@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

इस के हिस्से में आख़िर ये रोशनी क्यूँ है

हमद सिराज फ़ारूक़ी एम.ए. (उर्दू) हैं, लेकिन यहाँ कोटा में अपना निजि व्यवसाय करते हैं। जिन्दगी की जद्दोजहद के दौरान अपने अनुभवों और विचारों को ग़ज़लों के माध्यम से उकेरते भी हैं। 'विकल्प' जनसांस्कृतिक  मंच कोटा द्वारा प्रकाशित बीस रचनाओं की एक छोटी सी पुस्तिका उन का पहला और एक मात्र प्रकाशन है। अपने और अपने जैसे लोगों के सच को वे किस खूबी से कहते हैं, यह इस ग़ज़ल में देखा जा सकता है .......

'ग़ज़ल'

इस के हिस्से में आख़िर ये रोशनी क्यूँ है

  • हमद सिराज फ़ारूक़ी

बढ़ी है मुल्क में दौलत तो मुफ़लिसी क्यूँ है
हमारे घर में हर इक चीज़ की कमी क्यूँ है

मिला कहीं जो समंदर तो उस से पूछूंगा
मेरे नसीब में आख़िर ये तिश्नगी क्यूँ है

इसीलिए तो है ख़ाइफ ये चांद जुगनू से 
कि इस के हिस्से में आख़िर ये रोशनी क्यूँ है

ये एक रात में क्या हो गया है बस्ती को
कोई बताए यहाँ इतनी ख़ामुशी क्यूँ है

किसी को इतनी भी फ़ुरसत नहीं कि देख तो ले
ये लाश किस की है कल से यहीँ पड़ी क्यूँ है

जला के खुद को जो देता है रोशनी सब को
उसी चराग़ की क़िस्मत तीरगी क्यूँ है

हरेक राह यही पूछती है हम से 'सिराज' 
सफ़र की धूल मुक़द्दर में आज भी क्यूँ है



............................................................................................................

रविवार, 10 अप्रैल 2011

दुर्ग इनका तोड़ना पड़ेगा दोस्तों

अखिलेश 'अंजुम'
    खिलेश जी वरिष्ठ कवि हैं। मैं उन्हें 1980 से जानता हूँ। काव्य गोष्ठियों और मुशायरों में जब वे अपने मधुर स्वर से तरन्नुम में अपनी ग़ज़लें प्रस्तुत करते हैं तो हर शैर पर वाह! निकले बिना नहीं रहती। मैं उन का कोई शैर कोई कविता ऐसी नहीं जानता जिस पर मेरे दिल से वाह! न निकली हो। उन्हों नें ग़जलों के अतिरिक्त गीत और कविताएँ भी लिखी जिन्हों ने धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिन्दुस्तान, कादम्बिनी, नवनीत जैसी देश की महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाया। वे सदैव साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े रहे। वे आज भी विकल्प जनसांस्कृतिक मंच के सक्रिय पदाधिकारी हैं। आठ अप्रेल 2011 की शाम इंडिया अगेन्स्ट करप्शन आंदोलन के संबंध में नगर की गैरराजनैतिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों की बैठक में अखिलेश जी मिले। उन्हों ने अपने एक गीत का उल्लेख किया। मैं यहाँ वही गीत आप के लिए प्रस्तुत कर  रहा हूँ। 

    दुर्ग इनका तोड़ना पड़ेगा दोस्तों

    • अखिलेश 'अंजुम'


    आम आदमी का क़त्ल खेल हो न जाए
    लोकतंत्र देश में मखौल हो न जाए
    और देश फिर कहीं ये जेल हो न जाए
    न्यायपालिका कहीं रखैल हो न जाए

    आप को ही सोचना पड़ेगा दोस्तों
    ये प्रवाह रोकना पड़ेगा दोस्तों।

    बढ़ रहा है छल-कपट-गुनाह का चलन
    और बदल रहा है ज़िन्दगी का व्याकरण
    प्रहरियों का हो गया है भ्रष्ट आचरण 
    भ्रष्टता को राजनीति कर रही नमन

    क़ायदे-नियम यहाँ पे अस्त-व्यस्त हैं
    मंत्रियों में कातिलों के सरपरस्त हैं
    देश इनकी दोस्तों जागीर हो न जाए
    और ये हमारी तक़दीर हो न जाए

