आज अजित वडनेरकर जी के शब्दों के सफर पर प्रकाशित आलेख ने एक टाइम मशीन की तरह काम करते हुए मुझे अपनी किशोरावस्था में पहुँचा दिया। शायद इसे ही कहते हैं भूतकाल की सैर करना। तो इस टाइम मशीन ने मुझे स्काउटिंग के कैंप में पहुँचाया। जहाँ मैं ने देखा कि मैं गाँठें सीख रहा हूँ। मैं ने बहुत सारी गांठें सीख ली हैं, जिन का उपयोग मैं अनेक कामों में कर सकता हूँ। जैसे रीफ नॉट है जिस का उपयोग किसी घाव पर पट्टी को अंतिम रूप देने के लिए किया जाता है, जिस से गांठ तो लगे लेकिन वह घाव में न चुभे। किसी स्तंभ से किसी पशु को बांधना हो तो खूंटा फाँस का उपयोग किया जा सकता है इसे अंग्रेजी में क्लोव हिच कहते हैं। लेकिन किसी पशु के गले में इसे न लगा देना, अन्य़था यह उस के लिए फाँसी का फंदा बन सकती है। वहाँ हमें लूप नॉट का प्रयोग करना होगा।
ऐसी ही बहुत सी गांठे मैं ने सीखीं। फिर बहुत से स्काउटिंग के कैंपों में होता हुआ मैं एक कैंप में पहुँचा। यह भी एक प्रशिक्षण शिविर था जो माउंट आबू में लगाया गया था। इस में सब स्काउट प्रथम श्रेणी स्काउट का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे। मैं अकेला था जो यह प्रशिक्षण पहले ही प्राप्त कर प्रमाण पत्र ले चुका था, मुझे राष्ट्रपति स्काउट का प्रशिक्षण लेना पड़ा। यहाँ रस्सियों, लट्ठों, बाँसों, केम्प क्षेत्र के वृक्षों आदि की सहायता से गाँठें लगा लगा कर मैं ने अनेक गैजेट्स बनाए। एक पेड़ से दूसरे पेड़ के बीच एक पुल बनाया। दोनों और पुल तक पहुँचने के लिए रस्सियों की सीढ़ियाँ लगाई गईं। केम्प में उपस्थित प्रत्येक स्काउट और स्काउट मास्टर सीढ़ी पर हो कर पुल पर जाता है और पुल पार करता है फिर दूसरी ओर की सीढ़ी से उतरता है।
ऐसा ही एक और शिविर है चम्बल के किनारे, जहाँ प्रतियोगिता है। मैं एक गैजेट नाव बनाता हूँ जिस में एक बाईसिकल चढ़ाई जाती है। यह क्या? बाईसिकल पर बैठ कर पैड़ल चलाते हुए नदी पार की जा सकती है। यानी अब बाईसिकल अब नदी में भी चल रही है।
मैं वापस वर्तमान में लौट आता हूँ। वडनेरकर जी के शब्दों के सफर पर एक टिप्पणी करता हूँ। फिर एक वेबसाइट तलाशता हूँ। बहुत शानदार है यह वेबसाइट यहाँ गाँठें हैं और उन्हें सिखाने का पूरा प्रबंध है। आप इन्हें सीखना चाहते हैं तो नीचे के चित्र पर या यहाँ क्लिक कीजिए, जो वेब-पृष्ठ खुले उस पर मौजूद किसी गाँठ पर क्लिक कीजिए। अरे वाह! यहाँ तो ऐनीमेशन पूरी गाँठ लगाना सिखा रहा है।
देखते हैं आप कितनी गाँठें कितने दिन, मिनटों या सैकंडों में सीखते हैं।