आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों के प्रति जो अपमान जनक व्यवहार हो रहा है उस से प्रत्येक भारतीय आहत है। ऐसे में अमिताभ बच्चन ने ऑस्ट्रेलिया की क्वीन्सलैंड यूनिवर्सिटी से मिलने वाली डॉक्टरेट की मानद उपाधि लेने से इनकार कर दिया। उन्हें यह उपाधि थी। अमिताभ ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर लगातार हो रहे हमलों से नाराज हैं।
ऑस्ट्रेलिया के शहरों में भारतीय छात्रों के खिलाफ नस्लवादी हमले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं ऑस्ट्रेलियाई सरकार इन्हें रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाने के स्थान पर सिर्फ यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि ये हमले नस्लवादी नहीं है।
अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग पर लिखा कि वह उस संस्थान के खिलाफ कोई असम्मान नहीं दिखाना चाहते, लेकिन ऑस्ट्रेलिया में अपने देशवासियों पर हो रहे हमलों से दुखी हैं, ऐसे में उनकी अंतरात्मा यह स्वीकार नहीं करती कि उस देश के संस्थान से कोई उपाधि प्राप्त करें जहां उनके देशवासियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा हो।
क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नॉलजी ने बॉलिवुड सुपरस्टार अमिताभ बच्चन से कहा है कि वह आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर हो रहे हमलों के विरोध में उसकी ओर से दी जाने वाली डॉक्ट्रेट की उपाधि को नहीं लेने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करें।
अमिताभ बच्चन ने उपाधि स्वीकार नहीं कर पाने संबंधी अपनी विवशता के बारे में यूनिवर्सिटी को शनिवार को सूचित कर दिया था। यूनिवर्सिटी के कुलपति पीटर कोलड्रेक ने अमिताभ के उसी पत्र के जवाब में अपने फैसले पर 'हम आपकी मजबूरी समझ सकते हैं। हम आपके भावनाओं का सम्मान करते हैं लेकिन मैं इतना जरूर कहूंगा कि आप अपने फैसले पर एक बार फिर विचार करें। इससे दोनों देशों के रिश्ते सुधर सकते हैं। आपके हाथ में एक बड़ी जिम्मेदारी है और मेरा आग्रह है कि आप इसी को ध्यान में रखकर कोई फैसला करें।'
अमिताभ बच्चन ने उपाधि ठुकरा कर ठीक ही किया। ऐसे माहौल में यदि वे आस्ट्रेलिया जाते हैं तो वह किसी भी प्रकार से ठीक न होता। इस से उन की छवि पर भी विपरीत असर आता। लेकिन क्या यह इतनी सी बात है? नहीं। बात कुछ पीछे से आरंभ होती है। यह एक तीर से तीन शिकार है। इस से संपूर्ण भारत में उन की छवि और निखरती है, ऐसे माहौल में वे आस्ट्रेलिया जाने से बच गए और तीसरा यह भी कि यह राज ठाकरे को भी एक करारा जवाब है। जो खुद महाराष्ट्र में इस से भी खराब व्यवहार उत्तरभारतियों के साथ कर चुके हैं।
20 टिप्पणियां:
bikul sahi kaha dwivedi jee aapne..amitaabh ne jo bhee nirnay liya saraahneey hai...haan raj thakre jaise log sirf maand mein rah kar dahaane wale sher hain...unhein austreliya ke haalaat se koi matlab nahin hai....
बहुत अच्छा विश्लेषणात्मक लेख। जब जलियांवाला कांड हुआ था, तो रवींद्रनाथ टैगोर ने भी अपनी सर वाली पदवी ब्रिटिश सरकार को लौटाई थी।
आस्ट्रेलिया के नस्लवाद का विरोध जताने का अमिताभ बच्चन का यह शांत एवं गौरवपूर्ण तरीका सचमुच सराहनीय है।
आपने इस मुद्दे को राज ठाकरे के साथ जोड़कर भी सही किया है। वह महाशय मुंबई मे उत्तर भारतीय को पीटने में तो वीरता दिखाते हैं, पर जब असली बात हो, चाहे वह मुंबई में आतंकियों का हमला हो, या अब विदेशों में भारतीयों पर हमला हो, तो चूहे की तरह बिल में दुबके बैठे हैं।
शायद वे इसकी पुष्टि का इंतजार कर रहे हों कि पिटनेवाले भारतीय उत्तर भारतीय नहीं हैं, और उनके अपने मराठी मानुस हैं।
आपने बहुत सटीक विश्लेषण किया है. बधाई.