    आप को ही सोचना पड़ेगा दोस्तों
    दुर्ग इनका तोड़ना पड़ेगा दोस्तों।

    धर्म जिसने जोड़ना सिखाया था हमें
    रास्ता उजालों का दिखाया था हमें
    आज वो ही धर्म है सबब तनाव का
    जिसने कर दिया है लाल रंग चुनाव का

    आदमी की जान है तो ये जहान है
    धर्म है, चुनाव और संविधान है
    मज़हबों के नाम  पर न तोड़िए हमें
    राह पर गुनाह की न मोड़िए हमें

    तोड़ने की साज़िशों का काम हो न जाए
    धर्म, राजनीति का गुलाम हो न जाए

    आप को ही सोचना पड़ेगा दोस्तों
    कुछ निदान खोजना पड़ेगा दोस्तों।

    चाह आज जीने की बबूल हो गई 
    हर खुशी हमारी आज शूल हो गई
    बोझ से दबी हुई हर एक साँस है
    आज आम आदमी बड़ा उदास है

    जानकर कि दुश्मनों के साथ कौन हैं
    जानकर कि साजिशों के साथ कौन हैं
    अब सितम का हर रिवाज़ तोड़ने उठो
    अब सितम की गर्दनें मरोड़ने उठो 

    चेतना का कारवाँ ये थम कहीं न जाए
    धमनियों का ख़ून जम कहीं न जाए

    आप को ही सोचना पड़ेगा दोस्तों 
    आँसुओं को पोंछना पड़ेगा दोस्तों। 

    शनिवार, 9 अप्रैल 2011

    भ्रष्टाचार के विरुद्ध वातावरण का निर्माण करेंगे


    ल शाम की बैठक में सौ से कुछ अधिक लोग अपने संगठनों के प्रतिनिधि के रूप में एकत्र हुए थे। इसलिए कि जन-लोकपाल-विधेयक के लिए चल रही लड़ाई में कोटा का क्या योगदान हो। तरह तरह के सुझाव आए। सभी अपना अपना तरीका बता रहे थे। आखिर अगले तीन दिनों का कार्यक्रम तय करने के लिए एक पाँच व्यक्तियों की समिति बना ली गई। सुबह साढ़े नौ बजे गांधी चौक पर एकत्र हो कर विवेकानंद सर्किल तक एक जलूस निकाला जाना तय हुआ। कुछ नौजवान तुरन्त ही आमरण अनशन पर बैठने को उतारू थे। लेकिन उन्हें समझाया गया कि इस की अभी आवश्यकता नहीं है। यदि आवश्यकता होने पर अवश्य ही उन्हें यह काम करना चाहिए। सब लोग अलग अलग संगठनों से थे लेकिन एक बात पर सहमति थी कि जो कुछ भी किया जाए वह अनुशासन में हो और लगातार गति बनी रहे। 

    स बैठक में यह आम राय थी कि जन-लोकपाल-विधेयक बन जाने से बदलाव आ जाएगा, इस बात का उन्हें कोई भ्रम नहीं है। वस्तुतः देश में बदलाव के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी, जनता को संगठित करना पड़ेगा। इस के साथ ही लोगों में जो गलत मूल्य पैदा हो गए हैं उन्हें समाप्त करने और सामाजिक मूल्यों को स्थापित करने के लिए सतत संघर्ष चलाना पड़ेगा। इस सतत संघर्ष के लिए सतत प्रयासरत रहना होगा। बैठक समाप्त होने के उपरान्त जैसे ही मैं घर पहुँचा टीवी से पता लगा कि सरकार और इंडिया अगेन्स्ट करप्शन के बीच समझौता होने वाला है। देर रात जन्तर-मन्तर पर विजय का जश्न आरंभ हो चुका था।

    सुबह लोग गांधी चौक पर जलूस के लिए एकत्र हुए। लेकिन संघर्ष का जलूस अब एक विजय जलूस में परिवर्तित हो चुका था। नौजवान लोग पटाखे छुड़ाने को उतारू थे। लेकिन पूछ रहे थे कि क्या वे इस जलूस में पटाखे छुड़ा सकते हैं। समिति ने तुरंत अनुमति दे दी। पटाखे छूटने लगे, जश्न मनने लगा। जब जलूस अपने गंतव्य पर पहुँचा तो लोगों ने अपने अपने विचार प्रकट किए। सभी का विचार था कि देश में बदलाव के लिए संघर्ष का एक युग आज से आरंभ हुआ है। इस कारण कल जिस एकता का निर्माण हुआ है उसे भविष्य के संघर्ष के लिए आगे बढ़ाना है। हर मुहल्ले में जनता को संगठित करना है और भ्रष्टाचार के विरुद्ध वातावरण का निर्माण करना है।  

    जीत का जश्न मनाएँ! अपनी एकता और संघर्ष को जीवित रखें और आगे बढ़ाएँ!!

