भ्रष्टाचार के विरुद्ध चली मुहिम फिर कानून के गलियारों में फँस गई है। अन्ना हजारे ने पिछले दिनों लोकपाल बिल लाने और उसे कानून बनाने के मुद्दे पर दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनशन किया तो लोगों को लगने लगा था कि अब एक अच्छी शुरुआत हो रही है। यह अभियान परवान चढ़ा तो निश्चित रूप से भ्रष्टाचार के निजाम को समाप्ति की ओर ले जाएगा। लोगों को उस से निजात मिलेगी। इसी से उस के लिए पर्याप्त जनसमर्थन प्राप्त हुआ। नतीजो में सरकार को झुकना पड़ा और लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने को संयुक्त समिति बनी और काम में जुट गई। अभियान ब्रेक पर चला गया। ब्रेक में बिल बन रहा है। बिल बनने के पहले ही खबरें आने लगीं कि सिविल सोसायटी के प्रतिनिधि पाक-साफ नहीं हैं। मतभेद की बातें होने लगीं। लेकिन बिल निर्माण के लिए बैठकें होती रहीं। कई मुद्दे उछाले गए, अब ताजा मुद्दा है कि प्रधानमंत्री को इस कानून की जद से बाहर रखा जाए। यह भी कि न्यायाधीशों को उस की जद से बाहर रखा जाए या नहीं। इस बीच भारत सरकार ने मोस्ट वांटेड अपराधियों की सूची पाकिस्तान को भेजी। पता लगा कि सूची पुरानी है। उसे भेजे जाने के पहले ठीक से जाँचा ही नहीं गया। कुछ ऐसे लोगों के नाम भी उस में चले गए हैं जो भारत में गिरफ्तार हो चुके हैं और उन में से कुछ एक तो जमानत पर छूट भी चुके हैं। अब यह लापरवाही है या इस में भी कोई भ्रष्टाचार है। इस का पता लगाना आसान नहीं है।
मेरी जानकारी में एक स्थानीय मामला है। इस मामले में मुलजिम की जमानत हुई। उस पर कई मुकदमे थे। कुछ में वह अन्वीक्षा के दौरान लंबे समय तक जेल में था। गवाहों के बयान होने में इतना समय लग गया कि आखिर उस के वकील ने उसे सलाह दी कि वह पहले ही इतने दिन जेल में रह चुका है कि यदि जुर्म स्वीकार कर ले तो भी अदालत को उसे छोड़ना पड़ेगा, वह पहले ही सजा से अधिक जेल में रह चुका है। उस ने जुर्म स्वीकार किया और जेल से छूट कर आ गया। पुलिस ने नए मुकदमे बनाए और उसे फिर जेल पहुँचा दिया। पता लगा कि उस पर उस दौरान चोरी करने का आरोप है जिस दौरान वह जेल में था। अदालत ने उस की जमानत ले ली, मुकदमा अभी चल रहा है। पुलिस ने उसे फिर नए मुकदमे में गिरफ्तार किया और जेल पहुँचा दिया। पुलिस का पिछला रिकार्ड देख कर अदालत ने इस बार भी जमानत ले ली। उसे छोड़े जाने का हुक्म जेल पहुँचा तो जेलर ने उसे बताया कि इस मुकदमे में तो छूट जाओगे पर पुलिस ने एक और मुकदमा उस पर बना रखा है और जेल में उस का वारंट मौजूद है इसलिए उसे पुलिस के हवाले किया जाएगा। अभियुक्त परेशान हुआ। उस ने जेलर से याचना की कि उसे पुलिस को न सौंपा जाए। वह छूट जाएगा तो जमानत का इंतजाम कर लेगा। पुलिस को दे दिया गया तो जमानत में परेशानी होगी। जेलर ने दया कर के उसे पुलिस के हवाले करने के बजाय रिहा कर दिया और दया की कीमत वसूल ली। वारंट के मामले में जेलर ने जवाब दे दिया कि वारंट जेल पहुँचने के पहले ही अभियुक्त छोड़ा जा चुका था।
