@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत

सोमवार, 29 नवंबर 2010

राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा

पिछली 29 अक्टूबर की पोस्ट में मैं ने ब्लागीरी में पिछले दिनों हुई अपनी अनियमितता का उल्लेख करते हुए दीपावली तक नियमित होने की आशा व्यक्त की थी। मैं ने अपने प्रयत्न में कोई कमी नहीं रखी। उसी पोस्ट पर ठीक एक माह बाद भाई सतीश सक्सेना जी की टिप्पणी ने मुझे स्मरण कराया कि मुझे अपने काम का पुनरावलोकन करना चाहिए, कम से कम नियमितता के मामले में अवश्य ही। तो अनवरत पर मेरी अब तक 15 पोस्टें हो चुकी हैं और यह सोलहवीं है। इस तरह मैं ने अनवरत पर हर दूसरे दिन एक पोस्ट लिखी है। तीसरा खंबा पर इस एक माह में 18 पोस्टें हुई हैं। मुझे लगता है कि इन दिनों जब कि कुछ व्यक्तिगत कामों में व्यस्तता बढ़ गई है, यह गति ठीक है। हालांकि इस बीच हर उस दिन जब कि मैं ने कोई पोस्ट इस ब्लाग पर नहीं की यह लगता रहा कि आज मुझे यह बात लिखनी थी, लेकिन समय की कमी से मैं ऐसा नहीं कर पा रहा हूँ। लगता है कि ब्लागीरी मेरे लिए एक ऐसा कर्म हो गई है, जिस के बिना दिन ढल जाना क्षय तिथि की तरह लगने लगा है जो सूर्योदय होने के पहले ही समाप्त हो जाती है। 
ल से ही अचानक व्यस्तता बढ़ गई। शोभा की बहिन कृष्णा जोशी के पुत्र का विवाह है, और उस के पिता को वहाँ भात (माहेरा) ले जाना है। शोभा उसी की तैयारियों के लिए मायके गई थी, कल सुबह लौटी। चार दिन में घर लौटी तो, सब से पहले उस ने घर को ठीक किया। मुझे भी चार दिन में अपने घर का भोजन नसीब हुआ। वह कल शाम फिर से अपनी बहिन के यहाँ के लिए चल देगी और फिर विवाह के संपन्न हो जाने पर ही लौटेगी। इन दो दिनों में उसे बहुत काम थे। उसे घर को तैयार करना था जिस से उस में मैं कम से कम एक सप्ताह ठीक से रह सकूँ। उसे ये सब काम करने थे। इन में कुछ काम ऐसे थे जो मुझ से करवाए जाने थे। मैं भी उन्हीं में व्यस्त रहा। आज मुझे अदालत जाना था और वहाँ से वापस लौटते ही शोभा के साथ बाजार खरीददारी के लिए जाना था। शाम अदालत से रवाना हुआ ही था कि संदेश आ गया कि अपने भूखंड पर पहुँचना है वहाँ बोरिंग के लिए मशीन पहुँच गई है। मुझे उधर जाना पड़ा। वहाँ से लौटने में देरी हो गई। वहाँ से आते ही बाजार जाना पड़ा। जहाँ से लौट कर भोजन किया है। अभी अपनी वकालत का कल का काम देखना शेष है। फिर भी चलते-चलते एक व्यसनी की तरह यह पोस्ट लिखने बैठ गया हूँ।
ल फिर व्यस्त दिन रहेगा। आज जो नलकूप तैयार हुआ है उसे देखने अपने भूखंड पर जाना पड़ेगा, कल शायद नींव खोदने के लिए रेखाएँ भी बनाई जाएंगी। वहाँ से लौट कर अदालत भी जाना है और शोभा को भी बाजार का काम निपटाने में मदद करनी है। कल उस की एक बहिन और आ जाएगी, एक यहां कोटा ही है। कल रात ही इन्हें ट्रेन में भी बिठाना है। कल भी समय की अत्यंत कमी रहेगी। इस के बाद पाँच दिसम्बर सुबह से ही मैं भी यात्रा पर चल दूंगा। उस दिन जयपुर जाना है, शाम को लौटूंगा और अगले दिन सुबह फिर यात्रा पर निकल पड़ूंगा। इस बार यात्रा में मेरी अपनी ससुराल झालावाड़ जिले में अकलेरा, फिर सीहोर (म.प्र.) और भोपाल रहेंगे। विवाह के सिलसिले में सीहोर तो मुझे तीन दिन रुकना है। एक या दो दिन भोपाल रुकना होगा। मेरा प्रयत्न होगा कि यात्रा के दौरान अधिक से अधिक ब्लागीरों से भेंट हो सके। 
ब आप समझ ही गए होंगे कि मैं 12 दिसम्बर तक व्यस्त हो गया हूँ। दोनों ही ब्लागों पर भी 4 दिसंबर के बाद अगली पोस्ट शायद 13 दिसम्बर को ही हो सकेगी। इस बीच मुझे अंतर्जाल पर आप से अलग रहना और अपनी बात आप तक नहीं पहुँचाने का मलाल रहेगा। लेकिन क्या किया जा सकता है? 
फ़ैज साहब ने क्या बहुत खूब कहा है ....
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजै
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजै
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा

शनिवार, 27 नवंबर 2010

दिखावे की औपचारिकता

न दिनों अपने आसपास लगातार कुछ ऐसा घटता रहा है कि ब्लाग लेखन की गति बाधित होती रही है। पिछले दस दिनों में एक दिन छोड़ कर शेष दिनों बरसात होती रही। मैं नगर के जिस क्षेत्र में रह रहा हूँ वहाँ की सड़क के किनारे पिछले दिनों ही सीवर लाइन के लिए पाइप डाले गए। निकली हुई मिट्टी वापस भर दी गई। लेकिन बहुत सी मिट्टी बाहर थी। बीच-बीच में जहाँ चैम्बर बनाए गए थे वहाँ मिट्टी का ढेर था। बरसात से सारी मिट्टी बह कर सड़क पर आ गई। पैदल चलना दूभर हो गया। मेरे घर के आगे की सड़क उसी मुख्य सड़क पर जहाँ मिलती है वहीं सीवर लाइन का पाइप डालने से जितनी सड़क टूटी वहाँ मिट्टी भर दी गई थी, लेकिन बरसात से बैठ गई और गड्ढा हो गया, उपर से चिकनी मिट्टी का कीचड़। वहाँ हो कर दुपहिया वाहन का निकलना तक दूभर हो गया। अब यदि कहीं जाना है तो अपनी कार में जाइए और उसी से वापस आ जाइए। यह सुविधा मेरे पास तो है लेकिन बाकी लोग? उन का आना-जाना कैसे हो रहा है? वे ही जानते हैं। 
प्ताह भर पहले सुबह-सुबह कार ने स्टार्ट होने से मना कर दिया। बेचारी क्या करती। यह संकेत वह पिछले दो माह में तीन-चार बार दे चुकी थी। धकियाया  जाता तो चल पड़ती और एक-दो सप्ताह कोई शिकायत नहीं करती। मैं ने जिन्हें बताया उन्हों ने कहा कि बैटरी दिखाओ। मैं ने बैटरी वाले के यहाँ जो मेरा एक मुवक्किल भी है, बैटरी दिखाई, उस ने जाँच करवा कर बताया कि बैटरी बिलकुल ठीक है, इस का सेल्फ लोड ले रहा है आप उस की सर्विस कराइये। इस बीच समय नहीं मिला और सर्विस नहीं करवा पाया। वैसे कार की सर्विस का समय भी निकल चुका था। आखिर मैं ने कार को कुछ लोगों की मदद से धकिया कर चालू किया और उस के अस्पताल पहुँचा दिया। पास ही स्थित इस अस्पताल ने शाम को चमचमाती कार मेरे हवाले कर दी। कार एक सप्ताह शानदार चलती रही।फिर तीन दिन पहले एक शादी में गए, वहाँ से किसी को उन के घर छोड़ा, तो वहाँ कार ने फिर चालू होने से मना कर दिया। कार किसी तरह चालू कर हम घर ले आए। रात को बरसात आरंभ हो गई।  और सुबह कार ने चालू होने से इन्कार कर दिया।
मैं ने कार को रिवर्स में अपने घर से उतारा और रिवर्स में उसे चालू करने का प्रयत्न किया। लेकिन उसने  इस तरह चालू होने से मना कर दिया। समय ऐसा था कि कोई धकियाने वाला नहीं दिखाई दिया। एक सज्जन आए तो उन्हों ने कोशिश की पर कार को चालू नहीं होना था वह चालू नहीं हुई। बरसात ने सड़क को कीचड़ से भर दिया था। पैदल कार-अस्पताल तक जाना संभव नहीं था। अस्पताल का फोन नंबर भी नहीं मिल रहा था। सोचा बाइक से जाया जाए। पर मुझे बाइक का इतना अभ्यास नहीं कि कीचड़ वाली सड़क और गड्ढों में आत्मविश्वास से चला सकूँ। आखिर बहुत दिनों से धूल खा रहा अपना बीस साल पुराना साथी बजाज स्कूटर काम आया। उस की धूल साफ की गई। फिर उसे दायीं तरफ झुका कर सलामी दी गई। एक सलामी से काम न चला तो दूसरी सलामी दी, जिस के बाद एक किक में स्टार्ट हो गया। 