    भ्रष्टाचार के विरुद्ध जन लोकपाल बिल अब सपना नहीं रहा है। सरकार को अण्णा हजारे के अनशन को लगातार मिल रहे और बढ़ रहे जन समर्थन के सामने झुकना पड़ा है। अण्णा हजारे द्वारा जन लोकपाल बिल को कानून की शक्ल देने के लिए जरूरी सभी मांगों को केन्द्र सरकार ने स्वीकार कर लिया। सुबह दस बजे के पहले तक इस पर सरकार का आदेश जारी होने की संभावना है। अण्णा ने सुबह साढ़े दस बजे अपना अनशन समाप्त करने की घोषणा कर दी है। जन्तर-मन्तर नई दिल्ली पर हजारों की संख्या में लोग जुटे हैं और जनता की इस जीत का जश्न मनाने में लगे हैं। असली जश्न तो सुबह सारा देश मनाएगा तब जब कि अन्ना अपना अनशन समाप्त करेंगे।अनशन समाप्त करने की घोषणा करने के पहले अण्णा हजारे ने स्पष्ट कर दिया था कि यह लड़ाई यहाँ समाप्त नहीं हुई है। यह देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने और देश की जनता की समस्याओं की समाप्ति तक जारी रहेगी। जितने लोग इस आंदोलन में साथ थे उन का नजरिया स्पष्ट था कि संघर्ष जारी रहेगा।
    सारा देश भ्रष्टाचार से त्रस्त था। उसे मार्ग ही नहीं मिल रहा था। मार्ग निकला जन-लोकपाल-बिल के प्रस्ताव और उस पर संघर्ष से। जैसे ही अण्णा हजारे ने अपना अनशन आरंभ किया देश भर में लोग एकजुट होना आरंभ हो गए। हर किसी ने अपनी भूमिका अदा करना आरंभ कर दिया। जिस तेजी से लोग जन्तर-मन्तर की ओर दौड़ने लगे उसी तेजी से देश भर में भी इस आंदोलन के समर्थन में लोगों की बैठकें होने लगीं, देश को जोड़ने का अभियान सा देश भर में आरंभ हो गया। इस आंदोलन का समय भी बहुत सटीक था। एक और देश ने एक  दिवसीय क्रिकेट विश्वकप जीता ही था, जिस से देश भर की भावनाएँ एक जुट थीं।  दूसरी ओर सरकार और राजनेताओं के सामने कुछ राज्यों के चुनाव सामने खड़े थे। ऐसी परिस्थितियों में कोई भी सरकार या राजनैतिक दल किसी भी तरह जनता को नाराज नहीं करना चाहता था। चुनाव पूर्व का समय ही ऐसा होता है जब राजनैतिक दल और उन के नेता सब से कमजोर स्थिति में होते हैं। इन सब परिस्थितियों का लाभ भी इस आन्दोलन को प्राप्त हुआ। लेकिन सारी परिस्थितियाँ अनुकूल होते हुए भी सब कुछ ठीक नहीं होता। उस समय एक धक्का पर्याप्त होता है तंत्र को मनचाही दिशा में ले जाने के लिए वही यहाँ हुआ। अण्णा के अनशन और देशवासियों के व्यापक जन समर्थन ने उसे दिशा दे दी जिस से देश की जनता को यह उपलब्धि हासिल हुई। हमें इस से यह सबक लेना चाहिए कि परिस्थितियाँ बने तो उन का लाभ व्यापक जनता के हित में किए जाने के लिए जनता को संगठित और तैयार रहने की आवश्यकता है। 
    स आन्दोलन में उन सैंकड़ों-हजारों जन संगठनों की भूमिका के महत्व से नकारा नहीं जा सकता जिन्हों ने रातों-रात इस आंदोलन का समर्थन किया और इस के लिए जन-समर्थन जुटाने के लिए रात-दिन एक किया। ये वे ही संगठन थे जो कि छोटे-छोटे स्तरों पर वर्षों से सक्रिय थे। इस से जो सबक हम सीख सकते हैं वह बहुत महत्वपूर्ण है। जनता को हर स्तर पर संगठित रहना चाहिए। किसी भी जीत का लाभ भी जनता को तभी मिल सकता है जब कि वह संगठित रहे। एक अकेला व्यक्ति टूट जाता है। लेकिन जब लोग सामुहिक हितों के लिए इकट्ठा हो जाते हैं तो व्यक्ति-व्यक्ति में आत्मविश्वास का पौधा अंकुराने लगता है।  हम लोकपाल कानून अस्तित्व में आ जाने के बाद भी भ्रष्टाचार को समाप्त करने की मुहिम लगातार चलानी पड़ेगी और वह तभी संभव है जब जनता संगठन में रहे। हमें अपने आस-पास के जन संगठनों को मजबूत करना चाहिए और जहाँ संगठन नहीं हैं वहाँ संगठनों का निर्माण करना चाहिए। इन संगठनों को चुनावी राजनीति और चुनावी राजनेताओं से दूर रखना चाहिए। 

