परिकल्पना पर 9 मार्च2011 को घोषणा की गई थी कि हिन्दी ब्लॉगरों, प्रेमियों, साहित्यकारों : 30 अप्रैल 2011 को दिल्ली के हिन्दी भवन में मिल रहे हैं। इसे पढ़ने पर मन को लगा था कि सौ से अधिक ब्लागर तो दिल्ली में एक स्थान पर अवश्य एकत्र हो जाएंगे। मन ने मुझ से कहा कि तुझे इस दिन दिल्ली में होना चाहिए, सभी ब्लागरों से मिलने का अवसर मिल सकेगा। पर वकील का पेशा ऐसा है कि कुछ भी इतने दिन पहले निश्चित नहीं किया जा सकता। कोटा से दिल्ली जाना कठिन नहीं। एक दिन पूर्व भी यदि आरक्षण कराया जाए तो कोटा जनशताब्दी में स्थान मिल जाता है। सुबह 6 बजे कोटा से चले तो दोपहर साढ़े बारह बजे ह.निजामुद्दीन उतार देती है। बेटी पास ही फरीदाबाद में रहती है तो उस से मिलने के लालच ने भी इस अवसर पर उपस्थित होने के लिए प्रेरक का काम किया। इस बीच अविनाश वाचस्पति और रविन्द्र प्रभात की पुस्तक तथा रविन्द्र प्रभात के उपन्यास की एडवांस बुकिंग के प्रयास आरंभ हो गए। नुक्कड़ पर सभी ब्लागरों को दिल्ली पहुँचने के लिए खुला निमंत्रण प्रकाशित करता रहा। यह निमंत्रण ई-मेल से भी ब्लागरों को भेजा गया। एक सप्ताह पहले डायरी ने बताया कि मैं 29 अप्रेल से 1 मई तक का समय अपने व्यवसाय से निकाल सकता हूँ। मैं ने 28 अप्रेल की मध्यरात्रि को कोटा से ह. निजामुद्दीन पहुँचने वाली ट्रेन में जाने की और 1 मई को दोपहर निजामुद्दीन से कोटा के लिए आने वाली शताब्दी एक्सप्रेस की टिकटें अपने और अपनी पत्नी शोभा के लिए बुक करवा ली।
हम 29 अप्रेल की सुबह फरीदाबाद बेटी के यहाँ पहुँचे, कुछ आराम किया। कुछ लोगों से मिले-जुले। इस बीच टीम हमारीवाणी के सदस्यों से फोन पर संपर्क हुआ। मैं ने तय किया कि मुझे रात्रि को ही दिल्ली पहुँच जाना चाहिए। मैं शाम का भोजन कर रात्रि आठ बजे फरीदाबाद से रवाना हुआ। एक घंटे के ऑटोरिक्षा के सफर के बाद मैं बदरपुर सीमा पर था। शाहनवाज के घर जाने के लिए मेट्रो का प्रीत विहार के लिए टोकन लिया। सेंट्रल सेक्रेट्रिएट से गाड़ी बदल कर राजीव चौक पहुँचा। यहाँ एक ही प्लेटफॉर्म से दो तरह की गाड़ियाँ थीं। एक आनन्द विहार जाने वाली, दूसरी सिटी सेंटर नोएडा के लिए। मुझे आनन्द विहार वाली गाड़ी पकड़नी थी। प्लेटफॉर्म का सूचक बता रहा था कि आनन्द विहार वाली गा़ड़ी पहले आ रही है। गाड़ी आती दिखाई दी। उस पर आनन्द विहार लिखा देख मैं उस में चढ़ गया और चैन की सांस ली कि अब और गाड़ी नहीं बदलनी। शाहनवाज को फोन किया तो वे प्रीतविहार स्टेशन के लिए अपने घर से रवाना हो गए। गाड़ी एक स्टेशन पर गाड़ी रुकी तो चली ही नहीं। गाड़ी का सूचक देरी के लिए खेद व्यक्त करने लगा। मुझे चिन्ता हुई कि शाहनवाज को स्टेशन पहुँच कर मेरी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। कुछ देर बाद गाड़ी चली तो यमुना बेंक आ कर गाड़ी फिर रुक गई और बहुत देर तक रुकी रही। कारण क्या था यह भी पता नहीं चल रहा था। फिर खेद व्यक्त किया जाने लगा। इस बीच शाहनवाज का फोन आ गया। वे स्टेशन पहुँच गए थे। मैं ने उन्हें स्थिति बताई।
