@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: शिवराम की कविता ... जब 'मैं' मरता है

बुधवार, 15 जून 2011

शिवराम की कविता ... जब 'मैं' मरता है

शिवराम केवल सखा न थे। वे मेरे जैसे बहुत से लोगों के पथ प्रदर्शक, दिग्दर्शक भी थे। जब भी कोई ऐसा लमहा आता है, जब मन उद्विग्न होता है, कहीं असमंजस होता है। तब मैं उन की रचनाएँ पढ़ता हूँ। मुझे वहाँ राह दिखाई देती है। असमंजस का अंधेरा छँट जाता है। आज भी कुछ ऐसा ही हुआ। मैं ने उन की एक किताब उठाई और कविताएँ पढ़ने लगा। देखिए कैसे उन्हों ने अहम् के मरने को अभिव्यक्त किया है - 



'कविता'
जब 'मैं' मरता है*
  • शिवराम

हमें मारेंगी
हमारी अनियंत्रित महत्वाकांक्षाएँ

पहले वे छीनेंगी
हमसे हमारे सब
फिर हम से 
हमें ही छीन लेंगी

बचेंगे सिर्फ मैं, मैं और मैं
'मैं' चाहे कितना ही अनोखा हो
कुल मिला कर होता है एक गुब्बारा
जैसे-जैसे फूलता जाता है
तनता जाता है
एक अवस्था में पहुँच कर 
फूट जाता है

रबर की चिंदियों की तरह
बिखर जाएंगे एक दिन
जो न उगती हैं न विकसती हैं
मिट्टी में मिल जाती हैं 
धीरे-धीरे

बच्चे रोते हैं
जब फूटता है उन का गुब्बारा
जब 'मैं' मरता है, कोई नहीं रोता
हँसते हैं लोग, हँसता है जमाना


*शिवराम के कविता संग्रह 'माटी मुळकेगी एक दिन' से

10 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

kitni sahi baat likha gaye shiv ji.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

गहरे अर्थों वाली सच्चाई बयान करती कविता। पढ़वाने का आभार।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत गहन रचना....

Arun sathi ने कहा…

सारगर्भित रचना के लिए आभार।
उन का गुब्बाराजब 'मैं' मरता है, कोई नहीं रोताहँसते हैं लोग, हँसता है जमाना

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यह मैं, हमसे हमको ही छीन ले जाता है, तब मैं भी नहीं रहता, सेवक बन जाता है।

sajjan singh ने कहा…

कविताएं हर पाठक को कई-कई अर्थ दे जाती है । मनोभावों को कम शब्दों में व्यक्त करने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है कविता । कुछ लोग अपने अहम को इतना बड़ा बना लेते हैं कि वह मर-मरकर भी नहीं मरता है । अच्छी कविता है ।

मेरे ब्लॉग पर भी पधारें- संशयवादी विचारक

मीनाक्षी ने कहा…

इस 'मैं' के एहसास मात्र से ही हमारे अन्दर बाहर अशांति फैलने लगती है..अच्छा है इसका मर जाना..प्रभावशाली रचना ..

बेनामी ने कहा…

जब 'मैं' मरता है, कोई नहीं रोता
हँसते हैं लोग, हँसता है जमाना.....

Patali-The-Village ने कहा…

सारगर्भित रचना के लिए आभार।

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

'मैं' मरता है कब?