वकीलों की हड़ताल की खबर से पब्लिक को पता लगा कि वकील साहब फुरसत में हैं, तो हर कोई उस पर डकैती डालने को तैयार था। जिन मुवक्किलों को अब तक वकील साहब से टाइम नहीं मिल रहा था। उन में से कुछ के फोन आ रहे थे, तो कुछ बिना बताए ही आ धमक रहे थे। पत्नी सफाई अभियान में हाथ बंटवा चुकी थीं। उधर शिवराम जी की नाटक की किताबों के लोकार्पण समारोह में वकील साहब को देख महेन्द्र 'नेह' की बांछें खिल गईँ। कहने लगे आप को पत्रकारिता का पुराना अनुभव है, अखबारों के लिए समारोह की रिपोर्टिंग की प्रेस विज्ञप्ति आप ही बना दें। वकील साहब पढ़ने को गए थे नमाज़, रोजे गले पड़ गए। एक बार टल्ली मारने की कोशिश की। लेकिन महेन्द्र भाई कब मानने वाले थे। कहने लगे -हमारी कविताएँ ब्लाग पर हमसे पूछे बिना दे मारते हो और हमारा इतना काम भी नहीं कर सकते? अब बचने का कोई रास्ता न था। इरादा तो था कि समारोह में पीछे की लाइन में बैठते, बगल में बिठाते यक़ीन साहब को, गप्पें मारते समारोह का मजा लेते। पर हाय! हमारे मजे को तो नजर लग चुकी थी। तो पहला डाका डाला महेन्द्र भाई ने। सुन रहे हैं ना, फुरसतिया जी ,उर्फ अनूप शुक्ला जी! अपने थाने में पहली रपट महेन्द्र भाई के खिलाफ दर्ज कीजिएगा।
बुरे फँसे, वकील साहब!
दूसरे दिन अखबार में समारोह की खबर देखी। फोटो तो था, लेकिन खबर में विज्ञप्ति का एक भी शब्द न था। खबर एक दम बकवास। वकील साहब खुश, कि अच्छा हुआ भेजी विज्ञप्ति नहीं छपी, वर्ना महेन्द्र भाई तारीफ के इतने पुल बांधते कि अगले डाके का स्कोप बन जाता और बेचारा वकील फोकट में फँस जाता। लेकिन महेन्द्र भाई कम उस्ताद थोड़े ही हैं। अगले ही दिन आ टपके। वही तारीफों के पुल! हम इतनी मेहनत करते हैं, मजा ही नहीं आता, खबर में। अब देखो आपने बनाई और कमाल हो गया। वकील साहब अवाक! कहने लगे -विज्ञप्ति तो छपी नहीं, जो खबर अखबार में छपी है वह बहुत रद्दी है। अरे आप ने दूसरा अखबार देख लिया। इन को देखो। बगल में से तीन-चार अखबार निकाले और पटक दिए मेज पर। वकील साहब क्या देखते? सब अखबारों में विज्ञप्ति छपी थी, फिर फँस गए। महेन्द्र भाई ने देखा मछली चारा देख ऊपर आगई है, तो झटपट कांटा फेंक दिया। यार! कई पत्रिकाओं को रिपोर्ट भेजनी है, वह भी बना दो।
वकील साहब ने देखा कि महेन्द्र भाई ने काँटा मौके पर डाला है और कोट का कॉलर उलझ चुका है। छुड़ाने की कोशिश की -मैं ने समारोह के नोट्स लिए थे, वह कागज वहीं रह गया है, अब कैसे बनाउंगा? मुझे वैसे भी कुछ याद रहता नहीं है। महेन्द्र भाई पूरी तैयारी के साथ आए थे। अपने फोल्डर से कागज निकाला और थमा दिया। तीन दिन बाद भी वकील साहब के नोट्स का कागज संभाल कर रखा हुआ था। वकील साहब ने फिर बहाना बनाया -आप लोगों के पास बढ़िया-बढ़िया कैमरे हैं और फोटो तक ले नहीं सकते। अभी समारोह के फोटो होते तो ब्लाग पर रिपोर्ट चली गई होती।
वो भी लाया हूँ, इस बार महेन्द्र भाई ने फोल्डर से समारोह के फोटो निकाले और कहा इन्हें स्केन कर लो और मुझे वापस दो। अब बचने की सारी गुंजाइश खत्म हो चुकी थी। वकील साहब की फुरसत पर डाका पड़ चुका था। फोटो स्केन कर के वापस लौटाए गए। शाम तक रिपोर्ट ब्लाग पर छापने का वायदा किया, तब जान छूटी। जान तो छूटी पर लाखों नहीं पाए। ताजीराते हिंद का खयाल आया कि यह डाका नहीं है, बल्कि चीटिंग है। दफा 415 से 420 तक के घेरे में जुर्म बनता है। नोट करना फुरसतिया जी। चीटिंग की एफआईआर दर्ज करना महेन्द्र भाई के खिलाफ। यह भी दर्ज करना कि उन्हों ने इतना हो जाने पर भी कोई नई कविता अनवरत के लिए नहीं दी है। हाँ, वकील साहब राजीनामा करने को तैयार हैं बशर्ते कि महेन्द्र भाई कम से कम पाँच कविताएँ अनवरत को दे दें जिस से पाठकों को भी पढ़ने को मिल सकें।
अब फुरसत तो महेन्द्र भाई छीन ले गए। समारोह की रिपोर्ट बनाने का काम छोड़ गए। वकील साहब उस में लगते कि फोन की घंटी बजी, ट्रिन...ट्रिन...! उठाया तो बड़े भाई महेश गुप्ता जी थे। बार कौंसिल के मेंबर और पूर्व चेयरमेन, बोले क्या कर रहे हो पंडत! कुछ नहीं नहा धो कर अदालत जाने की सोच रहा हूँ। चलो बाराँ हो आएँ। वकील साहब समझ गए, एक से पीछा न छूटा पहले ही दूसरे डकैत हाजिर ..... अब चुनाव प्रचार भी करना पड़ेगा।
22 टिप्पणियां:
हड़ताल का दूसरा मतलब भी यही होता है की जब तक बातें मानी जाए तब कुछ इधर उधर की काम निपटा ले,आप तो एकदम से मॉडल हो गये लोग हर प्रोग्राम में आपको पकड़ कर ले जाते है जैसे सामने बैठे रहेंगे तो प्रोग्राम हिट हो जाएगा..
