- कुमार शिव
रूबरू है शमा के आईना
बंद कमरे की खिड़कियाँ कर दो
शाम से तेज चल रही है हवा
ये जो पसरा हुआ है कमरे में
कुछ गलतफहमियों का अजगर है
ख्वाहिशें हैं अधूरी बरसों की
हौसलों पर टिका मुकद्दर है
रात की सुरमई उदासी में
ठीक से देख मैं नहीं पाया
गेसुओं से ढका हुआ चेहरा
आओ इस काँपते अँधेरे में
गर्म कहवा कपों में भर लें हम
मास्क चेहरों के मेज पर रख दें
चुप रहें और बात कर लें हम
महकती हैं बड़ी बड़ी आँखें
हिल रहे हैं कनेर होटो के
बोलता है उदास सन्नाटा
12 टिप्पणियां:
बहुत खूब. आप भी हीरा चुनते हैं..
बहुत पसंद आई रचना.
kyaa baat hai shivji par mahrbaniyaan kher unki rchnaaye aesi hi hain ..akhtar khan akela kota rajsthan
वाह सर बहुत ही कमाल की हैं पंक्तियां , बेहद खूबसूरत
Is sundar nazm ko padhwane ka aabhar.
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प्यार की परिभाषा!
ब्लॉग समीक्षा का 17वां एपीसोड--
सन्नाटा सदा ही कुछ कहता हुआ सा लगता है।
वादी में गूंजती हुई खामोशियां सुनें...
दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन...
जय हिंद...
आहा ! क्या बात है !!
कमाल है साहब ..... बहुत ही उम्दा है .... क्या कहूं ....
बहुत सुंदर रचना जी, धन्यवाद
चुप रहें और बात कर लें हम........
DADDA...kai baar aisa bhi hota hai...
pranam.
बेहद खूबसूरत कविता.
उदास सन्नाटा सिर्फ बोल नहीं. गा भी रहा है.
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