मुझे मेरे एक मित्र ने ही इस घटना का ब्यौरा दिया था। मस्तिष्क के किसी कोने में पड़े रहने के कारण हो सकता है इस में कुछ उलट फेर हो गया हो। लेकिन जिस तरह की बहसें छिड़ गई हैं उन में यह प्रासंगिक है।
सवाई माधोपुर से गंगापुर सिटी के बीच ट्रेन के दूसरे दर्जे के डब्बे में किसी जवां मर्द ने एक महिला की छातियां दबा दीं और आगे खिसक लिया। बिलकुल ग्रामीण कामकाजी महिला, वैसी ही उसकी वेशभूषा, गौर वर्ण, सुगठित शरीर। महिला ने उस युवक पर निगाह रखी। उसे अपने से दूर न होने दिया। गंगापुर सिटी स्टेशन पर युवक दरवाजे की ओर बढ़ा, पीछे-पीछे वह महिला भी। दोनों आगे-पीछे नीचे प्लेटफॉर्म पर उतरे।
नीचे उतरते ही महिला ने एक हाथ से युवक का हाथ पकड़ा, दूसरे हाथ से अपनी अंगिया ऊँची कर छातियाँ उघाड़ दीं और जोर से कहने लगी -लल्ला। तेरी अम्मां जल्दी मर गई बेचारी, सो कसर रह गई दूध पिलाने की। अम्माँ को दूध पी लियो होतो तो छिछोरापन ना होतो। वो कसर आज पूरी कर देऊँ हूँ। पी ले दूध मेरो। आगे से कोई तेरी माँ को गाली ना देगो तेरी हरकत के कारन। तू ने तो सारे जग की मैयन की शान बिगार दीन्हीं।
युवक ने बहुत कोशिश की हाथ छुड़ाने की, पर हाथ तो लौह-शिकंजे में जकड़ गया था जैसे। प्लेटफॉर्म पर भीड़ जुट गई। युवक महिला के सामने गिड़गिड़ाने लगा। मैया छोड़ दे मोहे। गलती हो गई मोसे। आगे से नहीं होगी।
बहुत गिड़गिड़ाने पर महिला ने कहा- खा कसम तेरी मैया की।
-मैया कसम, कभी गलती नाहीं होगी।
-मेरे सर पर हाथ धर के खा, कसम।
युवक ने महिला के सर हाथ धर के कसम खाई - मैया कसम, आगे कभी गलती नाहीं होगी।
- मैं तेरी कौन?
-तू मेरी मैया।
वहाँ भीड़ में जुटी महिलाओं की ओर इंगित कर कहा-और ये कौन तेरी?
-ये सब भी मेरी मैया।
तब उस महिला ने कहा। चल बेटा सामान उठा मेरा और मेरे कूँ मोटर में बिठा।
युवक ने महिला का सामान उठाया और चल दिया मैया को मोटर में बिठाने। पीछे पीछे था लोगों का हजूम।
12 टिप्पणियां:
सही सबक मिला उसे.. लत्तम-जूत्ता की कसर बाकी रह गई.. वो भी होनी चाहिये थी..
आपने सही वक्त पर सही उदाहरण दिया,
सही उदाहरण.
मैं यही कहता हूं दिनेश जी, हमारे परिवेश में स्त्री-शक्ति के बड़े सशक्त उदाहरण और आइकॉन हैं। पर उनके नाम से नहीं, हम बड़े-बड़े बोझिल शब्दों से लैस नारी मुक्ति से मेस्मराइज होते हैं।
इस महिला को प्रणाम - एक असुर को औकात बताने के लिये।
गंगापुर-सवाई माधोपुर खण्ड की रेल पटरी की याद दिलाने को धन्यवाद।
nari shakti ka bahut sahi udaharan hai ye.
दिनेश जी, बहुत उचित किया उस महिला ने,उस युवक को भी अच्छा सबक मिल गया,ओर ऎसा सभी महिलये करे तो,हमारा समाज फ़िर एक उच्च समाज बन सकता हे,बाकी देखने बालो को भी चहिये मजा ना लेकर, ऎसी स्थिति मे दुसरे की मदद करे,जब की ऎसा नही होता,ओर हम आंखे चुरालेते हे,ओर ऎसे मोको पर अगर कोई बेकसुर को पीट रहा हो तो जिन्हो ने चिटि भी नही मारी वो भी शेर बन जाते हे.
हिम्मती रही होंगी वह महिला।
कितनी महिलाएं ऐसी हिम्मत कर पाती हैं।
काश सब ही ऐसे मामलों में ऐसी ही हिम्मत करने लगें।
वाकई में बहुत ही अच्छा उदाहरण दिया आपने । उस युवक का चेहरा देखने लायक होगा उस वक़्त। मुझे हमेशा लगता है की महिलाओं को इस तरह की घटनाओं के खिलाफ आवाज़ उठानी ही चाहीये । क्योंकि हम जितना इन बातों को अंदेखा करते हैं उतनी ही ये बडती हैं ।
महिला की अकलमंदी और साहस की तारीफ करनी होगी।
acchha kiya....
बहुत अच्छा सबक. यदि सभी महिलायें ऐसी सूझबूझ और हिम्मत दिखायें तो क्या ही कहना.
अच्छा आलेख , महिलाओं को साहस की अच्छी सीख.path04.blogspot.in
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