कार अस्पताल में भीड़ थी।  मैं ने प्रबंधक को बताया कि चार दिन पहले सर्विस के समय मैं ने बताया था कि गाड़ी सेल्फ यूनिट से स्टार्ट होने मना करती है  इसे विशेष रूप से चैक कर लें। प्रबंधक कहने लगा, हमने चैक किया था और कार सामान्य रूप से चालू हो रही थी। हम ने उसे छेड़ना उचित नहीं समझा। अब मैं कुछ देर में मिस्त्री को फुरसत होते ही भेजता हूँ। वैसे भी आज तो सेल्फ यूनिट की सर्विस नहीं हो पाएगी। मैं परेशान, स्कूटर या बाइक से अदालत जाना कठिन था, बीच-बीच में बारिश हो रही थी। मैं घर आ कर मिस्त्री का इंतजार करता रहा। उसे न आना था, न आया। मैं ने आखिर महेन्द्र भाई (नेह) को शिकायत लगाई। वे कोटा के सब से बड़े सर्वेयर और क्षति निर्धारक हैं। उन के बात करने पर अस्पताल वाले ने संदेश दिया कि आप बाइक ले कर अस्पताल आ जाएँ। हम मिस्त्री भेजते हैं। मैं मिस्त्री को लेकर आया। वह एक नई बैटरी साथ ले कर आया था। बैटरी बदलते ही कार सामान्य रूप से चालू हो गई। कार को चालू छोड़ कर मिस्त्री ने अपनी बैटरी निकाल ली और पुरानी वापस डाल दी। कहने लगा आप अब तुरंत बैटरी बदल दीजिए। 
मैं ने कार से मिस्त्री को ठिकाने छोड़ा और बैटरी वाले के पास पहुँचा। उस ने बैटरी को चैक किया तो फ्लूड का घनत्व सही पाया लेकिन सेल सांसे गिन रहे थे। नई बैटरी डाल दी गई। मैं ने बैटरी वाले को पूछा कि दो सप्ताह पहले जब बैटरी चैक कराई थी तब क्या हुआ था। कहने लगा हमने तब केवल घनत्व जाँचा था। मैं ने उसे कहा कि मैं जब कह रहा था कि स्टार्ट होने में समस्या है तो आप को सेल भी जाँचना चाहिए था। उस के स्थान पर आप ने सेल्फ यूनिट की सर्विस कराने को कहा। उस दिन सेल जाँच लिया जाता  तो यह समस्या नहीं होती। उस ने अपने कर्मी की गलती स्वीकार की और कहा कि आगे से हर उपभोक्ता के मामले में इस बात का ध्यान रखूंगा।  मैं कार-वर्कशॉप आया, वर्कशॉप मैनेजर को धन्यवाद किया, इस उलाहने के साथ कि जब मैं ने सेल्फ यूनिट के ठीक काम न करने की शिकायत दर्ज कराई थी तो कार सर्विस के दौरान सेल्फ दुरुस्त पाए जाने पर बैटरी को जाँचना चाहिए था और उसी दिन बैटरी बदलने की सलाह दे देनी चाहिए थी। उस ने अपनी गलती स्वीकार की। 
मैं ने कष्ट इसलिए पाया कि बैटरी वाले ने और वर्कशॉप ने अपनी सेवाएँ ठीक से नहीं की थीं और यह सेवा दोष एक उपभोक्ता मामला बन चुका था। मैं चाहता तो दोनों को परेशानी और मानसिक संताप के लिए हर्जाना देने को कह सकता था। मना करने पर उपभोक्ता अदालत में जा सकता था। लेकिन दोनों ने गलती स्वीकार की थी। और भविष्य में सेवाएँ सुधारने का वायदा किया था। मैं यह भी जानता था कि उपभोक्ता अदालत में मुकदमों की भरमार है वहाँ भी साल-दो साल फैसला होने में लग जाएंगे। मुकदमे से परेशानी होगी वह अलग है। लेकिन यह जरूर है कि इन दोनों में से किसी ने भी सेवा में कोताही की तो मैं उपभोक्ता अदालत को शिकायत अवश्य करूंगा। हमारे यहाँ सेवादोष हर जगह मिलता है। उस का मुख्य कारण है कि उपभोक्ता सेवा प्रदाता या विक्रेता की शिकायत नहीं करता। उधर उपभोक्ता अदालतों की हालत यह है कि वहाँ मुकदमे जल्दी निपटाए ही नहीं जाते। अधिकतर जज  सेवानिवृत्त हैं और केवल समय बिता रहे हैं। फिर कभी कोरम पूरा नहीं होता, कभी सदस्यों की नियुक्ति नहीं होती तो कभी जज नहीं है। जब अदालतें मुकदमों के निपटारे में समय लगाने लगती हैं तो उपभोक्ता अदालत में मामला ले जाने से कतराने लगता है।  यदि उपभोक्ता अदालतों में मामलों के निर्णय छह माह से एक वर्ष के भीतर होने लगें तो विक्रेता और सेवाप्रदाताओं को उपभोक्ताओं को अच्छी सेवा देने पर मजबूर होना पड़े। पर लगता है सरकारें समस्या के वास्तविक समाधान पर कम और दिखावे की औपचारिकता पर अधिक ध्यान देती हैं।

