@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: भाषा का संस्कार (पानी देना)

बुधवार, 20 फ़रवरी 2008

भाषा का संस्कार (पानी देना)

"पानी देना "
आज कहीं भी यह वाक्य सुन ने को मिल जाता है।
बचपन में एक बार भोजन करते समय तेज मिर्च लगने पर मैं एकाएक कह बैठा -अम्माँ, पानी देना।
दादी वहीं थी। पानी मिलना तो दूर वह डाँटने लगी- ऐसा नहीं बोलते।
मैं ने पूछा -क्यों।
तो, वे बोलीं - पानी मरने वाले को दिया जाता है।
उस के बाद इस शब्द का प्रयोग हमने नहीं किया।

आज इस बात की याद फिर आयी। शाम को शोभा (पत्नी) ने भोजन तैयार होने की सूचना दी। तो हम ऑफिस से उठे और कहा- हम हाथ मुंहँ धोकर ( शौच से निवृत्त हो कर) आते हैं। तब तक आप भोजन लगा दो। नहीं तो फिर कोई आ मरेगा।
पत्नी ने टोक दिया - ऐसा क्या बोलते हो? जरा शुभ-शुभ बोला करो।
मैं ने सफाई दी - इस में क्या गलत है? यह तो मुहावरा है।
-हो, मुहावरा। इस से भाषा तो खराब होती है।
मैं ने उसे सही बताते हुए अपनी गलती स्वीकार की। आइंदा सही बोलने का वायदा किया, और हाथ मुहँ धोने चल दिया।

वास्तव में परिवार में मिली इन छोटी-छोटी बातों से भाषा को संस्कार मिला। जीवन सहयात्री ने इसे बनाए रखने में सहयोग किया। अनेक ब्लॉगर साथियों को इस तरह के संस्कार नहीं मिले। वे इस अवसर से वंचित रह गए। सोचता हूँ, मैं ही उन्हें टोकना प्रारंभ कर दूँ। पर भय लगता है वे इसे अन्यथा ले कर कतराने लगे तो कहीं साथियाना व्यवहार ही न टूट जाऐ।

10 टिप्‍पणियां:

अनिल रघुराज ने कहा…

दिनेश जी, सही कहा आपने। भाषा का संस्कार लगातार हमारे परिवारों में खत्म होता जा रहा है, खासकर महानगरों में तो कोई इसकी चिंता नहीं करता।

ghughutibasuti ने कहा…

यह प्रयत्न न कीजिएगा ।
घुघूती बासूती

Shiv Kumar Mishra ने कहा…

सर, इतनी महत्वपूर्ण बात इतनी सरलता से बताने के लिए धन्यवाद. अब से हमेशा ध्यान रखूंगा कि कभी इस तरह की गलती न हो.

राज भाटिय़ा ने कहा…

दिनेश जी,हम सब एक दुसरे से बहुत कुछ सीखते हे, आज आप से एक नया ज्ञान प्राप्त हुया, जाने अन्जाने हम पता नही कया कुछ बोल जाते हे,आईन्दा मे भी धयान रखुगा, बहुत बहुत ध्न्यवाद

मीनाक्षी ने कहा…

आपने तो गागर में सागर भर दिया... समझदार को इशारा काफी है...!

Sanjeet Tripathi ने कहा…

ह्म्म, शायद सबसे ज्यादा मुझे अपने पर ध्यान देना पड़ेगा, अक्सर हल्के-फुल्के मूड में टिप्पणी करता हूं हर जगह!!
शुक्रिया!!

Pankaj Oudhia ने कहा…

हमे भी अमृत चखाने के लिये आभार।

अनूप शुक्ल ने कहा…

सुन्दर!

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

सही कह रहे हैं जीवन की शुचिता में भाषा की शुचिता का बहुत योगदान है। सत्य और प्रिय बोलना इसी लिये स्ट्रेस किया गया है।

अजित वडनेरकर ने कहा…

अच्छी बात।