लवली कुमारी के ब्लाग संचिका पर उन का आलेख स्त्रियों में मनोरोग पराशक्तियाँ और कुछ विचार पढ़ा। पसंद भी आया। मुझे अपने दो मामाओं के बीच का वार्तालाप स्मरण हो आया।
मेरे मामा जी, पंडित चंदालाल शर्मा शानदार ज्योतिषी थे इलाके में उन का नाम था। हालांकि उन्हों ने इसे पेशा कभी नहीं बनाया। यूँ एक बीड़ी कारखाने के मालिक थे। उन के मित्र वैद्य पं. कृष्णगोपाल पारीक नामी वैद्य थे। उन की स्वयं की औषध शाला थी और भारतीय जड़ी बूटियों के माध्यम से चिकित्सा पर अधिकार था। उन्हों ने एक आयुर्वेद महाविद्यालय भी कुछ बरस चलाया जिस ने इस क्षेत्र में सैंकड़ों लोगों को वैद्य बनाया। आज भी वे लोग गांवों में चिकित्सा सेवा दे रहे हैं। माँ बैद्य जी को राखी बांधती थीं और वैद्य जी ने उस राखी के रिश्ते को मामा जी से भी बढ़ कर निभाया। आज भी उस परिवार के लोग उस रिश्ते को उसी तरह निभाते हैं।
एक दिन मैं मामा जी से मिलने गया तो वैद्य मामा भी वहीं बैठे थे। दोनों में इस विषय पर वार्तालाप चल रहा था कि लोगों पर जो भूत-प्रेत चढ़ आते हैं उन का क्या इलाज है? मामा जी ने मेरे नाना द्वारा भूत उतारने के किस्से सुनाए। काशी गुरुकुल से विद्या प्राप्त वैद्य मामा कहाँ पीछे रहने वाले थे। उन्हों ने भी एक किस्सा छेड़ दिया। यह किस्सा मुझे इस लिए भी स्मरण रहा क्यों कि यह उस औरत पर से भूत उतारने से संबद्ध था जो उस मकान में रहती थी जिस के पास के मकान में मैं पैदा हुआ था।
उस औरत को अचानक भूत चढ़ने लगा। पहले पहल ऐसा महिने, दो महिने में हुआ करता था। फिर आवृत्ति बढ़ती गई। भूत महाराज सप्ताह में दो-तीन बार आने लगे। घर वाले परेशान। एक दिन औरत पर भूत चढ़ा हुआ था कि औरत गली में निकल आई। वैद्य मामा उधर से गुजर रहे थे। उन्होंने वैसे ही पूछ लिया यह क्या हो रहा है? उन की पूरे मोहल्ले पर ही नहीं पूरे इलाके में धाक थी। उस महिला के पति ने वैद्य मामा से कहा कि 'इसे पिछले चार पांच महिने से भूत चढ़ता है। पहले तो दस-पांच मिनट में उतर जाता था। पर अब तो एक-एक घंटा हो जाता है और सप्ताह में दो-तीन बार चढ़ जाता है। आप के पास कोई इलाज/उपाय हो तो बताएँ। वैद्य मामा सोच में पड़ गए। थोड़ी देर बाद कहा कि इसे किसी तरह मकान के अंदर कमरे में ले चलो और एक धूपेड़े (हनुमान जी, माताजी और भैरव मंदिरों में धूप जलाने के लिए रखा जाने वाला मिट्टी का डमरू के आकार का बरतन) में कंडे जला कर रखें।
पति कुछ लोगों की मदद से भूत चढ़ी पत्नी को जैसे-तैसे अपने मकान के कमरे तक ले गया। कुछ ही देर में मामा वैद्य जी वहाँ पहुँच गए। उन्हों ने कमरे का निरीक्षण किया कमरे में हवा-रोशनी आने के लिए दरवाजे के अलावा केवल एक खिड़की थी। उन्हों ने खिड़की को बंद करवा दिया। तब तक धूपे़ड़े में जल चुके कंडे आग में बदल चुके थे। वैद्य जी ने उस आग में कुछ डाला तो तेज गंध आई। वैद्य जी ने सब को कमरे से बाहर निकाला और धूपेड़ा कमरे में ले गए। औरत जोर से चिल्लाने लगी -मुझे कौन भगाने आया। मैं न जाउँगा। मिनट भर बाद ही एक कागज की पुड़िया में से कोई दवा उन्हों ने धूपेड़े में डाली और फौरन कमरे से बाहर आ कर दरवाजे के किवाड़ लगा कर कुंडी लगा दी। अंदर से औरत के चिल्लाने की आवाजें आईँ। फिर वह जोरों से खाँसने लगी। फिर उस के खाँसने की आवाज भी बंद हो गई। वैद्य जी ने तुंरत लोगों को दूर जाने को कहा और किवाड़ व खिड़की खोल दी। अंदर से बहुत सा धुँआ निकला। जो भी उस की चपेट में आया वही खाँसने लगा। औरत अचेत पड़ी थी। वैद्य जी ने उस औरत के पति को कहा कि उसे खुले में ले आएँ। कुछ देर में यह ठीक हो जाएगी। तभी औरत ने आँखें खोली और सामान्य हो गई। लोगों को देख घूंघट कर लिया। उस का भूत उतर चुका था।
वैद्य मामा ने जब किस्सा सुना चुके तो मैं ने पूछा आखिर आप ने किया क्या था? कहने लगे -मैं ने बस थोड़ा सा लाल मिर्चों का पाऊडर धूपेड़े में डाला था। जिस के धुँए से औरत बेहाल हो कर बेहोश हो गई। होश में आई तो उस का भूत उतर गया था।
-और उस औरत को कुछ हो जाता तो? मैं ने पूछा।
मैं वहीं था। इलाज कर देता।
फिर कभी उस औरत को भूत चढ़ा या नहीं? मैं ने जिज्ञासावश पूछा।
वैद्य मामा ने बताया कि भूत तो फिर भी उस पर चढ़ता था। लेकिन तभी जब मैं गाँव में नहीं होता था। शायद भूत मुझ से डर गया था।