लेकिन क्या वाकई अमिताभ य अकिसी में भी यह साहस है कि वह ठाकरे लोगों को कोई जवाब दे सके? कभी-कभी मुझे लगता है कि किसी दूसरे देश में हो रही किसी घटना का विरोध करना आसान होता है, अपने ही देश की घटना का विरोध करना उतना आसान नहीं होता. समझदार लोगों के एयही तो विशेषता है कि वे आसान रास्ता चुनकर वाह-वाही लूट लेते है
बहुत सटीक विश्लेषण है. बधाई.
राज ठाकरे क्यों सबक लेने लगे ? जनता तो वोट देगी ही भले वो तर्कहीन बातें करते रहे !
बहुत सही विश्लेषण किया है वाकई आपने ..सोच समझ कर लिया गया एक उचित फैसला ..
सही समय पर सही कदम उठाया है बिग बी ने।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आप का लेख बहुत सुंदर लगा.
धन्यवाद
Media ne Australia me ho rahe hamlo ko Naslabhedi bataya hai. Mumbai me Uttar Bhartiyon par ho rahe hamlo ko media naslabhedi kyon nahin karar deti? Kya naslabhed videshiyon dwara desiyon par hue hamle ko kaha jayega? Desh ke andar ho rahe nashlabhed ko kyon nahin highlight kiya jaaye?
आपने सही विश्लेषण किया है !
अमिताभ का यह कदम सराहनीय है |
Sahi vishleshan laga aapka.
अमिताभ ने "इन्डीया राइज़ीँग " पर जोर दिया है भारतीय सरकार को
ओस्ट्रेलियन सरकार से
कडे लहजे मेँ
छात्रोँ की सलामती के बारे मेँ बात करनी चाहीये ताकि सुरक्षा का इँतजाम् कडा किया जा सके -अमिताभ ने अच्छा ही किया -
- लावण्या
बहुत ही सटीक विश्लेषण
सचमुच...
इस ढ़ंग से तो सोचा ही नहीं था। खास कर तीसरे निशाने वाली बात गौत-तलब है।
अच्छा लेख और विचोरोत्तेजक विषय.
पहले के बारे में तो नहीं, पर बाकी २ निशानों के बारे में सहमत हूँ.
विशेषकर तीसरे के बारे में.
अमित जी का ये कदम हर द्रष्टि से सराहनीय है.
उनको धन्यवाद की ऐसा शांतिपूर्ण कदम उठा कर उन्होंने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है.
काश के हमारे माननीय दिलीप कुमार साहेब (युसूफ मियाँ) भी ऐसा ही करते और पाकिस्तानी अवार्ड को नकार देते.
लेकिन नहीं... उनके अपने कारण (???) थे.
~जयंत
बढिया विश्लेषण किया है।बधाई।
महत्त्वपूर्ण लेख.
इस विषय पर आपके विचार जानना अच्छा लगा. छात्रों की सुरक्षा की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की है. जो विश्वविद्यालय भारतीय छात्रों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं और एक भारतीय सितारे को सम्मानित करना चाहते हैं उनके निर्णय और भावनाओं का भी आदर किया जाना चाहिए या शायद उन्होंने ही इस सम्मान के लिए एक राजनैतिक दल से गहराई तक जुड़े व्यक्ति को चुनकर गलत निर्णय लिया?
राज ठाकरे को ' राष्ट्र ' से क्या लेना देना . उन्होंने तो चुन लिया . उन्हें सिर्फ महाराष्ट्र से वोट लेना है और उसी का वोट तोड़ना है .
नोट तो काफी तोड़ चुके हैं , आगे भी तोडेन्गेही .
राष्ट्र ?
जय महाराष्ट्र !
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