कुछ देर बाद यमुना बेंक से गाड़ी चली तो कुछ दूर चल कर रुक गई। यहाँ सूचना दी गई कि आनन्द विहार की ओर यात्रा करने वाले गाड़ी बदलने के लिए उतर जाएँ। मैं हैरान हुआ कि ऐसा कैसे हो सकता है? मैं तो आनन्द विहार वाली गाड़ी में ही बैठा था। जब मैं गाड़ी में सवार हुआ शायद गाड़ी पर गलती से आनन्द विहार डिस्प्ले हो रहा था। खैर मैं जल्दी से उतरा और गाड़ी की प्रतीक्षा करने लगा। कुछ इंतजार के बाद गाड़ी आई तो उस में सवार हुआ। यहाँ गाड़ी में भीड़ थी मैं हैंडल पकड़ कर खड़ा हो गया। गाड़ी कुछ देर चली ही थी कि मेरे दाईं ओर से एक नौजवान चिल्लाया -कौन सा स्टेशन आने वाला है? इतनी जोर से बोलना मुझे असभ्यता लगी। मैं ने चौंक कर उस की ओर देखा। तो वह डिब्बे के पीछे से निकल कर दरवाजे के पास आ रहा था। किसी ने उसे बताया कि लक्ष्मीनगर आने वाला है तो वह बीच में ही रुक गया। लक्ष्मीनगर स्टेशन पर सवारियाँ उतरी-चढ़ीं और गाड़ी आगे बढ़ गई। जोर से बोलने वाला युवक दरवाजे के पास आ कर खड़ा हो गया। जैसे ही स्टेशन आया और गाड़ी रुकने के लिए धीमी हुई वह युवक फिर चिल्लाया -कौन है वह बहन का भाई सामने आए! किसी ने उत्तर न दिया। उस ने वही वाक्य फिर दोहराया। मेरी बायीं और से कोई साठ वर्ष के एक सरदार जी ने ऊँची आवाज में कहा -मैं हूँ बहनों का भाई!
गाड़ी रुकी, दरवाजा खुला तो वह युवक दरवाजे को बंद होने से रोक कर खड़ा हो गया। अब गाड़ी चल नहीं सकती थी। सिस्टम ही कुछ ऐसा था कि दरवाजे बंद हों तो गाड़ी चले। अब युवक चिल्ला रहा था जो भी बहनों के भाई हों सब आ जाएँ। देखते हैं कौन टिकता है। अब तक स्पष्ट हो गया था कि वह युवक शराब के नशे में है। गाड़ी रुक जाने से यात्री परेशान हो रहे थे। कुछ ने उस युवक को नीचे उतरने को कहा तो वह अकड़ गया -गाड़ी तो फैसला होने पर चलेगी। कुछ अन्य युवक जो उस के परिचित लगे उसे गाड़ी से उतारने का प्रयास करने लगे लेकिन वह युवक दरवाजे को रोके खड़ा रहा। इतने में गाड़ी में यात्री एक युवक गुस्सा गया, उस ने उस युवक को जबरन नीचे उतारा तो उस ने उस युवक को पकड़ कर प्लेटफार्म पर ही रोकना चाहा। फिर क्या था। गाड़ी से तीन चार पैसेंजर नीचे उतरे और शराबी युवक की धुलाई कर दी। फिर उसे घसीट कर गाड़ी में ले आए। वे चाहते थे कि गाड़ी चल पड़े तो उस युवक को धुलाई करते हुए आगे ले जाया जाए और फिर उसे पुलिस के हवाले कर दिया जाए। लेकिन शराबी युवक के साथ वालों ने उसे खींच कर फिर से प्लेटफार्म पर उतार लिया। गाड़ी के दरवाजे बंद होने लगे तो एक यात्री युवक ने अन्य को इशारा किया तो यात्री सभी ट्रेन पर आ चढ़े। दरवाजा बंद हुआ और गाड़ी चल पड़ी।
अब सरदार जी युवकों से नाराज हो रहे थे -जवान पट्ठे एक शराबी को गाड़ी में नहीं खींच पाए। उसे तो आगे ले जा कर ऐसा सबक सिखाना था कि इलाके के सब गुंडों को सबक मिल जाए। कुछ यात्री सरदार जी का गुस्सा शांत करने में जुट गए। कुछ उन युवकों को शाबासी देने लगे जिन ने उस शराबी युवक की धुलाई की थी। कहते हैं, दिल्ली मेट्रो में सुरक्षा जबर्दस्त है, लेकिन इतनी देर में कोई भी सुरक्षाकर्मी वहाँ दिखाई न दिया। रहा भी होगा तो उस ने इस घटना में कोई हस्तक्षेप न किया। हाँ इस घटना को देख कर अच्छा लगा कि दिल्ली मेट्रो के यात्रियों में सहभागिता और स्वसुरक्षा की भावना विकसित होने लगी है। सही भी है सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा जागरूक जनता ही कर सकती है, गुंडों से भी और भ्रष्टों से भी। कुछ देर में गाड़ी प्रीत विहार स्टेशन पर थी। मैं वहीं उतर गया। स्टेशन के बाहर शाहनवाज मिल गए। यकायक मैं पहचान न सका। अब तक उन का क्लीन शेव चित्र देखा था। यहाँ वे खूबसूरत दाढ़ी में थे। वे मुझे अपनी बाइक पर बिठा कर अपने घर ले चले।
14 टिप्पणियां:
मेट्रो जैसे जैसे अपना दायरा बढाती जा रही है, गुण्डागर्दी भी बढती जा रही है। दरवाजे को बन्द होने से रोकना तो आम हो गया है।
समारोह के बारे में कुछ बताइये. विवादों से परे..