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

उन्हें जज नहीं, तोते चाहिए

ख़्तर खान अकेला (हालांकि फोटो बता रहा है कि वे अकेले नहीं) को आप द्रुतगामी ब्लागीर कह सकते हैं। वे वकील हैं और पत्रकारिता से जुड़े हैं। दिन भर अदालत में वकालत का काम करना और फिर दफ्तर करना। दफ्तर में जब भी वक़्त मिल जाए ब्लागीरी करना। ज़नाब ने 7 मार्च 2010 को अपने ब्लाग की पहली पोस्ट ठेली थी, आज यह पोस्ट लिखने तक उन की 1517वीं पोस्ट प्रकाशित हो चुकी थी। यदि वे दफ़्तर से निकल न चुके होंगे तो आज की तारीख में अभी और पोस्ट आने की संभावना पूरी पूरी है, यह पोस्ट लिखने तक यह संख्या 1518 ही नहीं 1520 भी हो सकती है। नवम्बर के 25 दिनों में पूरी 160 पोस्टें ठेली हैं ज़नाब ने। कब पाँच सौ, कब हजार और कब डेढ़ हजार पोस्टें डाल चुके पर चूँ तक भी नहीं की। कोई स्वनामधन्य होता तो अब तक के हर शतक पर एक-एक पोस्ट और ठेल कर ढेरों बधाइयाँ और शुभकामनाएँ प्राप्त कर चुका होता। पर अख़्तर भाई हैं कि उन से कुछ कहो तो कभी मुस्कुरा कर और कभी हँस कर टल्ली मार जाते हैं। 
ब हम कोटा के वकील हड़ताल कुछ ज्यादा करते हैं। यह भी एक कारण है कि जो जो वकील ब्लागीर (मुझ समेत) हुआ सफल हो गया।  चार दिन पहले अख़्तर भाई ने लिखा, -कोटा के वकीलों की हड़ताल बनी मजबूरी। अब ये कोटा के वकीलों की मजबूरी थी या फिर हमारे मौजूदा नेताओं की। पर तीन दिन से अदालत में काम बंद है। आज मैं अदालत से जल्दी खिसक आया था। शाम होते होते पता लगा कि हड़ताल लंबी चलने वाली है, हो सकता है ये साल हड़ताल में पूरा हो जाए। इस साल की तरह फिर से हड़ताल को खत्म करने के लिए वकीलों के नेता बहाना तलाशने लगें।
ब हमारे यहाँ अभिभाषक परिषद के चुनाव हर साल होते हैं और विधान के मुताबिक 15 दिसंबर तक चुनाव होने जरूरी हैं और नए साल के पहले कार्यदिवस पर नयी कार्यकारिणी परिषद का कामकाज सम्भाल लेती है। इस बार प्रस्ताव आया कि चूँकि पिछले साल हमें चार माह की हड़ताल करनी पड़ी थी, मुख्य मंत्री ने कुछ आश्वासन दिए थे वे अब तक पूरे नहीं किये हैं। इस कारण से हमें लगातार संघर्ष करना पड़ रहा है। मौजूदा कार्यकारिणी अच्छा संघर्ष चला रही है इस लिए संघर्ष के समापन तक चुनाव स्थगित कर दिया जाए। यूँ कहा जाता है कि वर्तमान कार्यकारिणी पर भाजपा के लोग शामिल हैं। पर ये इंदिरागांधी से सीधे प्रेरणा ले रहे थे। कि आपातकाल बता कर अपनी उमर बढ़वा लो। प्रस्ताव असंवैधानिक था और वकीलों की आमसभा ने उस पर बहस से ही इन्कार कर दिया। चुनाव होना तय हो गया। लेकिन कार्यकारिणी ने दूसरे दिन से ही तीन दिन की सांकेतिक हड़ताल की घोषणा कर दी। दबे स्वर में लोग कह रहे हैं कि कार्यकारिणी का सोच यह है कि पिछली ने चार माह हड़ताल कर के नयी कार्यकारिणी को सौंप गए थे। अब मौजूदा कार्यकारिणी नयी को हड़ताल का कार्यभार न सोंप कर जाएँ तो कहीं ऐसा न हो उन्हें ग़बन का आरोप झेलना पड़े। 
यूँ मुझे व्यक्तिगत तौर पर भारत के समाजवादी या हिन्दू राष्ट्र होने तक की हड़ताल मंजूर है। वकालत के अलावा और भी बहुत जरीए हैं खाने-कमाने के। पर आखिर हड़ताल से काम बंद होता है और पहले से ही चींटी की चाल से चल रही न्याय की गाड़ी और धीमी हो जाती है। मैं जब ये बात कहता हूँ तो वकील मित्र कहते हैं पहले ही कौन न्याय हो रहा है जो रुक जाएगा, नुकसान तो हमें हो रहा है, जेब में पैसे आने ही बंद हो जाते हैं। मैं उन्हें कहता हूँ कि वकालत की गाड़ी दौड़ाने का एक तरीका है। जितनी अदालतों में जज नहीं है वहाँ जजों की नियुक्ति के लिए लड़ो, अदालतों में पाँच-पाँच हजार मुकदमे इकट्ठे हो रहे हैं, अधिक अदालतें खोलने के लिए लड़ो। जल्दी फैसले होंगे तो अदालतों की साख बढ़ेगी, ज्यादा मुकदमे आएंगे। सरकारें फिजूल का बहाना बनाती है कि जजों के लिए काबिल लोग नहीं मिलते। वकीलों में तलाश करने जाएँ तो बहुत काबिल मिल जाएंगे। पर उन्हें काबिल वकील नहीं चाहिए। उन की परीक्षा ऐसी होती है कि कोई कामकाजी वकील उत्तीर्ण ही न हो। उन की परीक्षा ऐसी होती है कि वे ही उत्तीर्ण होते हैं जो साल-छह महीने से वकालत छोड़ कर सिर्फ किताबें रट रहा हो। उन्हें तोते चाहिए, जज नहीं। 
धर हड़ताल शुरू होने के पहले दिन से श्रीमती जी मायके चली गई हैं। मैं ने तो घर संभाल लिया है। आज हड़ताल समाप्त होने की खबर सुन कर वापस लौटने की उम्मीद थी। पर कल सुबह का अखबार जो कुछ बतायेगा उस से मैं ने तो उम्मीद छोड़ दी है। अब अख़्तर भाई इन दिनों क्या कर रहे हैं ये तो वही बताएंगे। चाहें तो आप पूछ कर देख लें।

