@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: सावधान! हमले से बचें। परागकण आ रहे हैं।

सोमवार, 11 फ़रवरी 2008

सावधान! हमले से बचें। परागकण आ रहे हैं।

शनिवार-रविवार दो दिन अवकाश के थे। सोचा था पड़ा हुआ कुछ काम करेंगे। लेकिन मेरे जैसे वकीलों के लिए जिन का कार्यालय भी घर पर हो अवकाश का अर्थ कुछ और होता है। एक तो वकील का काम अदालत और अपने कार्यालय तक बिखरा होता है। कार्यालय अपने घर पर होने का मतलब है वकालत-घर-परिवार-ब्लॉगिंग सबका गड्ड-मड्ड हो जाना। अवकाश कभी कभी काम का व्यस्त दिन बन जाता है। इस बीच कुछ अवांछित मेहमान भी आ टपकते हैं।
शनिवार को भी ऐसा ही हुआ। दोपहर के भोजन के तुरन्त बाद की सुस्ती और सरदी लगने के भाव ने धूप सेंकने का मन बनाया और अपने राम चटाई ले छत पर जा लेटे। तेज धूप थी तो चुभती ठंडी हवा भी। रास्ता ये निकला कि पास में धुलाई के बाद सूख चुका पत्नी शोभा का शॉल औढ़ा और उस से छनती हुई धूप सेंकी एक घंटे और नीचे अपने कार्यालय में आकर काम पर लगे।
शाम होते होते नाक में जलन होने लगी। हम समझ गए कम से कम तीन दिन का कष्ट मोल ले चुके हैं। हम ने तुरंत शोभा को सूचना दी। उस ने भी तुरंत हमारी (जिस पर अब उस का एकाधिकार है) होमियोपैथी डिस्पेंसरी से जो अलमारी के दो खानों में अवस्थित है और जिसने हमें पिछले पच्चीस सालों से किसी अन्य चिकित्सक की शरण में जाने से बचाए रखा है, लाकर दवा दी। हम उसी को लेकर दो दिनों से अपने धर्मों को निबाह रहे हैं।
मैं सोच रहा था कि इस जुकाम के आगमन का कारण क्या रहा होगा। घर के सामने पार्क में बहुत से पेड़ हैं जिन में यूकेलिप्टस की बहुतायत है। उन से इन दिनों परागकण झर रहे हैं। वास्तव में वे ही इस अनचाहे मेहमान के कारण बने। खैर जुकाम तो काबू में है और एक दो दिन में विदा भी हो लेगा। पर इस मौसम में जो अभी मध्य अप्रेल तक चलेगा सभी को इन पराग कणों से बचने के प्रयत्न करते रहना चाहिए जो केवल जुकाम ही नहीं, नाक से लेकर फेपड़ों तक को असर कर सकते हैं। इन से हे-फीवर तक हो सकता है और कुछ अन्य प्रकार की ऐलर्जियाँ भी। बीमारी अनचाहे मेहमान बन कर आ जाए तो आप के कामों और आनंद सभी में खलल तो पैदा करेगी ही जेब पर हमला भी करेगी।

3 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

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Gyan Dutt Pandey ने कहा…

परागकणों की समस्या मुझे पश्चिमी भारत में अधिक होती थी। यहां गंगा किनारे शायद नमी अधिक होने के कारण ओस भी है और उससे परागकण उतने उड़ते नहीं। लिहाजा जहां कोटा-रतलाम में मुझे सिप्ला का इनहेलर पास रखना पड़ता था अपने दमे के लिये; यहां अटैक नहीं हुआ।
फिर भी सतर्क तो रहना पड़ता है। ज्यादा सर्दी और ज्यादा धूल/परागकणों से।

राज भाटिय़ा ने कहा…

दिनेश जी नमस्कार,मे ओर मेरा बडा बेटा भी पराग कणो से परेशान हे,हम २,३ महीने इस से जुझाते हे,अभी हम ने एलोपेथि का ३ साल का कोर्स किया हे मेरा कोर्स तो पुरा हो गया हे बेटे का २ साल ओर चलेगा,मुझे ६०% आराम आया हे, बेटे को भी२०% आराम आया हे, पहले मुझे बहुत परेशानी होती थी कार चलाना बहुत ही मुस्किल होता था,नाक ओर आंखो से बहुत पानी आता था,फ़िर झींके,आखॊ मे जलन, नाक मे खुजली. एक इलाज मेने ढुडा हे, लेकिन वो पक्का नही हे, फ़िर युरोप मे रह कर वो इलाज कर भी नही सकते,
+इलाज लेकिन अस्थाई..
सुबह सर पर सरसो का तेल लगा ले, सर के बाल छोटे ही रखे,तेल चुम्बक का काम करते हे, यानि बो पराग कणो को अपनी ओर खीच लेते हे, दुसरा..नाक के छिद्रो मे ओर नाक के आसपास सरसो का तेल लगा ले जब तक वहा तेल रहे गा पराग नाक से अन्दर नही जाये गे,