    देश की सारी जनता को इस जीत पर अशेष बधाइयाँ। 
    म सभी को संकल्प करना चाहिए कि हम अपने निजि जीवन में भ्रष्टाचार को न अपनाएँ, जहाँ भी वह नजर आए उसे नष्ट करने के लिए व्यक्तिगत और सामाजिक संघर्ष चलाएँ। एकता और संघर्ष-संघर्ष और एकता ही सफलता की कुंजी है।

    गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

    भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन अवसर को निजि हित में इस्तेमाल करने वालों से बचे

    भ्रष्टाचार विरोधी जन अभियान की आँच देश के कोने कोने तक पहुँच रही है। ऐसे में मेरा नगर कोटा कैसे चुप रह सकता था। यहाँ भी गतिविधियाँ आरंभ हो गई हैं। गतिविधियों की एक रपट अख्तर खान अकेला ने अपने ब्लाग पर यहाँ प्रस्तुत की है। कल शाम बहुत से गैर राजनैतिक संगठनों के प्रतिनिधियों की एक बैठक बुलाई गई है। उस में कोटा में इस आन्दोलन को आगे बढ़ाने की योजना पर विचार होगा। इस बैठक में उपस्थित रहने का मेरा पूरा प्रयास रहेगा।
    ज कोटा न्यायालय में भी इस आंदोलन की सुगबुगाहट रही। वकील आपस में बातें करते रहे कि उन्हें भी इस मामले में कुछ करना चाहिए। किसी ने कहा कि कल वकीलों को न्यायिक कार्य का बहिष्कार कर धरने पर बैठ जाना चाहिए। कुछ देर बाद दो वकील एक आवेदन पर वकीलों के हस्ताक्षर कराते दिखाई दिए। हर स्थान पर वकीलों का एक वर्ग होता है जो  इस तरह के मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करता है जिन्हें मुकदमे का निर्णय न होने में अधिक लाभ होता है। ये दीवानी मामलों के वे पक्षकार होते हैं जिन के विरुद्ध न्यायालय से राहत मांगी गई होती है। या फिर वे अभियुक्त होते हैं जिन्हें सजा का भय सताता रहता है और मुकदमे के निर्णय को टालते रहते हैं। यह वर्ग हमेशा इस तलाश में रहता है कि कोई मुद्दा मिले और वे न्यायिक कार्य का बहिष्कार (वकीलों की हड़ताल) कराएँ। वकीलों की हड़ताल कभी दो-चार लोगों या वकीलों के एक समूह के आव्हान पर नहीं होती। वह हमेशा अभिभाषक परिषद के निर्णय पर होती है। ये दोनों वकील अभिभाषक परिषद को कल की हड़ताल रखने के लिए परिषद को दिए जाने वाले ज्ञापन पर वकीलों के हस्ताक्षर प्राप्त करने का अभियान चला रहे थे।
    वे मेरे पास भी आए। मैं ने आवेदन पढ़ा और उस पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। उन्हों ने पूछा -आप अण्णा के आंदोलन का समर्थन करते हैं?  मैं ने कहा -हाँ। -तो फिर आप को इस आवेदन पर हस्ताक्षर कर देने चाहिए। मैंने उन्हें कहा कि अण्णा कामबंदी पसंद नहीं करते, आप अण्णा की शुचिता के विरुद्ध काम कर रहे हैं। आप को अण्णा के आंदोलन का समर्थन करना है तो अभिभाषक परिषद की आम-सभा बुलवाइए और उस में संकल्प लीजिए कि कोई भी वकील और उस का मुंशी अदालत के किसी भी क्लर्क, चपरासी, न्यायाधीश, सरकारी अभियोजक और पुलिसकर्मी को जीवन में कभी कोई रिश्वत नहीं देगा। यदि किसी वकील या उस के मुंशी का ऐसा करना प्रमाणित हुआ तो उसे त्वरित कार्यवाही कर के अभिभाषक परिषद की सदस्यता से जीवन भर के लिए निष्कासित कर दिया जाएगा और बार कौंसिल को यह सिफारिश की जाएगी कि वह उस का वकालत करने का अधिकार सदैव के लिए समाप्त कर दे। इतना सुनने पर दोनों वकील अपना आवेदन ले कर आगे बढ़ गए।