@भारतीय नागरिक - Indian Citizen
समारोह तक पहुँचने तो दीजिए। उस से पहले तो बहुत कुछ है।
आश्चर्य पूर्ण घटना रही यह की कोई पुलिसकर्मी नहीं था ! शुभकामनायें आपको !!
सुना तो हमने भी है कि पुलिस चौकस रहती है मैट्रो में...
खैर विवरण अच्छा चल रहा है...आगे इन्तजार है.
एक शराब सौ परेशानियाँ खड़ी करती है और एक शराबी हज़ारों का समय खराब कर देता है ।
हा हा हा हा ये तो बेवडा आशिक निकला , शराब पे मर मिटने वाला और भाई लोगों ने तबियत हरी कर दी पट्ठे की । हां सर आपने ठीक observe किया अब यात्रा इस तरह की बातों घटनाओं ने खुद ही निपटने लगे हैं हालांकि ये कई बार खतरनाक हो जाता है लेकिन ज्यादा खतरनाक होने से और किसी सुरक्षाकर्मी की प्रतीक्षा में हाथ पे हाथ धर के बैठे रहने से तो बेहतर ही है । चलिए अब मेट्रो से बाईक पर आ गए , फ़िर ...............हा हा हा आप अनवरत चलते रहिए , हम पीछे पीछे लदे हुए हैं ।
हमारी सेवा में तत्पर दिल्ली पुलिस कहा थी मुझे जबाब चाहिए !!!!
यह तो ट्रेलर है -असली किस्साये वारदात क्या है ?
हर तन्त्र में वहाँ का स्थानीय समाज अपनी उपस्थिति लगाने आ जाता है।
आप वहां युवक की धुनाई देख रहे थे और बाहर मैं आपका रास्ता देख रहा था... :-)
बहुत अच्छा लगा आपसे मिलकर... काफी सार्थक चर्चाएँ हुई... याद रहेगी यह मुलाकात
हाँ अब लोग जागने लगे हैं। हम भी आते हुये रेल कर्मिओं को अच्छा सबक दिया। आपका सुझाव सही था मेरी पोस्ट पर। रेल मन्त्री को चिट्ठी लिखते हैं। धन्यवाद।
दिल्ली में जन्मे, पले बड़े लेकिन फिर भी जाने क्यों असुरक्षा का भाव मन से जाता ही नहीं...मैट्रो के दरवाज़ों से टेक लगा कर खड़े कई लोगों को देखा जो ठीक ऊपर लिखे निर्देश को जानबूझ कर ही नज़रअन्दाज़ कर देते हैं ..
श्री नीरज जाट जी,सतीश सक्सेना,DR.ANWER JAMAL,अजय कुमार झा,प्रवीण पाण्डेय,ShahNawaz,मीनाक्षी और निर्मला कपिला द्वारा व्यक्त विचारों से सहमत हूँ.
@Sunil Kumar.....हमारी सेवा में तत्पर दिल्ली पुलिस कहा थी मुझे जबाब चाहिए!!!को सिरफिरा का जवाब: अवैध वसूली का हिसाब-किताब कर रही होगी या किसी गरीब की ऍफ़.आई.आर दर्ज न करने की बहाने तलाश कर रही होगी या साजिश(धारा 120 B आज इनके ऊपर कभी लागू नहीं हुई ऍफ़.आई.आर के सन्दर्भ में)कर रही होगी कि-उसके "सूचना के अधिकार" के आवेदन पत्र को कहाँ छुपा दिया जाये या उसको बेमतलब के नियमों(कानूनों) का हवाला देकर कैसे परेशान किया जा सकता हैं?
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गुरुवर जी, आपका यात्रा वृतांत बहुत अच्छा लगा. आपसे 30 अप्रैल को मिलकर बहुत अच्छा लगा. मगर पूर्व सूचना न मिलने के कारण मुझे आपकी सेवा करने अवसर नहीं मिला. इसका मुझे बेहद अफ़सोस है.
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