@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: इस के हिस्से में आख़िर ये रोशनी क्यूँ है

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

इस के हिस्से में आख़िर ये रोशनी क्यूँ है

हमद सिराज फ़ारूक़ी एम.ए. (उर्दू) हैं, लेकिन यहाँ कोटा में अपना निजि व्यवसाय करते हैं। जिन्दगी की जद्दोजहद के दौरान अपने अनुभवों और विचारों को ग़ज़लों के माध्यम से उकेरते भी हैं। 'विकल्प' जनसांस्कृतिक  मंच कोटा द्वारा प्रकाशित बीस रचनाओं की एक छोटी सी पुस्तिका उन का पहला और एक मात्र प्रकाशन है। अपने और अपने जैसे लोगों के सच को वे किस खूबी से कहते हैं, यह इस ग़ज़ल में देखा जा सकता है .......

'ग़ज़ल'

इस के हिस्से में आख़िर ये रोशनी क्यूँ है

  • हमद सिराज फ़ारूक़ी

बढ़ी है मुल्क में दौलत तो मुफ़लिसी क्यूँ है
हमारे घर में हर इक चीज़ की कमी क्यूँ है

मिला कहीं जो समंदर तो उस से पूछूंगा
मेरे नसीब में आख़िर ये तिश्नगी क्यूँ है

इसीलिए तो है ख़ाइफ ये चांद जुगनू से 
कि इस के हिस्से में आख़िर ये रोशनी क्यूँ है

ये एक रात में क्या हो गया है बस्ती को
कोई बताए यहाँ इतनी ख़ामुशी क्यूँ है

किसी को इतनी भी फ़ुरसत नहीं कि देख तो ले
ये लाश किस की है कल से यहीँ पड़ी क्यूँ है

जला के खुद को जो देता है रोशनी सब को
उसी चराग़ की क़िस्मत तीरगी क्यूँ है

हरेक राह यही पूछती है हम से 'सिराज' 
सफ़र की धूल मुक़द्दर में आज भी क्यूँ है



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15 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बहुत बढ़िया है, शायद मैं पहले भी कहीं पढ़ चुका हूं या कुछ इसी तरह की भावनाओं से युक्त पढ़ी होगी... बहुत अच्छी गजल है..

आकाश सिंह ने कहा…

आपके ब्लॉग पे आया, दिल को छु देनेवाली शब्दों का इस्तेमाल कियें हैं आप |
बहुत ही बढ़िया पोस्ट है
बहुत बहुत धन्यवाद|

यहाँ भी आयें|
यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो फालोवर अवश्य बने .साथ ही अपने सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ . हमारा पता है ... www.akashsingh307.blogspot.com

Smart Indian ने कहा…

बढ़िया गजल!

Udan Tashtari ने कहा…

वाह१! बहुत उम्दा गज़ल पढ़वाई आपने. आभार.

Shah Nawaz ने कहा…

बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है, शब्दों में बड़ी ख़ूबसूरती के साथ इतनी गहराई लेकर आएं हैं अहमद सिराज फ़ारूक़ी साहब... इस ग़ज़ल के ज़रिये मुलाकात करवाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

किसी को इतनी भी फ़ुरसत नहीं कि देख तो ले
ये लाश किस की है कल से यहीँ पड़ी क्यूँ है
कौन जाने कब ये फुर्सत होगी

सञ्जय झा ने कहा…

हरेक राह यही पूछती है हम से 'सिराज'
सफ़र की धूल मुक़द्दर में आज भी क्यूँ है.......

jeh-nasib......anandum-anandum....

pranam.

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक ने कहा…

आज हर दूसरा व्यक्ति अपने दुःख से कम दुखी है बल्कि दूसरों के सुखी होने के कारण ज्यादा दुखी है. पत्रकार, लेखक और कवि अपनी विचारधारा को समाचारों, लेखों और कवितायों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाते हैं. इसलिए किसी ने कितना सही कहा है कि- जहाँ न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि. ग़ज़ल की गहराईयाँ दिल को छू लिया है. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति के लेखक और ब्लॉगर को धन्यबाद!

भ्रष्टाचारियों के मुंह पर तमाचा, जन लोकपाल बिल पास हुआ हमारा. जन लोकपाल बिल को लेकर सरकार की नीयत ठीक नहीं लगती है.अब लगता है इन मंत्रियों को जूता-चप्पल की भाषा समझ आएगी. हमें अपने अधिकारों लेने के लिए अब ईंट का जवाब पत्थर से देना होगा. महत्वपूर्ण सूचना:-अब भी समाजसेवी श्री अन्ना हजारे का समर्थन करने हेतु 022-61550789 पर स्वंय भी मिस्ड कॉल करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बेहतरीन, आपकी गज़लों में एक विशेष अपनापन लगता है।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

अच्छॆ प्रश्न पर इसका उत्तर का है !!!

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

bhtrin gzal ke liyen shukriyaa jnaab . akhtar khan akela kota rajsthan

बेनामी ने कहा…

बढ़ी है मुल्क में दौलत तो मुफ़लिसी क्यूँ है...

अच्छी ग़ज़ल...

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब ! शुभकामनायें आपको !

M VERMA ने कहा…

जला के खुद को जो देता है रोशनी सब को
उसी चराग़ की क़िस्मत तीरगी क्यूँ है
बहुत सुन्दर गज़ल

निर्मला कपिला ने कहा…

faarookee jee gazal ke liye kuch kahanaa sooraj ko deep sikhaane ke baraabar hogaa. pooree gazal bahut kamaal kee hai| dhanyavaad ise padhavane ke liye.