बस चुनाव प्रचार से बचे रहिएगा ये काम थोडा टेढ़ा है इससे अच्छा तो घर में बैठे रहना ही है जब तक हड़ताल ख़त्म ना हो जाए........
डकैत सही मौज ले रहे है वकील साहब की !
होती है खाज तो, होता हर हर जगह खुजाना
क्या क्या मज़े हैं यारो, छुट्टी का यूँ मनाना:)
वकील साहब बहुत ही रोचक अभिव्यक्ति . पढ़कर आनंद आ गया . आभार
भले डकैत हैं ,
केवल समय पर डाका डालते हैं
ऐसे डकैत मिलें तो दोस्तों की कौन परवाह करे! :-)
dakaiton se bachana hai to agyatwas par jaiye .good creation congrat.
शराफत का जमाना ही नहीं रहा। बेचारे वकील साहब।:)
लेकिन एक बात पक्की है कि जो काम दोस्तों ने सौंपा उसे करने में भी आपको आनन्द ही मिला होगा। मिसिजीवी जो ठहरे।
अच्छा तभी मैं कहूं...आजकल हडताल में भी वकीलों का मैन क्यों नहीं लगता..इत्ते फ़ंसने में क्या खाक मौज होगी..चलिये इसी बहाने पता चल गया कि हडताली वकीलों से दोस्त-बंधु क्या क्या कराते हैं..खूब फ़ंसाया आपको..मगर फ़ोटू में तो आप बडे मशगूल से लग रहे हैं...जबरिया का कोई प्रमाण नहीं मिल रहा है..तो शुकल जी नोटिस कैसे करेंगे...
पार्ट टाइम डकेती .....धंधा बुरा नहीं है जी ....
बहुत बडिया अब तो हम भी कुछ सोच रहे हैं कि आपको कैसे और व्यस्त किया जाये बदिया पोस्ट आभार्
चलिये मजा लिजिये अब चुनाव प्रचार का, वेसे दोस्तो को हक है इस तरह की डकेती डालने का,
मजा आ गया
पार्ट टाइम धंधे की बात ही कुछ और है।
दुर्गा पूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
( Treasurer-S. T. )
ha ha ha.. sahi hai.. :)
हमने भी तो इसी का फ़ायदा उठाया.:)
रामराम.
क्या खूब...
तरीका निकाला है आपने...
एक तीर से कई शिकार....
आनंद आया...
रपट तो हम लिख ले रहे हैं लेकिन यह समझना होगा कि हड़ताल में आजकल बरक्कत नहीं है। डकैत पकड़ लेते हैं। :)
हा हा ! मतलब पूरा आराम फरमाया जा रहा है हड़ताल में :)
मैं भी घंटी बजाता हूँ कल. आजकल तो आप फुर्सत में हैं :)
अरे!
इत्ते फुरसत में हैं?
बताया ही नहीं आपने!!
कल रविवार को घंटी बजा कर डाका डालते हैं।
कुछ काम किया जाए आपकी वेबसाईट का :-)
बी एस पाबला
वो कांटा कैसा था उसकी और उस चारे की नुमाइश भी तो कीजिए जिसमें मछली अटकी....
दिलचस्प पोस्ट
समारोहों की हड़ताल कराने का कोई तरीका खोजें या परिवार को लेकर कहीं पर घूमने निकल जायें ।
चोली दामन का साथ है, इतनी आसानी से थोड़े न छूट जायेगा...........
वक्त पर जो स्वतः होता है, वही पूर्व नियोजित है, हड़ताल पूर्व नियोजित थी आपलोगों की, अब जो हो रहा है वह पूर्व नियोजित है उपरवाले का..........
हड़ताल में हर ताल तो देखने ही पड़ेंगे.............
दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
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