कल शाम की बैठक में सौ से कुछ अधिक लोग अपने संगठनों के प्रतिनिधि के रूप में एकत्र हुए थे। इसलिए कि जन-लोकपाल-विधेयक के लिए चल रही लड़ाई में कोटा का क्या योगदान हो। तरह तरह के सुझाव आए। सभी अपना अपना तरीका बता रहे थे। आखिर अगले तीन दिनों का कार्यक्रम तय करने के लिए एक पाँच व्यक्तियों की समिति बना ली गई। सुबह साढ़े नौ बजे गांधी चौक पर एकत्र हो कर विवेकानंद सर्किल तक एक जलूस निकाला जाना तय हुआ। कुछ नौजवान तुरन्त ही आमरण अनशन पर बैठने को उतारू थे। लेकिन उन्हें समझाया गया कि इस की अभी आवश्यकता नहीं है। यदि आवश्यकता होने पर अवश्य ही उन्हें यह काम करना चाहिए। सब लोग अलग अलग संगठनों से थे लेकिन एक बात पर सहमति थी कि जो कुछ भी किया जाए वह अनुशासन में हो और लगातार गति बनी रहे।
इस बैठक में यह आम राय थी कि जन-लोकपाल-विधेयक बन जाने से बदलाव आ जाएगा, इस बात का उन्हें कोई भ्रम नहीं है। वस्तुतः देश में बदलाव के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी, जनता को संगठित करना पड़ेगा। इस के साथ ही लोगों में जो गलत मूल्य पैदा हो गए हैं उन्हें समाप्त करने और सामाजिक मूल्यों को स्थापित करने के लिए सतत संघर्ष चलाना पड़ेगा। इस सतत संघर्ष के लिए सतत प्रयासरत रहना होगा। बैठक समाप्त होने के उपरान्त जैसे ही मैं घर पहुँचा टीवी से पता लगा कि सरकार और इंडिया अगेन्स्ट करप्शन के बीच समझौता होने वाला है। देर रात जन्तर-मन्तर पर विजय का जश्न आरंभ हो चुका था।
सुबह लोग गांधी चौक पर जलूस के लिए एकत्र हुए। लेकिन संघर्ष का जलूस अब एक विजय जलूस में परिवर्तित हो चुका था। नौजवान लोग पटाखे छुड़ाने को उतारू थे। लेकिन पूछ रहे थे कि क्या वे इस जलूस में पटाखे छुड़ा सकते हैं। समिति ने तुरंत अनुमति दे दी। पटाखे छूटने लगे, जश्न मनने लगा। जब जलूस अपने गंतव्य पर पहुँचा तो लोगों ने अपने अपने विचार प्रकट किए। सभी का विचार था कि देश में बदलाव के लिए संघर्ष का एक युग आज से आरंभ हुआ है। इस कारण कल जिस एकता का निर्माण हुआ है उसे भविष्य के संघर्ष के लिए आगे बढ़ाना है। हर मुहल्ले में जनता को संगठित करना है और भ्रष्टाचार के विरुद्ध वातावरण का निर्माण करना है।
13 टिप्पणियां:
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जो भी हो.. काँग्रेस ने एक पैंतरा ्तो खेल ही लिया ।
इसकी ड्राफ़्टिंग की हर समीक्षा में कुछ लटके निकाले जायेंगे,
और मामला टलता रहेगा... ज़रूरत इच्छाशक्ति की है, और इस अलख को जगाये रखने की है ।
agreed....
बस, यह अलख जगाये रखना है...
व्यक्ति नहीं मुद्दा महत्वपूर्ण है...
गांधी नहीं गांधी की विचारधारा अमर है...
स्कूल के बच्चे धूप-गर्मी की परवाह किए बिना जंतर-मंतर पर आ जुटे...सिर्फ इसलिए कि वो अपना भविष्य भ्रष्ट भारत में नहीं देखना चाहते...
सरकार की मंशा पर मुझे भी भरोसा नहीं है...लेकिन क्या ये पहली बार नहीं हुआ सरकार को जनता की आवाज़ के सामने घुटने टेकने पड़े...