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

कविता के अलावा

म चीजों को, लोगों को, दुनिया को बदलते हुए देखना चाहते हैं, लेकिन उस के लिए करते क्या हैं? कोई कविता लिखता है, कोई कहानी कोई भारी भरकम आलेख और निबन्ध। लेकिन क्या यह पर्याप्त है? पढ़िए शिवराम अपनी इस कविता में क्या कह रहे हैं . . .
 
कविता के अलावा
  • शिवराम
जब जल रहा था रोम
नीरो बजा रहा रहा था वंशी
जब जल रही है पृथ्वी
हम लिख रहे हैं कविता


नीरो को संगीत पर कितना भरोसा था
क्या पता
हमें जरूर यक़ीन है 
हमारी कविता पी जाएगी
सारा ताप
बचा लेगी 
आदमी और आदमियत को
स्त्रियों और बच्चों को
फूलों और तितलियों को 
नदी और झरनों को


बचा लेगी प्रेम
सभ्यता और संस्कृति 
पर्यावरण और अंतःकरण

पृथ्वी को बचा लेगी 
हमारी कविता


इसी उम्मीद में 
हम प्रक्षेपास्त्र की तरह 
दाग रहे हैं कविता
अंधेरे में अंधेरे के विरुद्ध 


क्या हमारे तमाम कर्तव्यों का 
विकल्प है कविता

हमारे समस्त दायित्वों की 
इति श्री 


नहीं, तो बताओ 
और क्या कर रहे हो आजकल 
कविता के अलावा ?

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

आप ने कुत्ता पाला या नहीं?

