@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: दर्द कई चेहरे के पीछे थे

शनिवार, 28 मई 2011

दर्द कई चेहरे के पीछे थे

कोई चालीस वर्ष पहले एक कवि सम्मेलन में पढ़े गए  कुमार 'शिव' के एक गीत ने मुझे प्रभावित किया था। मैं उन से मिला तो मुझे पहली मुलाकात से ले कर आज तक उन का स्नेह मिलता रहा। मेरे कोई बड़ा भाई नहीं था। उन्हों ने मेरे जीवन में बड़े भाई का स्थान ले लिया। बाद में जब भी उन की कोई रचना पढ़ने-सुनने को मिली प्रत्येक ने मुझे प्रभावित किया। वे चंद उन लोगों में से हैं, जो हर काम को श्रेष्ठता के साथ करने का उद्देश्य लिए होते हैं, और अपने उद्देश्य में सफल हो कर दिखाते हैं। अनवरत पर 10 जून की पोस्ट में मैं ने उन की 33 वर्ष पुरानी एक ग़ज़ल "मुख जोशीला है ग़रीब का" से आप को रूबरू कराया था। उस ग़ज़ल को पढ़ने के बाद उन की स्वयं की प्रतिक्रिया थी  "33 वर्ष पुरानी रचना जिसे मैं भूल गया था,  सामने लाकर तुम ने पुराने दिन याद दिला दिए"

न्हों ने मुझे एक ताजा ग़ज़ल के कुछ शैर मुझे भेजे हैं, बिना किसी भूमिका के आप के सामने प्रस्तुत हैं-

'ग़ज़ल'

दर्द कई चेहरे के पीछे थे
 कुमार 'शिव'


शज़र हरे  कोहरे के पीछे थे
दर्द कई  चेहरे के पीछे थे

बाहर से दीवार हुई थी नम
अश्क कई  कमरे के पीछे थे

घुड़सवार दिन था आगे  और हम
अनजाने खतरे के पीछे थे

धूप, छाँव, बादल, बारिश, बिजली
सतरंगे गजरे के पीछे थे

नहीं मयस्सर था दीदार हमें
चांद, आप पहरे के पीछे थे

काश्तकार बेबस था, क्या करता
जमींदार खसरे के पीछे थे




19 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत गज़ल पढवाने के लिए आभार

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

मन को छू जाने वाले भाव।

---------
मौलवी और पंडित घुमाते रहे...
सीधे सच्‍चे लोग सदा दिल में उतर जाते हैं।

nilesh mathur ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन ग़ज़ल!

राज भाटिय़ा ने कहा…

अति सुन्दर अभिव्यक्ति !! धन्यवाद

Udan Tashtari ने कहा…

ख़ाकसार बेबस था, क्या करता
जमींदार खसरे के पीछे थे

-वाह!! सुन्दर...कुमार शिव जी की और रचनायें लाईये.

Sunil Kumar ने कहा…

bahut sundar gajal padhvane ke aapka shukriya ,man gaye aapki yadaddst ....

Satish Saxena ने कहा…

अच्छा लगा इनके बारे में जानकर ! शुभकामनायें भाई जी !

Arvind Mishra ने कहा…

अचानक ये दर्द कैसे उभर आया ?
वाकई क्या खूब उभरा है !

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बाहर से दीवार हुई थी नम
अश्क कई कमरे के पीछे थे...chalo diwaaron ne nam hoker maan rakha ashkon ka

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

चांद वाला बहुत शानदार है...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बेहतरीन गज़ल, 33 वर्षों में भी सतेज बनी रही।

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

kyaa baat hai bhtrin gzal bhtrin jj or vkil ki mubark ho ..akhtar khan akela kota rajsthan

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (30-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

काश्तकार बेबस था, क्या करता
जमींदार खसरे के पीछे थे

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जब भी देखा जमींदार को किसी न किसी के पीछे ही देखा! :D

रजनीश तिवारी ने कहा…

बाहर से दीवार हुई थी नम
अश्क कई कमरे के पीछे थे
बहुत अच्छी गज़ल है ...
धन्यवाद ॰

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 ने कहा…

मन में समा जाने वाले दर्दीले भाव खूबसूरत गजल -निम्न सुन्दर -बधाई हो


बाहर से दीवार हुई थी नम
अश्क कई कमरे के पीछे थे

शुक्ल भ्रमर ५

Kailash Sharma ने कहा…

बाहर से दीवार हुई थी नम
अश्क कई कमरे के पीछे थे....

मन को छू जाते शेर...बेहतरीन गज़ल..

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

नहीं मयस्सर था दीदार हमें
चांद, आप पहरे के पीछे थे

बहुत सुंदर...

शरद कोकास ने कहा…

काश्तकार बेबस था, क्या करता
जमींदार खसरे के पीछे थे
पूरी गज़ल बेहतरीन है और यह शेर तो अद्भुत } कुमार शिव जी की और रचनायें पढ़ना चाहेंगे ।