- तो फिर देर किस बात की है? सुनिए आप के ही नगर बनारस के हीरक शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई पर राग मालकौंस में यह बंदिश...................यह कैसा भी तनाव मिटा सकती है...
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गुरुवार, 4 जून 2009
डॉ. अरविन्द जी मिश्रा, तो सुनिए उस्ताद बिस्मिल्लाह खान से शहनाई पर राग मालकौंस
12 टिप्पणियां:
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वाह! सारा तनाव जाता रहा
- 4 जून 2009 को 11:34 pm बजे
- डा. अमर कुमार ने कहा…
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निःसँदेह, बहुत शान्ति देता है, यह राग ।
पर यह जब तब सुने जाना राग नहीं है, एक ख़ास प्रहर में सुनने की बाध्यता इसको अलोकप्रिय कर रही है ।
- 5 जून 2009 को 1:38 am बजे
- डा. अमर कुमार ने कहा…
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If I am not mistaken !
- 5 जून 2009 को 1:39 am बजे
- लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…
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बेहद सुँदर -- आनँदम्` आनँदम `
मालकौँस राग मेँ शौर्य और भक्ति का अनोखा सँगम है जहाँ ईश्वर या उस अनजाने तत्त्व से याचना नहीँ किँतु, द्रढता से अपने सत्त्व क समर्पण किया जाता है आलेख अच्छा लगा
-और इन उस्तादोँ के तो क्या कहने !!
- लावण्या - 5 जून 2009 को 1:39 am बजे
- Himanshu Pandey ने कहा…
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इसे सुनना निश्चय ही सुखद रहा । वाह उस्ताद !
- 5 जून 2009 को 5:53 am बजे
- Smart Indian ने कहा…
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बहुत सुन्दर! धन्यवाद!
- 5 जून 2009 को 6:09 am बजे
- Arvind Mishra ने कहा…
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अनिर्वचनीय आनंद !! वाह ,वाह ,मंत्रमुग्ध हूँ -बहुत बहुत आभार आपका !
- 5 जून 2009 को 6:45 am बजे
- उम्मतें ने कहा…
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प्रभु मैं तो पहले से ही पगलाया हुआ था ! ... कितने पड़ोसियों /मित्रों को तनाव दे चुका हूं बता नहीं सकता ! मेरी असीमित दुआओं के साथ कुछ बददुआयें भी स्वीकार करें !
डाक्टर अमर कुमार भी बौराये हुओं में से हैं मुझे पता ना था ! उन्हें प्रणाम कहियेगा ! - 5 जून 2009 को 8:59 am बजे
- admin ने कहा…
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बहुत बहुत धन्यवाद।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI } - 5 जून 2009 को 12:04 pm बजे
- ताऊ रामपुरिया ने कहा…
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भाई बहुत ही लाजवाब राग है और उस्ताद जी के तो क्या कहने?
रामराम. - 5 जून 2009 को 1:26 pm बजे
- अजित वडनेरकर ने कहा…
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रागों के समय विशेष का महत्व पुराने दरबारी दौर और महफिलों में था। आज जब जी हो कुछ भी सुन लीजिए। सुर मन को तभी अच्छे लगेंगे जब सुनने की आस्था हो। वक्त कोई भी हो, कोई फर्क नहीं पड़ता।
- 5 जून 2009 को 5:04 pm बजे
- राज भाटिय़ा ने कहा…
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बहुत ही लाजबाव मजा आ गया सुन कर.धन्यवाद
- 5 जून 2009 को 9:50 pm बजे