हो सकता है आप ने भी कुत्ता पाल रखा हो, यह भी हो सकता है कि आप ने कुत्ते पाल रखे हों। लेकिन मैं ने कभी कुत्ता नहीं पाला। पर इस का ये मतलब कतई नहीं है कि मैं कुत्तों को नापसंद करता हूँ। वे मुझे अक्सर बुरे भी नहीं लगते। लेकिन मुझे उन्हें पालना कतई पसंद नहीं है। यहाँ तक कि मुझे उन्हें रोटी डालना या कुछ खिलाना भी पसंद नहीं है। होता यह है कि आप ने किसी कुत्ते को रोटी डाली नहीं कि वह रोज उसी वक्त आप के घर के बाहर आ कर पूंछ हिलाना शुरू कर देता है। अब उस दिन आप के यहाँ रोटी नहीं है तो आप का मन उदास हो जाएगा। बेचारा कुत्ता दुम हिला रहा है और आप के पास उस के लिए रोटी नहीं है। आप उसे भगाना चाहेंगे तो वह भागेगा नहीं, इधर उधर देखने लगेगा, कुछ देर बाद फिर से आप की और ताकेगा और दुम हिलाएगा।
मेरे नए घर में एक दिन मेरे कनिष्ट साथी आए, मैं छत पर था वे सीधे दफ्तर में घुस गए। मैं छत से नीचे उतर रहा था तो मेरी निगाह गेट की ओर गई तो देखा गेट खुला है और अंदर एक कुत्ता खड़ा है। मैं ने उसे बाहर निकाल कर गेट लगा  दिया। दो-तीन मिनट बाद ही गेट के बाहर से कुत्तों के भोंकने और एक दूसरे को गरियाने की आवाजें आने लगीं। मैं ने गेट खोला तो जो कुत्ता गेट के अंदर आया था वह गेट से चिपका खड़ा था और मुहल्ले के कुत्ते उस पर भोंक रहे थे। गेट के बाहर मुझे देखते ही सब चुप हो गए। मेरे कनिष्ट दौड़ कर आए और कहने लगे यह कुत्ता मेरे साथ आया है और दूसरे मुहल्ले का होने के कारण आप के मुहल्ले के कुत्ते इस पर भोंक रहे हैं। उस की यहाँ उपस्थिति उन्हें यहाँ बर्दाश्त नहीं हो रही है। मैं ने उस कुत्ते को अंदर ले कर गेट लगा दिया। मुहल्ले के कुत्ते चले गए। कुत्ता गेट के पास ही बैठ गया। मैं ने कनिष्ट से पूछा क्या आप ने पाल रखा है। उन का जवाब था, पाल तो नहीं रखा, लेकिन उसे रोज रोटी डालते हैं इस लिए हिल गया है। हमारे पीछे-पीछे चल देता है। मुहल्ले की सीमा आते ही हम उसे वापस भेज देते हैं। आज भूल गए जिस से साथ आ गया। यह हमारे गेट के बाहर बैठा रहता है। इस से घर की सुरक्षा रहती है।
निष्ठ जी और कुत्ते का रिश्ता बड़ा अजीब था। कुत्ते को रोटियाँ चाहिए थीं वे कनिष्ठ जी ने उस पर दया कर के डालना आरंभ किया था। फिर कुत्ते ने रोटियां चुकाने के लिए घर की पहलेदारी आरंभ कर दी। अब उन में अनन्य संबंध स्थापित हो चुका था। वैसे हमारे यहाँ रिवाज है कि पहली रोटी गाय को डाली जाती है और बची हुई कुत्ते को। लेकिन यदि आप ने कुत्ता पाल लिया तो उस के लिए रोटियाँ बनानी पड़ती हैं। अपनी पसंद का कोई खास कुत्ता पालना हो तो उस के नखरे भी उठाने पड़ते हैं। उस के लिए खास भोजन लाना पड़ता है, उसे नहलाना, टहलाना पड़ता है, और भी न जाने क्या क्या करना पड़ता है। अक्सर बड़े बड़े घरों, कोठियों और बंगलों में कुत्ते पाले जाते हैं, वहाँ लिखा होता है, कुत्तों से सावधान! आप ने जैसे ही बंगले की कॉलबेल बजाई नहीं कि कुत्ता भोंकना आरंभ कर देता है। जैसे घन्टी बजा कर आपने अपराध कर दिया हो। वैसे भी कॉलबेल का काम पूरा हो चुका होता है और आगे का कर्तव्य कुत्ता पूरा करता है। कुत्ते की आवाज सुन कर अक्सर कोई बंगले में दिखाई देने लगता है। अगर वह आप को जानता है तो कुत्ते को बांध देता है। यदि कुत्ता पहले से बंधा होता है तो कहता है आप बैखोफ अंदर आ जाइये, कुत्ता कुछ नहीं करेगा। मेरी धारणा है कि सब बड़े-बड़े लोग कुत्ते पालते हैं, कुत्तों के बिना उन का काम नहीं चल सकता। 
