भाग-5
रात को गर्म पानी से लिए पंचसकार चूर्ण की एक खुराक का असर यह हुआ कि चौथे दिन सुबह पानी का तीसरा गिलास पीते-पीते ही सीधे टॉयलट भागना पड़ा। दो दिनों की सारी कसर एक बार में ही निकल गई। बाहर निकला तो ऐसा हलका महसूस कर रहा था कि जोर की आँधी चले तो हवा में उड़ जाऊँ। मैं ने एक तीर मार लिया था। जो गोलियाँ दिन में तीन बार ले रहा था, उन में से दोपहर वाली खुराक की कटौती कर दी। अदालत गया तो जेन-100 के असर से एक दो उबासी तो आई, लेकिन अब उस से परेशानी नहीं हो रही थी बल्कि मजा आ रहा था। दृष्टि धुंधलाई, रोशनी में रंग दिखे तो मुझे मजा आने लगा। चाय पर मुरारी को बोला। आज तो बिना ठंडाई छाने उस का आनंद आ रहा है। कैंटीन की भट्टी के धुएँ में भी रंग नजर आ रहे हैं। वह मुस्कुरा उठा।
-तुम्हें डाक्टर मजेदार मिला है। स्साला! गोलियों से ठंडाई छनवाता है। पर गोली में दूध-बादाम का आनंद कहाँ से आएगा। उस से सेहत बनती है, इस से शरीर जलेगा।
मुरारी मुझे छेड़ रहा था। मैं ने कहा -दिन की गोली बंद कर दी है आज से। सिर्फ दो बार लूंगा और शाम को सादी ठंडाई ले लूंगा तो उस का आनंद भी शामिल हो जाएगा।
अब मुझे पता था कि दवाइयाँ क्या क्या असर दिखा सकती है? मैं सतर्क था, उन के असर से मुकाबला करते हुए आनंद ले सकता था। इन दवाओँ का असर यह तो हुआ था कि शरीर में किसी तरह का कोई दर्द नहीं था और हाथ में करंट का दौरा भी कम हो गया था। दिन में एक दो बार ही उस का सामना करना पड़ रहा था। मैं हाथ की स्थिति बदल कर उसे भगा सकता था। अदालत के गंभीर काम मैं ने दवाओं के चलते रहने तक के लिए मुल्तवी कर दिये थे। दो बजे घर पहुँच कर भोजन किया और बिना दफ्तर में घुसे बिस्तर पकड़ कर सो लिया। शाम नींद खुली तो मैं तरोताजा था। इसी तरह रात का भोजन करने के बाद मैं जल्दी ही बिस्तर पर पहुँच गया था। इस तरह दिनचर्या काबू में आ गई थी। यह आनंद शेष चार दिन तक चलता रहा। आठ दिनों में सारी दवाइयाँ मैं ले चुका था। लेकिन तीन के स्थान पर दो खुराक कर देने के कारण भोजन के साथ खाई जाने वाली एक-एक गोली बच गई थीं। मैं ने उन्हें सुबह नाश्ते के साथ नहीं लिया। मैं जानना चाहता था कि दवा समय से न लेने से क्या हो सकता है। नौ बजे अदालत पहुँचा तो सिर भारी होना आरंभ हो गया।
अब मुझे पता था कि दवाइयाँ क्या क्या असर दिखा सकती है? मैं सतर्क था, उन के असर से मुकाबला करते हुए आनंद ले सकता था। इन दवाओँ का असर यह तो हुआ था कि शरीर में किसी तरह का कोई दर्द नहीं था और हाथ में करंट का दौरा भी कम हो गया था। दिन में एक दो बार ही उस का सामना करना पड़ रहा था। मैं हाथ की स्थिति बदल कर उसे भगा सकता था। अदालत के गंभीर काम मैं ने दवाओं के चलते रहने तक के लिए मुल्तवी कर दिये थे। दो बजे घर पहुँच कर भोजन किया और बिना दफ्तर में घुसे बिस्तर पकड़ कर सो लिया। शाम नींद खुली तो मैं तरोताजा था। इसी तरह रात का भोजन करने के बाद मैं जल्दी ही बिस्तर पर पहुँच गया था। इस तरह दिनचर्या काबू में आ गई थी। यह आनंद शेष चार दिन तक चलता रहा। आठ दिनों में सारी दवाइयाँ मैं ले चुका था। लेकिन तीन के स्थान पर दो खुराक कर देने के कारण भोजन के साथ खाई जाने वाली एक-एक गोली बच गई थीं। मैं ने उन्हें सुबह नाश्ते के साथ नहीं लिया। मैं जानना चाहता था कि दवा समय से न लेने से क्या हो सकता है। नौ बजे अदालत पहुँचा तो सिर भारी होना आरंभ हो गया।
कुछ देर में सिर दर्द आरंभ हो गया। गर्मी वैसे ही बहुत अधिक थी, पसीना छूटने लगा। सहायक ने बोला कि शीला के मुकदमे में गवाह आया है, जिरह करनी है। अदालत दो बार बुलवा चुकी है। मैं अदालत तक गया लेकिन जज चाय के लिए उठ चुके थे। मैं भी चाय के लिए रवाना हो गया। कैंटीन पहुँचते ही मुरारी ने पूछा -दवाइयाँ खत्म हुई या नहीं?
