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बुधवार, 30 जून 2010

नागा बाबा मरा नहीं है ........ यादवचंद्र पाण्डेय की बाबा नागार्जुन को समर्पित एक कविता

ज बाबा नागार्जुन का 100 वाँ जन्‍मदिन है। आज से उन का जन्मशती वर्ष आरंभ हो गया है। बाबा के बारे में कुछ भी लिख कर सूरज को दिया नहीं दिखाना चाहता। उन के जीवन, कृतित्व को कौन नहीं जानता? यादवचंद्र पाण्डेय उम्र में उन से मात्र सोलह वर्ष छोटे रहे, लेकिन बाबा के साथ उन के जीवन का एक बड़ा हिस्सा गुजरा। बाबा के शतकीय जन्मदिन पर पाण्डेय जी की कविता 'नागा बाबा' पढ़िए, जिस में बाबा नागार्जुन साकार हो उठते हैं .....

'नागा बाबा'
  • यादवचंद्र पाण्डेय  

संसद और विधान सभा में
प्रगट, गुप्त, सुनसान सभा में
मगरमच्छ लिखता आँसू से 
नागार्जुन हिन्दी के राजा
ज्यों सिलाव का राजा-खाजा
या रसगुल्ला कोलकता का 
या लिलुआ का टनटन भाजा
या मिथिला का भोग चकाचक
चूड़ा - दही - जलेबी ताजा
            पर कोई मरदूद न आता
            लाठी खाने, जेल भोगने 
            ले - देकर बस - नागा बाबा 

तुम जूझे थे -हम पूजेंगे
हमें जूझने को मत कहना
भला हुआ जो खाट पकड़ ली 
बीती बात भुलाए रहना
अखबारों में हम छापेंगे
तेरा क्लोज-अप, तेरी महिमा
इंटरव्यू टीवी पर लेंगे
सब को दी है टॉफी, तुमको
च्यवनप्राश का डब्बा देंगे

कम्युनिस्ट थे या जो कुछ थे
निजी मामला है तुम जानो
किन्तु सेठिया प्रजातंत्र में
कविता को वर्गेतर मानो
तुझे मीडिया चमका देगा
हर महफिल में झमका देगा
पुरस्कार से घर भर देगा
कालिदास, भवभूति, व्यास से 
सौ मीटर आगे कर देगा

कलम न कुछ भी दे पाती है 
जो देते हैं हम हैं देते
तेरे सारे पात्र मर गए
भीख मांगते लेते लेते
मिल-खेतों में धक्के खाते
दफ्तर में धरने पर लेटे
अरे भजो जो हमको प्यारे
भकुआ भारत - श्री हो जाए
गोबर भी बन जाए गेटे

अस्पताल में जो जाते हैं
और नहीं वापस आते हैं
हम मिजाजपुर्सी में उनके
आते हैं अपनत्व जताने
रंथी पर सोना बरसाने
थीसिस लिखने फिल्म बनाने
खुद नागा बाबा बन जाने 
           पर कोई मरदूद न आता
           झंडा ढोने दरी बिछाने
           ले - देकर बस - नागा बाबा

वक्र कलम की पंडितजी पर 
ठेंगा तुझे दिखाया हमने
जेहल तुरत पिठाया हमने
'पेरल' पर तुम आए पटने 
जहाँ शहीदों के हैं सपने
कवि-सम्मेलन हुआ भयंकर
सारे कवि थे, तुम भी तो थे-
तुमको नहीं बुलाया हमने
और नहीं पढ़वाया हमने
              क्या प्रभात जी, गलत कही क्या? 
              रहे न तुम तो गलत-सही क्या !  

'इन्दू जी क्या हुआ आप को ...'
नाच - नाचकर तुमने गाया
'मीसा' में धर तुरत सिपाही
ने, छपरे का जेल दिखाया
तब भी तो तुम कवि थे प्यारे
सब कवियों में धाकड़ न्यारे
पर तेरे मित्रों ने छापा
इसे न कविता का 'क' आता
करे छेद जिस पत्तल खाता
              चुप क्यों हैं, कुछ कहें खगेन्दर
              मैं क्या कहूँ, बंद था अंदर --


शक्ति इन्दिरा जी की दिल्ली में
मैं ने देखी तुम ने देखी
वामवीर साहित्यकार की 
ठकुरसुहाती थी मुहँदेखी
बातें सब ने सुनीं, व्यंग्य से
ऐंठ गया चेहरा तुम्हारा
तुरत तुम्हारा नाम कट गया
मुफ्त रूस के टूर-लिस्ट से
(फिर न जाने कैसे सट गया)


कवि-कोविद सत्ता के जितने 
बेटे जो बनते भूषण के 
सब हैं अंडे खर-दूषण के
जिन के फूटे, फूटा करते 
जाति, धर्म, भाषा के दंगे
जो भी सत्ता में आता है
बन जाते ये उस के झंडे
भाड़े के ये भट्ट-पवँरिए
सारे कर्म-कुकर्म करंते


घोटालों की लगी आग में
चौके - चूल्हे सब के ठंडे
भ्राता रावण,  बहन लंकिनी
बारी - बारी देश लुटंते
जो टोके - खाँसे, 'मीसा' में
या 'पोटा' में बंद करंते
इन के लाग - डाँट मानव क्या,
देव - दनुज तक नहीं बुझंते
ये हैं सौ - सौ रूप धरंते
              रहे न बाबा, कौन बताए
              इन के तिकड़म, गोरखधंधे

कालनेमि - घर बजे बधावा
भले मरा यह बाबा - ताबा
बक्र कैंचिया हँसुआ जैसा
बेलगाम कवि - नागा बाबा
ध्वनि प्रचंड पवि - नागा बाबा
विद्रोही रवि - नागा बाबा
सारे तुक्कड़ - लुक्कड़ का जो
चला रहा था भारी ढाबा
भला हुआ जो गया अभागा

नागा बाबा मरा नहीं है
लामबंद, जीवन - संघर्षों -
को, करने से डरा नहीं है
हर जुलूस, हर मार्च - प्रदर्शन
में चलता, चुप खड़ा नहीं है
जहाँ - जहाँ है जनता लड़ती
वहाँ - वहाँ नागा बाबा का
लड़ने से मन भरा नहीं है
नागा बाबा मरा नहीं है।
यादवचंद्र पाण्डेय