    मैं जानता था कि यदि सौ लोगों से हस्ताक्षर युक्त आवेदन भी अभिभाषक परिषद के पास पहुँचा तो कार्यकारिणी दिन भर के न्यायिक कार्य के बहिष्कार की घोषणा कर देगी। मैं तुरंत अभिभाषक परिषद के अध्यक्ष के पास पहुँचा और उन्हें एक लिखित पत्र दिया, कि कुछ लोग अण्णा के आन्दोलन का समर्थन करने के बहाने आप से कल न्यायिक कार्य स्थगित करने का निर्णय लेने के लिए वकीलों से हस्ताक्षर करवा रहे हैं। आवेदन कुछ ही देर में आप तक पहुँचेगा। किन्तु अण्णा कामबंदी पसंद नहीं करते। यदि अभिभाषक परिषद इस आंदोलन का समर्थन करती है तो सब से पहले उस के प्रत्येक सदस्य को यह संकल्प करना होगा कि वह स्वयं को आजीवन भ्रष्टाचार से मुक्त होने की घोषणा करे। इस के बाद ही इस आंदोलन के समर्थन में खड़ा हो और कामबंदी  बिलकुल न की जाए।
    शाम को अभिभाषक परिषद की कार्यकारिणी की बैठक हुई। मैं ने अभी परिषद के अध्यक्ष को फोन पर पूछा कि क्या  निर्णय लिया गया? तो उन्हों ने बताया कि केवल दोपहर 12 बजे से 2 बजे तक न्यायिक कार्य को स्थगित किया जाएगा और सभी अभिभाषक इस अवधि में धरने पर उपस्थित हो कर अण्णा के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का समर्थन करेंगे। उन्हों ने बताया कि मेरे पत्र पर विचार किया गया था। लेकिन इस सम्बन्ध में आम राय होने पर ही कोई प्रस्ताव लिया जाना संभव है। 
    मेरा अपना मत है कि जो व्यक्ति स्वयं भ्रष्टाचार से दूर रहने का संकल्प नहीं करता है उसे इस आंदोलन का समर्थन करने और उस में शामिल होने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसे लोगों के समर्थन और आंदोलन में  शिरकत से आंदोलन को मजबूती नहीं मिलेगी। ऐसे लोग आंदोलन को कमजोर ही कर सकते हैं। आम लोगों में हर घटना, हर अवसर को अपने निजि स्वार्थ के लिए उपयोग कर लेने की प्रवृत्ति होती है। लेकिन इस आंदोलन की सफलता इसी बात पर निर्भर करेगी कि वह ऐसी प्रवृत्ति पर काबू करने की समुचित व्यवस्था बनाए रखी जाए। हमारे यहाँ व्यवस्था गिराऊ आंदोलन सफलता प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन एक व्यवस्था के गिरने पर कोई भी देश किसी निर्वात में नहीं जी सकता। उसे एक वैकल्पिक व्यवस्था दिया जाना आवश्यक है। यदि मजूबत वैकल्पिक व्यवस्था न मिले तो जिन प्रवृत्तियों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए विजय प्राप्त की जाती है वे ही फिर से हावी हो कर नई व्यवस्था को पहले से अधिक प्रदूषित कर देती हैं। 

