आखिर किस से मापें
तेरा माप
सारे पैमाने देख लिए
माप कर
भोपाल दुखांतिका के
अपराधियों को दंड
आज वह भी देख लिया
सरकारी आँकड़ों में
सिर्फ साढ़े तीन हजार
बचाव करने वालों के मुताबिक
पच्चीस हजार जानें लील लेने
हजारों और को
सदा के लिये बीमार
कर देने वालों को
दो वर्ष की कैद,
जुर्माना सिर्फ एक-
एक लाख रुपया,
अपील करने का हक,
उस के फैसले तक के लिए
फौरन जमानत
और कितना वक्त?
क्या कम थे?
तेईस बरस
क्या किया था?
सुखिया ने
खाली कटोरदान
ही तो उठा कर फेंका था
तीन दिन की
भूख से बिलखते
बेटे के सिर पर
कमबख्त!
अपनी माँ का प्यार और
जमाने पर गुस्सा
नहीं झेल पाया
मर गया
सुखिया ने मान लिया
खुद ही, अपराध अपना
कोई काम शेष न था
जजों के पास
उसे सजा देने के पहले का
अब जेल में बंद है
पिछले पाँच बरस से, कि
कब खत्म हो
मुकदमे की सुनवाई?
वह तो मान चुकी है
इसे ही अपनी सजा
बाहर होती?
तो कब की मर जाती
छूट चुकी होती
जमाने के नर्क से
आखिर किस से मापें
तेरा माप
सारे पैमाने देख लिए
माप कर
- दिनेशराय द्विवेदी