कुत्ते बड़े लोगों के बहुत काम सरकाते हैं। जैसे कोई बड़ा उद्योग लगाना हो तो पहले कुत्ता पालना पड़ता है। कोई भी बड़ा काम करना हो तो कुत्ता पालना जरूरी है, वर्ना वह भोंकने लगेगा और सब को पता लग जाता है आप क्या करने जा रहे हैं और क्यों करने जा रहे हैं। इस तरह कुत्ते पालना बड़े लोगों के लिए जरूरी कर्म है। कुत्ता पाल लिया तो वह आप की ओर से दूसरों पर भोंकता है, आप सुरक्षित रहते हैं। बड़े आश्चर्य की बात तो यह है कि एक बड़े आदमी ने पिछले दिनों कहा कि वह हवाई जहाज कंपनी चलाना चाहता था। लेकिन उस के लिए कुत्ते पालना जरूरी था और उसे कुत्ते पालना पसंद नहीं था। मुझे इस बयान पर ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ, क्यों कि मैं पहले से जानता हूँ कि कुत्ते पाले बिना कोई भी उद्योग लगाना और चलाना संभव नहीं है। मैं ही क्या यह बात तो सभी जानते हैं, यहाँ तक कि बच्चा-बच्चा जानता है। मुझे आश्चर्य तो इस बात पर हुआ कि वे दूसरे उद्योग कैसे चला रहे हैं?
ब भले ही यह बयान उन बड़े आदमी ने गलती से दिया हो, पर इस से बड़े आदमियों पर संकट आ गया। संकट कुत्तों पर और उन के मुखियाओं पर भी आया। आखिर यह बात दूसरे बड़े आदमी कैसे सहन करते? यह समझा जाने लगा कि सब बड़े लोग कुत्ते पाल कर ही कारोबार चलाते हैं। दूसरे ने तपाक से कहा कि किसी कुत्ते में हिम्मत नहीं कि रोटी के लिए मेरे सामने दुम हिलाए। एक संन्यासी भी मैदान में आ गए, कहने लगे कि कुछ कुत्ते उन से दुम हिलाते रोटियाँ मांगने आए थे लेकिन उन्हों ने उस की शिकायत उन के मुखिया से की तो मुखिया ने कहा कि कुत्तों को आप से रोटियाँ ऐसे नहीं मांगनी चाहिए थीं जिस से लगे कि वे अपने लिए मांग रहे हों। उन्हें रोटियाँ किसी आश्रम के लिए मांगनी चाहिए थीं। 
खैर, बात कुछ भी हो। यह बात तो सर्व सिद्ध है कि कुत्तों के बिना कारोबार नहीं चल सकता। कुछ खुले आम कुत्ते पालते हैं, कुछ चुपके-चुपके। कुछ पालते तो हैं पर सब के सामने मानते नहीं कि, पालते हैं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि कुत्तों के बिना कारोबार एक कदम भी नहीं चल सकता। जो लोग बिना कुत्ते पाले कारोबार चलाने की बात करते हैं, वे या तो निरे बेवकूफ हैं और कारोबार डुबोने में लगे हैं; या फिर वे होशियार बनने की कोशिश करते हैं। गुपचुप तरीके से अंडरग्राउंड में कुत्ते पालते हैं और साफ मुकर जाते हैं कि वे कुत्ते पालते हैं या उन्हें रोटियाँ डाल कर हिलाते हैं। वे जानते हैं कि कुत्ते पालने की यह तकनीक कुछ लोग और सीख गए तो कम्पीटीशन बढ़ जाएगा, इसी लिए झूठ-मूट मना करते हैं। वैसे मैं भी एक निरा बेवकूफ आदमी हूँ। बड़ा होने का गुर जानते हुए भी कुत्ते नहीं पालता। शायद मैं बड़ा ही नहीं बनना चाहता। पर आप बताएँ कि आप का क्या इरादा है? कुत्ते पालने का? या मेरी तरह बने रहने का? 