इस भ्रष्टाचार की खबर बहुत लोगों को है लेकिन इस पर कोई कार्यवाही होगी इस मामले में किसी को संदेह नहीं है। अब जेलर कह सकता है कि पुलिस के वारंट पर कैसे भरोसा किया जाए? पुलिस तो पाकिस्तान तक को गिरफ्तार और जमानत पर छूटे लोगों को मोस्ट वांटेड की लिस्ट में शामिल कर लेती है। जेल और पुलिस महकमों में इस तरह की बातें होती रहती हैं। इन पर ध्यान देने की कोई परंपरा नहीं है और डालने की किसी की इच्छा भी नहीं है। पुलिस का रोजनामचा हमेशा देरी से चलता है। इस में बड़ा आराम रहता है। नहीं पहचाने गए अभियुक्तों के नाम तक प्रथम सूचना रिपोर्ट में आसानी से घुसेड़े जा सकते हैं।
हमारे पास हर समस्या का स्थाई हल है कि उस समस्या पर कानून बना दिया जाए। पहले बाल विवाह होते थे। उसे कानून बना कर अपराध घोषित कर दिया गया। बाल विवाह समाप्त हो गए। महिलाओं पर अत्याचार हो रहे थे। आईपीसी में धारा 498-ए जोड़ दी गई, महिलाओं पर अत्याचार समाप्त हो गए। अब पुरुषों पर अत्याचारों की खबरें आने लगीं। भ्रष्टाचार के कारण सरकार की बदनामी होने लगी तो भ्रष्टाचार निरोधक कानून बना। सोचा भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा। पर भ्रष्टाचार अनुमान से अधिक कठिन बीमारी निकली जो कानून से मिटने के बजाए बढ़ती नजर आयी। उस के उलट उस ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए बनाए गए विभाग को ही अपनी जद में ले लिया। यह बहुत आसान था। पहले भ्रष्टाचारी को रंगे हाथों पकड़ो, फिर उसे हलाल करो। आरोप पत्र में उस के बरी होने के लिए सूराख छोड़ो। सस्पेंड आदमी बाहर रह कर काम-धंधा कर कमाता रहे और कुछ बरस बाद बरी हो कर पूरी तनख्वाह ले कर फिर से नौकरी पर आ जाए। इस से कितनों का ही पेट पलने लगा।
भ्रष्टाचार कानून से मिटता नजर नहीं आता। वह कानून से और मोटा होता जाता है। लोगों को लग रहा है कि इस से भ्रष्टाचार मिटेगा नहीं तो कम से कम कम जरूर हो जाएगा। उधर भ्रष्टाचारी सोच रहे हैं कि कानून हमारा क्या कर लेगा? पहले ही कौन सा कर लिया जो अब करेगा। वैसे भी भ्रष्टाचारी को भले ही कानून कुछ साल रगड़ ले लेकिन समाज में तो वह इज्जत पा ही जाता है। उस के लड़के को शादी में अच्छा दहेज मिलता है। उस की लड़की से शादी करने को कोई भी तैयार हो जाता है। वह हजारों को पार्टी देता है। पुलिस, कलेक्टर और मंत्री उन शादियों में शिरकत करते हैं। ऐसे में किसे परवाह है कानून की? हाँ समाज भ्रष्टाचारियों के साथ उठना बैठना बंद करे। उन के साथ रोटी-बेटी का व्यवहार बंद करे। 100-200 मेहमानों से अधिक की पार्टियाँ और भोज गैर कानूनी घोषित किए जाएँ। उन का आयोजन करना अपराध घोषित किया जाए। जनता भ्रष्टाचारियों का सार्वजनिक जसपाल भट्टी अभिनंदन (?) करना आरंभ करे तो कुछ उम्मीद दिखाई दे सकती है।