इस पूरे प्रकरण के दौरान सम्वेदना के स्वर की ये दो पंक्तियां सटीक विश्लेषण कर देती हैं...
भेड़ियों के झुंड में खलबली है,
एक गाय ने शमशान की राख सींग पर मली है...
जय हिंद...
सही कहा आपने अगर एक विधेयक पारित होने से भ्रष्टाचार मिट जायेगा तो हम जीत गए !नहीं तो जहाँ कल वहां आज!!!
कहीं भ्रष्टाचार के विरुद्ध संकल्पित अभियान ग्लैमरस तड़क भड़क प्रदर्शनों की भेंट तो नहीं चढ़ रहा है ? यह भी एक पर्व होने की और तो अग्रसर नहीं है -गणेश पूजा या दुर्गा पूजा की तरह ?
युवाओं का क्या ,उन्हें कुछ सेलिब्रेट करने को चाहिये -वे जान तक भी दे सकते हैं -वी पी सिंह ने ऐसी कई जाने लीं जब मरना एक जनून बन गया था -
मुझे लगता है कि इन आंदोलनों को फोकस्ड और परिणाम निकालू होने चाहिए और गाने बजाने मीडिया ग्लैमर के बजाय जुझारू और टिकाऊँ होना चाहिए -हर जगहं इसके लिए समर्पित और जुझारू नेतृत्व की जरुरत है!नहीं तो यह भी भटक जायेगा !
@खुशदीप भाई,
तिक्त अनुभव यह है बच्चे खुद नहीं आते प्रबंध तंत्र द्वारा लाये जाते हैं -बच्चों के इस दुरूपयोग पर मैं हमेशा खिन्न होता रहा हूँ !
यहाँ भी एक बड़े स्कूल का भ्रष्ट तंत्र बच्चों को ऐसे ही इस्तेमाल करता है -और वे बेहोश तक होते देखे गए हैं -बिना खाए पिए तेज धूप में तख्ती लिए !
ये आग सीने मे यूँ जलती रहे तो कुछ बात बने
वक्त का मरहम हर जख्म भर देता है
यह ज्योति बस दीप बन हर हृदय में जलती रहे।
आपके लेख में व्यक्त विचारों से पूरी तरह से सहमत हूँ.
बजा दिया क्रांति बिगुल, दे दी अपनी आहुति अब देश और श्री अन्ना हजारे की जीत पर योगदान करें आज बगैर ध्रूमपान और शराब का सेवन करें ही हर घर में खुशियाँ मनाये, अपने-अपने घर में तेल,घी का दीपक जलाकर या एक मोमबती जलाकर जीत का जश्न मनाये. जो भी व्यक्ति समर्थ हो वो कम से कम 11 व्यक्तिओं को भोजन करवाएं या कुछ व्यक्ति एकत्रित होकर देश की जीत में योगदान करने के उद्देश्य से प्रसाद रूपी अन्न का वितरण करें.
महत्वपूर्ण सूचना:-अब भी समाजसेवी श्री अन्ना हजारे का समर्थन करने हेतु 022-61550789 पर स्वंय भी मिस्ड कॉल करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे. पत्रकार-रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना हैं ज़ोर कितना बाजू-ऐ-कातिल में है.
हां बिल्कुल ठीक कहा है सर आज के समय में सबसे जरूरी यही है समझना कि वातावरण का निर्माण किया जाए वो आंदोलन का रूप तो अपने आप पकड ही लेगा । लोगों को आपस में संगठित होना चाहिए । धर्म ,जाति भाषा क्षेत्र आदि से ऊपर उठ कर अब जरा देश के लिए अपने लिए और आने वाली नस्लों के लिए कुछ करने का समय है ..
पर.... अभी से सवाल उठने लगे :(
अपने आस पास देखें, कितना दुराचरण, कितना भ्रष्टाचार पसरा पड़ा है। उसकी कोई बात ही नहीं करता!
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