उस कवि सम्मेलन में आए अधिकतर कवि लोकभाषा हाडौ़ती के थे। एक गौरवर्ण वर्ण लंबा और भरी हुई देह वाला कवि उन में अलग ही नजर आता था। संचालक ने उसे खड़ा करने के पहले परिचय दिया तो पता लगा वह एक वकील भी है। फिर जब उस ने तरन्नुम के साथ कुछ हिन्दी गीत सुनाए तो मैं उन का मुरीद हो गया। कोई छह सात वर्ष बाद जब मैं खुद वकील हुआ तो पता लगा वे वाकई कामयाब वकील हैं। कई वर्षों तक साथ वकालत की। फिर वे राजस्थान उच्च न्यायालय में न्यायाधीश हो गए। वहाँ से सेवा निवृत्त होने के बाद सुप्रीमकोर्ट में वकालत शुरू की तो सरकार ने उन्हें विधि आयोग का सदस्य बना दिया। वे राजस्थान उच्च न्यायालय के निवर्तमान न्यायाधीश न्याय़ाधिपति शिव कुमार शर्मा हैं। उच्च न्यायालय के अपने कार्यकाल में उन्हों ने दस हजार से ऊपर निर्णय हिन्दी में लिखाए हैं। साहित्य जगत में लोग इन्हें कुमार शिव के नाम से जानते हैं। आज अभिभाषक परिषद कोटा में एक संगोष्ठी उन के सानिध्य में हुई। जिस में भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के दुरुपयोग और उसे रोके जाने और प्रभावी बनाए जाने के लिए सुझाव आमंत्रित किए गए थे।
मुझे उन की 1978 में प्रकाशित एक संग्रह से कुछ ग़ज़लें मिली हैं, उन्हीं में से एक यहाँ प्रस्तुत है-
कुमार शिव की एक 'ग़ज़ल'
सूरज पीला है ग़रीब का
आटा गीला है ग़रीब का
बन्दीघर में फँसी चान्दनी
तम का टीला है ग़रीब का
गोदामों में सड़ते गेहूँ
रिक्त पतीला है ग़रीब का
सुर्ख-सुर्ख चर्चे धनिकों के
दुखड़ा नीला है ग़रीब का
स्वर्णिम चेहरे झुके हुए हैं
मुख जोशीला है ग़रीब का
13 टिप्पणियां:
दिनेश जी, बहुत दिनों के बाद आप के चिट्ठे पर आया था, आप की दिल्ली यात्रा का वृतांत रोचक भी लगा और ज्ञानवर्धक भी और दिल्ली चिट्ठाजगत में क्या हो रहा है इसकी सूचना भी मिली. :)
एक तरह से यह एक प्रकार का एडॉप्टेशन है....अपने में जोश बनाये रखना
वर्तमान काट ले जाने के जोश में उसके आने वाले कल की आशा है, स्वर्णिम आशा
आभार इस परिचय का.
एक से एक बढ़कर प्रतिभाएं हैं समाज के हर तबके में -कविता क्या यथार्थ है !
स्वर्णिम चेहरे झुके हुए हैं
मुख जोशीला है ग़रीब का
जोरदार!
इस गरीब को तलाशना है जिसका मुंह जोशीला है। अन्यथा बड़े बड़े पैसा खाये मुंह पिटा रहे हैं!
खोजी पत्रकार तो सुना था अब देखा खोजी चिट्ठाकार आपका आभार और शर्मा जी को बधाई
शिवकुमार साहब के बारे में जानकार अच्छा लगा, उनकी रचना में सरलता है और आम आदमी को छूती हैं ! उनको हार्दिक शुभकामनायें !!
शिवकुमार जी ना केवल एक काबिल न्यायधीश रहें है अपितु वे एक श्रेष्ठ इंसान भी हैं। उनसे मिलना और उनका सान्निध्य हमेशा ही प्रेरणादायी रहा है। आपने उनके बारे में बहुत संक्षिप्त में लिखा है, लेकिन फिर भी मेरी शुभकामनाएं।
पढ़ा, जैसे हृदय मिल गया।
शायद अपने पेशे की वजह से वो अधिक सामने नही आये एक साहित्यकार के रूप मे। बहुत अच्छा लगा उनका परिचय जान कर और गज़ल लाजवाब है
हर शेर उमदा
गोदामों में सड़ते गेहूँ
रिक्त पतीला है ग़रीब का
सुर्ख-सुर्ख चर्चे धनिकों के
दुखड़ा नीला है ग़रीब का वाह ये बहुत कमाल के शेर हैं। आभार।
Ghazal sachmuch laajawaab hai.
............
तीन भूत और चार चुड़ैलें।!
14 सप्ताह का हो गया ब्लॉग समीक्षा कॉलम।
गोदामों में सड़ते गेहूँ
रिक्त पतीला है ग़रीब का
बहुत अच्छी लगी शिव कुमार जी की यह रचना, धन्यवाद
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