लोग कहते हैं। देश
कचरे से परेशान है। जिधर जाओ कचरा दिखाई देता है। कोई स्थान इस
से अछूता नहीं है। मियाँ जी बेड रूम में लेटे लेटे टीवी देख रहे हैं,
अचानक जेब से पाउच निकाला, गुटखा खाया और पाउच वहीं फर्श पर सरका दिया। बीवी
नाराज हो तो हो, उस
से क्या फर्क पड़ता है? आखिर
कचरा उठाना उस की ड्यूटी है। उधर बीवी कौन कम है? वह घर बुहारती है और कचरा सड़क पर। न डाले तो नगर निगम
का सफाई वाला क्या करे? अक्सर
नगर निगम
के पास सफाई वाले कम पड़ते हैं। निगम नगर की बस्तियों के हिसाब से सफाई वाले रखने की
योजना बनाता है। फिर भर्ती शुरू होती है, भर्ती पर मुकदमा होता है, स्टे आ जाता है। अब स्टे हटे तो भर्ती
हो। स्टे हटता है, भर्ती
होती है। जब तक नई भर्ती सफाई करने पहुँचती है, नगर में बस्तियाँ बढ़ जाती हैं। नगर निगम
का क्या कसूर?
भर्ती होने वालों में से अनेक निगम के अफसरों के घर काम पर
हैं। वे वहाँ न हों तो काम अफसर जी करें या उन की बीवी जी, फिर अफसरी कौन करे। अफसरानी जी करें तो
अफसरजी को अफसरजी कौन कहे। कुछ नेताओं के घरों पर काम पर हैं। अब नगर
की सफाई हो तो कैसे? पर
नगर निगम नागरिकों
की चिन्ता करता है। ठेके पर कर्मचारी लगाता है। इस से ठेकेदार को रोजगार मिलता है और
अफसरों को नजराना। आठ की जगह चार से कर्मचारी लगते हैं, चार से पार्षदों का खर्चा निकलता है। जो
चार लगते हैं वे आधे दिन काम करते हैं और आधी तनखा पाते हैं। आधी तनखा से
ठेकेदार का खर्च चलता है और सरकार को सेवाकर मिलता है। ठेका तो न्यूनतम
वेतन की दर पर होता है। देखा¡ कचरा
न हो
तो इतने लोग क्या करें? क्या
कमाएँ और क्या खाएँ?
कचरा न हो तो कचरे में काम की चीजें
बीनने वाले
क्या करें? वे
सुबह बोरे ले कर निकलते हैं, कचरे
से काम की चीजें बीनते हैं। इस से चीजें बेकार नहीं जाती। देश की अर्थव्यवस्था
को सहारा मिलता
है, मजबूती बनी रहती है,
वह ग्रीस की तरह नहीं होती। सरकार को इस
तरफ ध्यान
देना चाहिए। कचरा बीनने वालों को प्रोत्साहन देने के लिए कुछ करना चाहिए। पद्म विभूषण
और पद्म श्री के अवार्डों में एक कैटेगरी कचरा सैक्टर की भी होनी चाहिए। आखिर कचरा बीनना
खेलों से कम महत्वपूर्ण तो नहीं? उस
के लिए
भारत रत्न भी होना चाहिए। उस में कुछ मुश्किल हो तो कम से कम राज्यसभा की सदस्यता
तो अवश्य दी जा सकती है। आखिर वह खेलों की अपेक्षा कम सामाजिक नहीं।
इधर राजनीति में कचरे के बिना काम नहीं चलता, वहाँ भी कचरा करने वाले कम नहीं। नए
राष्ट्रपति के लिए मीडिया वालों ने बहुत नाम उछाले, इतने कि कचरा हो गया। यूपीए वाले कचरा
साफ कर के एक नाम पर सहमति बनाने चले तो दीदी को पसंद नहीं आया। वे दिल्ली गईं
और एयरपोर्ट से
सीधे मुलायम के घर पहुँच कर बोली -आओ भाई कचरा करें। मुलायम को तजवीज पसंद आई। दोनों
ज्वाइंट प्रेस कान्फ्रेंस कर के बोले -हम मिल कर कचरा करेंगे। यूपीए में खलबली मच गई। मुलायम
को संदेश गया -हम को जीतना नहीं आता तो क्या, कचरा करना तो आता है, यूपी में कर देंगे। मुलायम क्या
करते? उन्हों ने दीदी के
प्लान का कचरा कर दिया।
इधर मुम्बई नगर निगम ने वर्ली सी-फेस को खूबसूरत बनाया। लोग
टहलने जाने लगे। सीनियर हिन्दी ब्लागर घुघूती जी भी जाने लगीं। वे खुश थीं, वहाँ कचरा नहीं। दूसरे लोगों को पता लगा तो भीड़ होने लगी।
फेरी वाले आ गए, उन के साथ कागज, पॉलीथीन, प्लास्टिक/पेपर कप, गिलास, चम्मचें व भु्ट्टे भी आए। वर्ली सी फेस
की सड़क विशुद्ध भारतीय सड़क हो गई। वे फिजूल दुखी हैं। भारतीय सड़क के भारतीय
होने पर कैसा दुःख? वे
बता रही हैं कि अमरीका में नोट हाथ से छिटक कर सड़क पर गिर जाए तो जुर्माना होता है।
यहाँ भी कचरा करने पर जुर्माना होना चाहिए। वे भूल गईं, भारत में जुर्माने को जुर्माना करने
वाला तक नहीं गाँठता, कचरा
करने वाला क्या
गाँठेगा? पुलिस में दरोगा वैसे
ही कम हैं। अब कचरा दरोगा कहाँ से लाए जाएँ? मैं ने सुझाव दिया है कि चीन के बेयरफुट
डाक्टर की तरह यहाँ बेयरवेतन कचरा दरोगा भर्ती करने चाहिए जिन्हें
वेतन की जगह जुर्माने का परसेन्टेज मिले। सौदा कतई घाटे का नहीं रहेगा।
सरकार चाहे तो टोल-टेक्स के ठेके की तरह वेस्ट-फाइन ठेका भी कर सकती है। उस
में एक और फायदा है। अफसर-नेताओं की पूर्ति भी होती रहेगी और पार्टी
को चुनाव के लिए चंदा भी कम न पड़ेगा। नेताजी फख़्र से कह सकेंगे कि वर्ली सी
फेस हांगकांग से कम नहीं।