पाबला जी को मातृशोक

 




श्रीमती हरभजन कौर
'हिन्दी ब्लागरों के जन्मदिन, ज़िंदगी के मेले, इंटरनेट से आमदनी, कल की दुनिया और  कम्प्यूटर सुरक्षा' ब्लॉग वाले श्री बी.एस.पाबला जी की माता जी श्रीमती हरभजन कौर का कल 18 नवम्बर 2010 को  अपरान्ह देहान्त हो गया है। कुछ दिन पहले ही उन का पुत्र गुरुप्रीत सिंह एक सड़क दुर्घटना में घायल हुआ था और अस्पताल में भर्ती था। अपने पौत्र के घायल होने का समाचार दादी बर्दाश्त नहीं कर सकीं और उन्हें ब्रेन हेमरेज हो गया। उन्हें तत्काल अस्पताल ले जाया गया। चिकित्सकों के भरपूर प्रयास के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। 

श्रीमती हरभजन कौर का अंतिम संस्कार आज 19 नवम्बर शुक्रवार को प्रातः 11 बजे भिलाई में रामनगर मुक्तिधाम में संपन्न होगा। 

पाबला जी की माता जी को 'अनवरत' और 'तीसरा खंबा' की विनम्र श्रद्धान्जलि!!!







गुरुवार, 18 नवंबर 2010

घूम-फिर कर, फिर यहीं आना है, यही मुकम्मल आशियाना है।

एक दिन के वकील
ज 18 नवम्बर हो गई है पिछली 15 नवम्बर के बाद अनवरत पर पोस्ट नहीं हुई। इसे समय की कमी कहा जा सकता है कुछ भौतिक और कुछ मानसिक व्यस्तताएँ रहीं। पिछली पोस्ट डॉ. अरविंद मिश्रा जी को डरावनी लगी, क्यों लगी? यह शोध का विषय है। 16 नवम्बर की दोपहर ललित शर्मा कोटा पहुँचे, ठीक 12 बज कर 3 मिनट पर कोटा की धरती  पर उन के कदम पड़े। मैं तो उन के इंतजार में था ही प्रकृति ने भी उन के स्वागत की तैयारी की हुई थी। बरसात कुछ उन्हों ने पहले ही यहाँ भेज दी थी, कुछ साथ ले कर आए थे। हमारी कार कई दिनों से सेवा की मांग कर रही थी। लेकिन ललित जी के आगमन के एक दिन पहले सेल्फ स्टार्टर ने अपना रंग दिखाया और रूँऊँऊँ......... कर के रह गया। हम ने बाइक से काम चलाया। उन के आने के दिन तो बारिश हो गयी। घर के नजदीक की सड़क के किनारे कुछ दिन पहले सीवर लाइन के पाइप डाले गये थे। मिट्टी ऊपर आई हुई थी, बरसात से वह सड़क पर आ गई। काली चिकनी मिट्टी ने फिसलने का पूरा-पक्का इंतजाम कर दिया। हम ने कार को अस्पताल पहुँचाया पूरी सेवा के लिए। बाइक पर अपना आत्मविश्वास वैसा ही रहता है जैसे साक्षात्कार देते वक्त नौकरी पाने वाले का रहता है। इस लिए बाइक को घर में ही रखा और बीस साल पुराना स्कूटर उठा कर अदालत पहुँचे। सोचा अपने जूनियर को कहेंगे कार ले चलेगा और ललित शर्मा जी को घर ले आएगा। पर ऐन वक्त जूनियर अदालत में फँस गया। 
अधरशिला
खैर, वकील मित्र राघवेंद्रपाल काम आए, अपनी स्विफ्ट डिजायर से ललित जी को स्टेशन से ला कर हमारे घर छोड़ा। रास्ते से हम कोटा की मशहूर कचौड़ियाँ और खम्मन लेते आए थे, ललित जी को उन्हीं का नाश्ता कराया गया, यह बताते हुए कि अमिताभ बच्चन इन्हें खा कर कोलाइटिस के शिकार हो चुके हैं। हालांकि उन की गलती थी कि वे बासी कचौड़ी को गर्म कर के खाए थे, एक दम ताजा है। हम इस नाश्ते में शामिल नहीं थे।  बाद में राघवेंद्र बता रहे थे कि आप के मित्र बड़े इन्फोर्मल हैं, वे मेजबान की तरह मुझे कचौड़ियाँ परोसते रहे। हमें कुछ मुकदमे और निपटाने थे, हम अदालत चले गए। कम्प्यूटर पर मोर्चा संभाला ललित शर्मा ने और एक दिन के वकील हो गए। शाम को चार बजे तक लौटे तब तक न जाने क्या-क्या कर चुके थे। साढ़े पाँच बजे कार अस्पताल से फोन आया कि कार तैयार है। मैं और ललित जी पैदल ही जा कर कार ले आए। अब घूमने का कार्यक्रम था।  
मुक्तिधाम
रसात, भरमार शादियों के पहले का दिन और शहर में कीचड़। कोटा के ब्लागरों को इकट्ठा करने का अवसर ही नहीं था। कुल मिला कर केवल अख़्तर खान अकेला नजर आए, उन्हें टेलीफोन कर बुलाया। ललित जी की चंबल देखने की इच्छा थी। हमने उन्हें कई किनारे सुझाए, पर उन्हें मुक्तिधाम वाला स्थान ही रुचिकर लगा। रात के अंधेरे में हम कोटा के सब से सुंदर शमशान में पहुँचे तो वहाँ सिस्टम पर संगीत बज रहा था। निकट ही अधर शिला थी, अख़्तर ने उस का उल्लेख किया तो हम वहाँ पहुँचे। वहाँ भी कब्रिस्तान निकला। वहाँ से चौपाटी पर कुल्फी और पान खा कर अख्त़र के वकालत दफ्तर में पहुँचे जहाँ भेंट में ललित शर्मा को कोटा की जानकारी देने वाली एक पुस्तक और मुझे कुऱआन की हिन्दी प्रति भेंट में मिली। मैं ने अख़्तर भाई के कान में बोला। यार! ये ललित शर्मा को हमने क्या दिखाया? शमशान और कब्रिस्तान जैसे कह रहे हों, बेटे सारी दुनिया घूम आओ, घूम फिर कर फिर यहीं आना है, यही मुकम्मल आशियाना है।
ललित शर्मा, मैं और अख़्तर
र लौटते ही अख्त़र खिसक लिए, अगले दिन ईद थी और उन्हें  उस की तैयारियाँ भी करनी थीं। हम  ने ललित जी के साथ भोजन किया और उन्हें हिदायत दी कि वे कुछ समय बिस्तर पर बिताएँ। रात दो बजे स्टेशन के लिए निकले। ट्रेन लेट थी। चित्तौड़ जाने वाली इस ट्रेन ने तीन बज कर सात मिनट पर प्लेटफॉर्म छोड़ा। हम घर लौट कर बिस्तरशरण हुए तो सुबह साढ़े नौ बजे आँख खुली। ललित जी को फोन लगाया तो तसल्ली हुई कि वे सुबह छह बजे ही चित्तौड़ पहुँच चुके थे और अब इन्दु गोस्वामी की हिरासत में हैं और मौज कर रहे हैं।
ज फिर समय की कमी है। अदालत की छुट्टी करनी पड़ेगी। हमारे नए मकान के लिए जो भूखंड़ देखा गया है उस पर निर्माण के आरंभ का दिन है। श्रीमती शोभा भूमि पूजा की तैयारी कर रही हैं, हमें हिदायत है कि तुरंत नहा लिया जाए और बाजार से सारा सामान लाया जाए। मुहूर्त पर सब कुछ यथावत हो जाना चाहिए। अच्छा तो टा! टा!  बाय! बाय! फिर मिलते हैं...................