    बुधवार, 6 अप्रैल 2011

    राजनेता नहीं चाहिए

    भ्रष्टाचार से देश का हर व्यक्ति व्यथित है। सामाजिक जीवन का कोई हिस्सा नहीं जो इस भ्रष्टाचार से आप्लावित न हो। स्थिति यह हो गई है कि जिस के पास धन है, वह फूला नहीं समाता। वह अकड़ कर कहता है -कौन सा काम है जो मैं नहीं करवा सकता। मुझे कोई बत्तीस बरस पहले की एक मामूली उद्योगपति की बात स्मरण हो आई जिस की राजधानी में एक बड़ी फ्लोर मिल थी। वह कुछ दिनों के लिए एक दैनिक के सम्पादक मित्र का मेहमान था। मैं उन दिनों कानून की पढ़ाई करता था और उस दैनिक में उपसंपादक हुआ करता था।  उस उद्योगपति ने मुझ से कहा था। कभी सरकार में कोई भी काम हो तो बताना। मैं ने उसे कहा सरकार तो बदल जाती है। उस का उत्तर था कि मैं अपने कुर्ते की एक जेब में सरकार का एमएलए रखता हूँ तो दूसरी जेब में विपक्ष का एमएलए। निश्चित रूप से पिछले बत्तीस वर्षों में इस स्थिति में गुणात्मक विकास ही हुआ है। आज का उद्योगपति एमएलए नहीं एमपी और मंत्री तक को अपनी जेबों में रखने क्षमता रखता है।
    देश में जितना भ्रष्टाचार है उस की जन्मदाता यही उद्योगपति बिरादरी है। उन के इशारे पर कानून बनते हैं, यदि कानून उन के विरुद्ध बन भी जाएँ तो उन्हें उस की परवाह नहीं, वे जानते हैं कि सरकार उन के विरुद्ध कार्यवाही नहीं करेगी। जिस के पास सब से अधिक धन है वह देश का सब से इज्जतदार व्यक्ति है, चाहे वह  कितना ही बेईमान क्यों न हो। जिस के पास पैसा नहीं है वह चाहे कितना ही ईमानदार क्यों हो उस की काहे की इज्जत, राशनकार्ड दफ्तर का बाबू उस की इज्जत उतार सकता है। उस की बेटी की शादी में यदि दहेज या बारात के सत्कार में कुछ कमी हो जाए तो कोई अनजान बाराती भी उस की इज्जत उतार सकता है। हमने आजादी के बाद समाज में ऐसे ही मूल्य विकसित होने दिए हैं। हम ने भ्रष्टाचारी को प्रतिष्ठा दी है और ईमानदार लोगों को ठुकराया है। शहर में सब से अधिक काला धन रखने वाला व्यक्ति साल में माता का एक जागरण करवा कर या मंदिर बनवा कर सब से बड़ा धर्मात्मा और ईमानदार बन जाता है, और ईमानदारी से काम करने वाले को मजा चखा सकता है। मुखौटा पहन कर सब से बड़ा वेश्यागामी रामलीला में हनुमान का अभिनय कर सकता है, और जनता की जैजैकार का भागी हो जाता है।
    ह हमारा दोहरा चरित्र है। हम इस के आदी हो चुके हैं। हम इस से त्रस्त हैं, लेकिन इस किले में एक कील भी नहीं ठोकना चाहते। जब हमारी बारी आती है तो हम कहते है, हम कर भी क्या सकते हैं। एक चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। चने का ही भुरकस निकल जाता है। आखिर हम बाल-बच्चे वाले इंसान हैं। हमारा आत्मविश्वास डगमगा गया है, हम कहते हैं सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा, कभी कुछ ठीक नहीं हो सकता। चार दिन पहले ही जब मैं ने कहा था कि क्रिकेट विश्वकप जीत का सबक 'एकता और संघर्ष' जनता के लिए मुक्ति का मार्ग खोल सकता है तो उस आलेख पर एक मित्र की टिप्पणी थी कि आप मुझे निराशावादी कह सकते हैं लेकिन इस देश में कभी कुछ नहीं हो सकता।  उन मित्र की इस निराशा में भी एक बात जरूर थी, वे इस व्यवस्था के समर्थक तो नहीं थे।
    र अब जब कि दो दिन पहले तक देश को क्रिकेट के नशे में डुबोने के भरपूर प्रयास किए जा रहे थे और देश भर उस नशे में डूबा दिखाई दे रहा था। अचानक अगले ही दिन वह उस नशे से मुक्त हो कर अण्णा हजारे के साथ खड़े होने की तैयारी कर रहा है। बहुत से लोगों ने अण्णा हजारे का नाम कल पहली बार सुना था और वे पूछ रहे थे कि ये कौन है? आज वे ही उस के साथ खड़े होने को इक्कट्ठे हो रहे हैं। गैर-राजनैतिक संगठन बनाने के लिए बैठकें कर रहे हैं। इस आलेख को लिखने के बीच ही एक मित्र का फोन आया कि परसों शाम बैठक है, आप को जरूर आना है। धन के कार्बन और राजनेताओं के गंधक/पोटाश ने देश के चप्पे-चप्पे पर जो बारूद बिछाया है वह एक स्थान पर इकट्ठा हो रहा है और कभी भी विस्फोट में बदल सकता है। अण्णा ने उस बारूद तक पहुंचने का मार्ग प्रस्तुत कर दिया है।
    ब अण्णा अनशन पर बैठने जा रहे थे तो मन में यह शंका थी कि कुछ घंटों में ही कुर्सी तृष्णा वाले राजनेता जरूर उन का पीछा करेंगे। यह आशंका सही सिद्ध हुई। वे अपनी कमीज को सफेद साबित करने के लिए अण्णा से मिलने पहुँचे। लेकिन जनता ने उन्हें बाहर से ही विदा कर दिया। यह सही है कि हमारी संसदीय राजनीति के सानिध्य ने किसी दल को अछूता नहीं छोड़ा। वे जिसे हाथ लगाते हैं वह मैला हो जाता है। इस काम को सिर्फ जनता के संगठन ही पूरा कर सकते हैं। राजनेता इस काम की गति में अवरोध और प्रदूषण ही पैदा कर सकते हैं। फिलहाल जनता ने उन्हें कह दिया है  -राजनेता नहीं चाहिए।