-एक-एक गोली बची है और अभी ले कर नहीं आया हूँ। दोपहर के लिए रख छोड़ी हैं। पर सिर दर्द हो रहा है। मैं ने बताया।
-हाँ बाबू! ये हैंगोवर है। तुम नहीं जानते, कभी पी नहीं ना, इसलिए अब जान लो। अब ये सिर्फ फिर पीने से मिटता है।
-इसीलिए एक-एक गोली छोड़ दी है। मुरारी हँसने लगा। चाय के बाद पान की दुकान तक वह चूहल करता रहा। मैं वापस अदालत पहुँचा। लेकिन स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं गवाह से जिरह कर सकता। मैं ने विपक्षी वकील को बताया तो वह तारीख बदलवाने को तैयार हो गया। वह तो मुकदमे में वैसे ही देरी करना चाहता था और उसे इस का अवसर मिल रहा था। मुझे कुछ अपराध बोध हुआ। लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता था। जैसे-तैसे दोपहर तक काम निपटाया। फिर मिस्टर पॉल मिल गए। मैं ने उन्हें बताया कि उन के बताए डाक्टर की दवाइयाँ खत्म हो गई हैं। घर पहुँच कर भोजन किया बची हुई आखिरी गोलियाँ लीं। दस मिनट बाद मैं नींद निकाल रहा था। शाम ठीक ठाक गुजरी। रात को नींद भी ठीक आई।
दसवें दिन मैं ठीक था। मुझे गोलियों से मुक्ति मिल गई थी। डाक्टर ने दवाइयाँ खत्म होने के बाद मिलने को कहा था। पर मेरा मन उस डाक्टर के पास फिर से जाने का नहीं था। पूरी दंत पंक्ति में हलका सा दर्द रहने लगा है। दोपहर तक पैर में जहाँ चोट लगी थी दर्द आरंभ हो गया। घर पहुँचा तो यह दर्द तेज हो गया। मुझे लगा कि अब तक चल रही दर्द निवारक दवाओं से वह रुका हुआ था। अब जोर मार रहा है। शाम तक लगने लगा कि कहीं वाकई कोई फ्रेक्चर तो नहीं है। अब शायद किसी हड्डी डाक्टर के यहाँ जाना पड़े। दूसरे दिन सुबह उठा तो पैर ठीक था लेकिन थोड़ा चलने फिरने में ही फिर दर्द करने लगा। ऐसा कि मैं लंगड़ाने लगा। बर्दाश्त नहीं हुआ तो नवानी को फोन किया। वह अभी बाहर ही था। मैं ने उसे सारी बात बताई, तो कहने लगा कोई फ्रेक्चर-व्रेक्चर नहीं है। कोई पेशी फट गयी है, घर जाकर बर्फ से सेको। घर आ कर बर्फ से सिकाई की तो दर्द में कमी आई। लेकिन शाम को फिर दर्द होने लगा। मैं ने फिर बर्फ सिकाई कर डाली। दो दिन की सिकाई के बाद लगने लगा कि अब पैर ठीक है। तभी पत्नी कहने लगी कि उस के पैर दर्द कर रहे हैं। मैं ने कहा आप की केल्सियम की गोलियाँ हैं कि खत्म हो गई हैं। उन्हें तो खत्म हुए महिने से ऊपर हो गया है।
-तो तुमने बताया नहीं, मैं ले आता।
-मैं ने कहा था, पर आप को तो अपने दर्द के मारे फुरसत नहीं है। मुझे याद नहीं आ रहा था कि उस ने कब मुझे कैल्सियम की गोलियाँ खत्म होने के बारे में बताया था। मैंने पत्नी से वायदा किया कि कल अवश्य ले आउंगा। अगले दिन मैं कैल्सियम की गोलियाँ शैल कॉल खरीद रहा था तो मुझे ध्यान आया कि मुझे भी मल्टी विटामिन लिये कई महिने हो गए हैं। मैं ने अपने लिए भी न्यूरोबिअन फोर्ट खरीद लीं। नवानी को बताया तो उस ने कहा कि आप ये गोलियाँ कम से कम एक माह ले लो। मैं दो दिन में पहुँच रहा हूँ। फिर डाक्टर नवीन से मिलने चलते हैं। वह मेरा मित्र है। उसी से बात करेंगे। मैं सोच रहा था, उस देवता डाक्टर से यह मित्र डाक्टर ठीक है। इस से मिलने चला जा सकता है। डाक्टर देवता का यहीँ विसर्जन कर दिया जाए तो ठीक है। अब यदि कभी उस से मिलना होगा तो तभी मिलेंगे जब वह विटनेस बॉक्स में खड़ा होगा और मुझे उस से जिरह करनी होगी।
5 टिप्पणियां:
यह दर्द निवारक दवाओ मे नशा( मार्फ़िन) ही होता हे, जब तक गोली खाओ दर्द गायब, गोली छोडी नही तो दर्द फ़िर से...ओर फ़िर धीरे धीरे आदमी इन गोलियो का आदी हो जाता हे
.आपको पहले वाले चिकित्सक से एक बार मिलना चाहिये था,
वह कहाँ गलत थे, या उनकी ऎसी चूक से आपको क्या परेशानी हुई..
यह आपको बताना चाहिये था । आज पता चला कि शीला का मुकद्दमा आप लड़ रहे हैं, अत्यधिक हैंग-ओवर का यह भी एक कारण हो सकता है । यह तो बताया नहीं कि शीला की अगली तारीख़ कब की पड़ी ?
डाक्टर अनन्त और उनकी कथा भी अनन्त...
फीस की रसीद तो दूर आपरेशन की भी नहीं देते...
और तो और अब चैरिटेबल ट्रस्ट के नाम पर रसीद काट देते हैं...
शायद यही माडर्न एथिक्स होंगे...
अपवाद अब भी हैं...
शरीर का नैसर्गिक हल्कापन दवाईयाँ नष्ट कर देती हैं।
`दसवें दिन मैं ठीक था। मुझे गोलियों से मुक्ति मिल गई थी।'
चलिए,,,, दसवां आपको रास आया :)
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