब मैं ने निश्चय किया कि मैं यह दवा सिर्फ सुबह नाश्ते और शाम को भोजन के साथ ही लूंगा। रात को सोने के पहले मैं ने एक काम और किया कि आयुर्वेदिक चूर्ण पंचसकार की एक खुराक गर्म पानी के साथ ले ली। जिस से कम से कम कब्ज को तो बेकब्जा कर सकूँ। 

... क्रमशः