    सोमवार, 4 अप्रैल 2011

    बस पर किस का बस है

    प्राक्कथनः
    हम बस में सवार थे
    अचानक बस से उतार लिए गए
    सड़क रुकी हुई थी
    बसों, ट्रकों, जीपों कारों की कतार थी
    माजरा देखा
    बीच रास्ते पर शामियाना तना हुआ था
    अंदर एक सफेद पर्दे पर 
    प्रोजेक्टर से  निकली रोशनी
    खेल रही थी
    मैच चल रहा था विश्वकप का 
    कभी उतार तो कभी चढ़ाव
    आखिर मैच खत्म 
    जश्न शुरू हुआ
    नाचते गाते सुबह होने को हुई 
    तो सड़क साफ हुई हम फिर बस में थे

    .... और अब एक कविता अम्बिकादत्त की-

    बस पर किस का बस है

    • अम्बिकादत्त

    कोई नहीं जानता बस कहाँ जाएगी
    बस कुएँ में पड़ी बाल्टी की तरह है
    लोगों को पता है बस सरकारी है
    लोग जानते हैं बस घाटे में है
    लगो सोचते हैं बस कभी तो जाएगी
    लगो नहीं जानते बस कब जाएगी
    बस बंद है, जिन खिड़कियों में काँच नहीं है
    वे खिड़कियाँ भी बन्द हैं
    लोग आ रहे हैं, लोग जा रहे हैं
    सामान जमा रहे हैं, बीड़ियाँ सुलगा रहे हैं
    खटर-पटर सी मची है, बस चलेगी यह उम्मीद जगी हुई है
    सीट पर आराम से बैठा आदमी, आशंकित है
    ऊपर रखा सामान कभी भी उस के माथे पर गिर सकता है/ उस की सीट का नम्बर
    किसी और को मिल सकता है
    उफ! कितनी उमस है कितनी तकलीफ है
    थकान है फिजूल झगड़ा है, थोड़ी देर के सफर में भी सकून नहीं
    चलिए छोड़िए! जरा बताइए भाई साहब, कितना बजा है, बस कब जाएगी