अखिलेश 'अंजुम' |
अखिलेश जी वरिष्ठ कवि हैं। मैं उन्हें 1980 से जानता हूँ। काव्य गोष्ठियों और मुशायरों में जब वे अपने मधुर स्वर से तरन्नुम में अपनी ग़ज़लें प्रस्तुत करते हैं तो हर शैर पर वाह! निकले बिना नहीं रहती। मैं उन का कोई शैर कोई कविता ऐसी नहीं जानता जिस पर मेरे दिल से वाह! न निकली हो। उन्हों नें ग़जलों के अतिरिक्त गीत और कविताएँ भी लिखी जिन्हों ने धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिन्दुस्तान, कादम्बिनी, नवनीत जैसी देश की महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाया। वे सदैव साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े रहे। वे आज भी विकल्प जनसांस्कृतिक मंच के सक्रिय पदाधिकारी हैं। आठ अप्रेल 2011 की शाम इंडिया अगेन्स्ट करप्शन आंदोलन के संबंध में नगर की गैरराजनैतिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों की बैठक में अखिलेश जी मिले। उन्हों ने अपने एक गीत का उल्लेख किया। मैं यहाँ वही गीत आप के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ।
दुर्ग इनका तोड़ना पड़ेगा दोस्तों
- अखिलेश 'अंजुम'
आम आदमी का क़त्ल खेल हो न जाए
लोकतंत्र देश में मखौल हो न जाए
और देश फिर कहीं ये जेल हो न जाए
न्यायपालिका कहीं रखैल हो न जाए
आप को ही सोचना पड़ेगा दोस्तों
ये प्रवाह रोकना पड़ेगा दोस्तों।
बढ़ रहा है छल-कपट-गुनाह का चलन
और बदल रहा है ज़िन्दगी का व्याकरण
प्रहरियों का हो गया है भ्रष्ट आचरण
भ्रष्टता को राजनीति कर रही नमन
क़ायदे-नियम यहाँ पे अस्त-व्यस्त हैं
मंत्रियों में कातिलों के सरपरस्त हैं
देश इनकी दोस्तों जागीर हो न जाए
और ये हमारी तक़दीर हो न जाए
आप को ही सोचना पड़ेगा दोस्तों
दुर्ग इनका तोड़ना पड़ेगा दोस्तों।
धर्म जिसने जोड़ना सिखाया था हमें
रास्ता उजालों का दिखाया था हमें
आज वो ही धर्म है सबब तनाव का
जिसने कर दिया है लाल रंग चुनाव का
आदमी की जान है तो ये जहान है
धर्म है, चुनाव और संविधान है
मज़हबों के नाम पर न तोड़िए हमें
राह पर गुनाह की न मोड़िए हमें
तोड़ने की साज़िशों का काम हो न जाए
धर्म, राजनीति का गुलाम हो न जाए
आप को ही सोचना पड़ेगा दोस्तों
कुछ निदान खोजना पड़ेगा दोस्तों।
चाह आज जीने की बबूल हो गई
हर खुशी हमारी आज शूल हो गई
बोझ से दबी हुई हर एक साँस है
आज आम आदमी बड़ा उदास है
जानकर कि दुश्मनों के साथ कौन हैं
जानकर कि साजिशों के साथ कौन हैं
अब सितम का हर रिवाज़ तोड़ने उठो
अब सितम की गर्दनें मरोड़ने उठो
चेतना का कारवाँ ये थम कहीं न जाए
धमनियों का ख़ून जम कहीं न जाए
आप को ही सोचना पड़ेगा दोस्तों
आँसुओं को पोंछना पड़ेगा दोस्तों।